Updated on 20.09.2019 17:55
🙏🌸*⃣🌸🙏🌸*⃣🌸🙏🌸*⃣'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...
🔰 *सम्बोधि* 🔰
📜 *श्रृंखला -- 43* 📜
*अध्याय~~3*
*॥आत्मकर्तृत्ववाद॥*
💠 *भगवान् प्राह*
*32. प्रान्तानि भजमानस्य, विविक्तं शयनासनम्।*
*अल्पाहारस्य दान्तस्य, दर्शयन्ति सुरा निजम्।।*
जो निस्सार भोजन, एकांत वसति, एकांत आसन और अल्पाहार का सेवन करता है, जो इंद्रियों का दमन करता है, उसके सम्मुख देव अपने आप को प्रकट करते हैं।
*33. अथो यथास्थितं स्वप्नं, क्षिप्रं पश्यति संवृतः।*
*सर्वं वा प्रतरत्योधं, दुःखाच्चापि विमुच्यते।।*
संवृत आत्मा यथार्थ स्वप्न को देखता है, संसार के प्रवाह को शीघ्र तर जाता है और दुःख से मुक्त हो जाता है।
*34. सर्वकामविरक्तस्य, क्षमतो भयभैरवम्।*
*अवधिर्जायते ज्ञानं, संयतस्य तपस्विनः।।*
जो सब कामनाओं से विरक्त है, जो भयानक शब्दों, अट्टाहासों और परिषहों को सहन करता है, जो संयत और तपस्वी है, उसे अवधिज्ञान उत्पन्न होता है।
💠 *मेघः प्राह*
*35. दृश्यते जीवलोकोऽयं, नानारूपे विभक्तिमान्।*
*नानाप्रवृत्तिं कुर्वाणः, कर्त्तृव्यं कस्य विद्यते।।*
मेघ बोला— भगवन्! यह जीव-जगत विभिन्न रूपों में विभाजित दिखाई दे रहा है और यह नाना प्रकार की प्रवृत्तियां करता है। इन सबके पीछे किसका कर्तृत्व है? यह मैं जानना चाहता हूं।
*साश्रव चेतना कर्माकर्षक होती है... भाव और व्यवहार का सेतु... चेतना का विकास और ह्रास... बाह्य विकास और ह्रास का कारण... आवारक, विकारक और संवेदनाकारक कर्म...* समझेंगे और प्रेरणा पाएंगे... आगे के श्लोकों में... हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...
प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻
🙏🌸*⃣🌸🙏🌸*⃣🌸🙏🌸*⃣
Updated on 20.09.2019 17:55
🌼🍁🌼🍁🍁🍁🍁🌼🍁🌼जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति
🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏
📖 *श्रृंखला -- 131* 📖
*भक्तामर स्तोत्र व अर्थ*
*1. भक्तामरप्रणतमौलिमणिप्रभाणा*
*मुद्योतकं दलितपापतमोवितानम्।*
*सम्यक् प्रणम्य जिनपादयुगं युगादा-*
*वालम्बनं भवजले पततां जनानाम्।।*
भगवान् ऋषभ के चरण-युगल को विधिवत् प्रणाम कर मैं उनकी स्तुति करूंगा, जो चरण-युगल भक्त देवताओं के झुके हुए मुकुट की मणियों की प्रभा को प्रकाशित करने वाले हैं, पाप रूपी अंधकार के विस्तार को विदलित करने वाले हैं, युग की आदि में संसार समुद्र में गिरते हुए प्राणियों को आलंबन देने वाले हैं।
*2. यः संस्तुतः सकलवाङ्मयतत्त्वबोधा-*
*दद्भूतबुद्धिपटुभिः सुरलोकनाथैः।*
*स्तोत्रैर्जगत्त्रियचित्तहरैरुदारैः*
*स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम्।।*
संपूर्ण वाङ्मय के तत्त्वज्ञान से उत्पन्न बुद्धि से पटु इंद्रो के द्वारा तीनों जगत् के चित्त को हरण करने वाले विशाल स्तोत्रों से जिसकी स्तुति की गई है, उस प्रथम तीर्थंकर (भगवान् ऋषभ) कि मैं भी स्तुति करूंगा।
*3. बुद्ध्या विनाऽपि विभुधार्चितपादपीठ!*
*स्तोतुं समुद्यतमतिर् विगतत्रपोऽहम्।*
*बालं विहाय जलसंस्थितमिन्दुबिम्ब-*
*मन्यः क इच्छति जनः सहसा ग्रहीतुम्।।*
देवताओं द्वारा अर्चित पादपीठ वाले प्रभो! बुद्धि रहित होकर भी मेरी मति आपकी स्तुति करने के लिए उद्यत हो रही है। इसका हेतू है— मेरा संकोचशून्य भाव अथवा साहस। जल में स्थित चंद्रमा के बिंब को बच्चे के सिवाय कौन दूसरा व्यक्ति पकड़ने की इच्छा करता है?
