16.03.2020 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 16.03.2020
Updated: 16.03.2020

Updated on 16.03.2020 20:42

🧘‍♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘‍♂

🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन

👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला ४४२* ~ *प्राण ऊर्जा का संवर्धन - ३*

एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*

प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
🌻 *संघ संवाद* 🌻

Watch video on Facebook.com

Updated on 16.03.2020 20:42

👉 हिसार ~ आध्यात्मिक मिलन
👉 विजयनगर- बेंगलुरु~ जैन संस्कार विधि के बढ़ते कदम
👉 राजाजीनगर, बेंगलुरु: प्रेक्षा ध्यान केंद्र टाइप बी का उद्घाटन
👉 जीन्द - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 सूरत - उपासक गोष्ठी का आयोजन

प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻

Photos of Sangh Samvads post

Updated on 16.03.2020 20:42

🪔🪔🪔🪔🙏🌸🙏🪔🪔🪔🪔

जैन परंपरा में सृजित प्रभावक स्तोत्रों एवं स्तुति-काव्यों में से एक है *भगवान पार्श्वनाथ* की स्तुति में आचार्य सिद्धसेन दिवाकर द्वारा रचित *कल्याण मंदिर स्तोत्र*। जो जैन धर्म की दोनों धाराओं— दिगंबर और श्वेतांबर में श्रद्धेय है। *कल्याण मंदिर स्तोत्र* पर प्रदत्त आचार्यश्री महाप्रज्ञ के प्रवचनों से प्रतिपादित अनुभूत तथ्यों व भक्त से भगवान बनने के रहस्य सूत्रों का दिशासूचक यंत्र है... आचार्यश्री महाप्रज्ञ की कृति...

🔱 *कल्याण मंदिर - अंतस्तल का स्पर्श* 🔱

🕉️ *श्रृंखला ~ 31* 🕉️

*9. मूल्य दर्शन का*

आचार्य ने सातवें श्लोक में कहा— आपका नाम भी रक्षा करता है। आठवें श्लोक में कहा— जब आप हृदय में प्रतिष्ठित हैं तो अपने आप रक्षा हो जाती है। ये सारे साधना के प्रकार हैं। इन श्लोकों को हम ध्यान से देखते हैं तो ऐसा लगता है कि आचार्य स्तुति के साथ साधना की पद्धतियां बतला रहे हैं।

साधना का पहला प्रकार है— नाम-जप। दूसरा प्रकार है— अभेद प्रणिधान, इष्ट को अपने हृदय में प्रतिष्ठित करना। तीसरा प्रकार है— दर्शन।

आचार्य प्रस्तुत श्लोक में दर्शन का मूल्य बतला रहे हैं प्रभो! जो व्यक्ति आपका दर्शन कर लेता है उसकी अनेक समस्याएं सुलझ जाती हैं। योग में दर्शन की एक प्रक्रिया रही है। आप सामने दिखाई नहीं देते, पर ध्यान की मुद्रा में दर्शन किया जा सकता है, एक मानसिक चित्र बनाया जा सकता है। सफलता के लिए मानसिक चित्र का निर्माण बहुत जरूरी है। मानसिक चित्र का निर्माण करके जो सुझाव दिया जाता है वह सफल भी बनता है। आजकल कुछ विशेषज्ञ व्यक्ति इसका प्रयोग कर रहे हैं। उदाहरण लिया जा सकता है हृदय रोगी का। एक रोगी को सुझाव दिया जाता है कि बीमार हृदय की कल्पना करो, ध्यान करो, सुझाव दो कि मैं स्वस्थ हो रहा हूं, मेरा हृदय स्वस्थ हो रहा है। धीरे-धीरे हृदय की बीमारी ठीक हो जाएगी, हृदय स्वस्थ हो जाएगा। हृदय रोगी ने यह प्रयोग किया और उसे लाभ भी हुआ।

पद्मश्री डॉ. महेन्द्र भण्डारी आया, जो किडनी का विशेषज्ञ है, योग्य डॉक्टर है, श्रावक है। उसने कहा— 'मैं स्वयं प्रेक्षाध्यान के बहुत प्रयोग करता हूं। एक बार मेरे पैर में दर्द हो गया था। डॉक्टर ने कहा— छ: महीने पट्टा रखना पड़ेगा। मैंने सुझाव का, ऑटोसजेशन का प्रयोग किया। पैरों को सुझाव देता गया कि जल्दी ठीक हो जाओ। दो महीने में ठीक हो गया, चलने लग गया। डॉक्टर को आश्चर्य हुआ कि यह कैसे हुआ?' जब व्यक्ति मानसिक चित्र का निर्माण करता है, सुझाव देता है तो स्वस्थ हो जाता है।

प्रभो! जिस व्यक्ति ने आपका मानसिक चित्र बना लिया, आपका दर्शन कर लिया, वह व्यक्ति सैकड़ों-सैकड़ों भयंकर उपद्रवों से मुक्त हो जाता है। इस दुनिया में जीएं और उपद्रव न हो, ऐसा संभव नहीं है। आचार्य कहते हैं— *'त्वयि वीक्षितेऽपि'*— आपको देखते ही भयंकर उपद्रव शांत हो जाते हैं, भयंकर उपद्रवों से व्यक्ति मुक्त हो जाता है।

एक बार एक परिवार सेवा में आया। एक भाई ने कहा— हमारे परिवार का एक सदस्य प्रेतात्मा के उपद्रव से ग्रस्त है। कोई उपाय बताएं, जिससे इस उपद्रव से मुक्त हो जाएं। मैंने (ग्रंथकार आचार्यश्री महाप्रज्ञ) उनकी बात ध्यान से सुनी और कहा— 'एक बार उस आत्मा को हमारे दर्शन कराओ। हम उनसे बात करें।' उस व्यक्ति के शरीर में प्रेतात्मा आई। हमने प्रेतात्मा से पूछा— 'बोलो, क्या बात है?' प्रेतात्मा ने कहा— 'मैं आपके सामने नहीं रह सकती।' यह एक रहस्यपूर्ण प्रयोग है। अगर व्यक्ति अच्छी साधना करता है, साधना का तेज है, आभामंडल शक्तिशाली है तो कमजोर आभामंडल वाला सामने कभी नहीं आ सकता, वह कोई उपद्रव भी नहीं कर सकता। हमने इसका बहुत बार अनुभव किया है।

उपद्रव शमन के लिए कुछ लोग देवी-देवताओं के मन्दिरों में भी जाते हैं। वस्तुतः यह सारा खेल प्रकंपनों का है। बुरे प्रकंपनों के क्षेत्र में जाने से अच्छा दिमाग भी बुरा बन जाता है। अच्छे प्रकंपनों के क्षेत्र में जाने से बुरा दिमाग भी अच्छा बन जाता है, शांत बन जाता है। चूरू-टमकोर के मध्य हम एक गांव में थे। एक भाई ने बताया— अमुक भाई आत्महत्या करने को तैयार था। वह पत्नी-पुत्र सबसे परेशान था। उसने सोचा— अब जीने का कोई मतलब नहीं है। घर में कुंड था। उसमें गिरने के बारे में सोच रहा था। एक दिन सुबह के समय टी.वी. का स्विच ऑन किया। उसमें हमारा प्रवचन चल रहा था और संयोग से वही विषय प्रवचन में आ गया। उसने सुना और विचार बदल गया। उसने संतों से कहा— 'मैं आत्महत्या कर रहा था, प्रवचन सुनते ही विचार बदल गया। अब मैं आत्महत्या नहीं करूंगा। मुझे सुख से जीना है, शांति से जीना है।' वाणी के प्रकंपन, दृष्टि के प्रकंपन, साक्षात् आकृति के प्रकंपन एक-दूसरे। को प्रभावित करते हैं।

*सभी धर्म-दर्शनों में सत्संगति का महत्व बताया गया है... सत्संगति का मतलब क्या है...?* जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻

🪔🪔🪔🪔🙏🌸🙏🪔🪔🪔🪔

Updated on 16.03.2020 20:42

🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹

शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।

🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞

📜 *श्रृंखला -- 274* 📜

*श्री जयाचार्य*

*युवाचार्य-पद पर*

*तपस्वी गुलाबजी का बखेड़ा*

अनुशासन सम्बन्धी एक कार्य तो जयाचार्य के सम्मुख युवाचार्य बनने के कुछ समय पश्चात् ही ऐसा आया, जो काफी चिन्ताजनक था। उन्होंने उसे ऐसी दृढ़ता से सम्भाला कि देखने वाले चकित रह गये। उस कार्य में ऋषिराय को विशेष-कुछ नहीं करना पड़ा। प्रायः आदि से अन्त तक युवाचार्य ने ही उसको भुगता दिया। उस समय पुर में तपस्वी मुनि गुलाबजी, मुनि ईसरजी, मुनि उदयरामजी, मुनि रामोजी और मुनि जीवराजजी— ये पांच मुनि थे। उनमें मुनि गुलाबजी तपस्वी होने के साथ ही काफी विराग-भावना वाले गिने जाते थे। आस-पास की जनता में उनके प्रति बहुत आदर-भाव था।

तपस्वी और विरागी होना एक बात है, जबकि विवेकी होना बिलकुल ही दूसरी बात है। यद्यपि तपस्वी और विरागी व्यक्ति विवेकी भी होते हैं, परन्तु सबके लिए वैसा होना नितान्त निश्चित नहीं है। विवेक के लिए जिस विश्लेषणात्मक बुद्धि की आवश्यकता होती है वह सब में परिपूर्ण मिल जाये, यह असम्भव है। फिर तपस्या और विवेक कोई इतरेतराश्रित भाव तो हैं नहीं कि एक के भाव में दूसरे का भी भाव मान ही लिया जाये। परन्तु जनता पर तपस्या का प्रभाव सहज पड़ता है वैसा उसके विवेक की स्वल्पाधिकता का नहीं पड़ता। यही कारण है कि कुछ लोग तपस्या के प्रभाव में आकर बहुधा गलती कर जाते हैं। अनेक तपस्वी भी तप की महिमा को अपने विवेक की महिमा समझ बैठते हैं। अतः उसी के बल-बूते पर वे संघ की गतिविधियों के लिए निर्णय देने पर भी उतर आते हैं। उस स्थिति में जब कुछ अल्पज्ञ लोग उनकी पीठ थपथपा देते हैं, तब तो फिर वे अपने विरागी होने का सबूत भी इसी रूप में प्रस्तुत करना प्रारम्भ कर देते हैं कि दूसरे सब शिथिल हो गये हैं । तपस्वी गुलाबजी की उस समय कुछ ऐसी ही स्थिति थी। वे अपने को उच्चकोटि का साधक समझने लगे थे, जबकि संघ के अन्य मुनियों को शिथिलाचारी।

एक दिन भीलवाड़ा के श्रावक भोपजी सिंघी तपस्वी गुलाबजी के दर्शन करने के लिए पुर आए। वे उनकी सेवा में बैठे ही थे कि मुनि गुलाबजी ने उल्टी-सीधी बातें करनी प्रारम्भ कर दी।

उन्होंने संघ के लिए निम्नता के शब्दों का प्रयोग करते हुए कहा— 'किसी साहूकार के घर में घाटा हो तो वह उसे छिपाकर अपना काम कितने दिन चला सकता है? आखिर एक-न-एक दिन वह सबके सामने स्वयं आ ही जाता है।'

भोपजी श्रावक भी पक्के थे। वे उनकी बातों को सुनकर पहले तो कुछ चकित हुए, पर संघ के प्रति उनका वह बुरा इंगित वे तत्काल समझ गये। उन्होंने बराबर का उत्तर देते हुए कहा— 'जिस व्यक्ति को यह पता लग जाए कि सेठ के घर में घाटा है, फिर भी उसके साथ रहे तो उसकी बुद्धि को क्या कहा जाए?'

अपने प्रति यह व्यंग्य सुना तो मुनि गलाबजी और अधिक जोश खा गये। संघ के विषय में अनेक प्रकार की भ्रान्तिपूर्ण बातें कहने लगे। मुनि ईसरजी उनके संसार-पक्षीय छोटे भाई थे। उन्होंने उनको ऐसा करने से बहुत दबाव देकर रोका, तब कहीं बोलते बंद हुए। दूसरे दिन फिर उसी प्रकार अंट-संट बोलने लगे और अपनी शंकाओं की लम्बी-लम्बी संख्याएं बतलाने लगे। अन्ततः घटा-बढ़ा कर उन्होंने अपनी शंकाओं के 27 बोल निश्चित किये।' उनकी उक्त मनःस्थिति से खिन्न होकर उनके साथ के मुनि रामोजी ने नाथद्वारा में जाकर ऋषिराय के दर्शन किये और वहां की सारी परिस्थिति निवेदित की।

ऋषिराय ने नाथद्वारा से पुर जाकर ही सारी परिस्थिति को सुलझाने का निश्चय किया। युवाचार्य आदि आठ सन्तों सहित विहार कर कांकरोली, गंगापुर होते हुए वे पुर की ओर पधारे। तपस्वी गुलाबजी ने जब यह समाचार सुना तो उन्होंने अपनी शंकाओं की संख्या को घटाकर कम कर दिया और कहने लगे कि यदि मेरी चार शंकाएं मेट दी जायें तो सारी बात ठीक हो जाए। भोपजी सिंघी ने मार्ग के 'कारोई' ग्राम में ऋषिराय के दर्शन किये, तब उन्होंने बतलाया कि मुनि गुलाबजी कहते हैं— 'मेरी चार शंकाओं का उत्तर मुनि हेमराजजी से मंगा दिया जाये। वे जो भी उत्तर देंगे, मैं सर्वथा स्वीकार कर लूंगा।'

युवाचार्य जीतमलजी ने उस बात का उत्तर देते हुए भोपजी से कहा— 'जब आचार्य स्वयं ही वहां पधार रहे हैं, तब मुनि हेमराजजी से उत्तर मांगने की क्या आवश्यकता रह जाती है?'

दूसरे दिन ऋषिराय पुर में पहुंच रहे थे, तब भोपजी ने आकर फिर बतलाया कि मुनि गुलाबजी कहते हैं— 'यदि एक साधु आकर मुझे यह कह दे कि हम स्वामीजी की सब मर्यादाओं को ठीक पालते हैं, तो मैं सामने आकर पैर पकड़ लूंगा।'

युवाचार्य ने उसका उत्तर देते हुए कहा— 'स्वामीजी की मर्यादाएं तो हमें सदा से ही मान्य रही हैं। अब एक साधु को भेजकर नये सिरे से उसके विषय में कहलाने की कौन-सी आवश्यकता आ पड़ी?'

पुर से सामने आने वाले भाइयों ने भी ऋषिराय से प्रार्थना की कि एक साधु को भेज देना चाहिये। तपस्वीजी को यदि इतने में ही तसल्ली हो जाती है, तो ऐसा करने में कोई अड़चन नहीं होनी चाहिए। किन्तु उनकी वह प्रार्थना उपयुक्त न होने से स्वीकार नहीं की गई। युवाचार्यश्री ने ऋषिराय की दृष्टि को देखते हुए कहा— 'जो सन्त अमुक सीमा तक सामने आ जायेंगे वे ही गण के समझे जाएंगे। जो सामने नहीं आएंगे, वे गण-विरोधी होने के कारण उससे पृथक् समझे जाएंगे।' उक्त समाचार सुनने के पश्चात् उनमें से एक मुनि जीवराजजी तो कोसभर सामने आ गये, किन्तु अवशिष्ट तीन मुनि नहीं आये।

*तपस्वी गुलाबजी का वह बखेड़ा कैसे शांत हुआ...?* जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻

🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹

Updated on 16.03.2020 20:42

👉 *प्रेरणा पाथेय:-आचार्य श्री महाश्रमणजी - 16 MARCH 2020, का वीडियो-प्रस्तुति~अमृतवाणी*

*संप्रसारक: 🌻संघ संवाद*🌻

Watch video on Facebook.com

https://www.facebook.com/SanghSamvad/
卐🌼🔺🕉अर्हम् 🕉 🔺🌼卐
🌸 *परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी की अहिंसा यात्रा* 🌸
卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐
*(संभावित कार्यक्रम)*
*16 मार्च 2020, सोमवार*
卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐
*प्रवास स्थल*
प.पू उदयसिंह जी देशमुख विद्यालय
Whdhegon Highschool
Vadhegaon, Maharashtra 413307, India
卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐
*लोकेशन जानने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करे*
https://maps.app.goo.gl/9zfG4dZv3KLVirRq6
卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐
*(संभावित यात्रा - 13 k.m.)*
卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐

*प्रस्तुति 🌻संघ संवाद*🌻

🧘‍♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘‍♂

🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन

👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला ४४१* ~ *प्राण ऊर्जा का संवर्धन - २*

एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*

प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
🌻 *संघ संवाद* 🌻

Watch video on Facebook.com


Sources

SS
Sangh Samvad
View Facebook page

Categories

Click on categories below to activate or deactivate navigation filter.

  • Jaina Sanghas
    • Shvetambar
      • Terapanth
        • Sangh Samvad
          • Publications
            • Share this page on:
              Page glossary
              Some texts contain  footnotes  and  glossary  entries. To distinguish between them, the links have different colors.
              1. Maharashtra
              2. SS
              3. Sangh
              4. Sangh Samvad
              5. आचार्य
              6. आचार्यश्री महाप्रज्ञ
              7. दर्शन
              8. भाव
              Page statistics
              This page has been viewed 228 times.
              © 1997-2024 HereNow4U, Version 4.56
              Home
              About
              Contact us
              Disclaimer
              Social Networking

              HN4U Deutsche Version
              Today's Counter: