🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन
👉 *क्या #विचारों के #प्रवाह को #कम किया जा सकता है: भाग - ४*
एक #प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
#Preksha #Foundation
Helpline No. 8233344482
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
द#संवाद 🌻
🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन
👉 *क्या #विचारों के #प्रवाह को #कम किया जा सकता है: भाग - ४*
एक #प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
#Preksha #Foundation
Helpline No. 8233344482
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
द#संवाद 🌻
🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला ४४०* ~ *प्राण ऊर्जा का संवर्धन - १*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
🌻 *संघ संवाद* 🌻
🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला ४४०* ~ *प्राण ऊर्जा का संवर्धन - १*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
🌻 *संघ संवाद* 🌻
💫 *हैदराबाद समाचार* 💫
👉🏼महाश्रमण वाटिका हैदराबाद में निर्माण कार्य प्रगति पर
👉🏼 महाश्रमण वाटिका हेदराबाद में कोटेज बुकिंग हेतु संपर्क सूत्र
दिनांक: 14/03/2020
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
🌻 *संघ संवाद* 🌻
👉🏼महाश्रमण वाटिका हैदराबाद में निर्माण कार्य प्रगति पर
👉🏼 महाश्रमण वाटिका हेदराबाद में कोटेज बुकिंग हेतु संपर्क सूत्र
दिनांक: 14/03/2020
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
🌻 *संघ संवाद* 🌻
🪔🪔🪔🪔🙏🌸🙏🪔🪔🪔🪔
जैन परंपरा में सृजित प्रभावक स्तोत्रों एवं स्तुति-काव्यों में से एक है *भगवान पार्श्वनाथ* की स्तुति में आचार्य सिद्धसेन दिवाकर द्वारा रचित *कल्याण मंदिर स्तोत्र*। जो जैन धर्म की दोनों धाराओं— दिगंबर और श्वेतांबर में श्रद्धेय है। *कल्याण मंदिर स्तोत्र* पर प्रदत्त आचार्यश्री महाप्रज्ञ के प्रवचनों से प्रतिपादित अनुभूत तथ्यों व भक्त से भगवान बनने के रहस्य सूत्रों का दिशासूचक यंत्र है... आचार्यश्री महाप्रज्ञ की कृति...
🔱 *कल्याण मंदिर - अंतस्तल का स्पर्श* 🔱
🕉️ *श्रृंखला ~ 30* 🕉️
*8. प्रभु रहे हृदय में*
गतांक से आगे...
हठयोग में छह चक्र बतलाए गए हैं। कहीं-कहीं नौ चक्रों के नाम भी मिलते हैं। प्रेक्षाध्यान में तेरह चैतन्य केन्द्र बतलाए गए हैं। सुश्रुत आयुर्वेद का ग्रंथ है। उसमें मर्मस्थानों का बहुत सुन्दर वर्णन मिलता है। वहां 151 मर्मस्थानों का उल्लेख है। वे हमारे शरीर में वहां होते हैं जहां चेतना सघन होती है।
ध्यान की प्रक्रिया में बतलाया जाता है कि आप अमुक केन्द्र पर ध्यान करो, आपकी अमुक समस्या का समाधान हो जाएगा।
समस्याएं अलग-अलग हैं और समाधान के केन्द्र भी अलग-अलग हैं। किस समस्या के लिए कहां ध्यान करना है यह महत्त्वपूर्ण है। जब कर्म-बंधन को तोड़ना है, उससे मुक्त होना है तो उसके लिए सबसे अच्छा स्थान मस्तिष्क है। कर्म तोड़ने के साथ ज्ञान केन्द्र का बहुत गहरा संबंध है। हठयोग में इसे सहसार-चक्र कहते हैं। यह चक्र सबसे शक्तिशाली चक्र है। शरीरशास्त्र की भाषा में इसे लिम्बिक सिस्टम का एक भाग हाइपोथेलेमस कहते हैं। यहां से हमारी सारी वृत्तियों का संचालन होता है। यही भाव की उत्पत्ति का मुख्य केन्द्र है। यहां लेश्या भाव के रूप में बदलती है और भाव हमारे मन, वाणी और शरीर को संचालित करते हैं।
गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं— जो भक्त मेरे हृदय में रहता है, मैं उसके हृदय में रहता हूं। अगर हृदय में स्थापित करने की यह कला आ गई तो कवच बन गया, सुरक्षा हो गई। उससे कर्म-बंधन भी ढीले हो जाते हैं।
इन दो उपायों को हम गहराई से समझने का प्रयत्न करें— नाममंत्र का जप और हृदय में प्रतिष्ठा। ये ऐसे उपाय हैं जो स्तवना से भी ज्यादा शक्तिशाली हैं।
मैं (ग्रंथकार आचार्यश्री महाप्रज्ञ) मानता हूं कि हर व्यक्ति को आत्ममंथन करना चाहिए। जब व्यक्ति आत्ममंथन करता है तो कोई न कोई उपाय खोज लेता है। पर बड़ा कठिन कार्य है मंथन करना और मंथन करने की कला को जानना। हर कोई व्यक्ति इसे नहीं जानता।
रायपसेणिय सूत्र में चतर कठिहारा और मूर्ख कठिहारा का दृष्टान्त दिया गया है। मूर्ख कठिहारा अरणि की लकड़ी को तोड़ता गया, तोड़ता गया किन्तु आग नहीं निकाल सका। चतुर कठिहारे ने एक लकड़ी हाथ में ली, घर्षण किया और आग पैदा हो गई।
हमें भी चतुर कठिहारा बनना है, चाहे नाम का जप करें या हृदय में प्रतिमा स्थापित करें। केवल शब्दों से नहीं, चतुर कठिहारे की तरह एक ऐसा संघर्षण पैदा करें, ऐसी भावना पैदा करें कि वह प्रतिमा हृदय में स्थापित हो जाए और नाम-जप अपने वाच्य के साथ चलता रहे।
नाम के साथ अर्थ को जानना बहुत जरूरी है। यदि अर्थ स्पष्ट न हो तो नाम के साथ भाव कैसे जुड़ेगा? तर्कशास्त्र में उदाहरण दिया जाता है कि जो अनानास के फल को नहीं जानता, यदि उसको बाजार से अनानास का फल लाने के लिए कहा जाए तो वह क्या लेकर आएगा? किसी से पूछेगा, जानेगा फिर कहीं ला सकेगा। हम भी जिस नाम का जप करें, वे कौन हैं? हम क्या कर रहे हैं, हम क्या करना चाहते हैं? इन सबको पहले जानें। मुझे भी वैसा ही बनना है यह संकल्प करें। नाम तो मात्र एक संकेत है। जिसका जप कर रहे हैं और जो कर रहा है— दोनों में अभेद स्थापित करने का एक माध्यम है। जिस इष्ट का जप करें, पहले उसके बारे में पूरी जानकारी करके उसके साथ तादात्म्य स्थापित करें तब हमें मंत्र का अभीष्ट फल मिल सकता है।
आचार्य ने कहा— आप भीतर आ जाएं तो बंधन शिथिल हो जाएंगे। अब यहां फिर एक प्रश्न और पैदा हो गया— उन्हें स्थापित करने वाला कौन है? कर्ता स्वयं है, स्वयं स्थापित करता है। वही प्रतिमा बनाने वाला है, वही मानसिक चित्र बनाने वाला है और वहीं उसके ध्यान में लीन है। अच्छी चीज के आ जाने पर बुरी चीज टिक नहीं सकती। जब अच्छी चीज को हमने हृदय में धारण कर लिया तो बुरी चीज को अपने आप पलायन करना पड़ेगा। कर्म अपने आप शिथिल हो जाएंगे। चेतना की निर्मल दशा का साक्षात्कार होगा।
*साधना का तीसरा प्रकार है... दर्शन... आचार्य सिद्धसेन दर्शन का क्या मूल्य बतला रहे हैं...?* जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
🪔🪔🪔🪔🙏🌸🙏🪔🪔🪔🪔
जैन परंपरा में सृजित प्रभावक स्तोत्रों एवं स्तुति-काव्यों में से एक है *भगवान पार्श्वनाथ* की स्तुति में आचार्य सिद्धसेन दिवाकर द्वारा रचित *कल्याण मंदिर स्तोत्र*। जो जैन धर्म की दोनों धाराओं— दिगंबर और श्वेतांबर में श्रद्धेय है। *कल्याण मंदिर स्तोत्र* पर प्रदत्त आचार्यश्री महाप्रज्ञ के प्रवचनों से प्रतिपादित अनुभूत तथ्यों व भक्त से भगवान बनने के रहस्य सूत्रों का दिशासूचक यंत्र है... आचार्यश्री महाप्रज्ञ की कृति...
🔱 *कल्याण मंदिर - अंतस्तल का स्पर्श* 🔱
🕉️ *श्रृंखला ~ 30* 🕉️
*8. प्रभु रहे हृदय में*
गतांक से आगे...
हठयोग में छह चक्र बतलाए गए हैं। कहीं-कहीं नौ चक्रों के नाम भी मिलते हैं। प्रेक्षाध्यान में तेरह चैतन्य केन्द्र बतलाए गए हैं। सुश्रुत आयुर्वेद का ग्रंथ है। उसमें मर्मस्थानों का बहुत सुन्दर वर्णन मिलता है। वहां 151 मर्मस्थानों का उल्लेख है। वे हमारे शरीर में वहां होते हैं जहां चेतना सघन होती है।
ध्यान की प्रक्रिया में बतलाया जाता है कि आप अमुक केन्द्र पर ध्यान करो, आपकी अमुक समस्या का समाधान हो जाएगा।
समस्याएं अलग-अलग हैं और समाधान के केन्द्र भी अलग-अलग हैं। किस समस्या के लिए कहां ध्यान करना है यह महत्त्वपूर्ण है। जब कर्म-बंधन को तोड़ना है, उससे मुक्त होना है तो उसके लिए सबसे अच्छा स्थान मस्तिष्क है। कर्म तोड़ने के साथ ज्ञान केन्द्र का बहुत गहरा संबंध है। हठयोग में इसे सहसार-चक्र कहते हैं। यह चक्र सबसे शक्तिशाली चक्र है। शरीरशास्त्र की भाषा में इसे लिम्बिक सिस्टम का एक भाग हाइपोथेलेमस कहते हैं। यहां से हमारी सारी वृत्तियों का संचालन होता है। यही भाव की उत्पत्ति का मुख्य केन्द्र है। यहां लेश्या भाव के रूप में बदलती है और भाव हमारे मन, वाणी और शरीर को संचालित करते हैं।
गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं— जो भक्त मेरे हृदय में रहता है, मैं उसके हृदय में रहता हूं। अगर हृदय में स्थापित करने की यह कला आ गई तो कवच बन गया, सुरक्षा हो गई। उससे कर्म-बंधन भी ढीले हो जाते हैं।
इन दो उपायों को हम गहराई से समझने का प्रयत्न करें— नाममंत्र का जप और हृदय में प्रतिष्ठा। ये ऐसे उपाय हैं जो स्तवना से भी ज्यादा शक्तिशाली हैं।
मैं (ग्रंथकार आचार्यश्री महाप्रज्ञ) मानता हूं कि हर व्यक्ति को आत्ममंथन करना चाहिए। जब व्यक्ति आत्ममंथन करता है तो कोई न कोई उपाय खोज लेता है। पर बड़ा कठिन कार्य है मंथन करना और मंथन करने की कला को जानना। हर कोई व्यक्ति इसे नहीं जानता।
रायपसेणिय सूत्र में चतर कठिहारा और मूर्ख कठिहारा का दृष्टान्त दिया गया है। मूर्ख कठिहारा अरणि की लकड़ी को तोड़ता गया, तोड़ता गया किन्तु आग नहीं निकाल सका। चतुर कठिहारे ने एक लकड़ी हाथ में ली, घर्षण किया और आग पैदा हो गई।
हमें भी चतुर कठिहारा बनना है, चाहे नाम का जप करें या हृदय में प्रतिमा स्थापित करें। केवल शब्दों से नहीं, चतुर कठिहारे की तरह एक ऐसा संघर्षण पैदा करें, ऐसी भावना पैदा करें कि वह प्रतिमा हृदय में स्थापित हो जाए और नाम-जप अपने वाच्य के साथ चलता रहे।
नाम के साथ अर्थ को जानना बहुत जरूरी है। यदि अर्थ स्पष्ट न हो तो नाम के साथ भाव कैसे जुड़ेगा? तर्कशास्त्र में उदाहरण दिया जाता है कि जो अनानास के फल को नहीं जानता, यदि उसको बाजार से अनानास का फल लाने के लिए कहा जाए तो वह क्या लेकर आएगा? किसी से पूछेगा, जानेगा फिर कहीं ला सकेगा। हम भी जिस नाम का जप करें, वे कौन हैं? हम क्या कर रहे हैं, हम क्या करना चाहते हैं? इन सबको पहले जानें। मुझे भी वैसा ही बनना है यह संकल्प करें। नाम तो मात्र एक संकेत है। जिसका जप कर रहे हैं और जो कर रहा है— दोनों में अभेद स्थापित करने का एक माध्यम है। जिस इष्ट का जप करें, पहले उसके बारे में पूरी जानकारी करके उसके साथ तादात्म्य स्थापित करें तब हमें मंत्र का अभीष्ट फल मिल सकता है।
आचार्य ने कहा— आप भीतर आ जाएं तो बंधन शिथिल हो जाएंगे। अब यहां फिर एक प्रश्न और पैदा हो गया— उन्हें स्थापित करने वाला कौन है? कर्ता स्वयं है, स्वयं स्थापित करता है। वही प्रतिमा बनाने वाला है, वही मानसिक चित्र बनाने वाला है और वहीं उसके ध्यान में लीन है। अच्छी चीज के आ जाने पर बुरी चीज टिक नहीं सकती। जब अच्छी चीज को हमने हृदय में धारण कर लिया तो बुरी चीज को अपने आप पलायन करना पड़ेगा। कर्म अपने आप शिथिल हो जाएंगे। चेतना की निर्मल दशा का साक्षात्कार होगा।
*साधना का तीसरा प्रकार है... दर्शन... आचार्य सिद्धसेन दर्शन का क्या मूल्य बतला रहे हैं...?* जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
🪔🪔🪔🪔🙏🌸🙏🪔🪔🪔🪔
🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹
शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 273* 📜
*श्री जयाचार्य*
*युवाचार्य-पद पर*
*तेज विहार*
मुनिश्री ने सहसा पत्र को बन्द किया और सन्तों से आगामी विहार के विषय में बातचीत करने लगे। एक मंजिल सबके साथ रह कर उन्होंने धीमे चलने वाले तीन सन्तों को पीछे से आने को कहा और स्वयं एक मुनि को साथ लेकर आगे बढ़े। उन्होंने आचार्यश्री के दर्शन होने से पूर्व किसी भी ग्राम में दो रात न ठहरने का निश्चय किया और यदि ठहरना ही पड़े तो वहां चारों आहार का प्रत्याख्यान कर दिया। वहां से तेज विहार करते हुए जोधपुर, पाली, खेरवा और बांता होकर उन्होंने मेवाड़ में प्रवेश किया। आगे केलवा तथा राजनगर होकर नाथद्वारा पधार गये।
*नाम की घोषणा*
नाथद्वारा में चतुर्मास सम्पन्न करने के पश्चात् ऋषिराय उदयपुर की ओर पधार गये थे। वहां से वे भी नाथद्वारा पहुंच गये। मुनि जीतमलजी ने सामने जाकर गुरु दर्शन किये। ऋषिराय ने उसी दिन जनता में मुनि जीतमलजी को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। यद्यपि लगभग पांच महीने पूर्व वे इसकी व्यवस्था कर चुके थे, परन्तु उसका पता प्रायः किसी को नहीं था। मुनि जीतमलजी की योग्यता और विशेषताओं से प्रायः सभी परिचित थे, अतः एक सुयोग्य भावी शासन-पति का नाम सुनकर आनन्दातिरेक में निमग्न हो गये।
*नियुक्ति-पत्र*
मुनि जीतमलजी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करते समय विक्रम सम्वत् 1893 (चै. 1894) के आषाढ़ मास में ऋषिराय ने जो पत्र लिखकर मुनि सरूपचन्दजी को प्रदान किया था, वह प्रकट में युवाचार्य की घोषणा करते समय पढ़कर सुनाया गया। वह नियुक्ति-पत्र इस प्रकार है—
*ओं नमः सिद्धम्*
*'भिक्षु गुरु भारीमाल त्यां को शरणम्। ऋषि भिक्षु पाट भारीमाल। ऋषिराय पाट ऋषि जीतमल। जुगराज पद स्थापनम्। विनेवंत ऋषिराय नी आज्ञा परमाणै चालसी, जीवै जितरै। घणा हरख स्यूं स्वमत थी ए काम कीधो। बीजा नो जश इणमें छै नहीं।'*
*व्यवस्था में सहयोग*
जयाचार्य युवाचार्य-पद की स्थिति में चौदह वर्ष से कुछ अधिक रहे। उस अवधि में वे संघ की अन्य सेवाओं में तो संलग्न रहे ही, पर साथ ही उसकी व्यवस्था सम्बन्धी कार्यों में भी ऋषिराय का भार हल्का करते रहे। आचार्य के लिए आगम में *'गण-तत्ति विप्पमुक्को'*— 'गण की चिन्ताओं से मुक्त' विशेषण आता है, वह जयाचार्य जैसे शिष्यों द्वारा ही सार्थक किया जा सकता है। संघ के संगठन को सुदृढ़ बनाये रखना, विघटन न होने देना, विघटन की स्थिति अनिवार्य हो जाए तो उसका साहसपूर्वक सामना करना— आचार्य के इन सभी कार्यों में युवाचार्य जीतमलजी उनके निपुण सहयोगी रहे। विघटित तत्त्वों को पुनः एकीकरण में बांध लेने की भी उनमें अपूर्व सूझ-बूझ थी।
*युवाचार्य बनाने के कुछ समय पश्चात् जयाचार्य के सम्मुख अनुशासन संबंधी एक काफी चिंताजनक कार्य आया...* जानेंगे उस कार्य के बारे में... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹
शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 273* 📜
*श्री जयाचार्य*
*युवाचार्य-पद पर*
*तेज विहार*
मुनिश्री ने सहसा पत्र को बन्द किया और सन्तों से आगामी विहार के विषय में बातचीत करने लगे। एक मंजिल सबके साथ रह कर उन्होंने धीमे चलने वाले तीन सन्तों को पीछे से आने को कहा और स्वयं एक मुनि को साथ लेकर आगे बढ़े। उन्होंने आचार्यश्री के दर्शन होने से पूर्व किसी भी ग्राम में दो रात न ठहरने का निश्चय किया और यदि ठहरना ही पड़े तो वहां चारों आहार का प्रत्याख्यान कर दिया। वहां से तेज विहार करते हुए जोधपुर, पाली, खेरवा और बांता होकर उन्होंने मेवाड़ में प्रवेश किया। आगे केलवा तथा राजनगर होकर नाथद्वारा पधार गये।
*नाम की घोषणा*
नाथद्वारा में चतुर्मास सम्पन्न करने के पश्चात् ऋषिराय उदयपुर की ओर पधार गये थे। वहां से वे भी नाथद्वारा पहुंच गये। मुनि जीतमलजी ने सामने जाकर गुरु दर्शन किये। ऋषिराय ने उसी दिन जनता में मुनि जीतमलजी को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। यद्यपि लगभग पांच महीने पूर्व वे इसकी व्यवस्था कर चुके थे, परन्तु उसका पता प्रायः किसी को नहीं था। मुनि जीतमलजी की योग्यता और विशेषताओं से प्रायः सभी परिचित थे, अतः एक सुयोग्य भावी शासन-पति का नाम सुनकर आनन्दातिरेक में निमग्न हो गये।
*नियुक्ति-पत्र*
मुनि जीतमलजी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करते समय विक्रम सम्वत् 1893 (चै. 1894) के आषाढ़ मास में ऋषिराय ने जो पत्र लिखकर मुनि सरूपचन्दजी को प्रदान किया था, वह प्रकट में युवाचार्य की घोषणा करते समय पढ़कर सुनाया गया। वह नियुक्ति-पत्र इस प्रकार है—
