Updated on 20.03.2020 20:27
🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला ४४६* ~ *प्राण ऊर्जा का संवर्धन - ७*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
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🌻 *संघ संवाद* 🌻
Updated on 20.03.2020 20:27
🌸 *कोरोना वायरस के संदर्भ में तेरापंथ समाज से विनम्र निवेदन-*🌸♦️ *परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमण द्वारा इस संदर्भ में आध्यात्मिक संपोषण के रूप में प्रदत्त प्रेरणा और निर्देशों का अनुपालन करें।*
♦️ *गुरुकुलवास में फिलहाल संघबद्ध रूप में न जाएं। पश्चिम महाराष्ट्र तथा मराठवाड़ा महाराष्ट्र के श्रद्धालुओं के सिवाय व्यक्तिगत रूप में अथवा डेरे के रूप में जाने से पूर्व महासभा के पूर्व अध्यक्ष श्री किशनलाल डागलिया मो. नं. 9869204725 से स्वीकृति प्राप्त करें।*
♦️ *भय और तनाव से दूर रहते हुए अपेक्षित सावधानी बरतें।*
♦️ *प्रशासन के निर्देशों का पालन कर उनका सहयोग करें।*
♦️ *देश-विदेश में प्रवासित साधु-साध्वियों व समण-समणियों के यात्रा, प्रवास, स्वास्थ्य और गोचरी के प्रति पूर्ण सजग रहें।*
♦️ *22 मार्च 2020 को सभी चारित्रात्माओं व समणश्रेणी का प्रवास किसी एक व्यवस्थित स्थान पर हो सके, उस दिन विहार-यात्रा न हो और उनके आहार-पानी आदि में असुविधा न हो, इस हेतु पूर्ण जागरूक रहें।*
🙏🏼
*निवेदक*
*जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा*
🌻संघ संवाद🌻
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🪔🪔🪔🪔🙏🌸🙏🪔🪔🪔🪔जैन परंपरा में सृजित प्रभावक स्तोत्रों एवं स्तुति-काव्यों में से एक है *भगवान पार्श्वनाथ* की स्तुति में आचार्य सिद्धसेन दिवाकर द्वारा रचित *कल्याण मंदिर स्तोत्र*। जो जैन धर्म की दोनों धाराओं— दिगंबर और श्वेतांबर में श्रद्धेय है। *कल्याण मंदिर स्तोत्र* पर प्रदत्त आचार्यश्री महाप्रज्ञ के प्रवचनों से प्रतिपादित अनुभूत तथ्यों व भक्त से भगवान बनने के रहस्य सूत्रों का दिशासूचक यंत्र है... आचार्यश्री महाप्रज्ञ की कृति...
🔱 *कल्याण मंदिर - अंतस्तल का स्पर्श* 🔱
🕉️ *श्रृंखला ~ 35* 🕉️
*10. कौन है तारक?*
गतांक से आगे...
आज दुनिया में बहुत सारी समस्याएं हैं, वे क्यों नहीं सुलझ रही हैं? इसलिए कि एकात्मकता का प्रयोग नहीं हो रहा है। जब तक समस्या और समस्या सुलझाने वालों में एकात्मकता नहीं होती तब तक समस्या का समाधान नहीं होता। एक छोटी-सी कहानी से इस बात को हम आसानी से समझ सकते हैं।
भिखारी भीख मांगने के लिए एक विशाल मकान के द्वार पर गया। मकान मालिक से कहा— 'कुछ दो।'
मालिक— 'अभी मेरे पास कुछ नहीं है।'
भिखारी— 'रोटी दे दो।'
मालिक— 'रोटी नहीं बनी है।'
भिखारी— 'कपड़ा दे दो।'
मालिक— 'कपड़ा नहीं है।'
भिखारी— 'पुराना कपड़ा ही दे दो।'
मालिक— 'वह भी नहीं है।'
भिखारी मांगता गया। मालिक नकारता गया।
भिखारी— 'फिर इतने बड़े मकान में क्यों बैठे हो? मेरे साथ आ जाओ, दोनों भीख मांगते हैं।'
भिखारी की समस्या क्यों नहीं सुलझी? उसका कारण क्या है? देने वाले और मांगने वाले में एकात्मकता नहीं है। मांगने वाले में जो पीड़ा है, उसकी अनुभूति देने वाले में नहीं है। वह यह नहीं सोच रहा है कि बेचारा भूखा है। मेरे घर में इतना धन है, मुझे थोड़ा सा देने में क्या कठिनाई है। यह संवेदनहीनता एकात्मकता की अनुभूति में बाधक बनती है। यदि समस्याग्रस्त और समाधानकर्ता में एकात्मकता हो जाए तो बहुत समस्याएं सुलझ सकती हैं।
