दिल्ली - लोकसभा अध्यक्ष से महासमिति प्रतिनिधि मंडल की भेंट
👉 जलगांव ~ "सप्तदिवसीय प्लास्टिक बहिष्कार महाअभियान" का शुभारंभ
👉 हासन ~ सप्तदिवसीय प्लास्टिक बहिष्कार महाअभियान कार्यक्रम का आयोजन
👉 विजयनगरम ~ सप्तदिवसीय प्लास्टिक बहिष्कार महाअभियान का शुभारंभ
👉 विशाखापट्टनम - सप्तदिवसीय प्लास्टिक बहिष्कार महाभियान का शुभारंभ
👉 पालघर - अहिंसा दिवस का आयोजन
👉 बल्लारी ~ सप्तदिवसीय प्लास्टिक बहिष्कार महाभियान का शुभारंभ
👉 यशवन्तपुर (बेंगलुरु) ~ अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अन्तर्गत नशामुक्ति दिवस का आयोजन
👉 बेंगलुरु ~ सप्तदिवसीय प्लास्टिक बहिष्कार महाअभियान का वृहद् आयोजन
👉 बेंगलुरु ~ तेरापंथ युवक परिषद विजयनगर (बेंगलुरु) द्वारा सेवा कार्य
👉 विजयनगर (बेंगलुरु) - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 बेंगलुरु ~ सप्तदिवसीय प्लास्टिक बहिष्कार महाअभियान कार्यक्रम का आयोजन
👉 बेंगलुरु ~ अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अन्तर्गत अनुशासन दिवस का आयोजन
👉 बेंगलुरु ~ अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अन्तर्गत अहिंसा दिवस का आयोजन
👉 पाली ~ सप्तदिवसीय प्लास्टिक बहिष्कार महा अभियान का आगाज
👉 पाली ~ सप्तदिवसीय प्लास्टिक बहिष्कार महा अभियान के अन्तर्गत रैली का आयोजन
👉 जयपुर - सप्तदिवसीय प्लास्टिक बहिष्कार महाअभियान का आगाज
👉 केलवा ~ अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अन्तर्गत अनुशासन दिवस का आयोजन
👉 मोमासर ~ अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अन्तर्गत अनुशासन दिवस का आयोजन
👉 इस्लामपुर ~ तेमम द्वारा चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन
👉 दिल्ली - सप्तदिवसीय प्लास्टिक बहिष्कार महाअभियान का आगाज
👉 पनवेल(मुम्बई) ~ से नो टू प्लास्टिक अभियान की शुरूवात
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
👉 हासन ~ सप्तदिवसीय प्लास्टिक बहिष्कार महाअभियान कार्यक्रम का आयोजन
👉 विजयनगरम ~ सप्तदिवसीय प्लास्टिक बहिष्कार महाअभियान का शुभारंभ
👉 विशाखापट्टनम - सप्तदिवसीय प्लास्टिक बहिष्कार महाभियान का शुभारंभ
👉 पालघर - अहिंसा दिवस का आयोजन
👉 बल्लारी ~ सप्तदिवसीय प्लास्टिक बहिष्कार महाभियान का शुभारंभ
👉 यशवन्तपुर (बेंगलुरु) ~ अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अन्तर्गत नशामुक्ति दिवस का आयोजन
👉 बेंगलुरु ~ सप्तदिवसीय प्लास्टिक बहिष्कार महाअभियान का वृहद् आयोजन
👉 बेंगलुरु ~ तेरापंथ युवक परिषद विजयनगर (बेंगलुरु) द्वारा सेवा कार्य
👉 विजयनगर (बेंगलुरु) - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 बेंगलुरु ~ सप्तदिवसीय प्लास्टिक बहिष्कार महाअभियान कार्यक्रम का आयोजन
👉 बेंगलुरु ~ अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अन्तर्गत अनुशासन दिवस का आयोजन
👉 बेंगलुरु ~ अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अन्तर्गत अहिंसा दिवस का आयोजन
👉 पाली ~ सप्तदिवसीय प्लास्टिक बहिष्कार महा अभियान का आगाज
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👉 जयपुर - सप्तदिवसीय प्लास्टिक बहिष्कार महाअभियान का आगाज