*ओं नमः सिद्धम्*
*'भिक्षु गुरु भारीमाल त्यां को शरणम्। ऋषि भिक्षु पाट भारीमाल। ऋषिराय पाट ऋषि जीतमल। जुगराज पद स्थापनम्। विनेवंत ऋषिराय नी आज्ञा परमाणै चालसी, जीवै जितरै। घणा हरख स्यूं स्वमत थी ए काम कीधो। बीजा नो जश इणमें छै नहीं।'*
*व्यवस्था में सहयोग*
जयाचार्य युवाचार्य-पद की स्थिति में चौदह वर्ष से कुछ अधिक रहे। उस अवधि में वे संघ की अन्य सेवाओं में तो संलग्न रहे ही, पर साथ ही उसकी व्यवस्था सम्बन्धी कार्यों में भी ऋषिराय का भार हल्का करते रहे। आचार्य के लिए आगम में *'गण-तत्ति विप्पमुक्को'*— 'गण की चिन्ताओं से मुक्त' विशेषण आता है, वह जयाचार्य जैसे शिष्यों द्वारा ही सार्थक किया जा सकता है। संघ के संगठन को सुदृढ़ बनाये रखना, विघटन न होने देना, विघटन की स्थिति अनिवार्य हो जाए तो उसका साहसपूर्वक सामना करना— आचार्य के इन सभी कार्यों में युवाचार्य जीतमलजी उनके निपुण सहयोगी रहे। विघटित तत्त्वों को पुनः एकीकरण में बांध लेने की भी उनमें अपूर्व सूझ-बूझ थी।
*युवाचार्य बनाने के कुछ समय पश्चात् जयाचार्य के सम्मुख अनुशासन संबंधी एक काफी चिंताजनक कार्य आया...* जानेंगे उस कार्य के बारे में... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
卐🌼🔺🕉अर्हम् 🕉 🔺🌼卐
🌸 *परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी की अहिंसा यात्रा* 🌸
卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐
*(संभावित कार्यक्रम)*
*14 मार्च 2020, शनिवार*
卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐
*प्रवास स्थल*
Junoni Vidyalaya
Kola - Junoni Rd, Junoni, Maharashtra 413307, India
卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐
*लोकेशन जानने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करे*
https://maps.app.goo.gl/4sbQrLr7tTvzDPXMA
卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐
*(संभावित यात्रा - 13 k.m.)*
卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐
*प्रस्तुति 🌻संघ संवाद*🌻
卐🌼🔺🕉अर्हम् 🕉 🔺🌼卐
🌸 *परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी की अहिंसा यात्रा* 🌸
卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐
*(संभावित कार्यक्रम)*
*14 मार्च 2020, शनिवार*
卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐
*प्रवास स्थल*
Junoni Vidyalaya
Kola - Junoni Rd, Junoni, Maharashtra 413307, India
卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐
*लोकेशन जानने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करे*
https://maps.app.goo.gl/4sbQrLr7tTvzDPXMA
卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐
*(संभावित यात्रा - 13 k.m.)*
卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐
*प्रस्तुति 🌻संघ संवाद*🌻