14.10.2019 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 14.10.2019
Updated: 14.10.2019

Updated on 14.10.2019 20:07

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'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...

🔰 *सम्बोधि* 🔰

📜 *श्रृंखला -- 63* 📜

*अध्याय~~6*

*॥क्रिया—अक्रियावाद॥*

💠 *भगवान् प्राह*

*18. यथा त्रयो हि वणिजो, मूलमादाय निर्गताः।*
*एकोऽत्र लभते लाभं, एको मूलेन आगतः।।*

*19. हारयित्वा मूलमेकः, आगतस्तत्र वाणिजः।*
*उपमा व्यवहारेऽसौ, एवं धर्मेऽपि बुद्ध्यताम्।।*
*(युग्मम्)*

जिस प्रकार तीन वणिक मूल पूंजी लेकर व्यापार के लिए चले। एक ने लाभ कमाया, एक मूल पूंजी लेकर लौट आया और एक ने सब कुछ खो डाला। यह व्यापार विषयक उदाहरण है। इसी प्रकार धर्म के विषय में भी जानना चाहिए।

*20. मनुष्यत्वं भवेन्मूलं, लाभः स्वर्गोऽमृतं तथा।*
*मूलच्छेदेन जीवाः स्युः, तिर्यञ्चो नारकास्तथा।।*

मनुष्य-जन्म मूल पूंजी है। स्वर्ग या मोक्ष की प्राप्ति लाभ है। मूल पूंजी को खो डालने से जीव नरक या तिर्यंच गति को प्राप्त होते हैं।

*21. विमात्राभिश्च शिक्षाभिः, ये नरा गृहसुव्रताः।*
*आयान्ति मानुषीं योनिं, कर्मसत्या हि प्राणिनः।।*

जो लोग विविध प्रकार की शिक्षाओं से गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी सुव्रती हैं, सदाचार का पालन करते हैं, वे मनुष्य योनि को प्राप्त करते हैं, क्योंकि प्राणी कर्मसत्य होते हैं— जैसे कर्म करते हैं, वैसे ही फल को प्राप्त होते हैं।

*22. येषां तु विपुला शिक्षा, ते च मूलमतिसृताः।*
*सकर्माणो दिवं यान्ति, सिद्धिं यान्त्यरजोमलाः।।*

जिनके पास विपुल ज्ञानात्मक और क्रियात्मक शिक्षा है, वे मूल पूंजी की वृद्धि करते हैं। वे कर्मयुक्त हों तो स्वर्ग को प्राप्त होते हैं और जब उनके रज और मल का (बंधन और बंधन के हेतु का) नाश हो जाता है, तब वे मुक्त हो जाते हैं।

*23. आगारमावसंल्लोकः, सर्वप्राणेषु संयतः।*
*समतां सुव्रतो गच्छन्, स्वर्गं गच्छति नाऽमृतम्।।*

घर में निवास करने वाला व्यक्ति सब प्राणियों के प्रति स्थूल रूप से संयत होता है। जो सुव्रत है और समभाव की आराधना करता है, वह स्वर्ग को प्राप्त होता है, किन्तु हिंसा और परिग्रह के बंधन से सर्वथा मुक्त न होने के कारण वह मोक्ष को नहीं पा सकता।

*24. दुःखावह इहाऽमुत्र, धनादीनां परिग्रहः।*
*मुमुक्षुः स्वं दिदृक्षुश्च को विद्वानगारमावसेत्।।*

धन आदि पदार्थों का संग्रह इहलोक और परलोक में दुःखदाई होता है। अतः मुक्त होने की इच्छा रखने वाला और आत्म-साक्षात्कार की भावना रखने वाला कौन ऐसा विद्वान व्यक्ति होगा, जो घर में रहे?

*25. प्रमादं कर्म तत्राहुः, अप्रमादं तथापरम्।*
*तद्भावादेशतस्तच्च, बालं पण्डितमेव वा।।*

प्रमाद कर्म है और अप्रमाद अकर्म। प्रमादयुक्त प्रवृत्ति बंध का और अप्रमत्तता मुक्ति का हेतु है। प्रमाद और अप्रमाद की अपेक्षा से व्यक्ति के वीर्य— पराक्रम को बाल और पंडित कहा जाता है तथा अभेददृष्टि से वीर्यवान व्यक्ति भी बाल और पंडित कहलाता है।

*26. प्रतीत्याऽविरतिं बालो, द्वयञ्च बालपण्डितः।*
*विरतिञ्च प्रतीत्यापि, लोकः पण्डित उच्यते।।*

अविरति की अपेक्षा से व्यक्ति को बाल, विरति-अविरति— दोनों की अपेक्षा से बाल-पंडित और विरति की अपेक्षा से पंडित कहा जाता है।

💠 *मेघः प्राह*

*27. कर्माकर्मविभागोऽयं, सम्यग् बुद्धो मया प्रभो!*
*साध्यसिद्धौ महत्तत्त्वं, अप्रमादः त्वयोच्यते।।*

मेघ बोला— भगवन्! मैंने कर्म और अकर्म का यह विभाग सम्यक् प्रकार से जान लिया है। आपने अप्रमाद को साधन-सिद्धि का महान तत्त्व बतलाया है।

*इति आचार्यमहाप्रज्ञविरचिते संबोधिप्रकरणे*
*क्रियाक्रियावादनामा षष्ठोऽध्यायः।*

*हिंसा के कितने प्रकार हैं...? उनकी व्याख्याएं क्या है...? अहिंसा की क्या परिभाषा है और उसकी उपासना कैसे संभव हो सकती है...? इन सब प्रश्नों का समाधान मिलेगा... सप्तम अध्याय "आज्ञावाद" में...* हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...

प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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Updated on 14.10.2019 20:07

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙

📝 *श्रृंखला -- 552* 📝

*अमृतपुरुष आचार्य श्री तुलसी*

*लोक कल्याण के दिशा में बढ़ते कदम*

गतांक से आगे...

महामना आचार्यश्री तुलसी की हर प्रवृत्ति में मानवता के प्रति कल्याण की भावना निहित थी। वर्गभेद, जातीयता, प्रांतीयता की दीवारें कभी उनके काम में बाधक नहीं बनी। क्रांत विचारों के धनी आचार्यश्री तुलसी ने नैतिकता के बीज चारों ओर बिखेरे। उन्होंने धनाधीशों और सत्ताधीशों को विसर्जन का बोध दिया। दलित वर्ग को हीन भावना से ऊपर उठने हेतु उद्बोधित किया। पूज्य प्रवर के सान्निध्य में अस्पृश्यता निवारक हरिजनोद्धारक अनेक सम्मेलन आयोजित हुए। सद्-संस्कारों के निर्माण हेतु दलित वर्ग में विभिन्न प्रोग्राम संपादित किए गए। समाज में चारों ओर इन सर्वव्यापी कार्यक्रमों की चर्चा रही एवं आचार्य प्रवर 'दलितों के मसीहा' नाम से संबोधित हुए।

अणुव्रत सार्वजनीन है, सबके लिए इसके द्वार खुले हैं इसलिए इसे सबका समर्थन प्राप्त हुआ।

राजस्थान विधानसभा द्वारा पारित अणुव्रत प्रस्ताव और उत्तरप्रदेश विधानसभा द्वारा प्रशंसित सरकारी समर्थन इस आंदोलन की प्रियता के उदाहरण हैं।

अणुव्रत का परचम थामे आचार्य श्री के गतिमान चरण आगे-से-आगे बढ़ते गए। उन्होंने गांव-गांव में नैतिकता का दीप जलाया। घर-घर में अध्यात्म की लौ प्रज्वलित की। वे देश के प्रबुद्ध चिंतक, कर्मशील महान् हस्तियों से मिले। विशाल आयोजन किए। जन सामान्य से भी संपर्क साधा। आचार्य श्री तुलसी के प्रयत्नों से अणुव्रत की आवाज गरीब की झोपड़ी से राष्ट्रपति भवन तक पहुंची। लक्षाधिक व्यक्तियों ने अणुव्रत दर्शन का अध्ययन किया। सहस्रों व्यक्तियों ने अणुव्रत के नियमों को स्वीकार किया। यह आंदोलन राष्ट्रीय चरित्र के रूप में समादृत हुआ।

अणुव्रत का प्रथम अधिवेशन आचार्य श्री तुलसी के सान्निध्य में भारत की राजधानी दिल्ली में समायोजित हुआ। आचार्य प्रवर की एक आवाज के साथ सैकड़ों लोग नैतिक आचार संहिता से जुड़े। राष्ट्र के वातावरण में हलचल हुई। 'न्यूयॉर्क' के सुप्रसिद्ध साप्ताहिक 'टाइम्स' (15 मई, 1950) में अणुव्रत गरिमा के साथ चर्चित हुआ। जन-जन ने इसे सराहा।

स्वर्गीय राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, डॉ. राधाकृष्णन, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, आचार्य विनोबा भावे, सर्वोदय नेता जयप्रकाश नारायण, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद, डॉ, जाकिर हुसैन एवं डॉ संपूर्णानंद आदि शीर्षस्थ नेताओं ने इस अभियान की भूरि-भूरि प्रशंसा की।

स्वर्गीय प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री ने कहा— "आचार्य तुलसी ने अणुव्रत आंदोलन के रूप में हमें एक चिराग दिया है। एक ज्योति दी है। उसे लेकर हम अनैतिकता के तिमिराच्छन्न वातावरण में नैतिक पथ प्राप्त कर सकते हैं।"

भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई ने कहा— "राष्ट्रीय चरित्र निर्माण और उन्नयन की दिशा में अणुव्रत एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।"

संत विनोबा भावे ने कहा— "सेवा और संयम पर आधारित आचार्य श्री तुलसी का आंदोलन अणुव्रत प्रभावशाली होगा।"

जैन दिगंबर परंपरा के मनीषी संत विद्यानंद जी ने कहा— "आचार्य श्री तुलसी ने अणुव्रत के रूप में एक व्यापक कार्यक्रम दिया है। मानव समाज को आचार्य श्री की यह महान् देन है।"

*शैक्षणिक जगत् में अणुव्रत के योगदान...* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻

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Updated on 14.10.2019 20:07

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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।

🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞

📜 *श्रृंखला -- 160* 📜

*आचार्यश्री भीखणजी*

*जीवन के विविध पहलू*

*18. गहरे व्यंग्य*

*दुःखी की रात*

स्वामीजी ने विक्रम संवत् 1845 का चातुर्मास पीपाड़ में किया। वहां रात्रिकालीन व्याख्यान में जनता बहुत एकत्रित होने लगी। व्याख्यान का रस ही कुछ ऐसा था कि लोग सुनते हुए अघाते नहीं थे। विरोधी व्यक्तियों ने लोगों को रोकने के अनेक उपाय किए, पर सफलता नहीं मिली। उन्होंने तब यह प्रचार करना प्रारंभ कर दिया कि इनके व्याख्यान में सवा प्रहर, डेढ़ प्रहर तक रात्रि व्यतीत हो जाती है। अर्द्ध-रात्रि तक हल्ला मचाना कहां की साधुता है?

विरोधियों का उक्त कथन किसी ने आकर स्वामीजी को बतलाया तो उन्होंने फरमाया— 'दुःखी व्यक्ति को रात लंबी ही लगा करती है।'

कथन का हार्द नहीं समझ पाने के कारण उस भाई ने पूछा— 'स्वामीजी! वह कैसे?'

स्वामीजी ने कहा— 'किसी के घर पर विवाह आदि उत्सव होता है, तो समय का पता ही नहीं लगता। पूरी रात यों ही बीत जाती है। मानो कुछ ही घंटे व्यतीत हुए हों। परंतु किसी के घर पर संध्या होते ही किसी की मृत्यु हो गई हो तो उस शोक-विह्वल परिवार को वह रात्रि युग जैसी लंबी लगने लगती है।' अपने कथन का उपसंहार करते हुए उन्होंने कहा— 'व्याख्यान तो प्रहर रात्रि तक ही होता है, परंतु जिसके मन में जनता के आगमन का दुःख है, उन्हें वह समय डेढ़-दो प्रहर जितना लंबा लगता है।'

*झालर और कुत्ता*

पीपाड़ चातुर्मास में व्याख्यान के समय कुछ विरोधी लोग सभा-स्थल के आस-पास बैठ जाते। कभी वे परस्पर जोर-जोर से बातें करते, तो कभी स्वामीजी की निंदा। उनके उस व्यवहार की आलोचना करते हुए एक भाई ने स्वामीजी से कहा— 'ये कैसे व्यक्ति हैं, जो व्याख्यान तो नहीं सुनते और इधर-उधर बैठकर निंदा करते हैं।'

*ठूंठ को नहीं*

पीपाड़ में स्वामीजी व्याख्यान दे रहे थे। जनता बहुत थी। विरोधी सम्प्रदाय के मुख्य व्यक्ति ताराचंदजी संघवी वहां आए और स्वामीजी के सम्मुख ही व्याख्यान सुनने वालों को लताड़ते हुए बोले— 'तुम लोग भीखणजी का व्याख्यान सुनते हो, तुम्हें शीत-दाह लग जाएगा।'

स्वामीजी ने कहा— 'कम से कम तुम तो उससे सुरक्षित हो, क्योंकि शीत-दाह हरे वृक्षों को ही जलाता है, ठूंठ को नहीं।'

*स्वामीजी कभी-कभी व्यंग्यपूर्ण भाषा में समाधान देते... तो कभी प्रश्न भी कर लिया करते थे...* जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻

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Updated on 14.10.2019 20:07

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🏭 *_आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र,_ _कुम्बलगुड़ु, बेंगलुरु, (कर्नाटक)_*

💦 *_परम पूज्य गुरुदेव_* _अमृत देशना देते हुए_

📚 *_मुख्य प्रवचन कार्यक्रम_* _की विशेष_
*_झलकियां_ _________*

🌈🌈 *_गुरुवरो घम्म-देसणं_*

⌚ _दिनांक_: *_14 अक्टूबर 2019_*

🧶 _प्रस्तुति_: *_संघ संवाद_*

https://www.facebook.com/SanghSamvad/

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Updated on 14.10.2019 20:07

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🏭 *_आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र,_ _कुम्बलगुड़ु, बेंगलुरु, (कर्नाटक)_*

💦 *_परम पूज्य गुरुदेव_* _प्रेक्षाध्यान का प्रयोग_
*_साध्वीवृंद_* _को करवाते हुए........_

📚 *_प्रेक्षाध्यान साधना_* _के विशेष दृश्य_*____*

⌚ _दिनांक_: *_14 अक्टूबर 2019_*

🧶 _प्रस्तुति_: *_संघ संवाद_*

https://www.facebook.com/SanghSamvad/

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Updated on 14.10.2019 20:07

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*आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ*
*चेतना सेवा केन्द्र,*
*कुम्बलगुड़ु,*
*बेंगलुरु*

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*महाश्रमण चरणों में...*
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*: दिनांक:*
14 अक्टूबर 2019

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*: प्रस्तुति:*
🌻 संघ संवाद 🌻

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🧘‍♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘‍♂

🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन

👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला २८५* - *आभामंडल १३*

एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भागलेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*

प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482

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