29.12.2019 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 29.12.2019
Updated: 29.12.2019
*प्रेरणा पाथेय:-आचार्य श्री महाश्रमणजी - 29 December 2019, का वीडियो-प्रस्तुति~अमृतवाणी*

*संप्रसारक: 🌻संघ संवाद*🌻

🙏🌸*⃣🌸🙏🌸*⃣🌸🙏🌸*⃣

'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...

🔰 *सम्बोधि* 🔰

📜 *श्रृंखला -- 127* 📜

*॥ उपसंहार॥*

यह मेघ को दिया गया भगवान महावीर का प्रतिबोध जन-जन के लिए प्रतिबोध है। मोह-विजय, अज्ञान-विजय और आत्मानुशासन की साधना है।

जिसका मोह विलय होता है, वह संबुद्ध है। 'संबोधि' की उपासना कर, अनेक आत्माएं मेघ बन गई और अनेक बनेंगी। आत्मा का शुद्ध स्वरूप सच्चिदानंद है। वह आत्मोपासना से प्रबुद्ध होता है। मोह और अज्ञान आत्मेतर हैं। इनके भंवर से वही निकल सकता है, जो संबोधि' को आत्मसात् करता है। 'संबोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है।

आत्मा की अविकृत और विकृत दशा की यहां विस्तृत चर्चा है। विकृत से अविकृत बनाना 'संबोधि' का ध्येय है। जो धर्ममूढ़ता या आत्ममूढ़ता है, वह मोह है। मोह का विलय मुक्ति है। मोह-विलय से दृष्टि-शुद्धि, ज्ञान-शुद्धि और आचार-शुद्धि होती है। प्रत्येक व्यक्ति इस विशुद्धि का अधिकारी है, किंतु वह सर्वश्रेष्ठ अधिकारी है, जिसकी मोह-विजय में पूर्ण आस्था है। क्षेत्र, काल, प्रांत आदि की सीमाएं आस्थावान के लिए व्यवधान नहीं बन सकतीं। यह सबकी बपौती है। 'संबोधि' आस्था को जगाती है और व्यक्ति को आस्थावान बनाती है, आत्मा की स्व में अटूट आस्था को प्रवल कर वह कृतकृत्य हो जाती है।

*॥ प्रशस्तिः ॥*

*1. तवैवालोकोऽयं प्रसृत इह शब्देषु सततं,*
*तवैषा पुण्या गीरमलतमभावानुपगता।*
*प्रभो! शब्दैरचर्चामकृषि सुलभैः संस्कृतमयै-*
*स्तदेषाऽलोकाय प्रभवतु जनानां सुमनसाम्।।*

प्रभो! यह तुम्हारा ही आलोक है, जो शब्दों में प्रसृत हो रहा है। यह तुम्हारी पवित्र वाणी पवित्रतम भावों से अनुस्यूत हो रही है। सुलभ, सुसंस्कृत शब्दों के द्वारा मैंने (ग्रन्थकार आचार्यश्री महाप्रज्ञ) तुम्हारी अर्चा की है। वह अच्छे मनवाले मनुष्यों के लिए आलोक का हेतु बने।

*2. दीपावल्याः पावने पर्वणीह,*
*निर्वाणस्यानुत्तरे वासरेऽस्मिन्।*
*निर्ग्रन्थानां स्वामिनो ज्ञातसूनो-*
*रर्चां कृत्वा मोदते नत्थमल्लः।।*

दीपावली के इस पवित्र पर्व पर, निर्वाण के अनुत्तर दिन पर मैं नथमल निर्ग्रन्थों के स्वामी ज्ञातपुत्र (भगवान महावीर) की अर्चा कर प्रसन्न हूं।

*3. विक्रमे द्विसहस्राब्दे, पावने षोडशोत्तरे।*
*कलकत्ता-महापुर्यां सम्बोधिश्च प्रपूरिता।*

विक्रम संवत् 2016 के पावन वर्ष में मैंने (ग्रन्थकार आचार्यश्री महाप्रज्ञ) कलकत्ता महानगरी में संबोधि की रचना पूर्ण की।

*4. आचार्यवर्यतुलसी चरणाम्बुजेषु*
*वृत्तिं व्रजन् मधुकृतो मधुरामगम्याम्।*
*भिक्षोरनन्त-सुकृतोन्नत-शासनेऽस्मिन्,*
*मोदे प्रकाशमतुलं प्रसजन्नमोघम्।।*

आचार्यवर श्री तुलसी के चरण-कमलों में मधुर और अगम्य माधुकरी वृत्ति को प्राप्त करता हुआ, भिक्षु के अनंत पुण्यों से उन्नत बने हुए इस शासन में अतुलनीय अमोघ प्रकाश को प्राप्त करता हुआ प्रसन्नता अनुभव कर रहा हूं।

*सम्बोधि ग्रन्थ की पोस्ट आज अपनी परिसंपन्नता को प्राप्त हो गई है... हम शीघ्र ही प्रस्तुत होंगे... अध्यात्मिक तृप्ति देने वाले एक नए साहित्य की पोस्ट के साथ...*

प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻

🙏🌸*⃣🌸🙏🌸*⃣🌸🙏🌸*⃣
🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹

शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।

🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞

📜 *श्रृंखला -- 218* 📜

*आचार्यश्री भारमलजी*

*महाराणा के दो पत्र*

*उदयपुर से निष्कासन*

महाराणा उन सबकी छद्मनीति के शिकार हो गये। लगता है कि उस समय के राजाओं में जहां राजनीतिक पटुता का अभाव हो रहा था वहां व्यावहारिक पटुता भी लुप्त हो गई थी। उन्होंने वस्तुस्थिति तक पहुंचने का अपनी ओर से कोई प्रयास नहीं किया। जैसा सुझाया गया वैसा ही करने को उद्यत हो गये। संभवतः महाराणा भीमसिंहजी की प्रकृति में यह अपनी एक दुर्बलता रही थी। एक अन्य समस्या को हल करने के लिए राजकुमारी कृष्णा को विष दे डालने वाली बात भी उनकी इसी प्रकृति की परिचायक कही जा सकती है। विरोधियों ने उनकी उस दुर्बलता का पूरा लाभ उठाया। उन लोगों ने संतों के प्रति घृणा तो उनके मन में पहले ही पैदा कर दी थी। अब उनके नगर-वास को भी अशुभ बतलाया जाने लगा तो सहज ही वह बात महाराणा के दिमाग में बैठ गई। उन्होंने एक 'हरकारे' को बुलाया और संतों के स्थान का अता-पता देकर उन्हें नगर में रहने की मनाही करने के लिए भेज दिया।

संत गोचरी लेकर आये ही थे कि हरकारा भी तेरापंथी संत भारमलजी का नाम पूछता हुआ वहां पहुंच गया। उसने राजाज्ञा सुनाते हुए कहा कि 'महाराज! आपको नगर में रहने की आज्ञा नहीं है।'

आचार्य भारमलजी ने उससे पूछा— 'आहार-पानी लाया हुआ है, अतः भोजन करने के पश्चात् जाएं या पहले ही?'

उसने कहा— 'महाराणा ने एकदम अभी का अभी जाने का तो नहीं कहा है, अतः आप भोजन करने के पश्चात् भी जा सकते हैं।'

हरकारा चला गया। आचार्य भारमलजी भी आहार-पानी करने के पश्चात् अपने संतों के साथ वहां से विहार कर गये। विरोधी-जनों को उससे बड़े आत्मगौरव का अनुभव हुआ। पर वे उतने से ही शांत नहीं हो गये। वे उन्हें मेवाड़ से निकलवा देने का भी सोचने लगे और योजना बनाकर तदनुसार चेष्टाओं में संलग्न हो गये।

*साहसिक निर्णय*

उदयपुर से विहार करते हुए आचार्यश्री क्रमशः राजनगर पधार गये। उदयपुर से निकाले जाने तथा आगे के लिए मेवाड़ से भी निकलवा देने की योजना सम्बन्धी बातें मेवाड़-भर में फैल गईं। तेरापंथी श्रावकों में चिन्ता की लहर दौड़ गई। वे उस समस्या पर विचार करने के लिए राजनगर में एकत्रित हुए। सबने मिलकर यह निर्णय किया कि यदि आचार्य भारमलजी को मेवाड़ से चले जाने की आज्ञा आ जाए तो हम सबको भी उनके साथ मेवाड़ छोड़ देना चाहिए। श्रावकों का यह निर्णय बहुत ही साहसपूर्ण था। वस्तुतः वह उनके लिए एक कसौटी का समय था। उन्होंने दृढ़तापूर्वक उस परिस्थिति का सामना किया।

जो समाज उपस्थित हुए संकटों का सामना करने के लिए बलिदान देने का साहस नहीं रखता, वह अपने-आपको जीवित नहीं रख सकता। तेरापंथ के सम्मुख उन दिनों ऐसे संकट मंडराते ही रहा करते थे, परन्तु उनका सामना करने वालों का साहस और धैर्य भी अद्भुत ही था। संख्या में नगण्य होते हुए भी वे लोग कभी निराश नहीं हुए और इसीलिए वे कभी परास्त भी नहीं हुए।

*महाराणा पर विपत्ति*

उदयपुर का श्रावक-वर्ग उपर्युक्त घटना से काफी खिन्न था। पर उस समय तक उसके पास कोई ऐसा व्यक्ति नहीं था जो महाराणा तक पहुंचकर बातों का स्पष्टीकरण कर सके और उनके विचारों को नया मोड़ दे सके। सब किंकर्तव्यविमूढ़ हो रहे थे।

उसी समय उदयपुर पर प्रकृति का प्रकोप हो गया। नगर में महामारी फैल गई। उससे सैकड़ों नागरिक काल-कवलित हो गये। कोटा में महाराणा के जामाता अचानक रुग्ण होकर दिवंगत हो गये। महाराणा के मन पर उससे एक बहुत बड़ा आघात लगा। उससे संभल भी नहीं पाये थे कि महाराजकुमार रोग के अजगर की भयंकर गूंजलिका में फंस गये। एक के पश्चात् एक लगने वाले उन मानसिक आघातों के कारण महाराणा अत्यन्त निराश और चिन्ताग्रस्त रहने लगे।

*विद्वेषियों ने इस विषम स्थिति में भी तेरापंथ के विरुद्ध अपना प्रयास चालू रखा... क्या उनका वह प्रयास सफल हो पाया...?* जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
卐🌼🔺🕉अर्हम् 🕉 🔺🌼卐
🌸 *परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी की अहिंसा यात्रा* 🌸
卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐
*(संभावित कार्यक्रम)*
*29 दिसंबर 2019, रविवार*
卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐
*प्रातःकालीन प्रवास स्थल*
Shanti Niketan High School & SPSRG College
SH 19, Rampura, Karnataka 577540, India
卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐
*लोकेशन जानने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करे।*
https://maps.app.goo.gl/EkP4EWCKdRECs2g5A
卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐
*(संभावित यात्रा- 20.3 k.m)*
卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐
*प्रस्तुति 🌻संघ संवाद*🌻


🧘‍♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘‍♂

🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन

👉 *#आत्मनिरीक्षण: भाग - २*

एक #प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*

प्रकाशक
#Preksha #Foundation
Helpline No. 8233344482

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
🌻 #संघ #संवाद 🌻

Watch video on Facebook.com


🧘‍♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘‍♂

🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन

👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला ३६१* - *आहार और स्वास्थ्य ८*

एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*

प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
🌻 *संघ संवाद* 🌻

Watch video on Facebook.com


Sources

SS
Sangh Samvad
View Facebook page

Categories

Click on categories below to activate or deactivate navigation filter.

  • Jaina Sanghas
    • Shvetambar
      • Terapanth
        • Sangh Samvad
          • Publications
            • Share this page on:
              Page glossary
              Some texts contain  footnotes  and  glossary  entries. To distinguish between them, the links have different colors.
              1. Karnataka
              2. Preksha
              3. Rampura
              4. SS
              5. Sangh
              6. Sangh Samvad
              7. आचार्य
              8. आचार्यश्री महाप्रज्ञ
              9. कोटा
              10. ज्ञान
              11. दर्शन
              12. महावीर
              13. मुक्ति
              Page statistics
              This page has been viewed 185 times.
              © 1997-2024 HereNow4U, Version 4.56
              Home
              About
              Contact us
              Disclaimer
              Social Networking

              HN4U Deutsche Version
              Today's Counter: