🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन
👉 *#आत्मनिरीक्षण: भाग - ३*
एक #प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
#Preksha #Foundation
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🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला ३६५* ~ *प्रेक्षाध्यान क्यों?: १*
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*नववर्ष वृहद मंगलपाठ पूज्यप्रवर आचार्य श्री महाश्रमणजी के मुखारवृन्द से - 01 जनवरी 2020, का वीडियो-प्रस्तुति~अमृतवाणी*
*संप्रसारक:🌻 संघ संवाद*🌻
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👉 बल्लारी - हैदराबाद चतुर्मास व्यवस्था समिति अध्यक्ष को मंगलपाठ
प्रस्तुति - *🌻संघ संवाद 🌻*
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🎨 *नववर्ष* की मंगल वेला पर *पूज्यप्रवर के श्रीमुख से अनेकानेक श्रद्धालुओं ने सुना मंगलपाठ* 🙏
दिनांक: 01/01/2020🎐
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🌌 *पूज्यप्रवर के श्रीमुख से नववर्ष का मंगलपाठ..* 🙏
*मीडिया एवं प्रचार प्रसार विभाग*
🌐 *जैन विश्व भारती* 🌐
प्रसारक:
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Sangh Samvad plant eine Video-Premiere.
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 221* 📜
*आचार्यश्री भारमलजी*
*महाराणा के दो पत्र*
*कौन जाए*
पत्र सुनने और उससे उद्भूत हर्षानुभूति की अभिव्यक्ति के पश्चात् कुछ प्रमुख व्यक्ति उठे और महाराणा की प्रार्थना पर आचार्यश्री की प्रतिक्रिया जाननी चाही। उन्होंने अपनी ओर से तथा जन-समुदाय की ओर से भी गुरुदेव को महाराणा की प्रार्थना पर ध्यान देने का अनुनय किया।
आचार्यश्री ने कहा— 'इस वृद्धावस्था में अब कौन वापस पहाड़ों को रौंदता हुआ वहां जाए?'
आचार्य भारमलजी वस्तुतः एक फक्कड़ साधु थे। अप्रसन्न तो वे किसी रंक को भी करना नहीं चाहते थे, परन्तु परवाह किसी महाराणा की भी नहीं करते थे। उन्होंने उस समय उदयपुर न जाने का जो निर्णय किया, वह इसी बात का एक उदाहरण कहा जा सकता है। दूसरी बात यह भी है कि फिर से वहां तक जाने में उनके लिए अवस्था की भी एक बाधा थी। लगभग बहत्तर वर्ष की अवस्था में पर्वतीय मार्गों में चलना अपेक्षाकृत कठिन होता ही है।
महाराणा को जब यह ज्ञात हुआ कि उनकी प्रार्थना स्वीकृत नहीं हुई, तो उन्हें बड़ी निराशा हई। उन्होंने तब दूसरा पत्र लिखने का विचार किया। उक्त विषय में केसरजी भंडारी से परामर्श किया तो उनका सुझाव रहा कि अब तो चतुर्मास प्रारम्भ होने के दिन समीप आ गये हैं, अतः चाहने पर भी नहीं आ सकेंगे। इसलिए चतुर्मास समाप्त होने के पश्चात् पत्र देना उपयुक्त रहेगा। महाराणा ने तब वैसा ही करने का निश्चय किया।
द्वितीय पत्र
आचार्य भारमलजी ने विक्रम संवत् 1876 का चतुर्मास पुर में किया। उसकी समाप्ति पर वे विहार करते हुए कांकरोली पधारे। वहां महाराणा का द्वितीय पत्र आया? वह इस प्रकार है:
श्री एकलिंगजी
श्री बाणनाथजी श्री नाथजी
स्वस्ति श्री तेरापंथी साद श्री भारमलजी सुं महारी डंडोत बचै। अप्र आप अठे पदारसी जमा खात्र सुं। आगे ही रुको लख्यो हो सो अबे बेगा पदारेगा। संवत् १८७६ वर्षे पोस बीद ११। वेगा आवेगा। श्रीजी रो राज हे सो सारां को सीर हे, जी थी सने काहि बी न्ही लावेगा।
अर्थात्—
श्री एकलिंगजी, श्री बाणनाथजी, श्री नाथजी
स्वस्ति श्री तेरापंथी साध श्री भारमलजी से मेरी दण्डवत् मालूम हो। अपरंच आप निस्संकोच यहां पधारें। इससे पहले भी एक पत्र आपको लिखा था, अतः अब शीघ्र ही पधारें। संवत् 1876 पौष कृष्णा 11। शीघ्र आएं। श्रीजी का राज्य है, जिसमें सभी का साझा है। इसलिए किसी भी प्रकार का सन्देह न करें।
*प्रार्थना स्वीकार*
पत्र को पढ़ने के पश्चात् श्रावकजनों ने आचार्यश्री से प्रार्थना की कि महाराणा की इस दूसरी बार की प्रार्थना पर आपको अवश्य ध्यान देना चाहिए। सन्तों का भी ऐसा ही ध्यान था। परन्तु आचार्यश्री ने फरमाया— 'इस समय मेरा तो जाने का विचार है नहीं, यदि तुम लोग कहो तो मैं सन्तों को भेज सकता हूं।'
सबने कहा— 'आप न पधारें तो फिर सन्तों को भेजने की कृपा तो करें ही।'
आचार्यश्री ने तब उपयुक्त अवसर समझकर जनोपकार की भावना से महाराणा की प्रार्थना को स्वीकार किया और मुनि हेमराजजी, मुनि रायचन्दजी और मुनि जीतमलजी आदि तेरह संतों को उदयपुर जाने के लिये आदेश दिया।
*महाराणा के पत्र संत-समागम...* के बारे में जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 221* 📜
*आचार्यश्री भारमलजी*
*महाराणा के दो पत्र*
*कौन जाए*
पत्र सुनने और उससे उद्भूत हर्षानुभूति की अभिव्यक्ति के पश्चात् कुछ प्रमुख व्यक्ति उठे और महाराणा की प्रार्थना पर आचार्यश्री की प्रतिक्रिया जाननी चाही। उन्होंने अपनी ओर से तथा जन-समुदाय की ओर से भी गुरुदेव को महाराणा की प्रार्थना पर ध्यान देने का अनुनय किया।
आचार्यश्री ने कहा— 'इस वृद्धावस्था में अब कौन वापस पहाड़ों को रौंदता हुआ वहां जाए?'
आचार्य भारमलजी वस्तुतः एक फक्कड़ साधु थे। अप्रसन्न तो वे किसी रंक को भी करना नहीं चाहते थे, परन्तु परवाह किसी महाराणा की भी नहीं करते थे। उन्होंने उस समय उदयपुर न जाने का जो निर्णय किया, वह इसी बात का एक उदाहरण कहा जा सकता है। दूसरी बात यह भी है कि फिर से वहां तक जाने में उनके लिए अवस्था की भी एक बाधा थी। लगभग बहत्तर वर्ष की अवस्था में पर्वतीय मार्गों में चलना अपेक्षाकृत कठिन होता ही है।
महाराणा को जब यह ज्ञात हुआ कि उनकी प्रार्थना स्वीकृत नहीं हुई, तो उन्हें बड़ी निराशा हई। उन्होंने तब दूसरा पत्र लिखने का विचार किया। उक्त विषय में केसरजी भंडारी से परामर्श किया तो उनका सुझाव रहा कि अब तो चतुर्मास प्रारम्भ होने के दिन समीप आ गये हैं, अतः चाहने पर भी नहीं आ सकेंगे। इसलिए चतुर्मास समाप्त होने के पश्चात् पत्र देना उपयुक्त रहेगा। महाराणा ने तब वैसा ही करने का निश्चय किया।
द्वितीय पत्र
आचार्य भारमलजी ने विक्रम संवत् 1876 का चतुर्मास पुर में किया। उसकी समाप्ति पर वे विहार करते हुए कांकरोली पधारे। वहां महाराणा का द्वितीय पत्र आया? वह इस प्रकार है:
श्री एकलिंगजी
श्री बाणनाथजी श्री नाथजी
स्वस्ति श्री तेरापंथी साद श्री भारमलजी सुं महारी डंडोत बचै। अप्र आप अठे पदारसी जमा खात्र सुं। आगे ही रुको लख्यो हो सो अबे बेगा पदारेगा। संवत् १८७६ वर्षे पोस बीद ११। वेगा आवेगा। श्रीजी रो राज हे सो सारां को सीर हे, जी थी सने काहि बी न्ही लावेगा।
अर्थात्—
श्री एकलिंगजी, श्री बाणनाथजी, श्री नाथजी
स्वस्ति श्री तेरापंथी साध श्री भारमलजी से मेरी दण्डवत् मालूम हो। अपरंच आप निस्संकोच यहां पधारें। इससे पहले भी एक पत्र आपको लिखा था, अतः अब शीघ्र ही पधारें। संवत् 1876 पौष कृष्णा 11। शीघ्र आएं। श्रीजी का राज्य है, जिसमें सभी का साझा है। इसलिए किसी भी प्रकार का सन्देह न करें।
*प्रार्थना स्वीकार*
पत्र को पढ़ने के पश्चात् श्रावकजनों ने आचार्यश्री से प्रार्थना की कि महाराणा की इस दूसरी बार की प्रार्थना पर आपको अवश्य ध्यान देना चाहिए। सन्तों का भी ऐसा ही ध्यान था। परन्तु आचार्यश्री ने फरमाया— 'इस समय मेरा तो जाने का विचार है नहीं, यदि तुम लोग कहो तो मैं सन्तों को भेज सकता हूं।'
सबने कहा— 'आप न पधारें तो फिर सन्तों को भेजने की कृपा तो करें ही।'
आचार्यश्री ने तब उपयुक्त अवसर समझकर जनोपकार की भावना से महाराणा की प्रार्थना को स्वीकार किया और मुनि हेमराजजी, मुनि रायचन्दजी और मुनि जीतमलजी आदि तेरह संतों को उदयपुर जाने के लिये आदेश दिया।
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प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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🌌 *गहन समीसा कर अतीत की वर्तमान को सफल बनाएं ।* 📈
🌈 *शुभ भविष्य की बना योजना जीवन-बगिया को सरसाएं।।*🌷
🎨 *नववर्ष* की मंगल वेला पर 'मातृहृदया', 'असाधारण' *साध्वीप्रमुखा श्री कनकप्रभा जी द्वारा रचित गीत..* ✒
दिनांक: 01/01/2020🎐
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🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला ३६४* - *आहार और स्वास्थ्य ११*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
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👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला ३६४* - *आहार और स्वास्थ्य ११*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
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