11.10.2019 ►JAIN STAR ►News

Published: 11.10.2019
Updated: 11.10.2019
राजस्थानी -गुजराती मतदाताओं की अग्निपरीक्षा!
[WRITTEN BY:DINESH KOTHARI]
PUBLISH DATE:11 October,2019...
मीरा भायंदर विधानसभा क्षेत्र में राजस्थानी -गुजराती मतदाताओं की अच्छी -खासी तादाद है,एक अनुमान अनुसार कुल मतदाताओं की पूरी संख्या के एक तिहाई से अधिक मतदाता राजस्थानी -गुजराती समाज से है। ऐसे में हर चुनाव में परिणाम के मद्देनजर अक्सर यह सवाल उठता रहता है, कि इस बार राजस्थानी -गुजराती मतदाताओ का झुकाव किस उम्मीदवार या दल की तरफ है। इस विधानसभा चुनाव में भी यही सवाल उठ रहा है। इस चुनाव में राजस्थानी -गुजराती समाज के दो मुख्य उम्मीदवार चुनाव मैदान में है,जिसमे से एक नरेंद्र मेहता भाजपा से तो दूसरी गीता जैन निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रही है। ऐसे में सवाल उठता है,क्या साल 2014 से जारी हर चुनाव की तरह इस बार भी राजस्थानी -गुजराती समाज के एकमुश्त वोट भारतीय जनता पार्टी को मिलेगा या इस बार मतों में बिखराव होगा और क्या बिखराव इतना हो जाएगा कि उसका असर चुनाव परिणाम पर दिखेगा। अगर ऐसा होता है, तो क्या भाजपा और राजस्थानी -गुजराती समाज के प्रतिनिधित्व वाली यह सर्वाधिक सुरक्षित सीट भाजपा उम्मीदवार नरेंद्र मेहता के हाथ से निकल जाएगी और भाजपा की हार के बाद आगे की स्थिति में राजस्थानी -गुजराती समाज की स्थानीय राजनीति में क्या जगह होगी। इसके लिए स्थानीय राजनीति को सिलसिलेवार समझना जरुरी है।
ध्यान रहे,मीरा भायंदर में सत्तर-अस्सी के दशक में राजस्थानी -गुजराती समाज के मीठालाल जैन की तूती बोलती थी,उसके बाद अस्सी -नब्बे और उसके बाद भी जनसंख्या के हिसाब से राजस्थानी -गुजराती समाज को उचित प्रतिनिधित्व देने का काम किसी भी नेता चाहे वो मीठालाल जैन हो या गिल्बर्ट मेंडोंसा हो या मुझफ्फर हुसैन या अन्य कोई नेता या राजनीतिक दल की ओर से नहीं किया और दिया गया। उस दौर में स्थानीय राजनीति में राजस्थानी -गुजराती समाज के वोट का मतलब सिर्फ और सिर्फ उम्मीदवार की हार जीत तय करने में अहम भूमिका अदा करने का रहा। फिर चाहे वो विधानसभा चुनाव हो या नगर परिषद का चुनाव हो या नगरपालिका का या मनपा -2002 या मनपा -2007 का चुनाव। पहली बार जब 2009 का विधान सभा चुनाव हारने के बाद अपने बलबूते स्थानीय राजनीति में स्थापित हुए राजस्थानी-गुजराती समाज के नरेंद्र मेहता के हाथ में स्थानीय भाजपा की कमान आई तो उन्होंने भाजपा जिलाध्यक्ष के रूप में मनपा चुनाव -2012 में रिकॉर्ड तोड़ राजस्थानी-गुजराती समाज के उम्मीदवार मनपा चुनाव में उतारे और राजस्थानी -गुजराती समाज से संख्या बल के हिसाब से कम ही सही पर पहले की अपेक्षा अच्छे-खासे नगरसेवक चुनाव जीतने में भी सफल रहे, यही से स्थानीय राजनीति में राजस्थानी-मारवाड़ी में खासकर जैन समाज के प्रतिनिधित्व और वर्चस्व बढ़ने/बढ़ाने की शुरुआत हुई। उसके बाद ही राजस्थानी-गुजराती समाज के स्वयं नरेंद्र मेहता का विधायक बनना,गीता जैन और डिंपल मेहता का महापौर बनना इसी कड़ी के आगे की कहानी है।
लेकिन इस बीच विधान सभा चुनाव -2019 के पहले से शुरू गीता -मेहता अनबन और ज्यादा मुखर हो गई। विधायक नरेंद्र मेहता और पूर्व महापौर गीता जैन की राजनीतिक कम व्यक्तिगत ज्यादा जंग के बीच अगर गुजराती -मारवाड़ी में भी खासकर जैन मतों का बिखराव होता है और इस सीट पर दो जैन उम्मीदवारों की लड़ाई का फायदा किसी तीसरे को मिलता है, तो निश्चय ही यह स्थिति स्थानीय राजनीति में जैनों को राजनीतिक रूप से महत्वहीन बनाने की कोशिश की शुरुआत के रूप में देखी जा सकती है।
उम्मीद थी कि विधान सभा चुनाव में मीरा भायंदर की छवि को चमकाने का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मेहता विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ेगे। लेकिन जैसे -जैसे चुनाव नजदीक आ रहे है,वैसे -वैसे अधिकतर उम्मीदवारों का टारगेट बने विधायक नरेंद्र मेहता को भी अपनी वोट बैंक बचाने के लिए विकास के मुख्य मुद्दे को भुनाने के साथ-साथ चुनावी फिजा में धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण की सियासत न घुले इसके लिए प्रयासरत होना पड रहा है।
गुजराती -मारवाड़ी मतदाताओ में खासकर जैन समुदाय के विश्लेषक लोग यह कहने से नहीं हिचक रहे है कि जैन के विरोध में जैन उम्मीदवार के पीछे सिर्फ और सिर्फ धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण की सियासत है। यही नहीं, नरेंद्र मेहता की इस अजेय समझी जाने वाली सीट पर रोचक जंग की स्थिति बिना गीता जैन के असंभव थी। यकींन करे या न करे पर इस चुनाव के दो -तीन महीने पहले इस सीट की स्थिति यह थी कि बिना गीता जैन के चुनावीं मैदान में होने की स्थिति में इस सीट से चुनाव लड़ने से मुख्य संभावित उम्मीदवारों में एक डर सा देखा गया था,और भाजपा की जीत पक्की समझी जा रही थी। ऐसे में मेहता विरोधियो की कोशिश और चाहत यही रही होगी, कि गीता जैन चुनावी मैदान में रहे, ताकि जैन मतों का बिखराव हो। खैर ऐसा चुनावो में होता रहा है और होता रहेगा जब हर उम्मीदवार अपनी जीत के लिए ऐसा चुनावी मुद्दा उठाता है,जिससे वो चुनावी फसल काटे।
दूसरी तरफ स्थानीय राजनीति में साल -2014 और मनपा -2017 में भाजपा की जीत के बाद गुजराती-मारवाड़ी में भी जैन समाज पर आरोप लगता रहा है, कि वे नरेंद्र मेहता और भाजपा की वोट बैंक की तरह काम करते हैं। लेकिन अगर हकीकत पर गौर करे और गुजराती -मारवाड़ी और जैन समाज के पास कोई और चारा भी नहीं,क्योंकि स्थानीय राजनीति का इतिहास यह बताता रहा है कि स्थानीय सियासत में आज जो स्थिति इन समाज के वजूद और प्रभुत्व की है वो रांकापा -कांग्रेस गठबंधन राज में कभी भी नहीं रही और उन्हें लगातार स्थानीय सियासत में एक तरफ यानि हाशिए पर धकेलने की कोशिश ही होती रही।
ऐसे में, राजस्थानी -गुजराती वोटो का बिखराव होता है, तो वो स्थानीय राजनीति में इन समाजो को चिंता में डालने की वजह देता है। मेरा यह स्पष्ट मानना है, कि विधानसभा चुनाव -2019 के चुनाव में राजस्थानी -गुजराती -जैन समाज को तय करना है कि वह स्थानीय राजनीति में अपना प्रतिनिधित्व व स्थान कैसा चाहते हैं? इस चुनाव में गुजराती-मारवाड़ी -जैन समाज के वोटरों में चिंता और दुविधा है कि कहीं मीरा भायंदर ‘मौकापरस्त सियासत’ का शिकार न हो जाए। मौजूदा विधान सभा चुनावो में जहां बुनियादी मुद्दे गायब हैं वहीं स्थानीय राजस्थानी -गुजराती समाज के सामने दुविधा इस बात को लेकर है कि वे समाज के किस उम्मीदवार को वोट करे, क्योंकि राजस्थानी -गुजराती समाज की सियासत में कोई खास भागीदारी/भूमिका नहीं है।
कुलमिलाकर इस चुनाव से मीरा भायंदर में गुजराती -मारवाड़ी समाज में भी खासकर जैन समुदाय को टारगेट करते हुए उसकी एकता पर प्रहार करने की कोशिशे देखी जा सकती है।

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