इस संदर्भ में यह श्लोक बहुत सुन्दर बोध-पाठ दे रहा है कि तुम समस्या से पार जाना चाहते हो तो एकात्मकता स्थापित करो। जब तक भेद बना रहेगा, समस्या नहीं सुलझेगी। तुम्हें अभेद में जाना होगा। मीरा ने गिरधर कृष्ण के साथ एकात्मकता स्थापित कर ली। गिरधर कहां था? वह मीरा के सामने नहीं था किन्तु मीरा ने एकात्मकता स्थापित की और अपने लक्ष्य तक पहुंच गई। ध्यान करने वालों को यह सोचना है कि जिसका ध्यान कर रहे हैं उसके साथ एकात्मकता हो रही है या नहीं? 'णमो अरहंताणं' इस मंत्र में हम अर्हत् को नमस्कार करते हैं, जप करते हैं। यदि तन्मयता के साथ करो तो अनुभव होगा— अर्हत् के साथ तुम्हारी एकात्मकता हो रही है। जब तुम ध्यान करो, चिंतन करो, संकल्प करो, वैसा तुम्हारे भीतर घटित होना शुरू हो जाएगा और धीरे-धीरे तुम वैसे बन जाओगे।
तुम जिसके साथ जुड़ना चाहते हो या तादात्म्य चाहते हो, जिसे पाना चाहते हो, उस रूप में तुम स्वयं परिणत हो जाओगे, तुम स्वयं अर्हत् बन जाओगे, फिर तुम्हें 'णमो अरहंताणं' कहने की जरूरत नहीं होगी। जब व्यक्ति तादात्म्य की स्थिति में पहुंच जाता है तब वह स्वयं उस रूप में बदल जाता है। मिट्टी स्वयं घड़ा बन जाती है। फिर मिट्टी और घड़ा अलग नहीं रहते। मिट्टी में पानी को रखने की शक्ति नहीं है। वही मिट्टी जब घट रूप में परिणत हो जाती है तो जल-धारण करने की शक्ति प्राप्त कर लेती है। तर्कशास्त्र में कहते हैं— उपादान स्वयं सामने आ गया।
इस श्लोक में एक बहुत सुन्दर दर्शन प्रस्तुत किया गया है कि तुम चाहो कि पार्श्व मुझे तारें तो वे कभी नहीं तार सकेंगे। पार्श्व को तुम तारो तो पार्श्व तुम्हें तार देगा। वह तुमसे भिन्न रहकर तुमको नहीं तारेगा। उसको हृदय में बिठा लो तो वह तार देगा।
*सफलता का सूत्र क्या है...?* जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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Updated on 20.03.2020 20:27
🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 278* 📜
*श्री जयाचार्य*
*युवाचार्य-पद पर*
*आप सही हैं*
युवाचार्य जय का विक्रम सम्वत् 1907 का चतुर्मास बीकानेर के लिये अत्यन्त उपयोगी रहा। पिछले सभी चतुर्मासों की अपेक्षा उसमें अधिक उपकार हुआ। अनेक नये परिवार श्रद्धाशील बने। अन्य जैनों पर उस चतुर्मास में युवाचार्यश्री के पांडित्य का व्यापक प्रभाव पड़ा। अग्रोक्त घटना उसके साक्ष्य में उद्धृत की जा सकती है—
एक दिन प्रभात के समय युवाचार्यश्री आदि मुनि स्थंडिलभूमि की ओर जा रहे थे। रांगड़ी चौक में बड़े उपाश्रय के पास उन्हें मूर्तिपूजक सम्प्रदाय के प्रमुख श्रावक भैरूंदानजी ढड्ढा मिल गये। उन्हीं दिनों वहां नागौर से एक बड़ा संघ आया हुआ था। उसी विषय में बातचीत करते समय 'साधर्मिक वात्सल्य' का प्रसंग चल पड़ा। ढड्ढाजी ने कहा— 'यह तो आगमोक्त है। वैयावृत्ति के प्रकरण में *संघ वेयावच्चे* पाठ आया है। उसमें यही तो कहा गया है कि संघ की वैयावृत्ति करना महान् लाभ का कारण है। संघ में साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका ये चारों ही आ जाते हैं।'
युवाचार्य जय ने कहा— 'ढड्ढाजी! वैयावृत्ति के प्रकरण में 'संघ' शब्द का अर्थ 'चतुर्विध संथ' नहीं किया गया है। वहां तो साधर्मिक साधु-साध्वियों के गण-समूह को संघ कहा गया है।'
ढड्ढाजी ने प्रतिवाद करते हुए कहा— 'नहीं महाराज! वहां तो 'चतुर्विध संघ' का ही अर्थ किया गया है।'
युवाचार्यश्री ने कहा— 'नहीं ढड्ढाजी! वहां यह अर्थ नहीं मिलेगा।'
ढड्ढाजी ने आग्रहपूर्वक फिर कहा— 'यही अर्थ मिलेगा। सन्देह हो तो यह पास में ही उपाश्रय रहा। आप वहां चलिये और आगम-पाठ को देखकर निर्णय कर लीजिए।'
युवाचार्यश्री ने उनके कथन को स्वीकार किया और उपाश्रय की ओर कदम बढ़ा दिये। कुछ ही कदम चले थे कि वे एकाएक रुक गये। गम्भीर मुद्रा में उन्होंने ढड्ढाजी से कहा— 'यदि मैं कहता हूं वही अर्थ निकल गया तो?'
