👉 सूरत - सुनो वक्त की पुकार करें प्लास्टिक से इंकार कार्यक्रम
👉 उधना, सूरत - सुनो वक्त की पुकार करें प्लास्टिक से इंकार कार्यक्रम
👉 फरीदाबाद - अहिंसा दिवस का आयोजन
👉 फरीदाबाद - सुनो वक्त की पुकार करें प्लास्टिक से इंकार कार्यक्रम
👉 अहमदाबाद - अहिंसा दिवस का आयोजन
👉 वापी - सुनो वक्त की पुकार करें प्लास्टिक से इंकार कार्यक्रम
👉 नागपुर - सुनो वक्त की पुकार करें प्लास्टिक से इंकार कार्यक्रम
👉 अहमदाबाद - गुजरात के द्वितीय अहिंसा प्रशिक्षण केंद्र का उद्घाटन
👉 केलवा - अहिंसा दिवस का आयोजन
👉 जयपुर - अहिंसा दिवस का आयोजन
👉 उदयपुर - सुनो वक्त की पुकार करें प्लास्टिक से इंकार कार्यक्रम
👉 सचिन, सूरत - सुनो वक्त की पुकार करें प्लास्टिक से इंकार कार्यक्रम
प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻
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प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻
🙏🌸*⃣🌸🙏🌸*⃣🌸🙏🌸*⃣
'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...
🔰 *सम्बोधि* 🔰
📜 *श्रृंखला -- 53* 📜
*अध्याय~~5*
*॥मोक्ष-साधन-मीमांसा॥*
*॥आमुख॥*
साध्य की उपलब्धि साधन से होती है। आत्म-सुख साध्य है और उसके साधन हैं— अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह आदि। अहिंसा सब की रीढ़ है। अन्य सब उसी के सहारे पलते हैं। अहिंसा को समझे बिना साध्य भी समझा नहीं जा सकता। उसकी स्वीकृति के बिना साध्य का स्वीकार भी नहीं हो सकता। श्रद्धा, ज्ञान और आचार की समन्विति ही साध्य है।
साध्य की पूर्णता साधन के अभाव में नहीं हो सकती, इसलिए साधन का बोध और आचरण अपेक्षित है। सुख की प्राप्ति के लिए साधनों का अवलंबन लेना आवश्यक है। इस अध्याय में अहिंसा का स्थूल और सूक्ष्म विवेचन है। दोनों पक्षों का बोध सिद्धि के लिए अपेक्षित है। अहिंसा के सिद्ध हो जाने पर समता की उर्मियां सर्वत्र उछलने लगती हैं।
💠 *मेघः प्राह*
*1. प्रभो! तवोपदेशेन, ज्ञातं मोक्षसुखं मया।*
*व्यासेन साधनान्यस्य, ज्ञातुमिच्छामि साम्प्रतम्।।*
मेघ बोला— प्रभो! आपके उपदेश से मैंने मोक्ष-सुख का तात्पर्य जान लिया। अब मैं विस्तार के साथ उसके साधनों को जानना चाहता हूं।
💠 *भगवान् प्राह*
*2. ज्ञानदर्शनचारित्र-त्रयी, तस्यास्ति साधनम्।*
*स धर्मः प्रोच्यते धीमन्! विस्तरं श्रृणु साशयम्।।*
भगवान् ने कहा— धीमन्! ज्ञान, दर्शन और चारित्र— यह त्रयी मोक्ष का साधन है। उसे धर्म कहा गया है। तुम उसे विस्तार से सुनो और उसका आशय समझने का प्रयत्न करो।
*3. अहिंसालक्षणो धर्मः, तितिक्षालक्षणस्तथा।*
*यस्य कष्टे धृतिर्नास्ति, नाऽहिंसा तत्र सम्भवेत्।।*
धर्म का पहला लक्षण है अहिंसा और दूसरा लक्षण है तितिक्षा। जो कष्ट में धैर्य नहीं रख पाता, वह अहिंसा की साधना नहीं कर पाता।
*4. सत्त्वान् स एव हन्याद् यः, स्याद् भीरुः सत्त्ववर्जितः।*
*अहिंसाशौर्यसम्पन्नो, न हन्ति स्वं परांस्तथा।।*
जीवों का हनन वही करता है, जो भीरु और निर्वीय है। जिसमें अहिंसा का तेज है, वह स्वयं का और दूसरों का हनन नहीं करता।
*अहिंसक के स्वरूप का प्रतिपादन... अहिंसा और अभय... भय किसको और किसको नहीं...?* के बारे में जानेंगे... समझेंगे... प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...
