Updated on 19.03.2020 20:00
🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन
👉 *#प्रतिक्रिया #से #कैसे #बचें: भाग - २*
एक #प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
#Preksha #Foundation
Helpline No. 8233344482
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द#संवाद 🌻
Updated on 19.03.2020 20:00
🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला ४४५* ~ *प्राण ऊर्जा का संवर्धन - ६*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
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*Preksha Foundation*
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Updated on 19.03.2020 20:00
👉 *प्रेरणा पाथेय:-आचार्य श्री महाश्रमणजी - 19 MARCH 2020, का वीडियो-प्रस्तुति~अमृतवाणी**संप्रसारक: 🌻संघ संवाद*🌻
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जैन परंपरा में सृजित प्रभावक स्तोत्रों एवं स्तुति-काव्यों में से एक है *भगवान पार्श्वनाथ* की स्तुति में आचार्य सिद्धसेन दिवाकर द्वारा रचित *कल्याण मंदिर स्तोत्र*। जो जैन धर्म की दोनों धाराओं— दिगंबर और श्वेतांबर में श्रद्धेय है। *कल्याण मंदिर स्तोत्र* पर प्रदत्त आचार्यश्री महाप्रज्ञ के प्रवचनों से प्रतिपादित अनुभूत तथ्यों व भक्त से भगवान बनने के रहस्य सूत्रों का दिशासूचक यंत्र है... आचार्यश्री महाप्रज्ञ की कृति...
🔱 *कल्याण मंदिर - अंतस्तल का स्पर्श* 🔱
🕉️ *श्रृंखला ~ 34* 🕉️
*10. कौन है तारक?*
भगवान् पार्श्व की स्तुति करते-करते आचार्य के मन में प्रश्न पैदा हो गया— प्रभो! लोग कहते हैं— *त्वं तारकः*— आप तारक हैं, आप संसार समुद्र से तारने वाले हैं। किन्तु यह बात संगत नहीं लग रही है। आप तारक कैसे बने? जो व्यक्ति इस संसार समुद्र को पार करते हैं, वे आपको हृदय में धारण करते हैं। वे आपको तार रहे हैं, वे आपको ले जा रहे हैं फिर आप तारक कैसे हुए?
'नमोत्थुणं' में एक पद है तिन्नाणं तारयाणं। तीर्थकर तारक होते हैं, तारने वाले होते हैं। वे पोत हैं, नौका हैं। किन्तु तारक कब और कैसे बनते हैं? एक व्यक्ति आपको हृदय में स्थापित कर लेता है और वह तरता है। आप तो उसके हृदय में हैं। अतः तारने वाला तो वह हो गया। आपको वह ले जाता है। ले जाने वाला बड़ा है या ले जाई जाने वाली वस्तु? वह स्वयं तो तर रहा है और आपको हृदय में बिठा रखा है। इसका मतलब हुआ— वह आपको तार रहा है फिर आप तारक कैसे बने?
*त्वामुद्वहन्ति हृदयेन*— भक्त आपको हृदय में वहन कर रहा है फिर आप तारक कैसे बने? एक व्यक्ति तैर रहा है, उसके शरीर पर कपड़ा ओढ़ा हुआ है। कोई कहे, कपड़ा तार रहा है। कपड़ा कैसे तार रहा है? वह स्वयं तैर रहा है। आप तारक कैसे बने?
एक गंभीर प्रश्न उपस्थित किया है और प्रश्न के साथ समाधान भी दिया है। आचार्य कहते हैं— यह ठीक है कि वह व्यक्ति तर रहा है। किन्तु आप उसके हृदय में हैं इसलिए तर रहा है। प्रभाव किसका है?
