👉 सिलीगुड़ी - अभिवंदना कार्यक्रम का आयोजन
👉 काठमांडू - सप्तदिवसीय प्लास्टिक बहिष्कार महाअभियान के अंतर्गत कार्यक्रम
👉 उदयपुर - सप्तदिवसीय प्लास्टिक बहिष्कार महाअभियान के अंतर्गत विभिन्न कार्यक्रम
👉 जयपुर शहर - पेंटिंग कॉन्पिटिशन और वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन
👉 बेहाला, कोलकाता - सप्तदिवसीय प्लास्टिक बहिष्कार महाअभियान के अंतर्गत विभिन्न कार्यक्रम
प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻
👉 काठमांडू - सप्तदिवसीय प्लास्टिक बहिष्कार महाअभियान के अंतर्गत कार्यक्रम
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👉 बेहाला, कोलकाता - सप्तदिवसीय प्लास्टिक बहिष्कार महाअभियान के अंतर्गत विभिन्न कार्यक्रम
प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻
👉 *बारडोली - अनुशासन की मिशाल है सरदार कन्या विद्यालय*
📶 *अणुव्रत महासमिति अध्यक्ष व टीम ने ली विद्यालय की मुलाकात*
📶 *पादुकायें भी लाइन में अनुशासन का उत्तम उदाहरण*
📶 *गांधीजी ने भी जिस पर सूत काटा वह चरखा*
📶 *कन्याओ द्वारा हस्तनिर्मित वस्तुएं*
📶 *सुव्यवस्थित भोजनशाला*
दिनांक - 1-10-2019
🌻 *अणुव्रत सोशल मीडिया के लिए संघ संवाद द्वारा प्रसारित* 🌻
📶 *अणुव्रत महासमिति अध्यक्ष व टीम ने ली विद्यालय की मुलाकात*
📶 *पादुकायें भी लाइन में अनुशासन का उत्तम उदाहरण*
📶 *गांधीजी ने भी जिस पर सूत काटा वह चरखा*
📶 *कन्याओ द्वारा हस्तनिर्मित वस्तुएं*
📶 *सुव्यवस्थित भोजनशाला*
दिनांक - 1-10-2019
🌻 *अणुव्रत सोशल मीडिया के लिए संघ संवाद द्वारा प्रसारित* 🌻
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'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...
🔰 *सम्बोधि* 🔰
📜 *श्रृंखला -- 56* 📜
*अध्याय~~5*
*॥मोक्ष-साधन-मीमांसा॥*
💠 *भगवान् प्राह*
*17. स्वं वस्तु स्वगुणा एव, तस्य संरक्षणक्षमाम्।।*
*अहिंसां वत्स! जानीहि, तत्र हिंसाऽस्त्यकिञ्चना।।*
अपना गुणात्मक स्वरूप ही अपनी वस्तु है। वत्स! अहिंसा उसका संरक्षण करने में समर्थ है। आत्मगुण का संरक्षण करने में हिंसा अकिंचित्कर है, व्यर्थ है।
*18. ममत्वं रागसम्भूतं, वस्तुमात्रेषु यद् भवेत्।*
*सा हिंसाऽऽसक्तिरेषैव, जीवोऽसौ बध्यतेऽनया।।*
वस्तु मात्र के प्रति ममत्व राग से उत्पन्न होता है, वह हिंसा है और वहीं आसक्ति है। उसी से यह आत्मा आबद्ध होती है।
*19. ग्रहणे परवस्तूनां, रक्षणे परिवर्धने।*
*अहिंसां क्षमतां नैति, सात्मस्थितिरनुत्तरा।।*
पर-वस्तु— पौद्गलिक पदार्थ के ग्रहण, रक्षण और संवर्धन करने में अहिंसा समर्थ नहीं है, क्योंकि वे सब आत्मा से भिन्न अवस्थाएं हैं और अहिंसा आत्मा की अनुत्तर अवस्था है।
*20. अतीतैर्भाविभिश्चापि, वर्तमानैः समैर्जिनैः।*
*सर्वे जीवा न हन्तव्या, एष धर्मो निरूपितः।।*
जो तीर्थंकर हो चुके, होंगे या हैं, उन सबने इसी अहिंसा धर्म का निरूपण किया है। उनका उपदेश है— किसी भी जीव का हनन मत करो।
*21. मुक्तेरयमुपायोऽस्ति, योगस्तेनाभिधीयते।*
*अहिंसाऽऽत्मविहारो वा, स चैकाङ्गः प्रजायते।।*
यह धर्म मुक्ति का उपाय है, इसलिए यह योग कहलाता है। भिन्न-भिन्न दृष्टियों से धर्म के अनेक विभाग होते हैं। जहां उसके और विभाग नहीं किए जाते, वहां अहिंसा या आत्म-विहार को ही धर्म कहा जाता है। यह एक अंग वाला धर्म है।
*22. श्रुतं चारित्रमेतच्च, द्व्यङ्गः त्र्यङ्ग सदर्शनः।*
*सतपश्चतुरङ्गः स्यात्, पञ्चाङ्गो वीर्यसंयुतः।।*
धर्म के दो, तीन, चार और पांच अंग— विभाग भी किए जाते हैं—
*1.* श्रुत-ज्ञान और चारित्र— यह दो अंग वाला धर्म है।
*2.* ज्ञान, चारित्र और दर्शन— यह तीन अंग वाला धर्म है।
*3.* ज्ञान, चारित्र, दर्शन और तप— यह चार अंग वाला धर्म है।
*4.* ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वीर्य— यह पांच अंग वाला धर्म है।
*वैषम्य हिंसा और साम्य अहिंसा... सत्य आदि अहिंसा के उपजीवी तथा सेतुभूत... अहिंसा परम धर्म है— यह नयसापेक्ष वचन है... हिंसा का मूल है परिग्रह... अपरिग्रह परम धर्म है... जहां अपरिग्रह, वहां अहिंसा... धर्म का प्रथम सोपान क्या...?* जानेंगे... समझेंगे... प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...
प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻
'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...
🔰 *सम्बोधि* 🔰
📜 *श्रृंखला -- 56* 📜
*अध्याय~~5*
*॥मोक्ष-साधन-मीमांसा॥*
💠 *भगवान् प्राह*
*17. स्वं वस्तु स्वगुणा एव, तस्य संरक्षणक्षमाम्।।*
*अहिंसां वत्स! जानीहि, तत्र हिंसाऽस्त्यकिञ्चना।।*
अपना गुणात्मक स्वरूप ही अपनी वस्तु है। वत्स! अहिंसा उसका संरक्षण करने में समर्थ है। आत्मगुण का संरक्षण करने में हिंसा अकिंचित्कर है, व्यर्थ है।
*18. ममत्वं रागसम्भूतं, वस्तुमात्रेषु यद् भवेत्।*
*सा हिंसाऽऽसक्तिरेषैव, जीवोऽसौ बध्यतेऽनया।।*
वस्तु मात्र के प्रति ममत्व राग से उत्पन्न होता है, वह हिंसा है और वहीं आसक्ति है। उसी से यह आत्मा आबद्ध होती है।
*19. ग्रहणे परवस्तूनां, रक्षणे परिवर्धने।*
*अहिंसां क्षमतां नैति, सात्मस्थितिरनुत्तरा।।*
पर-वस्तु— पौद्गलिक पदार्थ के ग्रहण, रक्षण और संवर्धन करने में अहिंसा समर्थ नहीं है, क्योंकि वे सब आत्मा से भिन्न अवस्थाएं हैं और अहिंसा आत्मा की अनुत्तर अवस्था है।
*20. अतीतैर्भाविभिश्चापि, वर्तमानैः समैर्जिनैः।*
*सर्वे जीवा न हन्तव्या, एष धर्मो निरूपितः।।*
जो तीर्थंकर हो चुके, होंगे या हैं, उन सबने इसी अहिंसा धर्म का निरूपण किया है। उनका उपदेश है— किसी भी जीव का हनन मत करो।
*21. मुक्तेरयमुपायोऽस्ति, योगस्तेनाभिधीयते।*
*अहिंसाऽऽत्मविहारो वा, स चैकाङ्गः प्रजायते।।*
यह धर्म मुक्ति का उपाय है, इसलिए यह योग कहलाता है। भिन्न-भिन्न दृष्टियों से धर्म के अनेक विभाग होते हैं। जहां उसके और विभाग नहीं किए जाते, वहां अहिंसा या आत्म-विहार को ही धर्म कहा जाता है। यह एक अंग वाला धर्म है।
*22. श्रुतं चारित्रमेतच्च, द्व्यङ्गः त्र्यङ्ग सदर्शनः।*
*सतपश्चतुरङ्गः स्यात्, पञ्चाङ्गो वीर्यसंयुतः।।*
धर्म के दो, तीन, चार और पांच अंग— विभाग भी किए जाते हैं—
*1.* श्रुत-ज्ञान और चारित्र— यह दो अंग वाला धर्म है।
*2.* ज्ञान, चारित्र और दर्शन— यह तीन अंग वाला धर्म है।
*3.* ज्ञान, चारित्र, दर्शन और तप— यह चार अंग वाला धर्म है।
*4.* ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वीर्य— यह पांच अंग वाला धर्म है।
*वैषम्य हिंसा और साम्य अहिंसा... सत्य आदि अहिंसा के उपजीवी तथा सेतुभूत... अहिंसा परम धर्म है— यह नयसापेक्ष वचन है... हिंसा का मूल है परिग्रह... अपरिग्रह परम धर्म है... जहां अपरिग्रह, वहां अहिंसा... धर्म का प्रथम सोपान क्या...?* जानेंगे... समझेंगे... प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...
प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...
🔰 *सम्बोधि* 🔰
📜 *श्रृंखला -- 57* 📜
*अध्याय~~5*
*॥मोक्ष-साधन-मीमांसा॥*
💠 *भगवान् प्राह*
*23. हिंसैव विषमा वृत्तिः, दुष्प्रवृत्तिस्तथोच्यते।*
*अहिंसा साम्यमेतद्धि, चारित्रं बहुभूमिकम्।।*
जितनी हिंसा है, उतनी ही विषम वृत्ति या दुष्प्रवृत्ति है। जितनी अहिंसा है, उतना ही साम्य है और जो साम्य है, वही चारित्र है। उसकी अनेक भूमिकाएं हैं।
*24. सत्यमस्तेयकं ब्रम्हचर्यमेवमसंग्रहः।*
*अहिंसाया हि रूपाणि, संविहितान्यपेक्षया।।*
सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह— ये अहिंसा के ही रूप हैं। ये विभाग अपेक्षा दृष्टि से किए गए हैं।
*25. अहिंसापयसः पालिभूतान्यन्यव्रतानि यत्।*
*सापेक्षं वचनं गम्यं, यदुक्तं परमर्षिभिः।।*
सत्य आदि व्रत अहिंसा-जल की सुरक्षा के लिए पालि या सेतु के समान हैं। महर्षियों की यह उक्ति सापेक्ष है। अपेक्षा की दृष्टि से सत्य, अपरिग्रह आदि में भी सब व्रतों का समावेश किया जा सकता है।
*26. अहिंसा परमो धर्मः, नयापेक्षमिदं वचः।*
*कारणापेक्षया मूलं, हिंसायाः स्यात् परिग्रहः।।*
'अहिंसा परम धर्म है'— यह नयसापेक्ष वचन है— अहिंसा का महत्त्व प्रदर्शित करने के लिए इसका प्रयोग किया गया है। हिंसा का मूल कारण परिग्रह है।
*27. वस्तुतः परमो धर्मः, अपरिग्रह इष्यते।*
*यत्राऽपरिग्रहस्तत्र, स्यादहिंसा निसर्गजा।।*
वास्तव में अपरिग्रह परम धर्म है। जहां अपरिग्रह है, ममत्व का विसर्जन है, वहां अहिंसा निसर्ग से है।
*28. ममत्वं येन व्युत्सृष्टं, दृष्टोऽध्वा तेन निश्चितम्।*
*भेदविज्ञानमाद्यं स्याद्, सोपानं धर्मसन्ततेः।।*
जिसने ममत्व को छोड़ दिया, उसने अवश्य ही पथ को देखा है। भेद-विज्ञान— आत्मा और पदार्थ की भिन्नता का बोध— धर्म कीे परंपरा का प्रथम सोपान है।
*आत्मा से पुद्गल भिन्न— यह कैसे...? क्यों...? अवैराग्य अर्थात् मोह का चक्रव्यूह... भोगों का मूल और योगों का मूल... वैराग्य की फलश्रुति...* जानेंगे... समझेंगे... प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...
प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻
'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...
🔰 *सम्बोधि* 🔰
📜 *श्रृंखला -- 57* 📜
*अध्याय~~5*
*॥मोक्ष-साधन-मीमांसा॥*
💠 *भगवान् प्राह*
*23. हिंसैव विषमा वृत्तिः, दुष्प्रवृत्तिस्तथोच्यते।*
*अहिंसा साम्यमेतद्धि, चारित्रं बहुभूमिकम्।।*
जितनी हिंसा है, उतनी ही विषम वृत्ति या दुष्प्रवृत्ति है। जितनी अहिंसा है, उतना ही साम्य है और जो साम्य है, वही चारित्र है। उसकी अनेक भूमिकाएं हैं।
*24. सत्यमस्तेयकं ब्रम्हचर्यमेवमसंग्रहः।*
*अहिंसाया हि रूपाणि, संविहितान्यपेक्षया।।*
सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह— ये अहिंसा के ही रूप हैं। ये विभाग अपेक्षा दृष्टि से किए गए हैं।
*25. अहिंसापयसः पालिभूतान्यन्यव्रतानि यत्।*
*सापेक्षं वचनं गम्यं, यदुक्तं परमर्षिभिः।।*
सत्य आदि व्रत अहिंसा-जल की सुरक्षा के लिए पालि या सेतु के समान हैं। महर्षियों की यह उक्ति सापेक्ष है। अपेक्षा की दृष्टि से सत्य, अपरिग्रह आदि में भी सब व्रतों का समावेश किया जा सकता है।
*26. अहिंसा परमो धर्मः, नयापेक्षमिदं वचः।*
*कारणापेक्षया मूलं, हिंसायाः स्यात् परिग्रहः।।*
'अहिंसा परम धर्म है'— यह नयसापेक्ष वचन है— अहिंसा का महत्त्व प्रदर्शित करने के लिए इसका प्रयोग किया गया है। हिंसा का मूल कारण परिग्रह है।
*27. वस्तुतः परमो धर्मः, अपरिग्रह इष्यते।*
*यत्राऽपरिग्रहस्तत्र, स्यादहिंसा निसर्गजा।।*
वास्तव में अपरिग्रह परम धर्म है। जहां अपरिग्रह है, ममत्व का विसर्जन है, वहां अहिंसा निसर्ग से है।
*28. ममत्वं येन व्युत्सृष्टं, दृष्टोऽध्वा तेन निश्चितम्।*
*भेदविज्ञानमाद्यं स्याद्, सोपानं धर्मसन्ततेः।।*
जिसने ममत्व को छोड़ दिया, उसने अवश्य ही पथ को देखा है। भेद-विज्ञान— आत्मा और पदार्थ की भिन्नता का बोध— धर्म कीे परंपरा का प्रथम सोपान है।
*आत्मा से पुद्गल भिन्न— यह कैसे...? क्यों...? अवैराग्य अर्थात् मोह का चक्रव्यूह... भोगों का मूल और योगों का मूल... वैराग्य की फलश्रुति...* जानेंगे... समझेंगे... प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...
प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 154* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*जीवन के विविध पहलू*
*17. विनोदी स्वभाव*
*आह्लाद बांटते*
स्वामीजी स्वभाव के जितने गंभीर थे, उतने ही विनोदी भी। समय-समय पर अपने शिष्य वर्ग से तो विनोद भरी बातें वे करते ही रहते थे, पर जो व्यक्ति उनका निरंतर विरोध करते रहते थे, उनके साथ भी वे व्यावहारिक स्तर पर मधुर और विनोदपूर्ण वार्तालाप करने में कभी नहीं चूकते थे।
स्वामीजी का विनोद कभी शब्द-प्रधान होता तो कभी घटना-प्रधान। तात्त्विक प्रसंगों को भी कभी-कभी वे अपने विनोद से इतना मधुर बना देते कि सुनने वाले मुदित हो उठते। दैनिक जीवन तथा व्यवहार की साधारण से साधारण घटना को थोड़ा सा शाब्दिक या भावात्मक मोड़ देकर वे उसे अत्यंत मनोमुग्धकारी बना दिया करते थे। यही कारण था, उनका जीवन विरोधियों एवं उनके द्वारा खड़ी की गई विविध कठिनाइयों से निरंतर घिरा होने पर भी नीरस न होकर सदैव सरस रहता था। इसीलिए वे अपने साथ रहने वालों तथा संपर्क में आने वालों को ऊब न बांटकर आह्लाद ही बांटा करते थे।
*कितनी मूर्तियां?*
स्वामीजी एक बार स्थानक में गए और वहां ठहरे हुए साधुओं से मिले। बातचीत करने के पश्चात् स्वामीजी ने उनसे पूछा— 'आप लोग यहां कितनी मूर्तियां हैं?'
उन साधुओं ने अपनी संख्या बतला दी। स्वामीजी जरा मुस्कुराए और वहां से वापस अपने स्थान पर आ गए।
स्वामीजी की मुस्कुराहट ने उन लोगों को शंकाशील बना दिया। तभी वहां उपस्थित एक व्यक्ति ने कहा— 'भीखणजी तो तुम्हें 'भगत' (वैष्णव साधु) बना गए।'
स्वामीजी के उस सूक्ष्म विनोद पर वे साधु बड़े चकराए। बदला लेने की दृष्टि से स्वामीजी के पास आकर उन्होंने पूछा— 'भीखणजी! आप लोग कितनी मूर्तियां हैं?'
स्वामीजी ने हंसते हुए कहा— 'वह तो उसी अवसर की बात थी। अब इस प्रकार अपनी असावधानी का बदला नहीं उतारा जा सकता है। हम तो मूर्ति नहीं, इतने साधु हैं।'
*स्वामी भीखणजी अपनी बात से कभी प्रसन्नता से किसी की झोली भर देते थे... तो कभी किसी की बड़ी से बड़ी शंका भी चुटकियों में मिटा देते थे... कभी किसी की बात को उसके ही गले में डाल देते थे...* कुछ घटना-प्रसंग पढ़ेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 154* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*जीवन के विविध पहलू*
*17. विनोदी स्वभाव*
*आह्लाद बांटते*
स्वामीजी स्वभाव के जितने गंभीर थे, उतने ही विनोदी भी। समय-समय पर अपने शिष्य वर्ग से तो विनोद भरी बातें वे करते ही रहते थे, पर जो व्यक्ति उनका निरंतर विरोध करते रहते थे, उनके साथ भी वे व्यावहारिक स्तर पर मधुर और विनोदपूर्ण वार्तालाप करने में कभी नहीं चूकते थे।
स्वामीजी का विनोद कभी शब्द-प्रधान होता तो कभी घटना-प्रधान। तात्त्विक प्रसंगों को भी कभी-कभी वे अपने विनोद से इतना मधुर बना देते कि सुनने वाले मुदित हो उठते। दैनिक जीवन तथा व्यवहार की साधारण से साधारण घटना को थोड़ा सा शाब्दिक या भावात्मक मोड़ देकर वे उसे अत्यंत मनोमुग्धकारी बना दिया करते थे। यही कारण था, उनका जीवन विरोधियों एवं उनके द्वारा खड़ी की गई विविध कठिनाइयों से निरंतर घिरा होने पर भी नीरस न होकर सदैव सरस रहता था। इसीलिए वे अपने साथ रहने वालों तथा संपर्क में आने वालों को ऊब न बांटकर आह्लाद ही बांटा करते थे।
*कितनी मूर्तियां?*
स्वामीजी एक बार स्थानक में गए और वहां ठहरे हुए साधुओं से मिले। बातचीत करने के पश्चात् स्वामीजी ने उनसे पूछा— 'आप लोग यहां कितनी मूर्तियां हैं?'
उन साधुओं ने अपनी संख्या बतला दी। स्वामीजी जरा मुस्कुराए और वहां से वापस अपने स्थान पर आ गए।
स्वामीजी की मुस्कुराहट ने उन लोगों को शंकाशील बना दिया। तभी वहां उपस्थित एक व्यक्ति ने कहा— 'भीखणजी तो तुम्हें 'भगत' (वैष्णव साधु) बना गए।'
स्वामीजी के उस सूक्ष्म विनोद पर वे साधु बड़े चकराए। बदला लेने की दृष्टि से स्वामीजी के पास आकर उन्होंने पूछा— 'भीखणजी! आप लोग कितनी मूर्तियां हैं?'
स्वामीजी ने हंसते हुए कहा— 'वह तो उसी अवसर की बात थी। अब इस प्रकार अपनी असावधानी का बदला नहीं उतारा जा सकता है। हम तो मूर्ति नहीं, इतने साधु हैं।'
*स्वामी भीखणजी अपनी बात से कभी प्रसन्नता से किसी की झोली भर देते थे... तो कभी किसी की बड़ी से बड़ी शंका भी चुटकियों में मिटा देते थे... कभी किसी की बात को उसके ही गले में डाल देते थे...* कुछ घटना-प्रसंग पढ़ेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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⛩
आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ
चेतना सेवा केन्द्र,
कुम्बलगुड़ु,
बेंगलुरु,
⛳
महाश्रमण चरणों मे
📮
: दिनांक:
07 अक्टूबर 2019
🎯
: प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻
⛩
आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ
चेतना सेवा केन्द्र,
कुम्बलगुड़ु,
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महाश्रमण चरणों मे
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: दिनांक:
07 अक्टूबर 2019
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🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला २७८* - *आभामंडल ६*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भागलेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482
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🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
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