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👉 मोमासर ~ अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अन्तर्गत अनुशासन दिवस का आयोजन
👉 इस्लामपुर ~ तेमम द्वारा चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन
👉 दिल्ली - सप्तदिवसीय प्लास्टिक बहिष्कार महाअभियान का आगाज
👉 पनवेल(मुम्बई) ~ से नो टू प्लास्टिक अभियान की शुरूवात
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
🌊☄🌊☄🌊☄🌊☄🌊☄🌊
🏭 *_आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र,_ _कुम्बलगुड़ु, बेंगलुरु, (कर्नाटक)_*
💦 *_परम पूज्य गुरुदेव_* _अमृत देशना देते हुए_
📚 *_मुख्य प्रवचन कार्यक्रम_* _की विशेष_
*_झलकियां_ _________*
🌈🌈 *_गुरुवरो घम्म-देसणं_*
⌚ _दिनांक_: *_05 अक्टूबर 2019_*
🧶 _प्रस्तुति_: *_संघ संवाद_*
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
🏭 *_आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र,_ _कुम्बलगुड़ु, बेंगलुरु, (कर्नाटक)_*
💦 *_परम पूज्य गुरुदेव_* _अमृत देशना देते हुए_
📚 *_मुख्य प्रवचन कार्यक्रम_* _की विशेष_
*_झलकियां_ _________*
🌈🌈 *_गुरुवरो घम्म-देसणं_*
⌚ _दिनांक_: *_05 अक्टूबर 2019_*
🧶 _प्रस्तुति_: *_संघ संवाद_*
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🙏🌸*⃣🌸🙏🌸*⃣🌸🙏🌸*⃣
'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...
🔰 *सम्बोधि* 🔰
📜 *श्रृंखला -- 55* 📜
*अध्याय~~5*
*॥मोक्ष-साधन-मीमांसा॥*
💠 *मेघः प्राह*
*11. न भेतव्यं न भेतव्यं, भीतो भूतेन गृह्यते।*
*किमर्थमुपदेशोऽसौ, भगवंस्तव विद्यते।।*
मेघ ने कहा— भगवन्! आपने यह क्यों कहा कि मत डरो, मत डरो। जो डरता है, उसे भूत पकड़ लेते हैं।
💠 *भगवान् प्राह*
*12. अभयं याति संसिद्धिं, अहिंसा तत्र सिद्ध्यति।*
*अहिंसकोऽपि भीतोऽपि, नैतद् भूतं भविष्यति।।*
भगवान् ने कहा— जहां अभय सिद्ध होता है, वहां अहिंसा सिद्ध हो जाती है। एक व्यक्ति अहिंसक भी हो और भयभीत भी हो, ऐसा न कभी हुआ है, और न होगा।
*13. यथा सहाऽनवस्थानं, आलोकतमसोस्तथा।*
*अहिंसाया भयस्यापि, न सहाऽवस्थितिर्भवेत्।।*
जैसे प्रकाश और अंधकार एक साथ नहीं रह सकते, वैसे ही अहिंसा और भय एक साथ नहीं रह सकते।
*14. यो नाप्नोति भयं मृत्योः, न बिभेति तथा रुजः।*
*जरसोर्नापवादेभ्यः, स एव स्यादहिंसकः।।*
जो व्यक्ति मृत्यु, रोग, बुढ़ापा और अपवादों से नहीं डरता, वही वास्तव में अहिंसक है।
*15. यस्यात्मनि परा प्रीतिः, यः सत्यं तत्र पश्यति।*
*अस्तित्वं शाश्वतं जानन्, अभयं लभते ध्रुवम्।।*
जिसकी आत्मा में परम प्रीति है, जो आत्मा में ही सत्य को देखता है, जो आत्मा के शाश्वत अस्तित्व को जानता है, वह निश्चित ही अभय हो जाता है।
*16. यः पश्यत्यात्मनात्मानं, सर्वात्मसदृशं निजम्।*
*भिन्नं सदप्यभिन्नं च, तस्याऽहिंसा प्रसिद्ध्यति।।*
जो आत्मा से आत्मा को देखता है, सभी आत्माओं को अपनी आत्मा के समान देखता है, जो सभी आत्माओं को देहदृष्टि से भिन्न होने पर भी चैतन्य के सादृश्य की दृष्टि से अपनी आत्मा से अभिन्न मानता है, उसके अहिंसा सिद्ध हो जाती है।
*अहिंसा से ही स्वरूप का संरक्षण... हिंसा और आसक्ति का एकत्व... 'पर' का संरक्षण अहिंसा से नहीं... अहिंसा की शाश्वत अनुश्रुति... धर्म के एक, दो, तीन आदि अंग...* जानेंगे... समझेंगे... प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...