प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻
'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...
🔰 *सम्बोधि* 🔰
📜 *श्रृंखला -- 53* 📜
*अध्याय~~5*
*॥मोक्ष-साधन-मीमांसा॥*
*॥आमुख॥*
साध्य की उपलब्धि साधन से होती है। आत्म-सुख साध्य है और उसके साधन हैं— अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह आदि। अहिंसा सब की रीढ़ है। अन्य सब उसी के सहारे पलते हैं। अहिंसा को समझे बिना साध्य भी समझा नहीं जा सकता। उसकी स्वीकृति के बिना साध्य का स्वीकार भी नहीं हो सकता। श्रद्धा, ज्ञान और आचार की समन्विति ही साध्य है।
साध्य की पूर्णता साधन के अभाव में नहीं हो सकती, इसलिए साधन का बोध और आचरण अपेक्षित है। सुख की प्राप्ति के लिए साधनों का अवलंबन लेना आवश्यक है। इस अध्याय में अहिंसा का स्थूल और सूक्ष्म विवेचन है। दोनों पक्षों का बोध सिद्धि के लिए अपेक्षित है। अहिंसा के सिद्ध हो जाने पर समता की उर्मियां सर्वत्र उछलने लगती हैं।
💠 *मेघः प्राह*
*1. प्रभो! तवोपदेशेन, ज्ञातं मोक्षसुखं मया।*
*व्यासेन साधनान्यस्य, ज्ञातुमिच्छामि साम्प्रतम्।।*
मेघ बोला— प्रभो! आपके उपदेश से मैंने मोक्ष-सुख का तात्पर्य जान लिया। अब मैं विस्तार के साथ उसके साधनों को जानना चाहता हूं।
💠 *भगवान् प्राह*
*2. ज्ञानदर्शनचारित्र-त्रयी, तस्यास्ति साधनम्।*
*स धर्मः प्रोच्यते धीमन्! विस्तरं श्रृणु साशयम्।।*
भगवान् ने कहा— धीमन्! ज्ञान, दर्शन और चारित्र— यह त्रयी मोक्ष का साधन है। उसे धर्म कहा गया है। तुम उसे विस्तार से सुनो और उसका आशय समझने का प्रयत्न करो।
*3. अहिंसालक्षणो धर्मः, तितिक्षालक्षणस्तथा।*
*यस्य कष्टे धृतिर्नास्ति, नाऽहिंसा तत्र सम्भवेत्।।*
धर्म का पहला लक्षण है अहिंसा और दूसरा लक्षण है तितिक्षा। जो कष्ट में धैर्य नहीं रख पाता, वह अहिंसा की साधना नहीं कर पाता।
*4. सत्त्वान् स एव हन्याद् यः, स्याद् भीरुः सत्त्ववर्जितः।*
*अहिंसाशौर्यसम्पन्नो, न हन्ति स्वं परांस्तथा।।*
जीवों का हनन वही करता है, जो भीरु और निर्वीय है। जिसमें अहिंसा का तेज है, वह स्वयं का और दूसरों का हनन नहीं करता।
*अहिंसक के स्वरूप का प्रतिपादन... अहिंसा और अभय... भय किसको और किसको नहीं...?* के बारे में जानेंगे... समझेंगे... प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...
प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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🌼🍁🌼🍁🍁🍁🍁🌼🍁🌼
जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति
🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏
📖 *श्रृंखला -- 139* 📖
*भक्तामर स्तोत्र व अर्थ*
*33. इत्थं यथा तव विभूतिरभूज्जिनेन्द्र!*
*धर्मोपदेशनविधौ न तथा परस्य।*
*यादृक् प्रभा दिनकृतः प्रहतान्धकारा,*
*तादृक् कुतो ग्रह-गणस्य विकाशिनोऽपि।।*
हे जिनेंद्र! धर्म प्रवचन के समय जैसी तुम्हारी विभूति थी वैसी किसी अन्य देव के नहीं थी। अंधकार को नष्ट करने वाली प्रभा जैसी सूर्य की होती है, वैसी चमकते हुए नक्षत्र समूह की कैसे हो सकती है?
*34. श्च्योतन् मदाविलविलोलकपोलमूल-*
*मत्तभ्रमद्-भ्रमरनाद-विवृद्धकोपम्।*
*ऐरावताभमिभमुद्धतमापतन्तं,*
*दृष्ट्वा भयं भवति नो भवदाश्रितानाम्।।*
जिसके चंचल कपोल झरते हुए मद से मलिन हो रहे हों, मद पीकर उन्मत्त बने हुए तथा चारों ओर मंडराने वाले भ्रमरों के नाद से जिसका क्रोध बढ़ गया हो, वह ऐरावत के समान दुर्दांत हाथी आक्रामक मुद्रा में सामने आ रहा है, उसे देखकर तुम्हारा आश्रय लेने वाला भयभीत नहीं होता— अभय रहता है।
*35. भिन्नेभ-कुम्भ-गलदुज्जवल-शोणिताक्त-*
*मुक्ताफलप्रकरभूषितभूमिभागः।*
*बद्धक्रमः क्रमगतं हरिणाधिपोऽपि,*
*नाक्रामति क्रमयुगाचलसंश्रितं ते।।*
जिसके द्वारा हाथियों के विदीर्ण कुंभस्थल से बहती रक्त धारा और सिर से निकले हुए मोतियों से भूमि-भाग उज्जवल— लाल और श्वेत वर्ण वाला हो रहा है, वैसा सिंह भी अपने पैरों के पास आए हुए उस व्यक्ति पर आक्रमण नहीं कर पाता, पैर बद्ध हो जाते हैं, जिसने तुम्हारे चरण युगल रूपी पर्वत का आश्रय लिया है।
*36. कल्पान्तकालपवनोद्धतवह्निकल्पं,*
*दावानलं ज्वलितमुज्जवलमुत्स्फुलिंगम्।*
*विश्वं जिघत्सुमिव सम्मुखमापतन्तं,*
*त्वन्नामकीर्तनजलं शमयत्यशेषम्।।*
प्रलयकाल की पवन से प्रचंड अग्नि के समान, प्रज्वलित उज्जवल चिनगारियां बिखेरता हुआ मानो विश्व को निगलने की इच्छा रखने वाला सामने आता हुआ दावानल भी तुम्हारे नाम रूपी कीर्तन के जल से सर्वथा शांत हो जाता है।
*भगवान् ऋषभ का स्त्वन किस प्रकार विघ्न-बाधाओं को दूर करता है...?* जानेंगे... समझेंगे... प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति
🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏
📖 *श्रृंखला -- 139* 📖
*भक्तामर स्तोत्र व अर्थ*
*33. इत्थं यथा तव विभूतिरभूज्जिनेन्द्र!*
*धर्मोपदेशनविधौ न तथा परस्य।*
*यादृक् प्रभा दिनकृतः प्रहतान्धकारा,*
*तादृक् कुतो ग्रह-गणस्य विकाशिनोऽपि।।*
हे जिनेंद्र! धर्म प्रवचन के समय जैसी तुम्हारी विभूति थी वैसी किसी अन्य देव के नहीं थी। अंधकार को नष्ट करने वाली प्रभा जैसी सूर्य की होती है, वैसी चमकते हुए नक्षत्र समूह की कैसे हो सकती है?
