Posted on 08.09.2022 14:27
साध्वीप्रमुखा साध्वी विश्रुतविभाजी आचार्य भिक्षु के परिश्रमपूर्ण जीवन और समाधि मृत्यु (संथारा) करने आदि प्रसंगों के...साध्वीप्रमुखा साध्वी विश्रुतविभाजी
मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी आचार्य भिक्षु के जीवनवृत्त को व्याख्यायित....
मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी आचार्य भिक्षु के जीवनवृत्त को व्याख्यायित....
🌸 220वां भिक्षु चरमोत्सव : भिक्षु पट्टधर महाश्रमण की मंगल सन्निधि में मंगल आयोजन 🌸
-ज्ञानवेत्ता, विधिवेत्ता थे महामना आचार्य भिक्षु : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण
-आचार्यश्री ने अनेक गीतों का किया संगान, माहौल हुआ भक्तिमय
-साध्वीप्रमुखाजी और मुख्यमुनिश्री ने भी अपने आद्य आचार्य का किया गुणानुवाद
-चतुर्विध धर्मसंघ ने अपने आद्य आचार्य के प्रति अर्पित की अपनी विनयांजलि
08.09.2022, गुरुवार, छापर, चूरू (राजस्थान) :
जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के आद्य प्रवर्तक आचार्य महामना भिक्षु का 220वां चरमोत्सव उनके परंपर पट्टधर, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, शांतिदूत, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में छापर के आचार्य कालू महाश्रमण समवसरण में भव्य एवं आध्यात्मिक रूप में समायोजित हुआ।
220वें भिक्षु चरमोत्सव का मुख्य प्रवचन कार्यक्रम आचार्यश्री महाश्रमणजी के चतुर्मास प्रवास स्थल के निकट बने आचार्य कालू महाश्रमण समवसरण में आयोजित हुआ। आचार्यश्री के पदार्पण से पूर्व ही प्रवचन पण्डाल भरा हुआ था। आज के आध्यात्मिक कार्यक्रम का शुभारम्भ आचार्यश्री के महामंत्रोच्चार के साथ हुआ। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने आचार्य भिक्षु के जीवनवृत्त को व्याख्यायित किया। मुमुक्षुवृंद ने इस अवसर पर गीत का संगान किया। साध्वी साधनाश्रीजी, साध्वी मंजूप्रभाजी ने गीत का संगान किया। साध्वीप्रमुखा साध्वी विश्रुतविभाजी ने आचार्य भिक्षु के परिश्रमपूर्ण जीवन और समाधि मृत्यु (संथारा) का वरण करने आदि प्रसंगों का वर्णन किया। तेरापंथ युवक परिषद- छापर ने गीत का संगान किया। मुनिवृंद द्वारा भी गीत का संगान किया गया।
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपने मंगल उद्बोधन में कहा कि दसवेंआलियं के दसवें अध्ययन के अनेक श्लोकों में भिक्षु शब्द आता रहता है। भिक्षा करने वालों को भिक्षु कहा जाता है। साधु का पर्यायवाची शब्द भी भिक्षु है। साधु बनने के बाद भिक्षा करना होता है तो साधु भिक्षु ही कहा जाता है। हमारे तेरापंथ धर्मसंघ के प्रथम प्रवर्तक, संस्थापक आचार्य भिक्षु का आज 220वां चरमोत्सव है। आज के ही दिन उनका महाप्रयाण हुआ था। उनका जीवन विशिष्ट था। उनके जीवन में अनेक संघर्ष आए, किन्तु वे सदैव आगे बढ़ते रहे। वे तेरापंथ के संस्थापक आचार्य थे। उनके द्वारा रचित मर्यादा-व्यवस्था, सिद्धांत जो आज भी हमारे धर्मसंघ में प्राणभूत बने हुए हैं। यदि किसी को तेरापंथ को जानना है तो उसे तेरापंथ के इतिहास, सिद्धांत और मर्यादा व्यवस्था को जानना पड़ेगा। तेरापंथ धर्मसंघ के इतिहास को पढ़कर भी जाना जा सकता है। मुनिश्री बुद्धमलजी द्वारा लिखित पुरानी एक ही पुस्तक में तेरापंथ के आठ पूर्वाचार्यों के जीवनवृत्त को पढ़ा जा सकता है। उन्होंने एक ही वैल्यूम में आठ आचार्यों के जीवनकाल का वर्णन किया है। आचार्यश्री तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के जीवन का वर्णन का कार्य तो चल रहा है, देखें वह कब तक इस रूप में आ सकता है। आचार्य तुलसी के जीवन के संदर्भ में हमारी साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी लिख रही थीं, लेकिन वे अब नहीं रहीं तो उसे मुनिश्री धर्मरुचिजी आदि के द्वारा हो रहा है। आचार्यश्री ने इस प्रकार तेरापंथ धर्मसंघ के अनेक साधु-साध्वियों के संदर्भ में फरमाते हुए कहा कि आचार्य भिक्षु ज्ञानवेत्ता और विधिवेत्ता थे। वे ज्ञान वैभव से सम्पन्न थे। आचार्य भिक्षु के जीवन से ज्ञान की प्रेरणा प्राप्त की जा सकती है। मैं परम पूज्य आचार्यश्री भिक्षु के प्रति अपनी श्रद्धाप्रणति अर्पित करता हूं।