ढड्ढाजी ने आत्मविश्वास के साथ कहा— 'आप कहते हैं वह अर्थ निकलेगा तो उसे मैं मानूंगा, किन्तु मैं कहता हूं वह निकल गया तो उसे आपको मानना पड़ेगा।'
युवाचार्यश्री ने आश्वस्त भाव से कहा— 'यह ठीक है।'
चौक में परस्पर यह बात काफी देर तक चलती रही थी। आस-पास में अधिकांश घर जेनों के ही थे, अतः कुछ ही समय में यहां सैकड़ों व्यक्ति एकत्रित हो गये। युवाचार्यश्री उपाश्रय में पधारे तब तक बात चारों ओर फैल गई। संवेगी तथा स्थानकवासी समाज के अनेक प्रमुख श्रावक वहां आ पहुंचे। उपाश्रय में उस समय स्वयं श्रीपूज्य उपस्थित नहीं थे। उनके प्रमुख शिष्य यति हंसराजजी वहां थे। युवाचार्य जय ने उनसे 'ओववाइय' की टीका दिखलाने को कहा। यतिजी ने तत्काल पुस्तक-भण्डार में से निर्दिष्ट प्रति निकाली और युवाचार्य के सम्मुख रख दी। युवाचार्यश्री ने चर्चित प्रकरण निकालकर पत्र को ढड्ढाजी की ओर बढ़ाते हुए फरमाया— 'यह देखिये और फिर पढ़कर सबको सुना दीजिये।' ढड्ढाजी ने नम्रतापूर्वक कहा— 'नहीं-नहीं, मैं इस कार्य का अधिकारी नहीं हूं। इसमें जो लिखा हो वह आप ही पढ़कर सुना दीजिये।'
युवाचार्यश्री ने तब उच्च स्वर से सूत्र पाठ तथा उसका अर्थ पढ़कर उपस्थित लोगों को सुनाया और यति हंसराजजी से पूछा— 'क्यों यतिजी। प्रति में जो लिखा गया है वही इस पाठ का ठीक अर्थ है न?' यतिजी ने स्वीकृति-सूचक सिर हिलाते हुए कहा— 'हां, यही बिल्कुल सही अर्थ है।' युवाचार्यश्री ने तब ढड्ढाजी की ओर उन्मुख होते हुए फरमाया— 'क्यों ढड्ढाजी! अब तो आपको यह अर्थ मान्य होगा?' ढड्ढाजी ने हाथ जोड़ते हुए कहा— 'ऐसा ढीठ कौन हो सकता है जो जिनवचनों का उत्थापन करे! वस्तुतः आपने जो कहा था, वही अर्थ प्रति में निकला है। आप सही हैं, मैं गलती पर था।'
इसके पश्चात् युवाचार्य जय वहां से पधार गये। लोग भी अपने-अपने घर चले गये। उपाश्रय में चर्चा होने और उसमें युवाचार्यश्री द्वारा बतलाये गये अर्थ के ठीक निकलने की बात नगर में सर्वत्र फैल गई। उस चर्चा से सभी सम्प्रदायों के लोगों पर युवाचार्यश्री के पाण्डित्य का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा।
*संघ-व्यवस्था में युवाचार्य जय की सजगता...* के बारे में जानेंगे... एक घटना प्रसंग के माध्यम से... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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卐🌼🔺🕉अर्हम् 🕉 🔺🌼卐
🌸 *परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी की अहिंसा यात्रा* 🌸
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*(संभावित कार्यक्रम)*
*20 मार्च 2020, शुक्रवार*
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*प्रवास स्थल*
देशमुख प्रशाला व ज्युनियर कोलेज
SH149, Kamti, बुर्जुग मे Maharashtra 413253
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*लोकेशन जानने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करे*
https://maps.app.goo.gl/bM6cMtCLb9LaypYW8
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*संभावित यात्रा 12 Km*
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*प्रस्तुति 🌻संघ संवाद*🌻
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