*4. वक्तुं गुणान् गुणसमुद्र! शशांककान्तान्,*
*कस्ते क्षमः सुरगुरुप्रतिमोऽपि बुद्ध्या।*
*कल्पान्त-काल-पवनोद्धत-नक्रचक्रं,*
*को वा तरीतुमलमम्बुनिधिं भुजाभ्याम्।।*
हे गुणसमुद्र! बुद्धि से बृहस्पति के सदृश भी कोई व्यक्ति क्या आपके चंद्रमा के समान कांत गुणों का वर्णन करने में समर्थ है? प्रलयकाल की हवा से उद्धत मगरमच्छ के समूह वाले समुद्र को भुजाओं से तैरने में कौन समर्थ है?
*मानतुंग कहते हैं कि वे भगवान् ऋषभ के गुणों का वर्णन करने में अक्षम हैं... फिर भी उनका स्तवन करने के लिए प्रवृत्त हुए हैं... क्यों...?* जानेंगे और समझेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
🌼🍁🌼🍁🍁🍁🍁🌼🍁🌼
Updated on 20.09.2019 17:55
🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 143* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*जीवन के विविध पहलू*
*14. जैसे को तैसा*
स्वामीजी के पास बहुधा अध्यात्म-चर्चा-रसिक व्यक्ति ही आया करते थे, परंतु कभी-कभी ऐसे व्यक्ति भी आ जाते थे, जो केवल फल्गुवादी या वितण्डावादी होते थे। स्वामीजी ऐसे व्यक्तियों से प्रायः बचने का ही प्रयास करते, परंतु कभी-कभी उन्हें ऐसा उत्तर भी दे देते थे, जिसे 'जैसे को तैसा' कहा जा सकता है। ऐसा उत्तर देने में उनका उद्देश्य झगड़ा या वितण्डा करने वालों को तत्काल चुप तथा निरुत्तर कर देना होता था।
*'ता' और 'तं' कितने?*
स्वामीजी आउवा में विराजमान थे। नगजी नामक व्यक्ति ने पूछा— 'भीखणजी! सुना है, आप बड़े आगमज्ञ हैं, तो तत्काल बताइए कि 'तस्सुत्तरी' पाठ में 'ता' कितने हैं और 'तं' कितने हैं?'
स्वामीजी उस विचित्र प्रश्न को सुनकर जरा मुस्कुराए और बोले— 'मैं तो कोई बहुत बड़ा आगमज्ञ नहीं हूं, परंतु लगता है तुमने तो आगमों के अक्षर-अक्षर गिने रखे हैं। तुम्हीं बताओ, भगवती में 'का' कितने हैं और 'कं' कितने हैं? 'खा' कितने हैं और 'खं' कितने हैं?'
आगे चर्चा का मार्ग अवरुद्ध पाकर फल्गुवादी चुपचाप वहां से चलता बना।
*धर्म हुआ या अधर्म?*
आचार्य रघुनाथजी ने स्वामीजी से पूछा— 'भीखणजी! जोधपुर-नरेश विजयसिंहजी ने सरोवरो और कूपों पर राज्य की ओर से छनने रखवा दिए हैं और आदेश भी घोषित किया है कि प्रत्येक व्यक्ति पानी को छानकर ले जाए। उन्होंने दीपक पर ढक्कन रखने तथा वृद्ध माता-पिता की सेवा करने आदि के भी आदेश घोषित किए हैं। तुम बताओ, इन कार्यों में राजाजी को धर्म हुआ या अधर्म?'
स्वामीजी ने कहा— 'धर्म-अधर्म के निर्णय से पूर्व यह तो बतलाइए कि आप नरेश को सम्यक्त्वी मानते हैं या मिथ्यात्वी? क्योंकि हमारे मंतव्य से तो मिथ्यात्वी व्यक्ति भी यदि सत्क्रिया करता है तो उसे धर्म होता है, परंतु आपका मंतव्य इससे सर्वथा विपरीत है कि मिथ्यात्वी व्यक्ति चाहे शील, सत्य और तप का आचरण क्यों न करता हो, पर वह सब धर्म का हेतु न होकर भव-बंधन का हेतु ही होता है।'
आचार्य रघुनाथ जी उत्तर में कुछ नहीं बोले। क्योंकि नरेश को सम्यक्त्वी वे मानते नहीं थे और मिथ्यात्वी कहने पर स्वयं उनके ही मंतव्यानुसार उनकी हर क्रिया भववर्धक सिद्ध हो जाती।
*आचार्य रघुनाथजी द्वारा स्वामीजी के विरुद्ध वातावरण बनाने की चेष्टा के एक प्रसंग...* के बारे में जानेंगे... समझेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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Updated on 20.09.2019 17:55
👉 बारडोली - शैक्षणिक प्रतिभा सम्मान समारोह👉 उधना, सूरत - तप अभिनन्दन समारोह
👉 विजयनगर, बेंगलुरु - तेयुप द्वारा सेवा कार्य
👉 टॉलीगंज, कोलकाता - अभातेयुप महामंत्री द्वारा संगठन यात्रा
👉 कुम्बलगुडु, बेंगलुरु - निशुल्क मधुमेह जांच शिविर का आयोजन
👉 वापी - अभातेयुप संगठन यात्रा
👉 साकरी (महा) - तपअभिनंदन समारोह
👉 बारडोली - अभातेयुप संगठन यात्रा
👉 सिरसा - रक्तदान शिविर का आयोजन
👉 चिक्कमंगलूर ~ अभातेयुप की संगठन यात्रा
प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻
Updated on 20.09.2019 17:55
🧬🧲🧬🧲🧬🧲🧬🧲🧬🧲🧬🏭 *_आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र,_ _कुम्बलगुड़ु, बेंगलुरु, (कर्नाटक)_*
💦 *_परम पूज्य गुरुदेव_* _अमृत देशना देते हुए_
📚 *_मुख्य प्रवचन कार्यक्रम_* _की विशेष_
*_झलकियां_ _________*
🌈🌈 *_गुरुवरो घम्म-देसणं_*
⌚ _दिनांक_: *_20 सितंबर 2019_*
🧶 _प्रस्तुति_: *_संघ संवाद_*
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
🧬🧲🧬🧲🧬🧲🧬🧲🧬🧲🧬
⛲❄⛲❄⛲❄⛲
⛩
आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ
चेतना सेवा केन्द्र,
कुम्बलगुड़ु,
बेंगलुरु,
⛳
महाश्रमण चरणों मे
📮
: दिनांक:
20 सितम्बर 2019
🎯
: प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻
⛲❄⛲❄⛲❄⛲
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आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ
चेतना सेवा केन्द्र,
कुम्बलगुड़ु,
बेंगलुरु,
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महाश्रमण चरणों मे
📮
: दिनांक:
20 सितम्बर 2019
🎯
: प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन
👉 *#कैसे #सोचें *: #श्रंखला ९*
एक #प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
#Preksha #Foundation
Helpline No. 8233344482
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
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🌻 #संघ #संवाद 🌻
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👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला २६१* - *विचार क्यों आते है १२*
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