प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻
'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...
🔰 *सम्बोधि* 🔰
📜 *श्रृंखला -- 55* 📜
*अध्याय~~5*
*॥मोक्ष-साधन-मीमांसा॥*
💠 *मेघः प्राह*
*11. न भेतव्यं न भेतव्यं, भीतो भूतेन गृह्यते।*
*किमर्थमुपदेशोऽसौ, भगवंस्तव विद्यते।।*
मेघ ने कहा— भगवन्! आपने यह क्यों कहा कि मत डरो, मत डरो। जो डरता है, उसे भूत पकड़ लेते हैं।
💠 *भगवान् प्राह*
*12. अभयं याति संसिद्धिं, अहिंसा तत्र सिद्ध्यति।*
*अहिंसकोऽपि भीतोऽपि, नैतद् भूतं भविष्यति।।*
भगवान् ने कहा— जहां अभय सिद्ध होता है, वहां अहिंसा सिद्ध हो जाती है। एक व्यक्ति अहिंसक भी हो और भयभीत भी हो, ऐसा न कभी हुआ है, और न होगा।
*13. यथा सहाऽनवस्थानं, आलोकतमसोस्तथा।*
*अहिंसाया भयस्यापि, न सहाऽवस्थितिर्भवेत्।।*
जैसे प्रकाश और अंधकार एक साथ नहीं रह सकते, वैसे ही अहिंसा और भय एक साथ नहीं रह सकते।
*14. यो नाप्नोति भयं मृत्योः, न बिभेति तथा रुजः।*
*जरसोर्नापवादेभ्यः, स एव स्यादहिंसकः।।*
जो व्यक्ति मृत्यु, रोग, बुढ़ापा और अपवादों से नहीं डरता, वही वास्तव में अहिंसक है।
*15. यस्यात्मनि परा प्रीतिः, यः सत्यं तत्र पश्यति।*
*अस्तित्वं शाश्वतं जानन्, अभयं लभते ध्रुवम्।।*
जिसकी आत्मा में परम प्रीति है, जो आत्मा में ही सत्य को देखता है, जो आत्मा के शाश्वत अस्तित्व को जानता है, वह निश्चित ही अभय हो जाता है।
*16. यः पश्यत्यात्मनात्मानं, सर्वात्मसदृशं निजम्।*
*भिन्नं सदप्यभिन्नं च, तस्याऽहिंसा प्रसिद्ध्यति।।*
जो आत्मा से आत्मा को देखता है, सभी आत्माओं को अपनी आत्मा के समान देखता है, जो सभी आत्माओं को देहदृष्टि से भिन्न होने पर भी चैतन्य के सादृश्य की दृष्टि से अपनी आत्मा से अभिन्न मानता है, उसके अहिंसा सिद्ध हो जाती है।
*अहिंसा से ही स्वरूप का संरक्षण... हिंसा और आसक्ति का एकत्व... 'पर' का संरक्षण अहिंसा से नहीं... अहिंसा की शाश्वत अनुश्रुति... धर्म के एक, दो, तीन आदि अंग...* जानेंगे... समझेंगे... प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...
प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻
🙏🌸*⃣🌸🙏🌸*⃣🌸🙏🌸*⃣
🌼🍁🌼🍁🍁🍁🍁🌼🍁🌼
जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति
🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏
📖 *श्रृंखला -- 141* 📖
*भक्तामर स्तोत्र व अर्थ*
*41. उद्भूतभीषणजलोदरभारभुग्नाः,*
*शोच्यां दशामुपगताश्च्युतजीविताशाः।*
*त्वत्पाद-पंकजरजोऽमृतदिग्धदेहाः,*
*मर्त्याः भवन्ति मकरध्वजतुल्यरूपाः।।*
उत्पन्न भीषण जलोदर के भार से जो झुके हुए हैं, शोचनीय दशा को प्राप्त हो गए हैं, जीवन की आशा को छोड़ चुके हैं, वे मनुष्य तुम्हारे चरण कमल की अमृतमय धूली को शरीर पर लगाने से कामदेव के तुल्य रूप वाले बन जाते हैं।
*42. आपाद-कण्ठमुरुशृंखलवेष्टितांगा,*
*गाढं बृहन्निगडकोटिनिघृष्टजंघाः।*
*त्वन्नाममंत्रमनिशं मनुजाः स्मरंतः,*
*सद्यः स्वयं विगतबन्धभया भवन्ति।।*
कंठ से लेकर पैरों तक जिनका शरीर बड़ी-बड़ी सांकलों से बंधा हुआ है, सघन और मोटी बेड़ी के अग्रभाग से जिनकी जंघाएं छिल गई हैं, ऐसे मनुष्य तुम्हारे नाम रूपी मंत्र (ॐ ऋषभाय नमः) का निरंतर स्मरण करते हुए शीघ्र ही अपने आप बंधन के भय से मुक्त हो जाते हैं।
*43. मत्तद्विपेन्द्रमृगराजदावानलाहि-*
*संग्रामवारिधिमहोदरबन्धनोत्थम्।*
*तस्याशु नाशमुपयाति भयं भियेव,*
*यस्तावकं स्तवमिमं मतिमानधीते।।*
मदोन्मत्त हाथी, क्रुद्ध सिंह, दावानल, सर्प, युद्ध, समुद्र, जलोदर और कारावास— इन सबसे उत्पन्न होने वाला भय भयभीत होकर उस व्यक्ति से शीघ्र दूर चला जाता है, जो तुम्हारे इस स्तोत्र का पाठ करता है।
*44. स्तोत्रस्रजं तव जिनेन्द्र! गुणैर्निबद्धां,*
*भक्त्या मया रुचिरवर्णविचित्रपुष्पाम्।*
*धत्ते जनो य इह कंठगतामजस्रं,*
*तं मानतुंगमवशा समुपैति लक्ष्मीः।।*
हे जिनेंद्र! मैंने (मानतुंग) भक्तिपूर्वक तुम्हारे गुणों से स्तोत्र रूपी माला का गुम्फन किया है। वह मनोज्ञ वर्ण रूपी विचित्र पुष्पों वाली है। जो मनुष्य अनवरत तुम्हारी उस माला को गले में धारण करता है, वह उच्च सम्मान को प्राप्त करता है, लक्ष्मी विवश होकर स्वयं उसके पास आती है।
*देव, गुरु और धर्म की निश्रा में आज "भक्तामर अंतस्तल का स्पर्श" की पोस्ट संपन्न हो गए हैं... हम जल्द ही प्रस्तुत होंगे... एक नई प्रेरणादायक पोस्ट के साथ...*
प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति
🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏
📖 *श्रृंखला -- 141* 📖
*भक्तामर स्तोत्र व अर्थ*
*41. उद्भूतभीषणजलोदरभारभुग्नाः,*
*शोच्यां दशामुपगताश्च्युतजीविताशाः।*
*त्वत्पाद-पंकजरजोऽमृतदिग्धदेहाः,*
*मर्त्याः भवन्ति मकरध्वजतुल्यरूपाः।।*
उत्पन्न भीषण जलोदर के भार से जो झुके हुए हैं, शोचनीय दशा को प्राप्त हो गए हैं, जीवन की आशा को छोड़ चुके हैं, वे मनुष्य तुम्हारे चरण कमल की अमृतमय धूली को शरीर पर लगाने से कामदेव के तुल्य रूप वाले बन जाते हैं।
*42. आपाद-कण्ठमुरुशृंखलवेष्टितांगा,*
*गाढं बृहन्निगडकोटिनिघृष्टजंघाः।*
*त्वन्नाममंत्रमनिशं मनुजाः स्मरंतः,*
*सद्यः स्वयं विगतबन्धभया भवन्ति।।*
कंठ से लेकर पैरों तक जिनका शरीर बड़ी-बड़ी सांकलों से बंधा हुआ है, सघन और मोटी बेड़ी के अग्रभाग से जिनकी जंघाएं छिल गई हैं, ऐसे मनुष्य तुम्हारे नाम रूपी मंत्र (ॐ ऋषभाय नमः) का निरंतर स्मरण करते हुए शीघ्र ही अपने आप बंधन के भय से मुक्त हो जाते हैं।
*43. मत्तद्विपेन्द्रमृगराजदावानलाहि-*
*संग्रामवारिधिमहोदरबन्धनोत्थम्।*
*तस्याशु नाशमुपयाति भयं भियेव,*
*यस्तावकं स्तवमिमं मतिमानधीते।।*
मदोन्मत्त हाथी, क्रुद्ध सिंह, दावानल, सर्प, युद्ध, समुद्र, जलोदर और कारावास— इन सबसे उत्पन्न होने वाला भय भयभीत होकर उस व्यक्ति से शीघ्र दूर चला जाता है, जो तुम्हारे इस स्तोत्र का पाठ करता है।
*44. स्तोत्रस्रजं तव जिनेन्द्र! गुणैर्निबद्धां,*
*भक्त्या मया रुचिरवर्णविचित्रपुष्पाम्।*
*धत्ते जनो य इह कंठगतामजस्रं,*
*तं मानतुंगमवशा समुपैति लक्ष्मीः।।*
हे जिनेंद्र! मैंने (मानतुंग) भक्तिपूर्वक तुम्हारे गुणों से स्तोत्र रूपी माला का गुम्फन किया है। वह मनोज्ञ वर्ण रूपी विचित्र पुष्पों वाली है। जो मनुष्य अनवरत तुम्हारी उस माला को गले में धारण करता है, वह उच्च सम्मान को प्राप्त करता है, लक्ष्मी विवश होकर स्वयं उसके पास आती है।
*देव, गुरु और धर्म की निश्रा में आज "भक्तामर अंतस्तल का स्पर्श" की पोस्ट संपन्न हो गए हैं... हम जल्द ही प्रस्तुत होंगे... एक नई प्रेरणादायक पोस्ट के साथ...*
प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 153* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*जीवन के विविध पहलू*
*16. मानव-मन के पारखी*
*पूछते हैं, वहां नहीं जाते*
मुनि चंद्रभाणजी संघ से पृथक् होकर गांव-गांव में स्वामीजी की निंदा करने लगे। स्वामीजी ने तब उनका पीछा किया और उनके द्वारा फैलाए गए भ्रम को दूर किया। स्वामीजी उनका पीछा न कर सकें, इसीलिए वे मार्ग तो किसी अन्य गांव का पूछते और जाते किसी अन्य गांव में। स्वामीजी जब उनके विहार के विषय में पूछताछ करते, तो लोग कहते— 'अमुक गांव का मार्ग पूछ रहे थे।' स्वामीजी तब उस गांव की ओर न जाकर अनुमान से किसी अन्य गांव की ओर विहार कर देते।
साथ के साधु स्वामीजी से कहते कि उन्होंने जब उस गांव का मार्ग पूछा है, तब आप उसे छोड़कर अन्य गांव की ओर क्यों पधारते हैं?
स्वामीजी कहते— 'मैं उनकी चालाकी को जानता हूं। वे हमें भ्रांत करने के लिए ऐसा करते हैं।'
स्वामीजी का अनुमान ठीक निकलता। वे उसी गांव में आगे तैयार मिलते, जहां स्वामीजी अनुमान से पधारते।
*कलह के लिए आए हैं*
स्वामीजी ढूंढाड़ के एक गांव में पधारे। वहां दिगंबर संप्रदाय के श्रावक चर्चा करने के लिए आए। उनका कथन था, वस्त्र रखना साधुता में बाधक है। उसका खंडन करते हुए स्वामीजी ने जो तर्क उपस्थित किए, उनका वे कोई प्रत्युत्तर नहीं दे पाए। एक प्रकार से पराजय का भाव लेकर ही वे लोग उस दिन वहां से गए। दूसरे दिन उन्होंने उस पराजय का बदला लेने का विचार किया और बहुत सारे व्यक्ति एकत्रित होकर आए। एकत्रित होते समय एक दूसरे की प्रतीक्षा में उन्हें बहुत विलंब हो गया। वे आए, तब स्वामीजी शौचार्थ जाते हुए उन्हें मार्ग में मिले। वे कहने लगे— 'हम तो कल की चर्चा का उत्तर देने के लिए आए थे, पर आप पहले ही बाहर की ओर चल दिए।'
स्वामीजी ने उनके बोलने के प्रकार को परखा और आकृति पर उभरे भावों को पढ़ते हुए कहा— 'आज तो आप लोग चर्चा के लिए नहीं, किंतु कलह के लिए उद्यत हो कर आए लगते हैं।'
एक व्यक्ति गर्म होकर बोल पड़ा— 'क्या आपको केवलज्ञान हो गया है, जो ऐसी बात कहते हैं?'
स्वामीजी बोले— 'इतना सा जानने में केवलज्ञान की क्या आवश्यकता है? यह सब तो तुम्हारी मनःस्थिति को देखकर मतिज्ञान से भी जाना जा सकता है।'
उनमें से कुछ सरल व्यक्तियों ने स्वीकारते हुए कहा— 'भीखणजी! हमारी मनःस्थिति को आपने ठीक-ठीक भांप लिया।'
*स्वामी भीखणजी स्वभाव के जितने गंभीर थे... उतने ही विनोदी भी...* कुछ घटना-प्रसंगों से जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 153* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*जीवन के विविध पहलू*
*16. मानव-मन के पारखी*
*पूछते हैं, वहां नहीं जाते*
मुनि चंद्रभाणजी संघ से पृथक् होकर गांव-गांव में स्वामीजी की निंदा करने लगे। स्वामीजी ने तब उनका पीछा किया और उनके द्वारा फैलाए गए भ्रम को दूर किया। स्वामीजी उनका पीछा न कर सकें, इसीलिए वे मार्ग तो किसी अन्य गांव का पूछते और जाते किसी अन्य गांव में। स्वामीजी जब उनके विहार के विषय में पूछताछ करते, तो लोग कहते— 'अमुक गांव का मार्ग पूछ रहे थे।' स्वामीजी तब उस गांव की ओर न जाकर अनुमान से किसी अन्य गांव की ओर विहार कर देते।
साथ के साधु स्वामीजी से कहते कि उन्होंने जब उस गांव का मार्ग पूछा है, तब आप उसे छोड़कर अन्य गांव की ओर क्यों पधारते हैं?
स्वामीजी कहते— 'मैं उनकी चालाकी को जानता हूं। वे हमें भ्रांत करने के लिए ऐसा करते हैं।'
स्वामीजी का अनुमान ठीक निकलता। वे उसी गांव में आगे तैयार मिलते, जहां स्वामीजी अनुमान से पधारते।
*कलह के लिए आए हैं*
स्वामीजी ढूंढाड़ के एक गांव में पधारे। वहां दिगंबर संप्रदाय के श्रावक चर्चा करने के लिए आए। उनका कथन था, वस्त्र रखना साधुता में बाधक है। उसका खंडन करते हुए स्वामीजी ने जो तर्क उपस्थित किए, उनका वे कोई प्रत्युत्तर नहीं दे पाए। एक प्रकार से पराजय का भाव लेकर ही वे लोग उस दिन वहां से गए। दूसरे दिन उन्होंने उस पराजय का बदला लेने का विचार किया और बहुत सारे व्यक्ति एकत्रित होकर आए। एकत्रित होते समय एक दूसरे की प्रतीक्षा में उन्हें बहुत विलंब हो गया। वे आए, तब स्वामीजी शौचार्थ जाते हुए उन्हें मार्ग में मिले। वे कहने लगे— 'हम तो कल की चर्चा का उत्तर देने के लिए आए थे, पर आप पहले ही बाहर की ओर चल दिए।'
स्वामीजी ने उनके बोलने के प्रकार को परखा और आकृति पर उभरे भावों को पढ़ते हुए कहा— 'आज तो आप लोग चर्चा के लिए नहीं, किंतु कलह के लिए उद्यत हो कर आए लगते हैं।'
एक व्यक्ति गर्म होकर बोल पड़ा— 'क्या आपको केवलज्ञान हो गया है, जो ऐसी बात कहते हैं?'
स्वामीजी बोले— 'इतना सा जानने में केवलज्ञान की क्या आवश्यकता है? यह सब तो तुम्हारी मनःस्थिति को देखकर मतिज्ञान से भी जाना जा सकता है।'
उनमें से कुछ सरल व्यक्तियों ने स्वीकारते हुए कहा— 'भीखणजी! हमारी मनःस्थिति को आपने ठीक-ठीक भांप लिया।'
*स्वामी भीखणजी स्वभाव के जितने गंभीर थे... उतने ही विनोदी भी...* कुछ घटना-प्रसंगों से जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन
👉 *#कैसे #सोचें *: #क्रिया और #प्रतिक्रिया १*
एक #प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
#Preksha #Foundation
Helpline No. 8233344482
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
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🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला २७६* - *आभामंडल ४*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भागलेकर देखें*
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*Preksha Foundation*
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🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला २७६* - *आभामंडल ४*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भागलेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
*Preksha Foundation*
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🌻 *संघ संवाद* 🌻