आचार्य श्री ससंघ की यहाँ से सिकंदरा, दौसा होते हुए जयपुर पहुँचने की संभावना है ।
मड़फा दुर्ग चंदेल राजाओं के आठ प्रमुख दुर्ग में से एक है और ऐसा भी असंभव है कि चंदेलों का किला हो और उसमें भव्य जैन मन्दिर न हो! कालिंजर दुर्ग / चित्रकूट से लगभग 20 किलो. दूर एक ऊंची पहाड़ी पर स्तिथ मड़फा दुर्ग में तीन प्राचीन जैन मंदिर थे, जो आज जर्जर अवस्था में पुरातत्व विभाग व जैन समाज का अपने संरक्षण हेतु इंतजार कर रहे है! दुर्ग में स्तिथ जैन तीर्थंकर प्रतिमायें व मंदिर के अवशेष अपनी प्राचीनता की प्रमाणिकता साबित करते नजर आते है लेकिन दुर्ग में खजाने व पुरातत्व के लालची इसकी प्राचीन वैभवता का विनाश करने के लिए तत्पर....विश्व जैन संगठन
मडफा दुर्ग में प्राकृतिक जलाशय के समीप दो प्राचीन जैन मंदिर है जो चंदेलकालीन प्रतीत होते है! इन मंदिरों में स्थापित जैन तीर्थंकर प्रतिमाएं इनके पास स्तिथ एक वृक्ष के नीचे रखी है जिनमे से एक भगवान आदिनाथ की पद्मासन मुद्रा में तीन फीट ऊँची है! प्रतिमा की पादपीठिका में संस्कृत में शिलालेख अंकित है। शिलालेख के अनुसार संवत 1408 माघ सुदी 5 रविवार को प्रतिमा की स्थापना का उल्लेख है! प्रतिमा स्थापित करने वाले गोसल पुत्र छीतम, उसके पिता गोसल व माता सलप्रण, पितामह धने व मातामही तोण के नामों का उल्लेख है!
प्राकृतिक जलाशय के पास एक तालाब है जिसकी मान्यता है कि इसमें स्नान करने से चर्मरोग नष्ट हो जाते हैं। जनश्रुतियों में मडफा क्षेत्र में भगवान आदिनाथ के विहार करने की बात कही जाती है!
मडफा दुर्ग में ही अन्य 12 छोटे-छोटे जैन मन्दिर बने है जिसके कारण स्थानीय लोग इन्हें बारादरी नाम से पुकारते है! यह भी प्रचलित है कि मडफा क्षेत्र से गुजरते हुए एक जैन व्यापारी को अकूत संपदा प्राप्त हुई थी, जिसका उपयोग कर दुर्ग में व्यापारी ने जैन मंदिरों का निर्माण कराया। पंचरथ योजना के अनुरूप बने मंदिरों का अधिकांश हिस्सा ध्वस्त हो चुका है!
पुरातत्व विभाग द्वारा ‘यूनाइटेड प्रोविन्सस ऑफ आगरा व ओध’ में पंजीकृत स्मारको में क्र. 66 पर मडफा दुर्ग में तीन जैन मंदिर स्तिथ होने की जानकारी प्रकाशित की है और वर्तमान में लखनऊ सर्किल द्वारा भी क्र. संख्या 20 पर यही प्रकाशित किया है!
मड़फा दुर्ग की जटिल संरचना का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि यहाँ पर बाहरी लोगों का आना आज भी उतना ही कठिन है जितना कि पुराने जमाने में रहा होगा। 18वीं सदी के मध्य में टीफेन्थलर नामक एक डच पादरी ने दुर्ग को मण्डेफा नाम से प्रसिद्ध लिखा है! मडफा दुर्ग को कालिंजर दुर्ग का ही एक अंग बताया जाता है! कहावत के अनुसार महर्षि अर्थवर्ण और चरक संहिता के रचयिता वैद्य चरक ऋषि का आश्रम भी मड़फा में ही था।
केंद्रीय पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित दुर्ग को कोई देखने वाला नहीं है, रास्ता ना होने से वहां पर ना कोई अधिकारी जाते हैं और ना ही कोई चौकीदार रहता है! कुछ हिन्दू साधू ही यहाँ शिव मंदिर में रहते है! दुर्ग के किस्से आज भी हैं, मगर ये किस्से ऋषियों या राजाओं के नहीं अपितु अपराधियों के है, जिनके पीछे मड़फा का ऐतिहासिक महत्व छिप गया है क्योकि इन्होने यहाँ के दुर्लभ सुगम ठिकानों को अपनी गिरफ्त में ले लिया है।
कालंजर का दुर्ग पर्यटन के विश्व-स्तरीय मानचित्र पर है मगर मड़फा आज भी उपेक्षित है क्योकि यहाँ स्तिथ अनेक दुर्लभ प्राचीन मूर्तियाँ धन के लालच की भेंट चढ़ गईं। खजाने के लालच में मंदिरों के गर्भगृह और ऐतिहासिक निर्मितियाँ खोद डाली गईं।
मड़फा दुर्ग पूर्ववत वैभव कथाओं तक ले जाने के लिए प्रयास अपेक्षित हैं! यदि इस स्थान का उचित प्रकार से संरक्षण किया जाए तो यह क्षेत्र कालिंजर व चित्रकूट के समान एक महान स्थल बन सकता है! संकलनकर्ता: संजय जैन मो.: 9312278313