*34. श्च्योतन् मदाविलविलोलकपोलमूल-*
*मत्तभ्रमद्-भ्रमरनाद-विवृद्धकोपम्।*
*ऐरावताभमिभमुद्धतमापतन्तं,*
*दृष्ट्वा भयं भवति नो भवदाश्रितानाम्।।*
जिसके चंचल कपोल झरते हुए मद से मलिन हो रहे हों, मद पीकर उन्मत्त बने हुए तथा चारों ओर मंडराने वाले भ्रमरों के नाद से जिसका क्रोध बढ़ गया हो, वह ऐरावत के समान दुर्दांत हाथी आक्रामक मुद्रा में सामने आ रहा है, उसे देखकर तुम्हारा आश्रय लेने वाला भयभीत नहीं होता— अभय रहता है।
*35. भिन्नेभ-कुम्भ-गलदुज्जवल-शोणिताक्त-*
*मुक्ताफलप्रकरभूषितभूमिभागः।*
*बद्धक्रमः क्रमगतं हरिणाधिपोऽपि,*
*नाक्रामति क्रमयुगाचलसंश्रितं ते।।*
जिसके द्वारा हाथियों के विदीर्ण कुंभस्थल से बहती रक्त धारा और सिर से निकले हुए मोतियों से भूमि-भाग उज्जवल— लाल और श्वेत वर्ण वाला हो रहा है, वैसा सिंह भी अपने पैरों के पास आए हुए उस व्यक्ति पर आक्रमण नहीं कर पाता, पैर बद्ध हो जाते हैं, जिसने तुम्हारे चरण युगल रूपी पर्वत का आश्रय लिया है।
*36. कल्पान्तकालपवनोद्धतवह्निकल्पं,*
*दावानलं ज्वलितमुज्जवलमुत्स्फुलिंगम्।*
*विश्वं जिघत्सुमिव सम्मुखमापतन्तं,*
*त्वन्नामकीर्तनजलं शमयत्यशेषम्।।*
प्रलयकाल की पवन से प्रचंड अग्नि के समान, प्रज्वलित उज्जवल चिनगारियां बिखेरता हुआ मानो विश्व को निगलने की इच्छा रखने वाला सामने आता हुआ दावानल भी तुम्हारे नाम रूपी कीर्तन के जल से सर्वथा शांत हो जाता है।
*भगवान् ऋषभ का स्त्वन किस प्रकार विघ्न-बाधाओं को दूर करता है...?* जानेंगे... समझेंगे... प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 151* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*जीवन के विविध पहलू*
*16. मानव-मन के पारखी*
*जमाता रोने लगे तो?*
खैरवा निवासी चतरोजी ने स्वामीजी से कहा— 'मेरे मन में दीक्षा लेने की भावना उठती है।'
स्वामीजी— 'तुम्हारा हृदय बहुत कच्चा है। परिवार का मोह भी बहुत गहरा है। जब तक वह नहीं छूटता, दीक्षा कैसे आ सकती है? संभव है, दीक्षा की बात चलाते ही तुम्हारे पुत्र रोने लगें और फिर तुम भी उनके साथ-साथ रोने लग जाओ।'
चतरोजी— 'स्वामीजी स्थिति तो यही है। परिवार वालों से जब कभी बिछुड़ने का अवसर आता है, आंखें तो भर ही जाती हैं।'
स्वामीजी ने उदाहरण दिया— 'जमाता गौना कराने ससुराल जाता है, तब विदा के समय माता-पिता आदि से बिछुड़ने के दुःख में लड़की रोने लगती है, पर उसे रोती देखकर जमाता भी रोने लगे तो, जग-हंसाई होती है। इसी प्रकार दीक्षा लेते समय सांसारिक व्यक्ति तो अपना स्वार्थ छूटने पर दुःख करने तथा रोने लगते हैं, पर जिसे दीक्षा लेनी हो, परमार्थ की ओर चलना हो, वह रोने लग जाए, तो कितना विपरीत लगे? इसीलिए तुम्हारे जैसा निर्बल हृदय का व्यक्ति दीक्षा के योग्य नहीं हो सकता।'
*नया कलह मत कर आना*
स्वामीजी का चतुर्मास सिरियारी में था। पोतियाबन्द सम्प्रदाय के कपूरजी नामक भाई तथा कुछ बहिनें ने भी वहीं चातुर्मास कर रही थीं। बहिनों के साथ किसी विषय को लेकर कपूरजी का तनाव हो गया। संवत्सरी आई, तब 'खमत-खामणा' करने के लिए कपूरजी बहिनों के स्थान की ओर जा रहे थे। स्वामीजी ने उनको देखा, तो पूछ लिया— 'कपूरजी! आज इधर कहां जा रहे हो?'
