👉 इस्लामपुर - ज्ञानशाला वार्षिकोत्सव
👉 विजयनगर, बेंगलुरु - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 अहमदाबाद - "शाकाहार श्रेष्ठ आहार " पर कार्यक्रम
👉 विजयनगर, बेंगलुरु - निशुल्क हृदय जांच शिविर
👉 हैदराबाद - स्व से शिखर कार्यशाला
👉 सेलम - “बेटी बचाओं.. बेटी पढ़ाओ, बेटीयों को आत्मनिर्भर बनाओं”
प्रस्तुति: *🌻संघ संवाद 🌻*
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*देवलोकगमन संवाद*:
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*गंगाशहर शांति निकेतन सेवा केंद्र में प्रवासित वयोवृद्ध साध्वी श्री विजयकंवर जी 'छापर' (उम्र 86 वर्ष) का आज 2 जनवरी 2020 गुरुवार सांय 5 बजकर 5 मिनिट पर देवलोक गमन हो गया है ।*
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
🙏 *संघ संवाद* 🙏
*देवलोकगमन संवाद*:
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*गंगाशहर शांति निकेतन सेवा केंद्र में प्रवासित वयोवृद्ध साध्वी श्री विजयकंवर जी 'छापर' (उम्र 86 वर्ष) का आज 2 जनवरी 2020 गुरुवार सांय 5 बजकर 5 मिनिट पर देवलोक गमन हो गया है ।*
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 222* 📜
*आचार्यश्री भारमलजी*
*महाराणा के दो पत्र*
*महाराणा का संत-समागम*
मुनि हेमराजजी तेरह सन्तों से उदयपुर पहुंचे और बाजार की दुकानों पर ठहरे। आचार्य भारमलजी को निकाले जाने पर वहां के तेरापंथी भाइयों को जितना दुःख हुआ था, अब महाराणा द्वारा निमन्त्रित होकर उनके शिष्यों के पदार्पण पर उतना ही हर्ष हुआ। वहां की जनता बड़े उल्लास से संत-समागम का लाभ लेने लगी।
स्वयं महाराणा भी उस मासिक प्रवासकाल में ग्यारह बार संतों के पास आये और दर्शन तथा सत्संग का लाभ लिया। जैन साधुओं के आचार-व्यवहार से परिचित होकर वे बहुत ही प्रभावित हुए।
महाराणा को जुलूस बनाकर बाजार से जाने-आने की बहुत रुचि रहा करती थी, अतः बहुधा शोभा-यात्राएं निकलती ही रहती थीं। मार्ग में जब संतों का स्थान आता, तब महाराणा हाथी को रुकवाकर नमस्कार करते और फिर आगे बढ़ा करते थे। एक बार भूल से हाथी आगे निकल गया, परन्तु ज्यों ही उन्हें स्मरण हुआ त्यों ही महावत से हाथी को वापस घुमाने के लिए आदेश दिया। वे वापस आये और संतों को भक्तिपूर्वक नमस्कार कर गंतव्य की ओर बढ़ गये। उस घटना के पश्चात् जब संतों का स्थान आता, तब महावत संकेत कर दिया करता था। तेरापंथ के प्रति उनकी यह अभिरुचि उत्तरोत्तर बढ़ती ही रही।
*और कोई होगी*
महाराणा साधुओं के आचार-विचार को जानने की भी काफी उत्सुकता रखा करते थे। केसरजी भंडारी से उस विषय में पूछताछ करते ही रहते थे। कुछ ही दिनों में वे न केवल तेरापंथ की मान्यताओं को ही अच्छी तरह से समझने लग गये, अपितु जैन साधुओं के आचार को भी बहुत अच्छी प्रकार से जानने लग गये। कोई उस विषय में कुछ गलत कहता तो वे उसका प्रतिरोध भी किया करते थे।
एक बार उनके सामने धर्म-चर्चा चल रही थी। किसी ने कहा— 'महाराज! आप कहते हैं कि जैन साध्वी अकेली नहीं रहती, पर मैंने तो आज ग्राम से बाहर अकेली साध्वी को जाते अपनी आंखों से देखा है।'
महाराणा ने तत्काल प्रतिवाद करते हुए कहा— 'वह और कोई हो सकती है, पर तेरापंथी साध्वी तो हरगिज नहीं हो सकती।' इस प्रकार पता लगता है कि वे आचार-सम्बन्धी कल्पाकल्प से बहुत अच्छी तरह परिचित हो गये थे। तेरापंथ के प्रति तो उनकी निष्ठा अत्यन्त दृढ़ हो गई थी।
*व्याख्यान में पत्थर*
जो व्यक्ति तेरापंथियों को मेवाड़ से ही निकलवा देना चाहते थे, उनके लिए महाराणा का तेरापंथ में इतनी रुचि रखना, उन्हें निमंत्रित करना और फिर उन साधुओं का उदयपुर में फिर से आ जाना, ये सब कार्य अत्यन्त कष्टकर हो रहे थे। व्याख्यान-श्रवण के लिए काफी संख्या में जनता का आगमन तो और भी अधिक दुस्सह था। अनेक प्रकार के प्रयास करके भी वे जनता को रोक नहीं पा रहे थे। आखिर द्वेष-पोषण का उन्हें जब और कोई मार्ग नहीं मिला तो रात्रिकालीन व्याख्यान में बाधाएं उपस्थित करने लगे।
व्याख्यान नीचे बाजार में हुआ करता था, अतः जनता खुले स्थान में बैठा करती थी। द्वेषी-व्यक्तियों ने इधर-उधर से छिपकर पत्थर फेंकने प्रारम्भ किये। एक बार तो एक पत्थर हेमराजजी स्वामी के पास बैठे बाल साधु जीतमलजी महाराज (जयाचार्य) के कान के पास से होकर गुजरा। गृहस्थों द्वारा अनेक उपाय करने पर भी वह उपद्रव शान्त नहीं हो सका।
उन्हीं दिनों महाराणा ने भंडारीजी से पूछ लिया कि 'केसर! शहर में संतों को किसी प्रकार का कोई कष्ट तो नहीं है?'
भंडारीजी ने निवेदन किया— 'नहीं, और तो किसी प्रकार का कष्ट नहीं है, पर एक बात अवश्य है कि संत रात को बाजार में व्याख्यान देते हैं, तब कुछ लोग इधर-उधर से पत्थर फेंकते हैं। हम लोग काफी सावधानी रखते हैं फिर भी फेंकने वाले चुपके से फेंक ही जाते हैं। किसी के चोट न लग जाए— यह डर बना ही रहता है।'
महाराणा ने यह बात सुनी तो बहुत खिन्न हुए। बोले— 'इसका बन्दोबस्त तो जल्दी-से-जल्दी करना होगा। मेरे निमंत्रण पर संत यहां पधारे और लोग उनको कष्ट दें, यह तो स्वयं मुझे कष्ट देने के समान है। उन्होंने उसी दिन से कुछ व्यक्तियों को गुप्त रूप से वहां नियुक्त कर दिया। रात को व्याख्यान में जब कुछ व्यक्ति पत्थर फेंक कर भागे, तो उन गुप्त व्यक्तियों ने उन्हें पकड़ने का प्रयास किया। अन्य तो सब भाग निकले, पर एक लड़का पकड़ा गया।
*पत्थर फेंकने वाले लड़के को जब महाराणा के सम्मुख उपस्थित किया गया...तब क्या हुआ...?* के बारे में जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 222* 📜
*आचार्यश्री भारमलजी*
*महाराणा के दो पत्र*
*महाराणा का संत-समागम*
मुनि हेमराजजी तेरह सन्तों से उदयपुर पहुंचे और बाजार की दुकानों पर ठहरे। आचार्य भारमलजी को निकाले जाने पर वहां के तेरापंथी भाइयों को जितना दुःख हुआ था, अब महाराणा द्वारा निमन्त्रित होकर उनके शिष्यों के पदार्पण पर उतना ही हर्ष हुआ। वहां की जनता बड़े उल्लास से संत-समागम का लाभ लेने लगी।
स्वयं महाराणा भी उस मासिक प्रवासकाल में ग्यारह बार संतों के पास आये और दर्शन तथा सत्संग का लाभ लिया। जैन साधुओं के आचार-व्यवहार से परिचित होकर वे बहुत ही प्रभावित हुए।
महाराणा को जुलूस बनाकर बाजार से जाने-आने की बहुत रुचि रहा करती थी, अतः बहुधा शोभा-यात्राएं निकलती ही रहती थीं। मार्ग में जब संतों का स्थान आता, तब महाराणा हाथी को रुकवाकर नमस्कार करते और फिर आगे बढ़ा करते थे। एक बार भूल से हाथी आगे निकल गया, परन्तु ज्यों ही उन्हें स्मरण हुआ त्यों ही महावत से हाथी को वापस घुमाने के लिए आदेश दिया। वे वापस आये और संतों को भक्तिपूर्वक नमस्कार कर गंतव्य की ओर बढ़ गये। उस घटना के पश्चात् जब संतों का स्थान आता, तब महावत संकेत कर दिया करता था। तेरापंथ के प्रति उनकी यह अभिरुचि उत्तरोत्तर बढ़ती ही रही।
*और कोई होगी*
महाराणा साधुओं के आचार-विचार को जानने की भी काफी उत्सुकता रखा करते थे। केसरजी भंडारी से उस विषय में पूछताछ करते ही रहते थे। कुछ ही दिनों में वे न केवल तेरापंथ की मान्यताओं को ही अच्छी तरह से समझने लग गये, अपितु जैन साधुओं के आचार को भी बहुत अच्छी प्रकार से जानने लग गये। कोई उस विषय में कुछ गलत कहता तो वे उसका प्रतिरोध भी किया करते थे।
एक बार उनके सामने धर्म-चर्चा चल रही थी। किसी ने कहा— 'महाराज! आप कहते हैं कि जैन साध्वी अकेली नहीं रहती, पर मैंने तो आज ग्राम से बाहर अकेली साध्वी को जाते अपनी आंखों से देखा है।'
महाराणा ने तत्काल प्रतिवाद करते हुए कहा— 'वह और कोई हो सकती है, पर तेरापंथी साध्वी तो हरगिज नहीं हो सकती।' इस प्रकार पता लगता है कि वे आचार-सम्बन्धी कल्पाकल्प से बहुत अच्छी तरह परिचित हो गये थे। तेरापंथ के प्रति तो उनकी निष्ठा अत्यन्त दृढ़ हो गई थी।
*व्याख्यान में पत्थर*
जो व्यक्ति तेरापंथियों को मेवाड़ से ही निकलवा देना चाहते थे, उनके लिए महाराणा का तेरापंथ में इतनी रुचि रखना, उन्हें निमंत्रित करना और फिर उन साधुओं का उदयपुर में फिर से आ जाना, ये सब कार्य अत्यन्त कष्टकर हो रहे थे। व्याख्यान-श्रवण के लिए काफी संख्या में जनता का आगमन तो और भी अधिक दुस्सह था। अनेक प्रकार के प्रयास करके भी वे जनता को रोक नहीं पा रहे थे। आखिर द्वेष-पोषण का उन्हें जब और कोई मार्ग नहीं मिला तो रात्रिकालीन व्याख्यान में बाधाएं उपस्थित करने लगे।
व्याख्यान नीचे बाजार में हुआ करता था, अतः जनता खुले स्थान में बैठा करती थी। द्वेषी-व्यक्तियों ने इधर-उधर से छिपकर पत्थर फेंकने प्रारम्भ किये। एक बार तो एक पत्थर हेमराजजी स्वामी के पास बैठे बाल साधु जीतमलजी महाराज (जयाचार्य) के कान के पास से होकर गुजरा। गृहस्थों द्वारा अनेक उपाय करने पर भी वह उपद्रव शान्त नहीं हो सका।
उन्हीं दिनों महाराणा ने भंडारीजी से पूछ लिया कि 'केसर! शहर में संतों को किसी प्रकार का कोई कष्ट तो नहीं है?'
भंडारीजी ने निवेदन किया— 'नहीं, और तो किसी प्रकार का कष्ट नहीं है, पर एक बात अवश्य है कि संत रात को बाजार में व्याख्यान देते हैं, तब कुछ लोग इधर-उधर से पत्थर फेंकते हैं। हम लोग काफी सावधानी रखते हैं फिर भी फेंकने वाले चुपके से फेंक ही जाते हैं। किसी के चोट न लग जाए— यह डर बना ही रहता है।'
महाराणा ने यह बात सुनी तो बहुत खिन्न हुए। बोले— 'इसका बन्दोबस्त तो जल्दी-से-जल्दी करना होगा। मेरे निमंत्रण पर संत यहां पधारे और लोग उनको कष्ट दें, यह तो स्वयं मुझे कष्ट देने के समान है। उन्होंने उसी दिन से कुछ व्यक्तियों को गुप्त रूप से वहां नियुक्त कर दिया। रात को व्याख्यान में जब कुछ व्यक्ति पत्थर फेंक कर भागे, तो उन गुप्त व्यक्तियों ने उन्हें पकड़ने का प्रयास किया। अन्य तो सब भाग निकले, पर एक लड़का पकड़ा गया।
*पत्थर फेंकने वाले लड़के को जब महाराणा के सम्मुख उपस्थित किया गया...तब क्या हुआ...?* के बारे में जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
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*प्रेरणा पाथेय:-आचार्य श्री महाश्रमणजी - 02 January 2020, का वीडियो-प्रस्तुति~अमृतवाणी*
*संप्रसारक: 🌻संघ संवाद*🌻
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https://www.facebook.com/SanghSamvad/
卐🌼🔺🕉अर्हम् 🕉 🔺🌼卐
🌸 *परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी की अहिंसा यात्रा* 🌸
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*(संभावित कार्यक्रम)*
*02 जनवरी 2020, गुरूवार*
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*प्रातःकालीन प्रवास स्थल*
Brunda National School
Vill-Damnur
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*लोकेशन जानने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करे।*
https://maps.app.goo.gl/uuTSuD59qctRSuvK6
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*(संभावित यात्रा- 14.3 k.m)*
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*प्रस्तुति 🌻संघ संवाद*🌻
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🌸 *परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी की अहिंसा यात्रा* 🌸
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*(संभावित कार्यक्रम)*
*02 जनवरी 2020, गुरूवार*
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*प्रातःकालीन प्रवास स्थल*
Brunda National School
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*(संभावित यात्रा- 14.3 k.m)*
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*प्रस्तुति 🌻संघ संवाद*🌻