दिनांक 25 दिसम्बर 2019 को श्री दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र, पदमपुरा (राज.) की पावन धरा पर आचार्य श्री 108 शांतिसागर जी महाराज के समाधि हीरक महोत्सव वर्ष के उपलक्ष्य में परम पूज्य आचार्य श्री ज्ञानसागर जी मुनिराज ससंघ के पावन सानिध्य में अखिल भारतीय जैन बैंकर्स फोरम जयपुर का प्रथम सम्मेलन
श्री सुधीर जैन, अध्यक्ष - श्री पदमपुरा अतिशय क्षेत्र ने अपने विचार रखते हुए कहा कि पहले जैन समाज का व्यक्ति जिस पद पर भी आसीन होता था सभी उनकी ईमानदारी प्रमाणिकता देखकर सभी प्रभावित होते थे। आप सभी यहां पधारे सभी का क्षेत्र की ओर से धन्यवाद ज्ञापित करता हूं।
श्रीमती अरुणा जी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि किसी भी प्रकार के प्रलोभन में नहीं फंसना चाहिए, सुकन्या समृद्धि योजना की भी जानकारी दी।
श्री अशोक जी बैंक अधिकारी ने कहा कि बैंक अधिकारियों से जैन समाज किस प्रकार लाभान्वित हो उस दृष्टि से यह सम्मेलन आयोजित किया गया है, आयोजकों को धन्यवाद दिया।
श्री रमेश जी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा सभी के प्रति सद्भाव रखे साथ ही सुंदर भारत कैसे बनें इस हेतु विचार रखे। श्री निशांत जी ने कहा कि आपका मेरठ में वर्षा योग हुआ था उस समय के संस्कार आज भी मेरे अंदर हैं, आज के समय में भगवान महावीर स्वामी के अपरिग्रह सिद्धांत के जीते जागते उदाहरण हैं। आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज जैसे संतों का सानिध्य जीवन में बहुत जरूरी है।
श्री सुधांशु जी कासलीवाल मुख्य अतिथि, महावीर जी क्षेत्र के अध्यक्ष ने अपने विचार रखते हुए कहा कि आज के समय संगठन बहुत जरूरी है।
श्री आरसी लोढ़ा साहब जयपुर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि बैंकर्स फोरम के प्रणेता आचार्य श्री को नमन। आज इस धरा पर आचार्य श्री आए। यहां पर श्री पदमप्रभु भगवान इस युग के छटवें तीर्थंकर है। आचार्य श्री ज्ञानसागर जी भी शांति सागर जी महाराज 'छाणी' परंपरा के पष्ट पट्टाचार्य है कितना अच्छा संयोग है। अपरिग्रह सिद्धांत की चर्चा भी की। जैन दर्शन एवं बैंकर्स की बहुत सुंदर व्याख्या की। हम सभी ईमानदार एवं प्रमाणिक बने यही इस फोरम का उद्देश्य है।
ब्र. अनीता दीदी ने ज्योति दर युगपुरुष पुस्तक श्री कमल जी बाकलीवाल ग्वालियर द्वारा रचित की जानकारी देते हुए सराकोद्धारक की उपाधि पूज्यश्री के नाम से पूर्व क्यों जोड़ा इस विषय पर प्रकाश डाला। उस पुस्तक का विमोचन बैंकर्स अधिकारी आदि ने किया।
ऐ के जैन रपरिया, आगरा ने कहा की बैंक अधिकारियों को एक सूत्र में बांधने की प्रेरणा आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज से मिली। इसकी 25 शाखाएं कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली आदि अनेक स्थानों पर है। इस फोरम द्वारा छात्रवृत्ति, काउंसलिंग, भक्तामर पाठ, णमोकार मंत्र का पाठ, नैतिक शिक्षा विषय हेतु अनेक कार्यक्रम किए जाते हैं। समाधि हीरक महोत्सव वर्ष पर किए जाने वाले कार्यक्रमों की जानकारी दी।
आर्यिकारत्न श्री गौरवमति माताजी ने अपनी वाणी द्वारा कहा कि 50 साल में पहली बार बैंकर्स अधिकारियों का सम्मेलन देख रही हूं। पहले भी पढ़ाई होती थी पर उतना खर्च नहीं होता तब, पर आज कितना खर्च हो रहा है यह सभी को ज्ञात है। पहले डॉक्टर नब्ज देख कर बता देते थे कि आपको कौन सी बीमारी है पर आज के डॉक्टर ब्लड, यूरीन आदि की टेस्ट करा कर बताते हैं कि आपको कौन सी बीमारी है। आज आप अपने जीवन में वह रोड बनाओ जो सिद्धशिला तक पहुंचाने में माध्यम बनती है। आज की शिक्षा कहां ले जा रही है आप सब भक्त भोगी है। एक ऐसी बैंक होनी चाहिए जो उन छात्र-छात्राओं को बिना ब्याज के लोन दिया जाए जो टैलेंटेड है और इंटेलिजेंट है पर आर्थिक समस्या के कारण अपनी प्रतिभा का उपयोग नहीं कर पाते। आज हमारी समाज में कोई ऐसी संस्था नहीं है जो आपके बच्चों में संस्कारों के शंखनाद करने में माध्यम बनती है, कोई ऐसी भोजनशाला नहीं जो कम पैसों में भोजन देती हो। पूज्य आचार्य श्री के पुनः दर्शन करने का अवसर मिला यह हमारा सौभाग्य है।
