Updated on 19.03.2020 08:22
🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन
👉 *#प्रतिक्रिया #से #कैसे #बचें: भाग - १*
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आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
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🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला ४४४* ~ *प्राण ऊर्जा का संवर्धन - ५*
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👉 *प्रेरणा पाथेय:-आचार्य श्री महाश्रमणजी - 18 MARCH 2020, का वीडियो-प्रस्तुति~अमृतवाणी**संप्रसारक: 🌻संघ संवाद*🌻
Updated on 19.03.2020 08:22
🪔🪔🪔🪔🙏🌸🙏🪔🪔🪔🪔जैन परंपरा में सृजित प्रभावक स्तोत्रों एवं स्तुति-काव्यों में से एक है *भगवान पार्श्वनाथ* की स्तुति में आचार्य सिद्धसेन दिवाकर द्वारा रचित *कल्याण मंदिर स्तोत्र*। जो जैन धर्म की दोनों धाराओं— दिगंबर और श्वेतांबर में श्रद्धेय है। *कल्याण मंदिर स्तोत्र* पर प्रदत्त आचार्यश्री महाप्रज्ञ के प्रवचनों से प्रतिपादित अनुभूत तथ्यों व भक्त से भगवान बनने के रहस्य सूत्रों का दिशासूचक यंत्र है... आचार्यश्री महाप्रज्ञ की कृति...
🔱 *कल्याण मंदिर - अंतस्तल का स्पर्श* 🔱
🕉️ *श्रृंखला ~ 33* 🕉️
*9. मूल्य दर्शन का*
गतांक से आगे...
जो मर्म को समझता है वह आत्मा को अपना स्थाई दर्शन का केन्द्र बना लेता है। आत्मा को निरंतर देखता रहे, साथ-साथ दूसरों को भी देखता रहे तो समस्या उलझेगी नहीं। केवल आने वालों का दर्शन किया और परमात्मा का दर्शन नहीं किया तो उसका क्या महत्त्व है? संस्कृत साहित्य में एक सुन्दर श्लोक आता है—
*बाले मातृमुखो जातः, तारुण्ये तरुणीमुखः।*
*पुत्रपौत्रमुखो वार्ध्ये, मूर्खो नान्तर्मुखो भवेत्।।*
व्यक्ति बचपन में मातृमुख रहता है। युवावस्था में तरुणीमख रहता है और वृद्धावस्था में वह पुत्र और पौत्रमुख हो जाता है, पर वह अंतर्मुख नहीं होता। अंतर्मुख होने के लिए अपना दर्शन और व्यवहार चलाने के लिए बाहर का दर्शन आवश्यक है।
रहस्य योग में अनेक प्रकार की दीक्षाओं का उल्लेख मिलता है— दृष्टि दीक्षा, स्पर्श दीक्षा, वेध दीक्षा, शाम्भवी दीक्षा आदि। जिस प्रकार मछली अपने बच्चों को दूर से देखकर ही उनका संरक्षण और पालन-पोषण करती है, इसी तरह सदृगुरु भी अपने शिष्य में अपनी दिव्य दृष्टि मे ज्ञान का संचार करते हैं। यानी शिष्य की ओर देखने मात्र से उसमें शक्तिपात कर देते हैं। यह भी बड़ा योग है। गुरु के दृष्टिपात से समस्या का समाधान हो जाता है।
दर्शन दीक्षा को उदाहरण से समझें । जैसे— गुरु कुछ भी नहीं करता, कुछ भी नहीं कहता, कुछ भी नहीं देता, अपने शिष्यों की तरफ एक स्नेहिल और वात्सल्यपूर्ण दृष्टि से देखता है। शिष्य में नई ऊर्जा कर संचार हो जाता है। इसका बहुत प्रयोग हुआ है। योग के ग्रंथों में इसका बहुत वर्णन मिलता है। *दर्शन दीक्षा*— संकल्प करें, गुरु मेरे सामने विराजमान हैं। आप गुरु को देखते रहिए। उनका मानसिक चित्र बनाएं। कल्पना करें— गुरु मुझे कृपापूर्ण दृष्टि से देख रहे हैं। यह दर्शन का विज्ञान या कला सीख लें, आपको साक्षात् दर्शन हो जाएगा और सैंकडों उपद्रवों से मुक्त हो जाएंगे।
आचार्य ने अपनी बात को स्पष्ट और पुष्ट करने के लिए बहुत सटीक उदाहरण दिया है। एक चोरों का गिरोह गायों की चोरी करने के लिए आया। अनेक गायों को चुराया। जैसे ही जाने लगे, सूर्य उदित हो गया।
गोस्वामी का एक अर्थ है राजा। दूसरा अर्थ है गायों का मालिक और तीसरा अर्थ है सूरज। प्रस्तुत संदर्भ में ये तीनों अर्थ घटित होते हैं। अकस्मात् राजा आ गया और चोर गायों को छोड़कर भाग जाते हैं अथवा गायों का मालिक आ गया, वे गायों को छोड़कर भाग जाते हैं अथवा सूरज उग गया, सूरज उदित होते ही चोर शान्त हो जाते हैं। औरों की तो बात ही क्या, सूर्योदय के साथ बीमारी भी शान्त हो जाती है। बीमारी रात को जितनी सताती है, सूर्योदय के बाद उतनी नहीं सताती। जहां ताप है वहां कोई टिक नहीं सकता।
प्रभो! जैसे चोर गोस्वामी को देखते ही भाग जाते हैं, वैसे ही आपके दर्शन मात्र से सैंकड़ों उपद्रव अपने आप शान्त हो जाते हैं। कुछ करना नहीं पड़ता, सब कुछ अपने आप हो जाता है।
एक उपाय खोजा— नाम मंत्र का। दूसरा उपाय है आप मेरे हृदय में विराजमान हो जाएं। तीसरा उपाय है दर्शन का। आपके दर्शन हो जाएं तो सारे उपद्रव शान्त हो जाते हैं।
ऐसा प्रतीत होता है कि कल्याण मंदिर केवल स्तुति का ग्रंथ नहीं है, ध्यान का भी ग्रंथ है। स्तुति के माध्यम से कितने रहस्यों का उद्घाटन आचार्य कर रहे हैं। अगर उन रहस्यों को पकड़ सके तो व्यक्ति अच्छा साधक भी बन सकता है।
*संसार समुद्र से तारने वाला कौन है...?* जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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Updated on 19.03.2020 08:22
🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 276* 📜
*श्री जयाचार्य*
*युवाचार्य-पद पर*
*संकेत भी आज्ञा*
युवाचार्य जय प्रारम्भ से ही अत्यन्त विनीत और आज्ञाकारी थे। पद-प्राप्ति के पश्चात् तो वे इस विषय में अत्यधिक सावधान रहने लगे। गुरु के सामान्य-से संकेत को भी वे उनकी आज्ञा जितना ही महत्त्व दिया करते थे। विक्रम सम्वत् 1897 की घटना है। आमेट में चतुर्मास करने के लिए जिस सिंघाड़े की नियुक्ति की गई थी, वह कारणवश अन्यत्र अटक गया। समाचारों के आदान-प्रदान से जब यह निश्चित हो गया कि वह सिंघाड़ा आमेट नहीं पहुंच पायेगा, तब स्थानीय श्रावकों को बहुत चिंता हुई। आमेट उस समय मेवाड़ में सबसे बड़ा और प्रभावशाली क्षेत्र था। वहां चतुर्मास न हो, यह कल्पना भी असह्य थी। कुछ श्रावक एकत्र होकर जयपुर पहुंचे और सारी स्थिति बतलाते हुए किसी अन्य सिंघाड़े को भेजने की प्रार्थना की। आचार्यश्री ने पूरा ध्यान देकर देखा, परन्तु किसी को भेज पाना संभव नहीं लगा। आमेट को खाली रखना भी उन्हें इष्ट नहीं था। उन्होंने फरमाया— 'यदि जीतमल अपने साथ के दो संतों को भेज सके तो तुम्हारा काम हो सकता है।'
युवाचार्यश्री उस समय मेवाड़ में ही थे। श्रावकों ने वहां दर्शन किये, अपने क्षेत्र की सारी स्थिति बतलाई और आचार्यश्री द्वारा फरमाये हुए शब्द भी यथावत् निवेदित किये।
युवाचार्यश्री ने तत्काल अपने दो सन्तों— मुनि कर्मचन्दजी और मुनि रामचन्दजी को आमेट में चतुर्मास करने के लिये भेज दिया। स्वयं ने चार सन्तों से उदयपुर में चतुर्मास किया। आमेट-निवासी श्रावक कृतकृत्य होकर युवाचार्यश्री की आज्ञाकारिता और आचार्यश्री की कृपालुता की प्रशंसा करते हुए वापस गये।
*सफल चतुर्मास*
युवाचार्य पद देने के पश्चात् भी जयाचार्य को प्रायः पृथक् क्षेत्रों में ही चतुर्मास करवाये जाते रहे। ऋषिराय का विचार था कि ऐसा करने से दो क्षेत्रों में धार्मिक जागृति होती है। वास्तविकता भी यही थी। युवाचार्यश्री जहां-जहां पधारते वहां-वहां धार्मिक चर्चाओं तथा जन-संपर्क की बाढ़ आ जाती। उनके तर्कसंगत उत्तर जन-मानस को बहुत प्रभावित करते।
विक्रम सम्वत् 1906 में युवाचार्यश्री का चतुर्मास बीकानेर करवाया गया। वे अग्रणी-अवस्था में भी बीकानेर में दो चतुर्मास कर चुके थे। उन्हीं के प्रभाव से वह क्षेत्र बना था। अब युवाचार्य-अवस्था में जब वे वहां पधारे तो लोगों में अपार उत्साह भर गया। उनका नाम सुनकर अनेक नये व्यक्ति सम्पर्क में आने लगे। उस चतुर्मास में अनेक परिवार तेरापंथी बने। उनमें मदनचन्दजी राखेचा तथा उनके छोटे भाई फकीरचन्दजी का परिवार प्रमुख था। दोनों ही भाई धनी तथा राजमान्य थे। धार्मिक क्षेत्र में भी वे कुछ ही दिनों में इतने पक्के हो गये कि स्थानीय श्रावकों में प्रमुख गिने जाने लगे। संघ-हित के लिए वे विशेष जागरूकता रखते थे। ऐसे महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों के श्रद्धाशील बनने के कारण युवाचार्यश्री का वह चतुर्मास विशेष रूप से सफल माना गया।
*युवाचार्य जय गुरु आज्ञा का पालन हर संभव करते थे...एक घटना के माध्यम से...* जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
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*(संभावित कार्यक्रम)*
*18 मार्च 2020, बुघवार*
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*प्रवास स्थल*
श्री संत दामाजी महाविद्यालय
Mangalvedha Road, Wadhegaon, near Hotel Jotirling, Naka, Sangola, Maharashtra 413307, India
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