31.12.2019 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 03.01.2020
Updated: 03.01.2020
*आचार्य महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी के अवसर पर दिल्ली सरकार ने* महरौली (कुतुबमीनार) से बदरपुर, (मथुरा रोड़ मोड़) तक 20 कि.मी. के मुख्य मार्ग का नाम *आचार्य श्री महाप्रज्ञ मार्ग* के नाम से कर दिया है। यह हमारे समाज के लिए बहुत गौरव की बात है।
🌻 *संघ संवाद* 🌻

👉 साउथ कोलकाता - संथारा पच्चखाण
प्रस्तुति - *🌻संघ संवाद🌻*


*आचार्य महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी के अवसर पर दिल्ली सरकार ने* महरौली (कुतुबमीनार) से बदरपुर, (मथुरा रोड़ मोड़) तक 20 कि.मी. के मुख्य मार्ग का नाम *आचार्य श्री महाप्रज्ञ मार्ग* के नाम से कर दिया है। यह हमारे समाज के लिए बहुत गौरव की बात है।
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।

🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞

📜 *श्रृंखला -- 220* 📜

*आचार्यश्री भारमलजी*

*महाराणा के दो पत्र*

*रुख में परिवर्तन*

महाराणा ने सारी बातें सुनीं और समझीं। सत्य जब तक सामने नहीं आता तभी तक भ्रान्तियों का जाल फैला रह सकता है। महाराणा ने सत्य को पहचाना तब उनके रुख में परिवर्तन होना स्वाभाविक ही था। पश्चात्ताप के स्वर में उन्होंने कहा— 'केसर! मुझे इन बातों की गहराई का पता नहीं था, अतः ऐसा हो गया। निश्चय ही यह ठीक नहीं हुआ, पर अब यह बतलाओ कि इसे सुधारा कैसे जा सकता है? क्या हम उन्हें वापस बुलाएं तो वे आ जाएंगे?'

भंडारीजी ने कहा— 'वे तो संन्यासी हैं। उनके आने या न आने का निश्चयपूर्वक तो क्या कहा जा सकता है। किन्तु मेरा विश्वास है कि आप निवेदन करेंगे तो वे अवश्य उस पर ध्यान देंगे।'

*पत्र-प्रेषण*

महाराणा ने तब अपने हाथ से एक पत्र लिखा और 'हरकारे' को बुलाकर भंडारीजी के कथनानुसार राजनगर की ओर भेज दिया। उसे अच्छी तरह से समझा दिया कि पत्र हाथोहाथ देकर ही वापस आये। विलंब न करने तथा गलत हाथों में न देने के लिए भी विशेष सावधान कर दिया गया। हरकारा उस समय की संचार-व्यवस्था के अनुसार शीघ्र से शीघ्र राजनगर पहुंचा। फिर भी पहाड़ी मार्गों को तय करके जाने में उसे कुछ समय तो लगा ही।

उधर राजनगर में काफी लोग एकत्रित हो चुके थे। आचार्य भारमलजी के साथ ही मेवाड़ को छोड़कर मारवाड़ में बस जाने की योजनाएं उभर रही थीं। उसी अवसर पर हरकारा वहां पहुंचा तो हर एक ने पूर्व वातावरण के अनुसार यही अनुमान लगाया कि महाराणा ने आचार्यश्री को मेवाड़ छोड़ देने का आदेश भेजा है।

हरकारा भंडारीजी द्वारा बताये गये व्यक्तियों का नाम पूछता हुआ उनमें से किसी एक को वह पत्र देने लगा तो उसने दूसरे का और फिर दूसरे ने तीसरे का नाम बताकर उसे चलता किया। सब कोई उत्तेजित और भरे हुए-से मालूम हो रहे थे, पर खुलता कोई नहीं था। किसी ने उस पत्र को छुआ तक नहीं। बेचारा हरकारा परेशान था कि वह अब उस पत्र का क्या करे और किसे दे?

हरकारे ने मुख्य व्यक्तियों से कहा— 'मेरा काम आप लोगों तक यह पत्र पहुंचा देने का था, अतः यह लीजिए और मुझे छुट्टी दीजिए। इसमें क्या है, क्या नहीं है और उस पर आपको क्या करना है, यह सब तो आपके-अपने सोचने के प्रश्न हैं। आप इस पर धैर्यपूर्वक सोच सकते हैं, पर मैं इस पत्र को लिए कब तक और किस-किस के पास फिरता रहूंगा?'

हरकारे की वह बात अवश्य ही ध्यान देने योग्य थी। सभी ने उस पर सोचा तो आखिर इसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि अच्छा-बुरा जो कुछ भी आदेश होगा, उसे कम-से-कम पढ़ तो लेना ही चाहिए। यों टालते कब तक रहेंगे? अन्त में उन्होंने वह पत्र ले लिया और बड़ी असमंजसता की स्थिति में उसे खोला। पत्र को खोलने से पूर्व सभी के हृदय में एक प्रकार की अज्ञात आशंका थी और कुछ धुकर-पुकर-सी मची हुई थी, परन्तु खोलने के पश्चात् जब उसे पढ़ना प्रारम्भ किया तो पाया कि समाचार प्रतिकूल नहीं, सर्वथा अनुकूल है।

*प्रथम पत्र*

पत्र को पढ़कर उपस्थित सभी लोग हर्षातिरेक में नाच उठे। कहां तो मेवाड़ छोड़ देने के आदेश की सम्भावना की जा रही थी और कहां उदयपुर पधारने के लिए निमंत्रण-युक्त विनय-पत्र प्राप्त हुआ। सभी लोग वहां से आचार्यश्री के पास आये और वह पत्र मालूम किया। इतनी देर में तो पत्र की बात वहां सर्वत्र फैल चुकी थी और लोग उत्सुकतावश 'ठिकाणे' में एकत्रित हो गये थे। सभी के सम्मुख पढ़कर वह पत्र आचार्यश्री को सुनाया गया। वह इस प्रकार था:

श्री एकलिंगजी

श्री बाणनाथजी श्री नाथजी

स्वस्ति श्री साध श्री भारमलजी तेरेपंथी साध थी राणा भीमसीघ री विनती मालम ह्वै। क्रपा करे अठे पदारोगा। कीं दुष्ट बे दुष्टपणो कीदो जी सामुं न्ही देखेगा। मा सामु वा न(ग)र में प्रजा है जी री दया कर जेज न्ही करेगा। वती काहीं लखुं। और स्माचार स्हा स्वलाल का लख्या जाणेगा। संवत् १८७५ वर्षे असाड बीद ३ सुक्रे।

अर्थात्—

श्री एकलिंगजी, श्री बाणनाथजी, श्री नाथजी

स्वस्ति श्री तेरापंथी साधु श्री भारमलजी को राणा भीमसिंह की विनती मालूम हो। कृपा करके यहां पधारें। उन दुष्टों ने जो दुष्टता की उनकी ओर न देखें। मेरी तथा नगर की प्रजा की ओर देखकर दया करें और आने में विलम्ब न करें। अधिक क्या लिखू। अन्य समाचार शाह शिवलाल के द्वारा लिखे पत्र से जानें। संवत् 1875 आषाढ़ कृष्णा 3 शुक्रवार।

महाराणा के उपर्युक्त पत्र को पढ़कर सारे संघ को बहुत बड़ा सन्तोष मिला। जो परिवार आचार्य भारमलजी के साथ ही मेवाड़ को छोड़ने तक के लिए उद्यत हो रहे थे, उनकी परितृप्ति का तो कहना ही क्या? यह कार्य कैसे हुआ और इसमें किसकी प्रेरणा थी, यह जानने के लिए लोगों में अत्यन्त उत्सुकता जागृत हुई, परन्तु उस समय किसी को कुछ विशेष ज्ञात नहीं हो सका।

*महाराणा भीमसिंह जी के पत्र पर आचार्य श्री भारीमाल जी की क्या प्रतिक्रिया रही...?* जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

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🌸 *परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी की अहिंसा यात्रा* 🌸
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*(संभावित कार्यक्रम)*
*31 दिसंबर 2019, मंगलवार*
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*प्रवास स्थल*
Shree Medha Degree College Fort, Ballari, Karnataka 583104
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*लोकेशन जानने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करे।*
https://maps.app.goo.gl/rLbH1dPqN7AK9TQz5
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*(संभावित यात्रा- 11.6 k.m)*
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👉 भीलवाडा ~ चर्च में अणुव्रत का साम्प्रदायिक सौहार्द कार्यक्रम
👉 टॉलीगंज, कोलकाता ~ जैन विधि से विवाह संस्कार
👉 गुवाहाटी ~ "अन्न और मन का संबंध" विषयक संगोष्ठी आयोजित
👉 जयपुर ~ मुनिश्री उदित कुमार जी का मंगल भावना समारोह
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👉 औरंगाबाद ~ 'स्व से शिखर' के अंतर्गत 'मि. एंड मिसेस परफेक्ट' कार्यशाला
👉 काठमांडू ~ कन्या मंडल के तीन कार्यक्रम

प्रस्तुति - *🌻संघ संवाद🌻*

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