👉 पटना सिटी ~ प्लास्टिक बहिष्कार महा अभियान के अन्तर्गत विभिन्न कार्यक्रम आयोजित
👉 अहमदाबाद - महात्मा महाप्रज्ञ प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता का पुरस्कार वितरण समारोह
👉 लिम्बायत, सूरत - सॉरी महकाये जीवन की क्यारी और हेल्दी रिलेशन हैप्पी मी कार्यशाला का आयोजन
👉 सचिन, सूरत - प्लास्टिक थैली का बहिष्कार कार्यक्रम
👉 बेंगलुरु - जैन संस्कार विधि द्वारा नामकरण
👉 विजयनगर, बेंगलुरु - क्रेकरलेस दिवाली एवं स्वच्छ भारत अभियान के लिये हस्ताक्षर अभियान
प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻
👉 अहमदाबाद - महात्मा महाप्रज्ञ प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता का पुरस्कार वितरण समारोह
👉 लिम्बायत, सूरत - सॉरी महकाये जीवन की क्यारी और हेल्दी रिलेशन हैप्पी मी कार्यशाला का आयोजन
👉 सचिन, सूरत - प्लास्टिक थैली का बहिष्कार कार्यक्रम
👉 बेंगलुरु - जैन संस्कार विधि द्वारा नामकरण
👉 विजयनगर, बेंगलुरु - क्रेकरलेस दिवाली एवं स्वच्छ भारत अभियान के लिये हस्ताक्षर अभियान
प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻
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'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...
🔰 *सम्बोधि* 🔰
📜 *श्रृंखला -- 65* 📜
*अध्याय~~7*
*॥आज्ञावाद॥*
💠 *भगवान् प्राह*
*4. आज्ञायामरतिर्योगिन! अनाज्ञायां रतिस्तथा।*
*मा भूयात्ते क्वचिद् यस्माद्, आज्ञाहीनो विषीदति।।*
हे योगिन्! आज्ञा में तेरी अरति— अप्रसन्नता और अनाज्ञा में रति-प्रसन्नता कहीं भी न हो, क्योंकि आज्ञाहीन साधक अंत में विषाद को प्राप्त होता है।
*5. अपरा तीर्थकृत्सेवा, तदाज्ञापालनं परम्।*
*आज्ञाराद्धा विराद्धा च, शिवाय च भवाय य।।*
तीर्थंकर की पर्युपासना की अपेक्षा उनकी आज्ञा का पालन करना विशिष्ट है। आज्ञा की आराधना करने वाले मुक्ति को प्राप्त होते हैं और उससे विपरीत चलने वाले संसार में भटकते हैं।
*6. आज्ञायाः परमं तत्त्वं, रागद्वेषविवर्जनम्।*
*एताभायामेव संसारो, मोक्षस्तन्मुक्तिरेव च।।*
आज्ञा का परम तत्त्व है— राग और द्वेष का वर्जन। ये राग-द्वेष ही संसार या बंधन के हेतु हैं और इनसे मुक्त होना ही मोक्ष है।
*7. आराधको जिनज्ञायाः, संसारं तरति ध्रुवम्।*
*तस्या विराधको भूत्वा, भवाम्भोधौ निमज्जति।।*
वीतराग की आज्ञा की आराधना करने वाला निश्चित रूप से भव-सागर को तर जाता है और उसकी विराधना करने वाला भव-सागर में डूब जाता है।
*8. आज्ञायां यश्च श्रद्धालुः, मेधावी स इहोच्यते।*
*असंयमो जिनानाज्ञा, जिनाज्ञा संयमो ध्रुवम्।।*
जो आज्ञा के प्रति श्रद्धावान् है, वह मेधावी है। असंयम की प्रवृत्ति में वीतराग की आज्ञा नहीं है। जहां संयम है, वहीं वीतराग की आज्ञा है।
*9. संयमे जीवनं श्रेयः, संयमे मृत्युरुत्तमः।*
*जीवनं मरणं मुक्त्यै, नैव स्यातामसंयमे।।*
संयममय जीवन और संयममय मृत्यु श्रेय है। असंयममय जीवन और असंयममय मरण मुक्ति के हेतु नहीं बनते।
*10. हिंसाऽनृतं तथा स्तेयाऽब्रम्हचर्यपरिग्रहाः।*
*ध्रुवं प्रवृत्तिरेतेषां, असंयम इहोच्यते।।*
हिंसा, असत्य, चौर्य, अब्रह्मचर्य और परिग्रह की प्रवृत्ति असंयम कहलाती है।
*पूर्ण-अपूर्ण संयम और उसका आराधक... अर्हत् का उपदेश क्यों...? क्या है हिंसा और अहिंसा...? हिंसा के तीन हेतु और उसके तीन प्रकार...* हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...
प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻
'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...
🔰 *सम्बोधि* 🔰
📜 *श्रृंखला -- 65* 📜
*अध्याय~~7*
*॥आज्ञावाद॥*
💠 *भगवान् प्राह*
*4. आज्ञायामरतिर्योगिन! अनाज्ञायां रतिस्तथा।*
*मा भूयात्ते क्वचिद् यस्माद्, आज्ञाहीनो विषीदति।।*
हे योगिन्! आज्ञा में तेरी अरति— अप्रसन्नता और अनाज्ञा में रति-प्रसन्नता कहीं भी न हो, क्योंकि आज्ञाहीन साधक अंत में विषाद को प्राप्त होता है।
*5. अपरा तीर्थकृत्सेवा, तदाज्ञापालनं परम्।*
*आज्ञाराद्धा विराद्धा च, शिवाय च भवाय य।।*
तीर्थंकर की पर्युपासना की अपेक्षा उनकी आज्ञा का पालन करना विशिष्ट है। आज्ञा की आराधना करने वाले मुक्ति को प्राप्त होते हैं और उससे विपरीत चलने वाले संसार में भटकते हैं।
*6. आज्ञायाः परमं तत्त्वं, रागद्वेषविवर्जनम्।*
*एताभायामेव संसारो, मोक्षस्तन्मुक्तिरेव च।।*
आज्ञा का परम तत्त्व है— राग और द्वेष का वर्जन। ये राग-द्वेष ही संसार या बंधन के हेतु हैं और इनसे मुक्त होना ही मोक्ष है।
*7. आराधको जिनज्ञायाः, संसारं तरति ध्रुवम्।*
*तस्या विराधको भूत्वा, भवाम्भोधौ निमज्जति।।*
वीतराग की आज्ञा की आराधना करने वाला निश्चित रूप से भव-सागर को तर जाता है और उसकी विराधना करने वाला भव-सागर में डूब जाता है।
*8. आज्ञायां यश्च श्रद्धालुः, मेधावी स इहोच्यते।*
*असंयमो जिनानाज्ञा, जिनाज्ञा संयमो ध्रुवम्।।*
जो आज्ञा के प्रति श्रद्धावान् है, वह मेधावी है। असंयम की प्रवृत्ति में वीतराग की आज्ञा नहीं है। जहां संयम है, वहीं वीतराग की आज्ञा है।
*9. संयमे जीवनं श्रेयः, संयमे मृत्युरुत्तमः।*
*जीवनं मरणं मुक्त्यै, नैव स्यातामसंयमे।।*
संयममय जीवन और संयममय मृत्यु श्रेय है। असंयममय जीवन और असंयममय मरण मुक्ति के हेतु नहीं बनते।
*10. हिंसाऽनृतं तथा स्तेयाऽब्रम्हचर्यपरिग्रहाः।*
*ध्रुवं प्रवृत्तिरेतेषां, असंयम इहोच्यते।।*
हिंसा, असत्य, चौर्य, अब्रह्मचर्य और परिग्रह की प्रवृत्ति असंयम कहलाती है।
*पूर्ण-अपूर्ण संयम और उसका आराधक... अर्हत् का उपदेश क्यों...? क्या है हिंसा और अहिंसा...? हिंसा के तीन हेतु और उसके तीन प्रकार...* हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...
प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रृंखला -- 554* 📝
*अमृतपुरुष आचार्य श्री तुलसी*
*जैन विश्व भारती*
अध्यात्म के शिखर उदात्तचेता, युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी के समुन्नत विचारों से प्रसूत, आविर्भूत एक ज्योतिर्मय दीपशिखा है— 'जैन विश्व भारती।' यह 'जैन विश्व भारती' जैन विद्या, धर्म, दर्शन, ज्ञान-विज्ञान की अप्रतिम खदान है। प्राच्य विद्याओं के प्रशिक्षण का यह समुन्नत केंद्र है। भारत के पुरातन तपोवन का मूर्तरूप एवं अध्यात्म प्रयोगों की उर्वर धरा है।
अहिंसा 'जैन विश्व भारती' का उर्जा प्रदायी प्राण प्रवाह है। इसका कण-कण अपरिग्रह एवं अनेकांत से स्पंदित है। अध्यात्म इसकी सुदृढ़ आधारशिला है। संयम इसकी जीवनी शक्ति है।
शिक्षा, शोध, साहित्य, साधना, सेवा, संस्कृति, समन्वय इन सात सकारादि प्रवृत्तियों की संगम स्थली 'जैन विश्व भारती' एक ऐसी संस्था है, जहां कोरा बौद्धिक ज्ञान ही नहीं दिया जाता, अपितु अहिंसा और विश्व शांति के प्रयोग भी सिखाए जाते हैं। मूल्यपरक शिक्षा पर बल दिया जाता है। आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक व्यक्तित्व का निर्माण इस संस्था का महान् उद्देश्य है। मानवीय मूल्यों के प्रति समर्पित 'जैन विश्व भारती' के न केवल भारत में अपितु ह्यूस्टन, ऑरलैंडो, न्यूजर्सी, लंदन में भी उपकेंद्र हैं। जहां समण-समणी वर्ग द्वारा जैन विद्या एवं तेरापंथ धर्मसंघ से संबंधित अनेक कार्यक्रम आयोजित होते रहते हैं।
आचार्य श्री तुलसी की कमनीय कल्पना की 'कामधेनु' एवं आचार्य श्री महाश्रमण जी द्वारा 'जय कुंजर' अभिधा से संबोधित जैन विश्व भारती ने विकास की कई ऊंची उड़ानें भरी हैं। नए-नए उन्मेषों के क्षितिज खोले हैं।
जैन विश्व भारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय), विमल विद्याविहार, महाप्रज्ञ इंटरनेशनल स्कूल जयपुर एवं टमकोर, केंद्रीय जीवन विज्ञान अकादमी, समण संस्कृति संकाय, आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय आदि शैक्षणिक संस्थान जैन विश्व भारती द्वारा संचालित हैं। आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के शब्दों में निर्माण की पुरोधा इस संस्था की गतिविधियों का प्रयोजन भारतीय संस्कृति विशेषतः जन संस्कृति के मूल में बसे मानवीय मूल्यों को प्रकाश में लाना है।
जेनर विद्या प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से स्थापित 'जैन विद्या परिषद्' के संचालन का दायित्व भी इस संस्था ने संभाला था।
विश्व कल्याणी कार्यक्रमों के आधार पर इस संस्था ने राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की है। युग द्रष्टा आचार्य श्री तुलसी द्वारा संरक्षित, प्रज्ञा पुरुष आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी द्वारा संपोषित एवं वर्तमान में श्रुतधर आचार्य श्री महाश्रमण जी की छत्रछाया में अध्यात्म संरक्षण प्राप्त जैन विश्व भारती तेरापंथ समाज की अतीव महत्त्वपूर्ण गौरवशाली संस्था है एवं जैन समाज की अनुपमेय धरोहर है। इसका समृद्ध साहित्य, समुन्नत साधना, संपन्न संस्कार आदि विश्व की अमूल्य निधि है।
*आचार्य श्री तुलसी की खुली आंखों में संजोए सपनों का साकार रूप... जैन विश्व भारती संस्थान (डीम्ड यूनिवर्सिटी)...* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रृंखला -- 554* 📝
*अमृतपुरुष आचार्य श्री तुलसी*
*जैन विश्व भारती*
अध्यात्म के शिखर उदात्तचेता, युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी के समुन्नत विचारों से प्रसूत, आविर्भूत एक ज्योतिर्मय दीपशिखा है— 'जैन विश्व भारती।' यह 'जैन विश्व भारती' जैन विद्या, धर्म, दर्शन, ज्ञान-विज्ञान की अप्रतिम खदान है। प्राच्य विद्याओं के प्रशिक्षण का यह समुन्नत केंद्र है। भारत के पुरातन तपोवन का मूर्तरूप एवं अध्यात्म प्रयोगों की उर्वर धरा है।
अहिंसा 'जैन विश्व भारती' का उर्जा प्रदायी प्राण प्रवाह है। इसका कण-कण अपरिग्रह एवं अनेकांत से स्पंदित है। अध्यात्म इसकी सुदृढ़ आधारशिला है। संयम इसकी जीवनी शक्ति है।
शिक्षा, शोध, साहित्य, साधना, सेवा, संस्कृति, समन्वय इन सात सकारादि प्रवृत्तियों की संगम स्थली 'जैन विश्व भारती' एक ऐसी संस्था है, जहां कोरा बौद्धिक ज्ञान ही नहीं दिया जाता, अपितु अहिंसा और विश्व शांति के प्रयोग भी सिखाए जाते हैं। मूल्यपरक शिक्षा पर बल दिया जाता है। आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक व्यक्तित्व का निर्माण इस संस्था का महान् उद्देश्य है। मानवीय मूल्यों के प्रति समर्पित 'जैन विश्व भारती' के न केवल भारत में अपितु ह्यूस्टन, ऑरलैंडो, न्यूजर्सी, लंदन में भी उपकेंद्र हैं। जहां समण-समणी वर्ग द्वारा जैन विद्या एवं तेरापंथ धर्मसंघ से संबंधित अनेक कार्यक्रम आयोजित होते रहते हैं।
आचार्य श्री तुलसी की कमनीय कल्पना की 'कामधेनु' एवं आचार्य श्री महाश्रमण जी द्वारा 'जय कुंजर' अभिधा से संबोधित जैन विश्व भारती ने विकास की कई ऊंची उड़ानें भरी हैं। नए-नए उन्मेषों के क्षितिज खोले हैं।
जैन विश्व भारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय), विमल विद्याविहार, महाप्रज्ञ इंटरनेशनल स्कूल जयपुर एवं टमकोर, केंद्रीय जीवन विज्ञान अकादमी, समण संस्कृति संकाय, आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय आदि शैक्षणिक संस्थान जैन विश्व भारती द्वारा संचालित हैं। आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के शब्दों में निर्माण की पुरोधा इस संस्था की गतिविधियों का प्रयोजन भारतीय संस्कृति विशेषतः जन संस्कृति के मूल में बसे मानवीय मूल्यों को प्रकाश में लाना है।
जेनर विद्या प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से स्थापित 'जैन विद्या परिषद्' के संचालन का दायित्व भी इस संस्था ने संभाला था।
विश्व कल्याणी कार्यक्रमों के आधार पर इस संस्था ने राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की है। युग द्रष्टा आचार्य श्री तुलसी द्वारा संरक्षित, प्रज्ञा पुरुष आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी द्वारा संपोषित एवं वर्तमान में श्रुतधर आचार्य श्री महाश्रमण जी की छत्रछाया में अध्यात्म संरक्षण प्राप्त जैन विश्व भारती तेरापंथ समाज की अतीव महत्त्वपूर्ण गौरवशाली संस्था है एवं जैन समाज की अनुपमेय धरोहर है। इसका समृद्ध साहित्य, समुन्नत साधना, संपन्न संस्कार आदि विश्व की अमूल्य निधि है।
*आचार्य श्री तुलसी की खुली आंखों में संजोए सपनों का साकार रूप... जैन विश्व भारती संस्थान (डीम्ड यूनिवर्सिटी)...* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 162* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*जीवन के विविध पहलू*
*18. गहरे व्यंग्य*
*कसाई से भी बुरे*
विरोधी संप्रदाय के एक साधु ने स्वामीजी के विषय में कहा— 'भीखणजी तो करोड़ कसाइयों से भी कहीं अधिक बुरे हैं।'
स्वामीजी ने जब यह सुना तो कहने लगे— 'वे लोग अपने हिसाब से ठीक ही कहते हैं। कसाई केवल बकरों को मारता है। वह उनका कुछ नहीं बिगाड़ता, परंतु मैं उनके मंतव्यों का खंडन करता हूं और उनके श्रावकों को अपना अनुयायी बना लेता हूं। इस स्थिति में यदि वे मुझे कसाई से भी बुरा कहकर अपना दुःख कुछ हल्का कर लेते हैं, तो मेरा इसमें क्या बिगड़ता है?'
*पत्र उड़ गया तो?*
स्वामीजी पुर में विराज रहे थे। उन्हीं दिनों स्थानकवासी गुलाब ऋषि भी वहां आ गए। वे स्वयं को बड़ा आगमज्ञ समझते थे। बत्तीस ही सूत्र अपने पास रखते थे। एक बार वे चर्चा करने के लिए स्वामीजी के पास आए। स्वामीजी ने उनके ज्ञान की क्षमता को टटोलते हुए पूछा— 'पांच महाव्रतों के द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव क्या हैं?'
गुलाब ऋषि ने अपने मस्तिष्क को काफी घुमाया, परंतु कुछ भी स्मरण नहीं आया। खिसियाने होकर बोले— 'यह सब तो मेरे पास पत्र में लिखा पड़ा है।'
स्वामीजी ने कहा— साधुत्व पत्र पालता है या आप? यदि पत्र फट गया या उड़ गया तो?'
गुलाब ऋषि निरुत्तर होकर चुपचाप वहां से चल दिए।
*मूल ज्ञान आ गया*
संघ की सुव्यवस्था के अभाव में उस समय अनेक धूर्त व्यक्ति मुनि-वेश पहन कर जनता को धोखा देते और अपना उल्लू सीधा किया करते। स्वामीजी के विरोध की लहर चली, तब उस बहती गंगा में उन्होंने भी खूब हाथ धोए। लोगों की बुद्धि पर द्वेष का ऐसा पर्दा पड़ा हुआ था कि स्वामीजी की निंदा में दो शब्द कहकर कोई भी उनके लिए पूज्य बन सकता था। विरोधी लोगों की उस गहन अज्ञता पर स्वामीजी करारी चोट करते रहते थे। एक बार उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा— 'एक भांड साधु का वेश पहनकर गांव में आया। लोगों ने पूछा आप किस टोले से हैं?'
वह बोले— 'डूंगरनाथजी के टोले का।'
'आपका नाम?'
'पत्थरनाथ।'
'क्या कुछ ज्ञानाभ्यास किया है?'
'पढ़ा तो विशेष नहीं, पर इतना अवश्य जानता हूं कि हम अच्छे और तेरापंथी बुरे हैं।'
लोग बोले— 'तब मूल ज्ञान आपको आ गया।'
'और फिर वे सब 'मत्थएण वंदामि' कहकर चरणों में झुक गए।'
स्वामीजी ने उपसंहार करते हुए कहा— 'ऐसे मतान्ध व्यक्ति जहां हों, वहां न्याय तथा सत्यासत्य के निर्णय की क्या आशा की जा सकती है?'
*कुछ व्यक्तियों की अजीबोगरीब जिज्ञासाएं और स्वामीजी द्वारा समाधान के कुछ प्रसंग...* पढ़ेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 162* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*जीवन के विविध पहलू*
*18. गहरे व्यंग्य*
*कसाई से भी बुरे*
विरोधी संप्रदाय के एक साधु ने स्वामीजी के विषय में कहा— 'भीखणजी तो करोड़ कसाइयों से भी कहीं अधिक बुरे हैं।'
स्वामीजी ने जब यह सुना तो कहने लगे— 'वे लोग अपने हिसाब से ठीक ही कहते हैं। कसाई केवल बकरों को मारता है। वह उनका कुछ नहीं बिगाड़ता, परंतु मैं उनके मंतव्यों का खंडन करता हूं और उनके श्रावकों को अपना अनुयायी बना लेता हूं। इस स्थिति में यदि वे मुझे कसाई से भी बुरा कहकर अपना दुःख कुछ हल्का कर लेते हैं, तो मेरा इसमें क्या बिगड़ता है?'
*पत्र उड़ गया तो?*
स्वामीजी पुर में विराज रहे थे। उन्हीं दिनों स्थानकवासी गुलाब ऋषि भी वहां आ गए। वे स्वयं को बड़ा आगमज्ञ समझते थे। बत्तीस ही सूत्र अपने पास रखते थे। एक बार वे चर्चा करने के लिए स्वामीजी के पास आए। स्वामीजी ने उनके ज्ञान की क्षमता को टटोलते हुए पूछा— 'पांच महाव्रतों के द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव क्या हैं?'
गुलाब ऋषि ने अपने मस्तिष्क को काफी घुमाया, परंतु कुछ भी स्मरण नहीं आया। खिसियाने होकर बोले— 'यह सब तो मेरे पास पत्र में लिखा पड़ा है।'
स्वामीजी ने कहा— साधुत्व पत्र पालता है या आप? यदि पत्र फट गया या उड़ गया तो?'
गुलाब ऋषि निरुत्तर होकर चुपचाप वहां से चल दिए।
*मूल ज्ञान आ गया*
संघ की सुव्यवस्था के अभाव में उस समय अनेक धूर्त व्यक्ति मुनि-वेश पहन कर जनता को धोखा देते और अपना उल्लू सीधा किया करते। स्वामीजी के विरोध की लहर चली, तब उस बहती गंगा में उन्होंने भी खूब हाथ धोए। लोगों की बुद्धि पर द्वेष का ऐसा पर्दा पड़ा हुआ था कि स्वामीजी की निंदा में दो शब्द कहकर कोई भी उनके लिए पूज्य बन सकता था। विरोधी लोगों की उस गहन अज्ञता पर स्वामीजी करारी चोट करते रहते थे। एक बार उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा— 'एक भांड साधु का वेश पहनकर गांव में आया। लोगों ने पूछा आप किस टोले से हैं?'
वह बोले— 'डूंगरनाथजी के टोले का।'
'आपका नाम?'
'पत्थरनाथ।'
'क्या कुछ ज्ञानाभ्यास किया है?'
'पढ़ा तो विशेष नहीं, पर इतना अवश्य जानता हूं कि हम अच्छे और तेरापंथी बुरे हैं।'
लोग बोले— 'तब मूल ज्ञान आपको आ गया।'
'और फिर वे सब 'मत्थएण वंदामि' कहकर चरणों में झुक गए।'
स्वामीजी ने उपसंहार करते हुए कहा— 'ऐसे मतान्ध व्यक्ति जहां हों, वहां न्याय तथा सत्यासत्य के निर्णय की क्या आशा की जा सकती है?'
*कुछ व्यक्तियों की अजीबोगरीब जिज्ञासाएं और स्वामीजी द्वारा समाधान के कुछ प्रसंग...* पढ़ेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...
🔰 *सम्बोधि* 🔰
📜 *श्रृंखला -- 64* 📜
*अध्याय~~7*
*॥आज्ञावाद॥*
*॥आमुख॥*
भगवान् महावीर ने कहा कि 'आणाए मामगं धम्मं'— आज्ञा में मेरा धर्म है। आज्ञा का अर्थ है— वीतराग का कथन, प्रत्यक्षदर्शी का कथन। वही कथन यथार्थ और सत्य होता है, जो वीतराग द्वारा कथित है। वीतराग वह है, जो राग-द्वेष और मोह से परे है। उसकी अनुभूति और ज्ञान यथार्थ होता है। वह आत्माभिमुख होता है, अतः उसकी समस्त प्रवृत्ति और उसका सारा कथन आत्मा की परिक्रमा किए चलता है, इसलिए वह सत्य है। 'आज्ञा में मेरा धर्म है'— इसका तात्पर्यार्थ है— वीतरागता ही आत्मधर्म है। इसके अतिरिक्त सारा बहिर्भाव है। जितना वीतराग भाव है, उतना ही आत्मधर्म है।
हिंसा जीवन की अनिवार्यता है— इसे प्रत्येक मननशील व्यक्ति स्वीकार करता है। अतः इससे सर्वथा बच पाना संभव नहीं है, परंतु इसका विवेक जागृत होने पर अहिंसा के क्षेत्र में बहुत आगे बढ़ा जा सकता है।
जैन दर्शन में गृहस्थ के लिए यथाशक्य हिंसा के त्याग के निर्देश हैं। गृहस्थ संपूर्ण हिंसा से बच नहीं सकता, परंतु अनर्थ हिंसा से वह सहज बच सकता है। यह उसका विवेक है।
हिंसा के कितने प्रकार हैं? उनकी व्याख्याएं क्या हैं? अहिंसा की क्या परिभाषा है और उसकी उपासना कैसे संभव हो सकती है? इन सब प्रश्नों का समाधान इसमें किया गया है।
💠 *भगवान् प्राह*
*1. आज्ञायां मामको धर्मः, आज्ञायां मामकं तपः।*
*आज्ञामूढा न पश्यन्ति, तत्त्वं मिथ्याग्रहोद्धताः।*
भगवान् ने कहा— मेरा धर्म आज्ञा में है, मेरा तप आज्ञा में है। जो मिथ्या आग्रह से उद्धत हैं और आज्ञा का मर्म समझने में मूढ हैं, वे तत्त्व को नहीं देख सकते।
*2. वीतरागेण यद् दृष्टं, उपदिष्टं समर्थितम्।*
*आज्ञा सा प्रोच्यते बुद्धैः, भव्यानामात्मसिद्धये।।*
वीतराग ने जो देखा, जिसका उपदेश किया और जिसका समर्थन किया, वह आज्ञा है, ऐसा तत्त्वज्ञ पुरुषों ने कहा है। आज्ञा भव्य जीवों की आत्मसिद्धि का हेतु है।
*3. तदेव सत्यं निःशङ्कं, यज्जिनेन प्रवेदितम्।*
*रागद्वेषविजेतृत्वाद्, नान्यथावादिनो जिनाः।।*
जो जिन— वीतराग ने कहा, वही सत्य और असंदिग्ध है। वीतराग ने राग और द्वेष को जीत लिया, इसलिए वे मिथ्यावादी नहीं होते, अयथार्थ निरूपण नहीं करते।
*आज्ञा की आराधना और विराधना... मेधावी कौन...? जीवन और मरण में संयम-असंयम... असंयम क्या है...?* हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...
प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻
'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...
🔰 *सम्बोधि* 🔰
📜 *श्रृंखला -- 64* 📜
*अध्याय~~7*
*॥आज्ञावाद॥*
*॥आमुख॥*
भगवान् महावीर ने कहा कि 'आणाए मामगं धम्मं'— आज्ञा में मेरा धर्म है। आज्ञा का अर्थ है— वीतराग का कथन, प्रत्यक्षदर्शी का कथन। वही कथन यथार्थ और सत्य होता है, जो वीतराग द्वारा कथित है। वीतराग वह है, जो राग-द्वेष और मोह से परे है। उसकी अनुभूति और ज्ञान यथार्थ होता है। वह आत्माभिमुख होता है, अतः उसकी समस्त प्रवृत्ति और उसका सारा कथन आत्मा की परिक्रमा किए चलता है, इसलिए वह सत्य है। 'आज्ञा में मेरा धर्म है'— इसका तात्पर्यार्थ है— वीतरागता ही आत्मधर्म है। इसके अतिरिक्त सारा बहिर्भाव है। जितना वीतराग भाव है, उतना ही आत्मधर्म है।
हिंसा जीवन की अनिवार्यता है— इसे प्रत्येक मननशील व्यक्ति स्वीकार करता है। अतः इससे सर्वथा बच पाना संभव नहीं है, परंतु इसका विवेक जागृत होने पर अहिंसा के क्षेत्र में बहुत आगे बढ़ा जा सकता है।
जैन दर्शन में गृहस्थ के लिए यथाशक्य हिंसा के त्याग के निर्देश हैं। गृहस्थ संपूर्ण हिंसा से बच नहीं सकता, परंतु अनर्थ हिंसा से वह सहज बच सकता है। यह उसका विवेक है।
हिंसा के कितने प्रकार हैं? उनकी व्याख्याएं क्या हैं? अहिंसा की क्या परिभाषा है और उसकी उपासना कैसे संभव हो सकती है? इन सब प्रश्नों का समाधान इसमें किया गया है।
💠 *भगवान् प्राह*
*1. आज्ञायां मामको धर्मः, आज्ञायां मामकं तपः।*
*आज्ञामूढा न पश्यन्ति, तत्त्वं मिथ्याग्रहोद्धताः।*
भगवान् ने कहा— मेरा धर्म आज्ञा में है, मेरा तप आज्ञा में है। जो मिथ्या आग्रह से उद्धत हैं और आज्ञा का मर्म समझने में मूढ हैं, वे तत्त्व को नहीं देख सकते।
*2. वीतरागेण यद् दृष्टं, उपदिष्टं समर्थितम्।*
*आज्ञा सा प्रोच्यते बुद्धैः, भव्यानामात्मसिद्धये।।*
वीतराग ने जो देखा, जिसका उपदेश किया और जिसका समर्थन किया, वह आज्ञा है, ऐसा तत्त्वज्ञ पुरुषों ने कहा है। आज्ञा भव्य जीवों की आत्मसिद्धि का हेतु है।
*3. तदेव सत्यं निःशङ्कं, यज्जिनेन प्रवेदितम्।*
*रागद्वेषविजेतृत्वाद्, नान्यथावादिनो जिनाः।।*
जो जिन— वीतराग ने कहा, वही सत्य और असंदिग्ध है। वीतराग ने राग और द्वेष को जीत लिया, इसलिए वे मिथ्यावादी नहीं होते, अयथार्थ निरूपण नहीं करते।
*आज्ञा की आराधना और विराधना... मेधावी कौन...? जीवन और मरण में संयम-असंयम... असंयम क्या है...?* हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...
प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻
🙏🌸*⃣🌸🙏🌸*⃣🌸🙏🌸*⃣
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 161* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*जीवन के विविध पहलू*
*18. गहरे व्यंग्य*
*सर्वाधिक आघात*
पीपाड़ के चातुर्मास में बहुत लोग सम्यक्त्वी बने। उनमें एक अत्यंत प्रतिष्ठित और तत्त्वज्ञ श्रावक जग्गूजी गांधी भी थे। उनके मत-परिवर्तन से विरोधी संप्रदाय को बहुत बड़ा आघात लगा। उनके मित्र खेतसीजी लुणावत के लिए तो वह असह्य-सा हो गया।
एक भाई ने स्वामीजी से कहा— 'जग्गूजी का आघात तो बहुत लोगों को लगा, पर खेतसीजी को तो वह इतना तीव्र लगा कि रात-दिन उन्हीं की चिंता करते रहते हैं।'
स्वामीजी ने उनकी मित्रता की ओर संकेत करते हुए कहा— 'परदेश से किसी की मृत्यु के समाचार आते हैं, तब चिंतातुर तो अनेक होते हैं, पर पत्नी को जो आघात लगता है, वैसा अन्य किसी को नहीं।'
*रुपयों के श्रावक*
एक बार पाली में बहुत लोग समझे और तेरापंथी बने। विरोधियों ने उस विषय में प्रचार किया कि विजयचंदजी पटवा रुपए दे-देकर इन लोगों को तेरापंथी बना रहे हैं।
स्वामीजी ने जब उक्त बात सुनी तो कहा— 'जब रुपयों के लिए उनके श्रावक तेरापंथी बन जाते हैं, तो उन्होंने उस मार्ग को समझा ही कहां था? यदि ये सब रुपए लेकर ही समझे हैं, तो किसी के अवशिष्ट रहने की आशा भी उन्हें नहीं करनी चाहिए, क्योंकि रुपए मिलने पर वे भी आ सकते हैं।'
*गांव के निकट खेत*
विक्रम संवत् 1853 में स्वामीजी ने अपना चातुर्मास सोजत में किया। वहां काफी लोग श्रद्धालु बने। उस कार्य की प्रशंसा करते हुए एक व्यक्ति ने कहा— 'स्वामीजी! यहां उपकार बहुत अच्छा हुआ। इतने लोगों के समझने की तो आशा ही नहीं थी।'
स्वामीजी बोले— 'खेती की तो है, पर वह गांव के निकट और मार्ग पर है, अतः घुसपैठ से बच पाना जरा कठिन है।'
*नगजी का तेज*
एक बार स्वामी जी करेड़ा पधारे। वहां के कुछ व्यक्तियों ने स्वामीजी को बतलाया कि यहां मुनि नगजी रहते हैं। वे बड़े तेजस्वी हैं।'
स्वामीजी ने जिज्ञासा की— 'ऐसा क्या तेज देखा?'
लोग बोले— 'एक कुत्ती उन्हें देखकर बहुत भौंका करती थी। कई दिनों तक तो उन्होंने यह समझकर प्रतीक्षा की कि प्रतिदिन देखते-देखते परिचित हो जाएगी, तब भौंकना अपने आप बंद कर देगी, परंतु वह नहीं मानी और पूर्ववत् ही भक्ति रही। तब एक दिन उन्होंने उसकी टांग पकड़ी और घुमाकर दूर फेंक दिया। उस दिन के पश्चात् कुत्ती ने भौंकना तो बंद कर ही दिया, पर उन्हें देखते ही भागकर कहीं छिप जाती है।'
स्वामीजी मुस्कुराए और पूछने लगे— 'कुत्ती जिस स्थान पर गिरी, उसका प्रतिलेखन तो पहले कर ही लिया होगा?'
स्वामीजी का यह व्यंग्यपूर्ण प्रश्न सुनकर वे लोग झुंझला उठे और बोले— 'आप तो प्रत्येक कार्य में दोष ही खोजते रहते हैं।'
*स्वामीजी की विरोधी संप्रदाय के एक साधु द्वारा कसाई से तुलना... गुलाब ऋषि से तत्त्व-चर्चा... अपना उल्लू सीधा करने के लिए मुनि-वेश धारण करने वालों के संबंध में स्वामीजी का मंतव्य...* जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 161* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*जीवन के विविध पहलू*
*18. गहरे व्यंग्य*
*सर्वाधिक आघात*
पीपाड़ के चातुर्मास में बहुत लोग सम्यक्त्वी बने। उनमें एक अत्यंत प्रतिष्ठित और तत्त्वज्ञ श्रावक जग्गूजी गांधी भी थे। उनके मत-परिवर्तन से विरोधी संप्रदाय को बहुत बड़ा आघात लगा। उनके मित्र खेतसीजी लुणावत के लिए तो वह असह्य-सा हो गया।
एक भाई ने स्वामीजी से कहा— 'जग्गूजी का आघात तो बहुत लोगों को लगा, पर खेतसीजी को तो वह इतना तीव्र लगा कि रात-दिन उन्हीं की चिंता करते रहते हैं।'
स्वामीजी ने उनकी मित्रता की ओर संकेत करते हुए कहा— 'परदेश से किसी की मृत्यु के समाचार आते हैं, तब चिंतातुर तो अनेक होते हैं, पर पत्नी को जो आघात लगता है, वैसा अन्य किसी को नहीं।'
*रुपयों के श्रावक*
एक बार पाली में बहुत लोग समझे और तेरापंथी बने। विरोधियों ने उस विषय में प्रचार किया कि विजयचंदजी पटवा रुपए दे-देकर इन लोगों को तेरापंथी बना रहे हैं।
स्वामीजी ने जब उक्त बात सुनी तो कहा— 'जब रुपयों के लिए उनके श्रावक तेरापंथी बन जाते हैं, तो उन्होंने उस मार्ग को समझा ही कहां था? यदि ये सब रुपए लेकर ही समझे हैं, तो किसी के अवशिष्ट रहने की आशा भी उन्हें नहीं करनी चाहिए, क्योंकि रुपए मिलने पर वे भी आ सकते हैं।'
*गांव के निकट खेत*
विक्रम संवत् 1853 में स्वामीजी ने अपना चातुर्मास सोजत में किया। वहां काफी लोग श्रद्धालु बने। उस कार्य की प्रशंसा करते हुए एक व्यक्ति ने कहा— 'स्वामीजी! यहां उपकार बहुत अच्छा हुआ। इतने लोगों के समझने की तो आशा ही नहीं थी।'
स्वामीजी बोले— 'खेती की तो है, पर वह गांव के निकट और मार्ग पर है, अतः घुसपैठ से बच पाना जरा कठिन है।'
*नगजी का तेज*
एक बार स्वामी जी करेड़ा पधारे। वहां के कुछ व्यक्तियों ने स्वामीजी को बतलाया कि यहां मुनि नगजी रहते हैं। वे बड़े तेजस्वी हैं।'
स्वामीजी ने जिज्ञासा की— 'ऐसा क्या तेज देखा?'
लोग बोले— 'एक कुत्ती उन्हें देखकर बहुत भौंका करती थी। कई दिनों तक तो उन्होंने यह समझकर प्रतीक्षा की कि प्रतिदिन देखते-देखते परिचित हो जाएगी, तब भौंकना अपने आप बंद कर देगी, परंतु वह नहीं मानी और पूर्ववत् ही भक्ति रही। तब एक दिन उन्होंने उसकी टांग पकड़ी और घुमाकर दूर फेंक दिया। उस दिन के पश्चात् कुत्ती ने भौंकना तो बंद कर ही दिया, पर उन्हें देखते ही भागकर कहीं छिप जाती है।'
स्वामीजी मुस्कुराए और पूछने लगे— 'कुत्ती जिस स्थान पर गिरी, उसका प्रतिलेखन तो पहले कर ही लिया होगा?'
स्वामीजी का यह व्यंग्यपूर्ण प्रश्न सुनकर वे लोग झुंझला उठे और बोले— 'आप तो प्रत्येक कार्य में दोष ही खोजते रहते हैं।'
*स्वामीजी की विरोधी संप्रदाय के एक साधु द्वारा कसाई से तुलना... गुलाब ऋषि से तत्त्व-चर्चा... अपना उल्लू सीधा करने के लिए मुनि-वेश धारण करने वालों के संबंध में स्वामीजी का मंतव्य...* जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रृंखला -- 553* 📝
*अमृतपुरुष आचार्य श्री तुलसी*
*शैक्षणिक जगत् में अणुव्रत का योगदान*
शैक्षणिक जगत् में भी अणुव्रत प्रवर्तक आचार्य श्री तुलसी ने 'जीवन-विज्ञान' एवं अणुव्रत के माध्यम से उत्कर्ष के नए-नए आयाम दिए, अभिनव क्षितिज खोले। सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास के प्रेरक सूत्र दिए। बौद्धिक विकास के साथ भावनात्मक विकास के संपोषिक मूल्य स्थापित किए। मूल्यपरक शिक्षा के पिलर खड़े किए।
शिक्षा के साथ संस्कार-पल्लवन की दृष्टि से शिक्षक वर्ग एवं छात्र वर्ग के लिए अणुव्रत वर्गीय आचार संहिता तैयार की एवं राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षक संसद एवं छात्र संसद स्थापित हुई। समय-समय पर इनके विशाल सम्मेलन आयोजित हुए, जिनमें शिक्षकों और छात्रों की सराहनीय उपस्थिति बनी रही।
शिक्षण संस्थानों में अणुव्रत विषयक साप्ताहिक व्याख्यान मालाएं, अणुव्रत एवं जीवन विज्ञान विषयक गोष्ठियां, चर्चा-परिचर्चा, शिविर, सेमिनार आदि कार्यक्रमों से वातावरण में भारी बदलाव नजर आया। अनेक प्रांतों के शिक्षक एवं विद्यार्थी इन जीवन प्रभावी कार्यक्रमों में संभागी बने। आचार संहिता से जुड़े। शैक्षणिक जगत् में एक अपूर्व वैचारिक क्रांति घटित हुई।
अणुव्रत आंदोलन की कल्याणकारी भावना ने जन-जन को प्रभावित किया। सैकड़ों कार्यकर्ता इस आंदोलन के प्रवृत्त्यात्मक प्रचार-प्रसार हेतु आगे आए। समाज जागा, देश जागा। अनेक व्यक्ति व्यसन मुक्त होकर आनंदमय एवं स्वस्थ जीवन जीने लगे। मिलावट विरोधी अभियान, मद्यपान-निषेध, संस्कार निर्माण आदि आयोजनों द्वारा सभी वर्गों में नैतिकता का स्वर बुलंद हुआ।
*अणुव्रत संसदीय मंच परियोजना*
भारत विश्व में सबसे बड़ा लोकतंत्र देश है। लोकतंत्र शासन प्रणाली में संसद-सदस्यों की भूमिका सर्वोपरि होती है। राष्ट्र की भाग्यलिपि तैयार करने वाले जनप्रतिनिधि सांसदों का जीवन चरित्र संपन्न बने, इस दृष्टि से विशद चिंतक आचार्य श्री तुलसी ने अणुव्रत संसदीय मंच की भव्य योजना प्रस्तुत की। कई सांसद उससे जुड़े। कई समर्थक बने। संसद में यह प्रमुख चर्चा का विषय बना।
राष्ट्र की छवि को निखारने में आचार्य श्री तुलसी का यह एक और सशक्त कदम था, जिसकी अपेक्षा आज भी अनुभूत की जा रही है।
*अणुव्रत विश्व भारती*
विशाल राजसमंद झील से सटी पहाड़ी पर स्थित 'अनुव्रत विश्व भारती' आचार्य श्री तुलसी के सपनों की सुनहरी सौगात है। इसके जन कल्याणी कार्यक्रमों ने अणुव्रत की सौरभ को दूर-दूर तक प्रसारित किया। अनुव्रत विश्व भारती द्वारा सात अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन समायोजित हुए। इन सम्मेलनों में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, कनाडा, स्वीडन, जापान, थाईलैंड, हॉलैंड आदि अनेक देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। ईस्वी सन् 1994 के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में नेपाल अकादमी के कुलपति 'श्री पद्ममणि दीक्षित', यूनाइटेड किंगडम के 'श्री थॉमस', युगोस्लाविया की 'श्रीमती बाना', रूस के 'श्री सिदोराव' आदि अनेक विशिष्ट लोगों की संभागिता रही।
अणुव्रत की आवाज इन सम्मेलनों के माध्यम से समुद्रों पार दूर-दूर तक गूंजी। यूनाइटेड नेशन तक अनुव्रत विश्व भारती की पहचान स्थापित हुई। अणुव्रत का बड़े पैमाने पर विस्तार हुआ।
*अध्यात्म के शिखर उदात्तचेता... युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी के समुन्नत विचारों से प्रसूत... अविर्भूत एवं ज्योतिर्मय दीपशिखा "जैन विश्व भारती"...* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रृंखला -- 553* 📝
*अमृतपुरुष आचार्य श्री तुलसी*
*शैक्षणिक जगत् में अणुव्रत का योगदान*
शैक्षणिक जगत् में भी अणुव्रत प्रवर्तक आचार्य श्री तुलसी ने 'जीवन-विज्ञान' एवं अणुव्रत के माध्यम से उत्कर्ष के नए-नए आयाम दिए, अभिनव क्षितिज खोले। सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास के प्रेरक सूत्र दिए। बौद्धिक विकास के साथ भावनात्मक विकास के संपोषिक मूल्य स्थापित किए। मूल्यपरक शिक्षा के पिलर खड़े किए।
शिक्षा के साथ संस्कार-पल्लवन की दृष्टि से शिक्षक वर्ग एवं छात्र वर्ग के लिए अणुव्रत वर्गीय आचार संहिता तैयार की एवं राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षक संसद एवं छात्र संसद स्थापित हुई। समय-समय पर इनके विशाल सम्मेलन आयोजित हुए, जिनमें शिक्षकों और छात्रों की सराहनीय उपस्थिति बनी रही।
शिक्षण संस्थानों में अणुव्रत विषयक साप्ताहिक व्याख्यान मालाएं, अणुव्रत एवं जीवन विज्ञान विषयक गोष्ठियां, चर्चा-परिचर्चा, शिविर, सेमिनार आदि कार्यक्रमों से वातावरण में भारी बदलाव नजर आया। अनेक प्रांतों के शिक्षक एवं विद्यार्थी इन जीवन प्रभावी कार्यक्रमों में संभागी बने। आचार संहिता से जुड़े। शैक्षणिक जगत् में एक अपूर्व वैचारिक क्रांति घटित हुई।
अणुव्रत आंदोलन की कल्याणकारी भावना ने जन-जन को प्रभावित किया। सैकड़ों कार्यकर्ता इस आंदोलन के प्रवृत्त्यात्मक प्रचार-प्रसार हेतु आगे आए। समाज जागा, देश जागा। अनेक व्यक्ति व्यसन मुक्त होकर आनंदमय एवं स्वस्थ जीवन जीने लगे। मिलावट विरोधी अभियान, मद्यपान-निषेध, संस्कार निर्माण आदि आयोजनों द्वारा सभी वर्गों में नैतिकता का स्वर बुलंद हुआ।
*अणुव्रत संसदीय मंच परियोजना*
भारत विश्व में सबसे बड़ा लोकतंत्र देश है। लोकतंत्र शासन प्रणाली में संसद-सदस्यों की भूमिका सर्वोपरि होती है। राष्ट्र की भाग्यलिपि तैयार करने वाले जनप्रतिनिधि सांसदों का जीवन चरित्र संपन्न बने, इस दृष्टि से विशद चिंतक आचार्य श्री तुलसी ने अणुव्रत संसदीय मंच की भव्य योजना प्रस्तुत की। कई सांसद उससे जुड़े। कई समर्थक बने। संसद में यह प्रमुख चर्चा का विषय बना।
राष्ट्र की छवि को निखारने में आचार्य श्री तुलसी का यह एक और सशक्त कदम था, जिसकी अपेक्षा आज भी अनुभूत की जा रही है।
*अणुव्रत विश्व भारती*
विशाल राजसमंद झील से सटी पहाड़ी पर स्थित 'अनुव्रत विश्व भारती' आचार्य श्री तुलसी के सपनों की सुनहरी सौगात है। इसके जन कल्याणी कार्यक्रमों ने अणुव्रत की सौरभ को दूर-दूर तक प्रसारित किया। अनुव्रत विश्व भारती द्वारा सात अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन समायोजित हुए। इन सम्मेलनों में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, कनाडा, स्वीडन, जापान, थाईलैंड, हॉलैंड आदि अनेक देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। ईस्वी सन् 1994 के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में नेपाल अकादमी के कुलपति 'श्री पद्ममणि दीक्षित', यूनाइटेड किंगडम के 'श्री थॉमस', युगोस्लाविया की 'श्रीमती बाना', रूस के 'श्री सिदोराव' आदि अनेक विशिष्ट लोगों की संभागिता रही।
अणुव्रत की आवाज इन सम्मेलनों के माध्यम से समुद्रों पार दूर-दूर तक गूंजी। यूनाइटेड नेशन तक अनुव्रत विश्व भारती की पहचान स्थापित हुई। अणुव्रत का बड़े पैमाने पर विस्तार हुआ।
*अध्यात्म के शिखर उदात्तचेता... युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी के समुन्नत विचारों से प्रसूत... अविर्भूत एवं ज्योतिर्मय दीपशिखा "जैन विश्व भारती"...* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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🏭 *_आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र,_ _कुम्बलगुड़ु, बेंगलुरु, (कर्नाटक)_*
💦 *_परम पूज्य गुरुदेव_* _अमृत देशना देते हुए_
📚 *_मुख्य प्रवचन कार्यक्रम_* _की विशेष_
*_झलकियां_ _________*
🌈🌈 *_गुरुवरो घम्म-देसणं_*
⌚ _दिनांक_: *_16 अक्टूबर 2019_*
🧶 _प्रस्तुति_: *_संघ संवाद_*
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
🧬🧲🧬🧲🧬🧲🧬🧲🧬🧲🧬
🏭 *_आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र,_ _कुम्बलगुड़ु, बेंगलुरु, (कर्नाटक)_*
💦 *_परम पूज्य गुरुदेव_* _अमृत देशना देते हुए_
📚 *_मुख्य प्रवचन कार्यक्रम_* _की विशेष_
*_झलकियां_ _________*
🌈🌈 *_गुरुवरो घम्म-देसणं_*
⌚ _दिनांक_: *_16 अक्टूबर 2019_*
🧶 _प्रस्तुति_: *_संघ संवाद_*
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⛲
*आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ*
*चेतना सेवा केन्द्र,*
*कुम्बलगुड़ु,*
*बेंगलुरु*
💧
*महाश्रमण चरणों में...*
*_____◆_____◆_____*
⏰
*: दिनांक:*
16 अक्टूबर 2019
💠
*: प्रस्तुति:*
🌻 संघ संवाद 🌻
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*आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ*
*चेतना सेवा केन्द्र,*
*कुम्बलगुड़ु,*
*बेंगलुरु*
💧
*महाश्रमण चरणों में...*
*_____◆_____◆_____*
⏰
*: दिनांक:*
16 अक्टूबर 2019
💠
*: प्रस्तुति:*
🌻 संघ संवाद 🌻
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🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला २८७* - *आभामंडल १५*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482
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🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला २८७* - *आभामंडल १५*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
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