एक उदाहरण प्रस्तुत कर रहा हूं। हनुमान ने पत्थर पर 'राम' लिखा, सब पत्थर तिर गए। स्वयं राम ने जो पत्थर फेंका, वह डूब गया। राम को आश्चर्य हुआ। यह कैसे हुआ? तब हनुमान बोले— प्रभो! आप इसे समझ नहीं पाएंगे। उन सब पर राम नाम लिखा हुआ था। आपने जो पत्थर फेंका उस पर राम नाम अंकित नहीं था।
तारने वाला जो है उसका प्रभाव कहां है? इस बात को समझाने के लिए आचार्य ने एक सुन्दर उदाहरण दिया है। किसी व्यक्ति से पूछा गया— दृति, जिसे मारवाड़ी में दीवड़ी कहते हैं, वह पानी में तैरती है। उसमें हवा है इसलिए तैरती है या बिना हवा के तैरती है?
उत्तर मिला— उसमें हवा है इसलिए वह तैरती है।
'जो थैली तैर रही है, उसमें थैली का प्रभाव है या हवा का।'
उत्तर दिया गया— 'प्रभाव तो हवा का ही है।'
आचार्य ने सोचा— एक साधारण आदमी भी इस प्रश्न का समाधान दे रहा है कि दृति के भीतर हवा है, उसका प्रभाव है, इसलिए दृति तैर रही है फिर मैं क्यों उलझू? मैं भी यह मान लूं कि जो व्यक्ति संसार सागर को पार कर रहे हैं, उनके हृदय में आप हैं इसलिए वे पार कर रहे हैं। मैं क्यों अपने आपको तारक मानूं?
कभी-कभी छोटे लोग भी बड़ी समस्या को सुलझा देते हैं। कवि ने साधारण व्यक्ति का सहारा लिया और प्रश्न सुलझ गया कि आप तारक हो सकते हैं। संसार समुद्र को पार करने वाले आपको हृदय में बिठाते हैं तभी वे तरते हैं। यह प्रभाव किसका हुआ? जैसे हवा के कारण थैली तैरती है, वैसे ही आपके प्रभाव से भक्तजन संसार समुद्र को तर जाते हैं। जिसका प्रभाव होता है उसे तारक कहने में कोई कठिनाई नहीं लगती। अब में कह सकता हूं कि आप तारक हैं। समस्या थी और समाधान हो गया।
*समस्याओं को कैसे सुलझाया जा सकता है...?* समझेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
जैन परंपरा में सृजित प्रभावक स्तोत्रों एवं स्तुति-काव्यों में से एक है *भगवान पार्श्वनाथ* की स्तुति में आचार्य सिद्धसेन दिवाकर द्वारा रचित *कल्याण मंदिर स्तोत्र*। जो जैन धर्म की दोनों धाराओं— दिगंबर और श्वेतांबर में श्रद्धेय है। *कल्याण मंदिर स्तोत्र* पर प्रदत्त आचार्यश्री महाप्रज्ञ के प्रवचनों से प्रतिपादित अनुभूत तथ्यों व भक्त से भगवान बनने के रहस्य सूत्रों का दिशासूचक यंत्र है... आचार्यश्री महाप्रज्ञ की कृति...
🔱 *कल्याण मंदिर - अंतस्तल का स्पर्श* 🔱
🕉️ *श्रृंखला ~ 34* 🕉️
*10. कौन है तारक?*
भगवान् पार्श्व की स्तुति करते-करते आचार्य के मन में प्रश्न पैदा हो गया— प्रभो! लोग कहते हैं— *त्वं तारकः*— आप तारक हैं, आप संसार समुद्र से तारने वाले हैं। किन्तु यह बात संगत नहीं लग रही है। आप तारक कैसे बने? जो व्यक्ति इस संसार समुद्र को पार करते हैं, वे आपको हृदय में धारण करते हैं। वे आपको तार रहे हैं, वे आपको ले जा रहे हैं फिर आप तारक कैसे हुए?