आचार्यश्री ने इस अवसर पर स्वरचित गीत ‘प्रतिदिन ध्याएं, शुभ सुख पाएं...’ गीत का संगान किया। तदुपरान्त आचार्यश्री ने आचार्य भिक्षु से संदर्भित कई गीतों का आंशिक-आंशिक संगान करना प्रारम्भ किया तो मानों मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में ही धम्म जागरण-सा माहौल बन गया। आचार्यश्री ने मुमुक्षु बाइयों को भी इस अवसर पर विशेष प्रेरणा प्रदान की। कार्यक्रम में श्रीमती विमलादेवी कोठारी ने आचार्यश्री से 21 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। आचार्यश्री पट्ट से नीचे उतरे और खड़े हुए तो चतुर्विध धर्मसंघ भी आचार्यश्री के साथ अपने-अपने स्थान पर खड़ा हो गया। तदुपरान्त आचार्यश्री ने संघगान किया।
चार आत्माएं बनेगीं चारित्रात्माएं
तेरापंथ के अष्टम आचार्य कालूगणी की धरा पर 9 सितम्बर को तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी चार मुमुक्षुओं को दीक्षा प्रदान करेंगे। ये चारों आत्माएं आचार्यश्री से दीक्षा प्राप्त कर चारित्रात्माएं बन जाएंगी। भिवानी-हरियाणा के मुमुक्षु अश्विनी (एम.कॉम. एल.एल.बी), विराटनगर-नेपाल की मुमुक्षु दीक्षा (एम.ए), दक्षिण हावड़ा-कोलकाता की मुमुक्षु रोशनी (एम.ए.) तथा काठमाण्डो-नेपाल की मुमुक्षु तारा (इंटरमीडिएट) को आचार्यश्री मुनि/साध्वी दीक्षा प्रदान करेंगे।
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08.09.2022, गुरुवार, छापर, चूरू (राजस्थान) :
जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के आद्य प्रवर्तक आचार्य महामना भिक्षु का 220वां चरमोत्सव उनके परंपर पट्टधर, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, शांतिदूत, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में छापर के आचार्य कालू महाश्रमण समवसरण में भव्य एवं आध्यात्मिक रूप में समायोजित हुआ।
220वें भिक्षु चरमोत्सव का मुख्य प्रवचन कार्यक्रम आचार्यश्री महाश्रमणजी के चतुर्मास प्रवास स्थल के निकट बने आचार्य कालू महाश्रमण समवसरण में आयोजित हुआ। आचार्यश्री के पदार्पण से पूर्व ही प्रवचन पण्डाल भरा हुआ था। आज के आध्यात्मिक कार्यक्रम का शुभारम्भ आचार्यश्री के महामंत्रोच्चार के साथ हुआ। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने आचार्य भिक्षु के जीवनवृत्त को व्याख्यायित किया। मुमुक्षुवृंद ने इस अवसर पर गीत का संगान किया। साध्वी साधनाश्रीजी, साध्वी मंजूप्रभाजी ने गीत का संगान किया। साध्वीप्रमुखा साध्वी विश्रुतविभाजी ने आचार्य भिक्षु के परिश्रमपूर्ण जीवन और समाधि मृत्यु (संथारा) का वरण करने आदि प्रसंगों का वर्णन किया। तेरापंथ युवक परिषद- छापर ने गीत का संगान किया। मुनिवृंद द्वारा भी गीत का संगान किया गया।
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपने मंगल उद्बोधन में कहा कि दसवेंआलियं के दसवें अध्ययन के अनेक श्लोकों में भिक्षु शब्द आता रहता है। भिक्षा करने वालों को भिक्षु कहा जाता है। साधु का पर्यायवाची शब्द भी भिक्षु है। साधु बनने के बाद भिक्षा करना होता है तो साधु भिक्षु ही कहा जाता है। हमारे तेरापंथ धर्मसंघ के प्रथम प्रवर्तक, संस्थापक आचार्य भिक्षु का आज 220वां चरमोत्सव है। आज के ही दिन उनका महाप्रयाण हुआ था। उनका जीवन विशिष्ट था। उनके जीवन में अनेक संघर्ष आए, किन्तु वे सदैव आगे बढ़ते रहे। वे तेरापंथ के संस्थापक आचार्य थे। उनके द्वारा रचित मर्यादा-व्यवस्था, सिद्धांत जो आज भी हमारे धर्मसंघ में प्राणभूत बने हुए हैं। यदि किसी को तेरापंथ को जानना है तो उसे तेरापंथ के इतिहास, सिद्धांत और मर्यादा व्यवस्था को जानना पड़ेगा। तेरापंथ धर्मसंघ के इतिहास को पढ़कर भी जाना जा सकता है। मुनिश्री बुद्धमलजी द्वारा लिखित पुरानी एक ही पुस्तक में तेरापंथ के आठ पूर्वाचार्यों के जीवनवृत्त को पढ़ा जा सकता है। उन्होंने एक ही वैल्यूम में आठ आचार्यों के जीवनकाल का वर्णन किया है। आचार्यश्री तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के जीवन का वर्णन का कार्य तो चल रहा है, देखें वह कब तक इस रूप में आ सकता है। आचार्य तुलसी के जीवन के संदर्भ में हमारी साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी लिख रही थीं, लेकिन वे अब नहीं रहीं तो उसे मुनिश्री धर्मरुचिजी आदि के द्वारा हो रहा है। आचार्यश्री ने इस प्रकार तेरापंथ धर्मसंघ के अनेक साधु-साध्वियों के संदर्भ में फरमाते हुए कहा कि आचार्य भिक्षु ज्ञानवेत्ता और विधिवेत्ता थे। वे ज्ञान वैभव से सम्पन्न थे। आचार्य भिक्षु के जीवन से ज्ञान की प्रेरणा प्राप्त की जा सकती है। मैं परम पूज्य आचार्यश्री भिक्षु के प्रति अपनी श्रद्धाप्रणति अर्पित करता हूं।
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