21.09.2019 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 22.09.2019
Updated: 22.09.2019
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'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...

🔰 *सम्बोधि* 🔰

📜 *श्रृंखला -- 44* 📜

*अध्याय~~3*

*॥आत्मकर्तृत्ववाद॥*

💠 *भगवान् प्राह*

*36. विभक्तिः कर्मणा लोके, कर्मास्ति चेतनाकृतम्।*
*चेतना सास्रवा तेन, कर्माकर्षति सन्ततम।।*

भगवान् ने कहा— यह सारा विभाजन कर्म के द्वारा निष्पन्न होता है। कर्म करने वाली है चेतना। वह आस्रवयुक्त होती है, इसलिए कर्मों का आकर्षण सतत करती रहती है।

*37. यथा भावस्तथा कर्म, यथा कर्म तथा रसः।*
*विचारस्तादृगाचारो, व्यवहारोऽपि तादृशः।।*

व्यक्ति का जैसा भाव— अंतश्चेतना का परिणाम होता है, वैसा कर्म होता है। कर्म के अनुसार उसका रस– विपाक होता है। रस के अनुसार विचार पैदा होते हैं। जैसे विचार होते हैं, वैसा ही आचार होता है। आचार के अनुरूप व्यक्ति का व्यवहार फलित होता है।

*38. कर्माणि क्षीणतां यान्ति, विकासो जायते चितः।*
*तानि प्रबलतां यान्ति, ह्रासस्तस्याः प्रजायते।।*

कर्मों के क्षय होने से चेतना का विकास होता है और उनके प्रबल हो जाने से चेतना का ह्रास होता है।

*39. सुचीर्णैः कर्मभिर्जीवाः, विकासं यान्ति बाह्यतः।*
*दुश्चीर्णैः कर्मभिर्जीवाः, ह्रासं यान्ति बहिस्तनम्।।*

सदाचरण से निष्पन्न कर्मों के द्वारा जीव का भौतिक विकास होता है और दुराचरण से निष्पन्न कर्मों के द्वारा उसका भौतिक ह्रास होता है।

*40. आवारका अंतराय-कारकाश्च विकारकाः।*
*प्रियाप्रियनिदानानि, पुद्गलाः कर्मसंज्ञिताः।।*

कुछ कर्म-पुद्गल आत्मा के ज्ञान, दर्शन के आवारक हैं, कुछ आत्मशक्ति को प्रतिहत करते हैं, कुछ विकारक हैं— आत्मचेतना में विकृति उत्पन्न करते हैं और कुछ प्रिय-अप्रिय संवेदन के निमित्त बनते हैं।

*कर्म की परिभाषा... कर्म-विपाक का परिणाम... पूर्ण नैष्कर्म योग कब-कहां...? अपूर्ण नैष्कर्म योग का परिणाम... सत्कर्मा-आत्मा का स्वरूप...* समझेंगे और प्रेरणा पाएंगे... आगे के श्लोकों में... हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...

प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति

🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏

📖 *श्रृंखला -- 132* 📖

*भक्तामर स्तोत्र व अर्थ*

*5. सोऽहं तथापि तव भक्तिवशान्मुनीश!*
*कर्तुं स्तवं विगतशक्तिरपि प्रवृत्तः।*
*प्रीत्याऽऽत्मवीर्यमविचार्य मृगो मृगेन्द्रं,*
*नाभ्येति किं निजशिशोः परिपालनार्थम्।।*

हे मुनीश! आपके गुणों का वर्णन करने में अक्षम हूं, फिर भी मैं तुम्हारा स्तवन करने के लिए प्रवृत्त हुआ हूं। इसका हेतु है भक्ति। अपनी शक्ति का विचार किए बिना अपने शिशु का परिपालन करने के लिए क्या मृग सिंह का मुकाबला नहीं करता? करता है। इसका हेतु है प्रीति।

*6. अल्पश्रुतं श्रुतवतां परिहासधाम,*
*त्वद्भक्तिरेव मुखरीकुरुते बलान्माम्।*
*यत्कोकिलः किल मधौ मधुरं विरौति,*
*तच्चारुचाम्रकलिकानिकरैकहेतु।।*

मैं अल्पश्रुत वाला हूं और विद्वानों के उपहास का पात्र हूं। तुम्हारी भक्ति ही मुझे बलपूर्वक मुखर कर रही है। वसंत ऋतु में कोयल मधुर बोलती है, उसका हेत है आम की सुंदर मञ्जरी का समूह।

*7. त्वत्संस्तवेन भवसन्ततिसन्निबद्धं,*
*पापं क्षणात्क्षयमुपैति शरीरभाजाम्।*
*आक्रान्त-लोकमलिनीलमशेषमाशु*
*सूर्यांशुभिन्नमिव शार्वरमन्धकारम्।।*

तुम्हारे स्तवन ऐसे ही जन्म-परंपरा से अर्जित प्राणियों के पाप क्षण भर में वैसे ही नष्ट हो जाते हैं, जैसे समस्त संसार को आक्रांत करने वाला भ्रमर के समान काला रात्रि का अंधकार सूर्य की किरणों से छिन्न-भिन्न हो जाता है।

*8. मत्वेति नाथ! तव संस्तवनं मयेद-*
*मारभ्यते तनुधियाऽपि तव प्रभावात्।*
*चेतो हरिष्यति सतां नलिनीदलेषु*
*मुक्ताफलद्युतिमुपैति ननूदबिन्दुः।।*

हे नाथ! तुम्हारी स्तुति सब पाप का नाश करने वाली है, ऐसा मानकर मैं अल्प मति होता हुआ भी तुम्हारे स्तवन की रचना कर रहा हूं। वह तुम्हारे प्रभाव से सज्जन व्यक्तियों के चित्त को हरण करेगा, जैसे कमलिनी के पत्तों पर जल की बूंदें मोती की भांति चमकने लगती हैं।

*भगवान् ऋषभ का स्तवन समस्त दोषों का नाश करने वाला है...* जानेंगे और समझेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻

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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।

🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞

📜 *श्रृंखला -- 144* 📜

*आचार्यश्री भीखणजी*

*जीवन के विविध पहलू*

*14. जैसे को तैसा*

*कलाल का पानी*

चेलावास के ठाकुर जूझारसिंहजी संतो के बड़े भक्त थे। एक बार आचार्य रघुनाथजी और स्वामी भीखणजी दोनों ही वहां आ गए। आचार्य रघुनाथजी ने स्वामीजी के विरुद्ध वातावरण बनाने के लिए जूझारसिंहजी के पास जाकर कहा— 'भीखण मेरा शिष्य है, परंतु उत्पथगामी होकर वह दान और दया का विरोध करता है।' वे बातें कर ही रहे थे कि संयोगवश उसी समय स्वामीजी भी आ गए। ठाकुर ने पूछा— 'क्या आप दान और दया का विरोध करते हैं?'

स्वामीजी उनके प्रश्न से ही समझ गए कि आचार्यजी ने उनको क्या-कुछ समझाया है? ठाकुर के प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा— 'दान और दया का विरोध करेगा, वह साधु ही कैसे होगा? मैं उनका विरोध नहीं करता, परंतु उनमें शुद्धाशुद्धि का विवेक रखने की बात करता हूं।'

ठाकुर— 'यह तो कोई विपरीत बात नहीं हुई।'

स्वामीजी— 'यही तो आश्चर्य है कि जो विपरीत नहीं है, उसे विपरीत सिद्ध करने में एड़ी-चोटी का पसीना एक किया जा रहा है और जो विपरीत है, उसकी ओर से आंखें मूंदी जा रही हैं।'

ठाकुर— 'वह कैसे?'

स्वामीजी— 'ऐसे अनेक कार्य हैं, परंतु अभी उदाहरणस्वरूप एक कार्य आपको बतला रहा हूं। हम जैन संत प्रासुक–उष्ण जल काम में लेते हैं। घरों में वह थोड़ा-थोड़ा मिलता है। कलाल के यहां एक ही स्थान पर पर्याप्त मिल जाता है, परंतु जहां शराब बनती है, वहां जल के लिए जाना मुझे तो व्यवहार-विपरीत लगता है। आप ही कहिए, आपको कैसा लगता है?'

ठाकुर— 'आप जल-ग्रहण की बात करते हैं, मेरी दृष्टि से तो संतो को वहां जाना ही नहीं चाहिए। वहां रात-दिन शराब की भट्टियां चलती हैं। ऐसे स्थान पर जाने से लोक-निंदा की संभावना है।'

स्वामीजी— 'आप आचार्यजी से पूछिए कि ये वहां से पानी ग्रहण करते हैं या नहीं?'

ठाकुर उनसे कुछ पूछे, उससे पूर्व ही वे उठकर चल दिए।

*कुछ लोगों का मानना था कि हिंसा के बिना धर्म हो नहीं सकता... इस मान्यता का खंडन करने वाले स्वामीजी के एक दृष्टांत...* के बारे में जानेंगे... समझेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻

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*परम पूज्य आचार्य प्रवर*
के प्रातःकालीन *भ्रमण*
के *मनमोहक* दृश्य
*बेंगलुरु____*


*: दिनांक:*
21 सितंबर 2019

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*: प्रस्तुति:*
🌻 संघ संवाद 🌻

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👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला २६२* - *विचार क्यों आते है १३*

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