कपूरजी बोले— 'बहिनों से तनाव चल रहा था, अतः खमत कामना करने जा रहा हूं।'
स्वामीजी— 'जा तो रहे हो, परंतु नया कलह मत कर आना।'
कपूरजी— 'पिछले कलह के लिए जब 'खमत-खामणा' करने जा रहा हूं, तब नए कलह की क्या बात हो सकती है?'
वे बहिनों के स्थान पर गए और कहने लगे— 'मैं तुम लोगों से 'खमत-खामणा' करता हूं। तुमने तो दुष्टता करने में कोई कमी नहीं रखी, पर मुझे राग-द्वेष नहीं बढ़ाना है।'
बहिनों ने कहा— 'दुष्टता तुमने की या हमने?'
और फिर उतर-प्रत्युत्तर में पहले से भी अधिक झगड़ा हो गया।
कपूरजी वापस आते समय स्वामीजी से बोले— 'भीखणजी! कलह तो मिटने के स्थान पर बढ़ ही गया। परंतु आपको कलह बढ़ाने की पहले ही शंका कैसे हो गई थी?'
स्वामीजी ने कहा— 'तुम्हारा बोलने का जो ढंग है, वह मुझसे छुपा नहीं है।'
*मुनि अखैरामजी के परिणाम एक बार कुछ अस्थिर हो गए थे...* घटना-प्रसंग के बारे में जानेंगे... समझेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 151* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*जीवन के विविध पहलू*
*16. मानव-मन के पारखी*
*जमाता रोने लगे तो?*
खैरवा निवासी चतरोजी ने स्वामीजी से कहा— 'मेरे मन में दीक्षा लेने की भावना उठती है।'
स्वामीजी— 'तुम्हारा हृदय बहुत कच्चा है। परिवार का मोह भी बहुत गहरा है। जब तक वह नहीं छूटता, दीक्षा कैसे आ सकती है? संभव है, दीक्षा की बात चलाते ही तुम्हारे पुत्र रोने लगें और फिर तुम भी उनके साथ-साथ रोने लग जाओ।'
चतरोजी— 'स्वामीजी स्थिति तो यही है। परिवार वालों से जब कभी बिछुड़ने का अवसर आता है, आंखें तो भर ही जाती हैं।'
स्वामीजी ने उदाहरण दिया— 'जमाता गौना कराने ससुराल जाता है, तब विदा के समय माता-पिता आदि से बिछुड़ने के दुःख में लड़की रोने लगती है, पर उसे रोती देखकर जमाता भी रोने लगे तो, जग-हंसाई होती है। इसी प्रकार दीक्षा लेते समय सांसारिक व्यक्ति तो अपना स्वार्थ छूटने पर दुःख करने तथा रोने लगते हैं, पर जिसे दीक्षा लेनी हो, परमार्थ की ओर चलना हो, वह रोने लग जाए, तो कितना विपरीत लगे? इसीलिए तुम्हारे जैसा निर्बल हृदय का व्यक्ति दीक्षा के योग्य नहीं हो सकता।'
*नया कलह मत कर आना*
स्वामीजी का चतुर्मास सिरियारी में था। पोतियाबन्द सम्प्रदाय के कपूरजी नामक भाई तथा कुछ बहिनें ने भी वहीं चातुर्मास कर रही थीं। बहिनों के साथ किसी विषय को लेकर कपूरजी का तनाव हो गया। संवत्सरी आई, तब 'खमत-खामणा' करने के लिए कपूरजी बहिनों के स्थान की ओर जा रहे थे। स्वामीजी ने उनको देखा, तो पूछ लिया— 'कपूरजी! आज इधर कहां जा रहे हो?'
कपूरजी बोले— 'बहिनों से तनाव चल रहा था, अतः खमत कामना करने जा रहा हूं।'
स्वामीजी— 'जा तो रहे हो, परंतु नया कलह मत कर आना।'
कपूरजी— 'पिछले कलह के लिए जब 'खमत-खामणा' करने जा रहा हूं, तब नए कलह की क्या बात हो सकती है?'
वे बहिनों के स्थान पर गए और कहने लगे— 'मैं तुम लोगों से 'खमत-खामणा' करता हूं। तुमने तो दुष्टता करने में कोई कमी नहीं रखी, पर मुझे राग-द्वेष नहीं बढ़ाना है।'
बहिनों ने कहा— 'दुष्टता तुमने की या हमने?'
और फिर उतर-प्रत्युत्तर में पहले से भी अधिक झगड़ा हो गया।
कपूरजी वापस आते समय स्वामीजी से बोले— 'भीखणजी! कलह तो मिटने के स्थान पर बढ़ ही गया। परंतु आपको कलह बढ़ाने की पहले ही शंका कैसे हो गई थी?'
स्वामीजी ने कहा— 'तुम्हारा बोलने का जो ढंग है, वह मुझसे छुपा नहीं है।'
*मुनि अखैरामजी के परिणाम एक बार कुछ अस्थिर हो गए थे...* घटना-प्रसंग के बारे में जानेंगे... समझेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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🏭 *_आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र,_ _कुम्बलगुड़ु, बेंगलुरु, (कर्नाटक)_*
💦 *_परम पूज्य गुरुदेव_* _अमृत देशना देते हुए_
📚 *_मुख्य प्रवचन कार्यक्रम_* _की विशेष_
*_झलकियां_ _________*
🌈🌈 *_गुरुवरो घम्म-देसणं_*
💠 *_नवाह्निक आध्यात्मिक अनुष्ठान गतिमान_*
⌚ _दिनांक_: *_03 अक्टूबर 2019_*
🧶 _प्रस्तुति_: *_संघ संवाद_*
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
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🏭 *_आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र,_ _कुम्बलगुड़ु, बेंगलुरु, (कर्नाटक)_*
💦 *_परम पूज्य गुरुदेव_* _अमृत देशना देते हुए_
📚 *_मुख्य प्रवचन कार्यक्रम_* _की विशेष_
*_झलकियां_ _________*
🌈🌈 *_गुरुवरो घम्म-देसणं_*
💠 *_नवाह्निक आध्यात्मिक अनुष्ठान गतिमान_*
⌚ _दिनांक_: *_03 अक्टूबर 2019_*
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आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ
चेतना सेवा केन्द्र,
कुम्बलगुड़ु,
बेंगलुरु,
⛳
महाश्रमण चरणों मे
📮
: दिनांक:
03 अक्टूबर 2019
🎯
: प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ
चेतना सेवा केन्द्र,
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बेंगलुरु,
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महाश्रमण चरणों मे
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: दिनांक:
03 अक्टूबर 2019
🎯
: प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 पूर्वांचल कोलकाता - "प्लास्टिक मुक्त भारत" अभियान के तहत कार्यक्रम का आयोजन
👉 साउथ कोलकाता - सप्त दिवसीय महा अभियान नो प्लास्टिक केम्पेन का आगाज
👉 सोलापुर - मास खमण तप अभिनंदन
👉 जींद - हैप्पी एंड हारमोनियस फैमिली का आयोजन
👉 सांताक्रूज़, मुम्बई - नशा मुक्ति दिवस का आयोजन
👉 मुम्बई - नशा मुक्ति दिवस का आयोजन
👉 जालना - अणुव्रत जीवन विज्ञान दिवस का आयोजन
👉 जयपुर - साम्प्रदायिक सौहार्द दिवस का आयोजन
👉 जयपुर - अणुव्रत जीवन विज्ञान दिवस का आयोजन
👉 अहमदाबाद - नशा मुक्ति दिवस का आयोजन
👉 जयपुर - नशा मुक्ति दिवस का आयोजन
👉 मुम्बई - बाल सुधार कारागार में नशा मुक्ति कार्यक्रम
👉 उदयपुर - कनेक्शन विथ सक्सेश कार्यशाला का आयोजन
👉 अहमदाबाद - अनुशासन दिवस का आयोजन
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🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन
👉 *#कैसे #सोचें *: #निषेधात्मक #भाव ३*
एक #प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
#Preksha #Foundation
Helpline No. 8233344482
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🌻 #संघ #संवाद 🌻
🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन
👉 *#कैसे #सोचें *: #निषेधात्मक #भाव ३*
एक #प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
#Preksha #Foundation
Helpline No. 8233344482
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🌻 #संघ #संवाद 🌻
🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला २७४* - *आभामंडल २*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भागलेकर देखें*
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