पूज्य आचार्य ज्ञानसागर जी मुनिराज ने अपनी पियूष वाणी द्वारा कहा कि डॉ राजेंद्र प्रसाद जी राष्ट्रपति के अंदर दया करुणा की भावना थी। सर्दी का समय था टहलते हुए जब उन्होंने गरीब व्यक्ति को ठिठुरते हुए देखा तो अपना दुशाला उसे ओढ़ा दिया। प्रातः जब गरीब व्यक्ति उठा तो वह घबरा जाता है कि किसने इतना कीमती दुशाला मेरे ऊपर डाल दिया है। जब यह चर्चा डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद जी तक पहुंचती है तो उस व्यक्ति से कहते हैं किसी और ने नहीं मैंने ही तुम्हें ठिठुरता देखकर अपना दुशाला आपके ऊपर डाल दिया था। यह दुशाला ओढ़ाकर मैंने अपने कष्ट को दूर किया है। यह महानता का परिचय है, मात्र पद पर आसीन होने से व्यक्ति बड़ा नहीं होता उसकी मानता उसके सद्गुणों से होती है। जैन धर्म एक वैज्ञानिक धर्म है उसकी वैज्ञानिकता स्वयं समझे अपने बच्चे को समझाएं। पहले अच्छे कार्यों को स्वयं करें तभी आपकी बात का असर बच्चों के ऊपर पड़ेगा। आपकी सोच ऊंची होनी चाहिए आप सभी प्रबुद्ध वर्ग हैं आप सभी की बहुत बड़ी जिम्मेदारी हैं आप जिस समाज, देश, राष्ट्र में है उसके प्रति भी आपसे कुछ कर्तव्य है। आप अगर अपने गौरव को बढ़ा नहीं सकते तो गौरव को घटाने का काम ना करें। कर सेवा जन जन की इस पंक्ति को चरितार्थ करें, परस्पर एक दूसरे का सहयोग करना अपने से छोटों को सहयोग करें। इन सभी कार्यों के साथ आप सभी देव शास्त्र गुरु की संस्कृति से इसी तरह जुड़े रहें। अपने बच्चों को भी संस्कार दे ताकि आपके बच्चे गौरव के साथ जी सकें।
श्री सुधीर जैन, अध्यक्ष - श्री पदमपुरा अतिशय क्षेत्र ने अपने विचार रखते हुए कहा कि पहले जैन समाज का व्यक्ति जिस पद पर भी आसीन होता था सभी उनकी ईमानदारी प्रमाणिकता देखकर सभी प्रभावित होते थे। आप सभी यहां पधारे सभी का क्षेत्र की ओर से धन्यवाद ज्ञापित करता हूं।
श्रीमती अरुणा जी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि किसी भी प्रकार के प्रलोभन में नहीं फंसना चाहिए, सुकन्या समृद्धि योजना की भी जानकारी दी।
श्री अशोक जी बैंक अधिकारी ने कहा कि बैंक अधिकारियों से जैन समाज किस प्रकार लाभान्वित हो उस दृष्टि से यह सम्मेलन आयोजित किया गया है, आयोजकों को धन्यवाद दिया।
श्री रमेश जी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा सभी के प्रति सद्भाव रखे साथ ही सुंदर भारत कैसे बनें इस हेतु विचार रखे। श्री निशांत जी ने कहा कि आपका मेरठ में वर्षा योग हुआ था उस समय के संस्कार आज भी मेरे अंदर हैं, आज के समय में भगवान महावीर स्वामी के अपरिग्रह सिद्धांत के जीते जागते उदाहरण हैं। आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज जैसे संतों का सानिध्य जीवन में बहुत जरूरी है।
श्री सुधांशु जी कासलीवाल मुख्य अतिथि, महावीर जी क्षेत्र के अध्यक्ष ने अपने विचार रखते हुए कहा कि आज के समय संगठन बहुत जरूरी है।
श्री आरसी लोढ़ा साहब जयपुर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि बैंकर्स फोरम के प्रणेता आचार्य श्री को नमन। आज इस धरा पर आचार्य श्री आए। यहां पर श्री पदमप्रभु भगवान इस युग के छटवें तीर्थंकर है। आचार्य श्री ज्ञानसागर जी भी शांति सागर जी महाराज 'छाणी' परंपरा के पष्ट पट्टाचार्य है कितना अच्छा संयोग है। अपरिग्रह सिद्धांत की चर्चा भी की। जैन दर्शन एवं बैंकर्स की बहुत सुंदर व्याख्या की। हम सभी ईमानदार एवं प्रमाणिक बने यही इस फोरम का उद्देश्य है।
ब्र. अनीता दीदी ने ज्योति दर युगपुरुष पुस्तक श्री कमल जी बाकलीवाल ग्वालियर द्वारा रचित की जानकारी देते हुए सराकोद्धारक की उपाधि पूज्यश्री के नाम से पूर्व क्यों जोड़ा इस विषय पर प्रकाश डाला। उस पुस्तक का विमोचन बैंकर्स अधिकारी आदि ने किया।
ऐ के जैन रपरिया, आगरा ने कहा की बैंक अधिकारियों को एक सूत्र में बांधने की प्रेरणा आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज से मिली। इसकी 25 शाखाएं कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली आदि अनेक स्थानों पर है। इस फोरम द्वारा छात्रवृत्ति, काउंसलिंग, भक्तामर पाठ, णमोकार मंत्र का पाठ, नैतिक शिक्षा विषय हेतु अनेक कार्यक्रम किए जाते हैं। समाधि हीरक महोत्सव वर्ष पर किए जाने वाले कार्यक्रमों की जानकारी दी।
आर्यिकारत्न श्री गौरवमति माताजी ने अपनी वाणी द्वारा कहा कि 50 साल में पहली बार बैंकर्स अधिकारियों का सम्मेलन देख रही हूं। पहले भी पढ़ाई होती थी पर उतना खर्च नहीं होता तब, पर आज कितना खर्च हो रहा है यह सभी को ज्ञात है। पहले डॉक्टर नब्ज देख कर बता देते थे कि आपको कौन सी बीमारी है पर आज के डॉक्टर ब्लड, यूरीन आदि की टेस्ट करा कर बताते हैं कि आपको कौन सी बीमारी है। आज आप अपने जीवन में वह रोड बनाओ जो सिद्धशिला तक पहुंचाने में माध्यम बनती है। आज की शिक्षा कहां ले जा रही है आप सब भक्त भोगी है। एक ऐसी बैंक होनी चाहिए जो उन छात्र-छात्राओं को बिना ब्याज के लोन दिया जाए जो टैलेंटेड है और इंटेलिजेंट है पर आर्थिक समस्या के कारण अपनी प्रतिभा का उपयोग नहीं कर पाते। आज हमारी समाज में कोई ऐसी संस्था नहीं है जो आपके बच्चों में संस्कारों के शंखनाद करने में माध्यम बनती है, कोई ऐसी भोजनशाला नहीं जो कम पैसों में भोजन देती हो। पूज्य आचार्य श्री के पुनः दर्शन करने का अवसर मिला यह हमारा सौभाग्य है।
पूज्य आचार्य ज्ञानसागर जी मुनिराज ने अपनी पियूष वाणी द्वारा कहा कि डॉ राजेंद्र प्रसाद जी राष्ट्रपति के अंदर दया करुणा की भावना थी। सर्दी का समय था टहलते हुए जब उन्होंने गरीब व्यक्ति को ठिठुरते हुए देखा तो अपना दुशाला उसे ओढ़ा दिया। प्रातः जब गरीब व्यक्ति उठा तो वह घबरा जाता है कि किसने इतना कीमती दुशाला मेरे ऊपर डाल दिया है। जब यह चर्चा डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद जी तक पहुंचती है तो उस व्यक्ति से कहते हैं किसी और ने नहीं मैंने ही तुम्हें ठिठुरता देखकर अपना दुशाला आपके ऊपर डाल दिया था। यह दुशाला ओढ़ाकर मैंने अपने कष्ट को दूर किया है। यह महानता का परिचय है, मात्र पद पर आसीन होने से व्यक्ति बड़ा नहीं होता उसकी मानता उसके सद्गुणों से होती है। जैन धर्म एक वैज्ञानिक धर्म है उसकी वैज्ञानिकता स्वयं समझे अपने बच्चे को समझाएं। पहले अच्छे कार्यों को स्वयं करें तभी आपकी बात का असर बच्चों के ऊपर पड़ेगा। आपकी सोच ऊंची होनी चाहिए आप सभी प्रबुद्ध वर्ग हैं आप सभी की बहुत बड़ी जिम्मेदारी हैं आप जिस समाज, देश, राष्ट्र में है उसके प्रति भी आपसे कुछ कर्तव्य है। आप अगर अपने गौरव को बढ़ा नहीं सकते तो गौरव को घटाने का काम ना करें। कर सेवा जन जन की इस पंक्ति को चरितार्थ करें, परस्पर एक दूसरे का सहयोग करना अपने से छोटों को सहयोग करें। इन सभी कार्यों के साथ आप सभी देव शास्त्र गुरु की संस्कृति से इसी तरह जुड़े रहें। अपने बच्चों को भी संस्कार दे ताकि आपके बच्चे गौरव के साथ जी सकें।
Photos of पूज्य षष्टम पट्टाचार्य श्री 108 ज्ञानसागर जी मुनिराजs post