'नमोत्थुणं' में एक पद है तिन्नाणं तारयाणं। तीर्थकर तारक होते हैं, तारने वाले होते हैं। वे पोत हैं, नौका हैं। किन्तु तारक कब और कैसे बनते हैं? एक व्यक्ति आपको हृदय में स्थापित कर लेता है और वह तरता है। आप तो उसके हृदय में हैं। अतः तारने वाला तो वह हो गया। आपको वह ले जाता है। ले जाने वाला बड़ा है या ले जाई जाने वाली वस्तु? वह स्वयं तो तर रहा है और आपको हृदय में बिठा रखा है। इसका मतलब हुआ— वह आपको तार रहा है फिर आप तारक कैसे बने?
*त्वामुद्वहन्ति हृदयेन*— भक्त आपको हृदय में वहन कर रहा है फिर आप तारक कैसे बने? एक व्यक्ति तैर रहा है, उसके शरीर पर कपड़ा ओढ़ा हुआ है। कोई कहे, कपड़ा तार रहा है। कपड़ा कैसे तार रहा है? वह स्वयं तैर रहा है। आप तारक कैसे बने?
एक गंभीर प्रश्न उपस्थित किया है और प्रश्न के साथ समाधान भी दिया है। आचार्य कहते हैं— यह ठीक है कि वह व्यक्ति तर रहा है। किन्तु आप उसके हृदय में हैं इसलिए तर रहा है। प्रभाव किसका है?
एक उदाहरण प्रस्तुत कर रहा हूं। हनुमान ने पत्थर पर 'राम' लिखा, सब पत्थर तिर गए। स्वयं राम ने जो पत्थर फेंका, वह डूब गया। राम को आश्चर्य हुआ। यह कैसे हुआ? तब हनुमान बोले— प्रभो! आप इसे समझ नहीं पाएंगे। उन सब पर राम नाम लिखा हुआ था। आपने जो पत्थर फेंका उस पर राम नाम अंकित नहीं था।
तारने वाला जो है उसका प्रभाव कहां है? इस बात को समझाने के लिए आचार्य ने एक सुन्दर उदाहरण दिया है। किसी व्यक्ति से पूछा गया— दृति, जिसे मारवाड़ी में दीवड़ी कहते हैं, वह पानी में तैरती है। उसमें हवा है इसलिए तैरती है या बिना हवा के तैरती है?
उत्तर मिला— उसमें हवा है इसलिए वह तैरती है।
'जो थैली तैर रही है, उसमें थैली का प्रभाव है या हवा का।'
उत्तर दिया गया— 'प्रभाव तो हवा का ही है।'
आचार्य ने सोचा— एक साधारण आदमी भी इस प्रश्न का समाधान दे रहा है कि दृति के भीतर हवा है, उसका प्रभाव है, इसलिए दृति तैर रही है फिर मैं क्यों उलझू? मैं भी यह मान लूं कि जो व्यक्ति संसार सागर को पार कर रहे हैं, उनके हृदय में आप हैं इसलिए वे पार कर रहे हैं। मैं क्यों अपने आपको तारक मानूं?
कभी-कभी छोटे लोग भी बड़ी समस्या को सुलझा देते हैं। कवि ने साधारण व्यक्ति का सहारा लिया और प्रश्न सुलझ गया कि आप तारक हो सकते हैं। संसार समुद्र को पार करने वाले आपको हृदय में बिठाते हैं तभी वे तरते हैं। यह प्रभाव किसका हुआ? जैसे हवा के कारण थैली तैरती है, वैसे ही आपके प्रभाव से भक्तजन संसार समुद्र को तर जाते हैं। जिसका प्रभाव होता है उसे तारक कहने में कोई कठिनाई नहीं लगती। अब में कह सकता हूं कि आप तारक हैं। समस्या थी और समाधान हो गया।
*समस्याओं को कैसे सुलझाया जा सकता है...?* समझेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 277* 📜
*श्री जयाचार्य*
*युवाचार्य-पद पर*
*गली निकालिये*
ऋषिराय ने युवाचार्य जय को विक्रम सम्वत् 1907 का चतुर्मास बीदासर करने की आज्ञा प्रदान की। वे आषाढ़ मास में चतुर्मास करने के लिए बीदासर पहुंच गये। ऋषिराय अपना चतुर्मास करने के लिये जयपुर पधार चुके थे। वहां पर बीकानेर के प्रमुख श्रावक मदनचन्दजी राखेचा आदि ने ऋषिराय के पास प्रार्थना भेजी कि इस वर्ष युवाचार्य जय को पुनः बीकानेर चतुर्मास करने की आज्ञा दी जाए। यहां अच्छा उपकार होने का अवसर है। मदनचन्दजी जैसे महत्त्वपूर्ण और विश्वसनीय व्यक्ति ने प्रार्थना करवाई थी, अतः ऋषिराय ने उस पर तत्काल ध्यान दिया और उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। युवाचार्यश्री पिछले वर्ष बीकानेर चतुर्मास कर चुके थे, अतः इस वर्ष का चतुर्मास वहां तभी कल्प सकता था जब कोई दीक्षा-वृद्ध साधु उनके साथ रहे। इसलिए मुनि सरूपचन्दजी को साथ लेकर वहां चतुर्मास करने के लिये उन्हें आदेश दिया गया।
जब ये समाचार बीदासर पहुंचे तो वहां के भाइयों को यह परिवर्तन काफी खटका। गरमी के दिन थे, लू इतनी तेज चल रही थी कि दुपहरी में घर से बाहर निकलना एक साहस का ही काम हो रहा था। मार्ग के छोटे ग्रामों में अचित्त पानी का योग मिलना भी काफी दुष्कर था। इन सब कठिनाइयों को सामने रखते हुए लोगों ने युवाचार्यश्री से वहीं चतुर्मास करने की प्रार्थना की। सहवर्ती साधुओं का मन भी विहार करने से कसमसा रहा था।
युवाचार्यश्री ने ध्यानपूर्वक सबकी बातें सुनीं और कहा– 'तुम कहते हो वह सब ठीक है, पर गुरुदेव की जो आज्ञा है, वह तो इन सबसे ऊपर है। उसकी पूर्ति तो होनी ही चाहिये।'
उपस्थित लोगों में से किसी एक ने कहा– 'आचार्यश्री की आज्ञा तो है, पर आप उसमें कोई गली निकालिये।'
युवाचार्यश्री ने तत्काल उसे टोकते हुए कहा— 'यह तुम क्या कह रहे हो? गली तो कोई 'गोला' या कामचोर ही निकालता है। यह तो सद्गुरु की आज्ञा है, इसमें गली निकालने जैसी कोई बात नहीं होती।'
युवाचार्य जय अनुशासन की दृढ़ता में विश्वास रखने वाले व्यक्ति थे। अनुशासन भंग करने तथा उसमें गली निकालने को वे अक्षम्य अपराध मानते थे। इसलिये उन्होंने उस भयंकर गरमी में भी वहां से आषाढ़ शुक्ला 2 को विहार कर दिया। युवाचार्यश्री तथा मुनि सरूपचन्दजी आदि— उस समय वे दस मुनि थे। गरमी के भयंकर कष्ट झेलते हुए वे आषाढ़ शुक्ला 10 को बीकानेर पहुंच गये। एक दिन तो उस विहार में उन्हें जल के अभाव में तृषा का मरणांत-सदृश कष्ट भी उठाना पड़ा।
*बीकानेर चातुर्मास में युवाचार्य जय के पांडित्य का सभी संप्रदायों के लोगों पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा...* जानेंगे... एक घटना प्रसंग के माध्यम से... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 277* 📜
*श्री जयाचार्य*
*युवाचार्य-पद पर*
*गली निकालिये*
ऋषिराय ने युवाचार्य जय को विक्रम सम्वत् 1907 का चतुर्मास बीदासर करने की आज्ञा प्रदान की। वे आषाढ़ मास में चतुर्मास करने के लिए बीदासर पहुंच गये। ऋषिराय अपना चतुर्मास करने के लिये जयपुर पधार चुके थे। वहां पर बीकानेर के प्रमुख श्रावक मदनचन्दजी राखेचा आदि ने ऋषिराय के पास प्रार्थना भेजी कि इस वर्ष युवाचार्य जय को पुनः बीकानेर चतुर्मास करने की आज्ञा दी जाए। यहां अच्छा उपकार होने का अवसर है। मदनचन्दजी जैसे महत्त्वपूर्ण और विश्वसनीय व्यक्ति ने प्रार्थना करवाई थी, अतः ऋषिराय ने उस पर तत्काल ध्यान दिया और उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। युवाचार्यश्री पिछले वर्ष बीकानेर चतुर्मास कर चुके थे, अतः इस वर्ष का चतुर्मास वहां तभी कल्प सकता था जब कोई दीक्षा-वृद्ध साधु उनके साथ रहे। इसलिए मुनि सरूपचन्दजी को साथ लेकर वहां चतुर्मास करने के लिये उन्हें आदेश दिया गया।
जब ये समाचार बीदासर पहुंचे तो वहां के भाइयों को यह परिवर्तन काफी खटका। गरमी के दिन थे, लू इतनी तेज चल रही थी कि दुपहरी में घर से बाहर निकलना एक साहस का ही काम हो रहा था। मार्ग के छोटे ग्रामों में अचित्त पानी का योग मिलना भी काफी दुष्कर था। इन सब कठिनाइयों को सामने रखते हुए लोगों ने युवाचार्यश्री से वहीं चतुर्मास करने की प्रार्थना की। सहवर्ती साधुओं का मन भी विहार करने से कसमसा रहा था।
युवाचार्यश्री ने ध्यानपूर्वक सबकी बातें सुनीं और कहा– 'तुम कहते हो वह सब ठीक है, पर गुरुदेव की जो आज्ञा है, वह तो इन सबसे ऊपर है। उसकी पूर्ति तो होनी ही चाहिये।'
उपस्थित लोगों में से किसी एक ने कहा– 'आचार्यश्री की आज्ञा तो है, पर आप उसमें कोई गली निकालिये।'
युवाचार्यश्री ने तत्काल उसे टोकते हुए कहा— 'यह तुम क्या कह रहे हो? गली तो कोई 'गोला' या कामचोर ही निकालता है। यह तो सद्गुरु की आज्ञा है, इसमें गली निकालने जैसी कोई बात नहीं होती।'
युवाचार्य जय अनुशासन की दृढ़ता में विश्वास रखने वाले व्यक्ति थे। अनुशासन भंग करने तथा उसमें गली निकालने को वे अक्षम्य अपराध मानते थे। इसलिये उन्होंने उस भयंकर गरमी में भी वहां से आषाढ़ शुक्ला 2 को विहार कर दिया। युवाचार्यश्री तथा मुनि सरूपचन्दजी आदि— उस समय वे दस मुनि थे। गरमी के भयंकर कष्ट झेलते हुए वे आषाढ़ शुक्ला 10 को बीकानेर पहुंच गये। एक दिन तो उस विहार में उन्हें जल के अभाव में तृषा का मरणांत-सदृश कष्ट भी उठाना पड़ा।
*बीकानेर चातुर्मास में युवाचार्य जय के पांडित्य का सभी संप्रदायों के लोगों पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा...* जानेंगे... एक घटना प्रसंग के माध्यम से... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
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🪔 *ज्ञान चेतना वर्ष के अन्तर्गत..* 🛐
🖊 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी की* कृति *"रहो भीतर जिओ बाहर"* 🙏
🏛 *जैन विश्व भारती* द्वारा प्रकाशित..
👉 यह पुस्तक अब *उपलब्ध हैं।* शीघ्र *बुकिंग* करवाकर सुरक्षित करवाएं।
*सम्पर्क सूत्र: 8742004849, 7002359890*
*मीडिया एवं प्रचार प्रसार विभाग*
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