अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल खूब धार्मिक आध्यात्मिक विकास करता रहे..
🌸 नवदीक्षित चारित्रात्माओं को महातपस्वी महाश्रमण ने प्रदान की बड़ी दीक्षा 🌸
-आर्षवाणी के साथ नवदीक्षित साधु-साध्वियां छेदोपस्थापनीय चारित्र में हुए स्थापित
-जब तक रहेगी चंचलता, नहीं मिल सकती है मुक्ति : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण
-47वें राष्ट्रीय महिला अधिवेशन में शामिल देश भर की महिलाएं पूज्य सन्निधि में
16.09.2022, शुक्रवार, छापर, चूरू (राजस्थान) :
जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में शुक्रवार को नवदीक्षित साधु-साध्वियों की बड़ी दीक्षा का कार्यक्रम समायोजित हुआ तो वहीं अखिल भारतीय तेरापंथ मण्डल के 47वें राष्ट्रीय अधिवेशन का मंचीय उपक्रम भी रहा। आचार्यश्री ने नवदीक्षितों को बड़ी दीक्षा व पावन प्रेरणा प्रदान की। साथ ही उपस्थित श्रद्धालुओं को पावन पाथेय प्रदान किया। साथ ही अधिवेशन में उपस्थित संभागियों को इस अधिवेशन में पुरस्कृत लोगों को भी अपने मंगल आशीर्वचन से अभिसिंचन प्रदान किया।
शुक्रवार को प्रातःकाल के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में बड़ी दीक्षा का समायोजन हुआ। आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। नवदीक्षित मुनि आगमकुमारजी, नवदीक्षित साध्वीत्रय साध्वी रोशनीप्रभाजी, साध्वी तीर्थप्रभाजी व साध्वी दीक्षाप्रभाजी ने अपने सात दिन के अनुभवों को आचार्यश्री के समक्ष प्रस्तुति दी।
आचार्यश्री ने बड़ी दीक्षा प्रदान करते हुए कहा कि सात दिनों पूर्व चार मुमुक्षुओं को सामायिक चारित्र के रूप में दीक्षा दी गई थी। आज उन्हें छेदोपस्थापनीय चारित्र ग्रहण कराया जा रहा है। आचार्यश्री ने आर्षवाणी का उच्चारण करते हुए सर्व प्राणातिपात, सर्व मृषावाद, सर्व अदत्तादान, सर्व मैथुन व सर्व परिग्रह विरमण के साथ रात्रि भोजन से विरमण कराते हुए अतीत में हुए पूर्वकृत कार्यों से मुक्त कराते हुए छेदोपस्थानीय चारित्र में स्थापित कर बड़ी दीक्षा प्रदान कर दी।
आचार्यश्री ने दीक्षा प्रदान करने के उपरान्त भगवती सूत्राधारित मंगल प्रवचन के माध्यम से लोगों को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि प्रश्न किया गया कि क्या जीव की चंचल स्थिति में ही अंतक्रिया हो सकती है? उत्तर दिया गया कि नहीं, जब तक चंचलता की स्थिति रहती है, अंतक्रिया नहीं हो सकती अर्थात् कर्मों से मुक्त प्राप्त नहीं हो सकती। सर्व कर्म नाश के बाद ही मुक्ति की प्राप्ति संभव है। अंतक्रिया की दिशा में आगे बढ़ने के लिए पहले वीतराग अवस्था को प्राप्त करना होगा। वीतराग बनने से भी पहले साधु, फिर सम्यक्त्वी तब वीतराग की प्राप्ति होगी। वीतरागता की स्थिति, साधना की शक्ति के बाद जब जीव पूर्ण रूप से अक्रिय हो जाता है तो उसे मुक्ति अर्थात् मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि कितने समाधान आगमों के माध्यम से प्राप्त हो जाते हैं। नवदीक्षित साधु-साध्वियां दसवेंआलियं आगम को कंठस्थ करने, उसका अर्थ जानने का प्रयास करें। आचार्यश्री ने नवदीक्षित मुनि आगमकुमारजी को दसवेंआलियं के पहले श्लोक का उच्चारण भी कराया। गुरु की ऐसी प्रेरणा को देख श्रद्धालुजन भावविभोर थे। आचार्यश्री ने आगे कहा कि सुक्रिया करते-करते अक्रिया की प्राप्ति हो सके और कभी अंतक्रिया की प्राप्ति हो सके, ऐसा प्रयास करना चाहिए। महाव्रतों की सुरक्षा के लिए पांच समिति और तीन गुप्तियों की आराधना करने का प्रयास हो।
आचार्यश्री के मंगल उद्बोधन के उपरान्त अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल की अध्यक्ष श्रीमती नीलम सेठिया ने अधिवेशन के संदर्भ में जानकारी प्रस्तुत की। मुख्य ट्रस्टी श्रीमती पुष्पा बैंगानी व अध्यक्ष द्वारा पूज्यप्रवर के समक्ष प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम में अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल की ओर से डॉ. माणकबाई कोठारी को श्राविका गौरव अलंकरण, डॉ. मोनिका जैन व सुश्री एश्वर्या नाहटा को सीतादेवी सरावगी प्रतिभा पुरस्कार प्रदान किया। प्रशस्ति पत्रों का वाचन क्रमशः श्रीमती सुमन नाहटा, श्रीमती वीणा बैद व श्रीमती सुनीता जैन ने किया। पुरस्कार और अलंकरण प्राप्तकर्ताओं ने अपनी श्रद्धासिक्त अभिव्यक्ति दी। इस संदर्भ में साध्वीप्रमुखा साध्वी विश्रुतविभाजी ने भी अपना उद्बोधन दिया। तदुपरान्त आचार्यश्री ने अधिवेशन के संदर्भ में मंगल आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल तेरापंथी महिलाओं का धार्मिक/सामाजिक संगठन है। इससे तेरापंथ की बाइयों के विकास का मंच मिल गया है। इनका एक बड़ा नेटवर्क है। बाइयों में तत्त्वज्ञान का विकास हो रहा है, यह अच्छी बात है। सम्मान-पुरस्कार प्रदान करना भी अच्छी बात होती है। सभी पुरस्कारप्राप्तकर्ताओं का जीवन अच्छा रहे, सबके प्रति मंगलकामना तथा अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल भी अपना धार्मिक-आध्यात्मिक विकास करता रहे।
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16.09.2022, शुक्रवार, छापर, चूरू (राजस्थान) :
जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में शुक्रवार को नवदीक्षित साधु-साध्वियों की बड़ी दीक्षा का कार्यक्रम समायोजित हुआ तो वहीं अखिल भारतीय तेरापंथ मण्डल के 47वें राष्ट्रीय अधिवेशन का मंचीय उपक्रम भी रहा। आचार्यश्री ने नवदीक्षितों को बड़ी दीक्षा व पावन प्रेरणा प्रदान की। साथ ही उपस्थित श्रद्धालुओं को पावन पाथेय प्रदान किया। साथ ही अधिवेशन में उपस्थित संभागियों को इस अधिवेशन में पुरस्कृत लोगों को भी अपने मंगल आशीर्वचन से अभिसिंचन प्रदान किया।
शुक्रवार को प्रातःकाल के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में बड़ी दीक्षा का समायोजन हुआ। आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। नवदीक्षित मुनि आगमकुमारजी, नवदीक्षित साध्वीत्रय साध्वी रोशनीप्रभाजी, साध्वी तीर्थप्रभाजी व साध्वी दीक्षाप्रभाजी ने अपने सात दिन के अनुभवों को आचार्यश्री के समक्ष प्रस्तुति दी।
आचार्यश्री ने बड़ी दीक्षा प्रदान करते हुए कहा कि सात दिनों पूर्व चार मुमुक्षुओं को सामायिक चारित्र के रूप में दीक्षा दी गई थी। आज उन्हें छेदोपस्थापनीय चारित्र ग्रहण कराया जा रहा है। आचार्यश्री ने आर्षवाणी का उच्चारण करते हुए सर्व प्राणातिपात, सर्व मृषावाद, सर्व अदत्तादान, सर्व मैथुन व सर्व परिग्रह विरमण के साथ रात्रि भोजन से विरमण कराते हुए अतीत में हुए पूर्वकृत कार्यों से मुक्त कराते हुए छेदोपस्थानीय चारित्र में स्थापित कर बड़ी दीक्षा प्रदान कर दी।
आचार्यश्री ने दीक्षा प्रदान करने के उपरान्त भगवती सूत्राधारित मंगल प्रवचन के माध्यम से लोगों को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि प्रश्न किया गया कि क्या जीव की चंचल स्थिति में ही अंतक्रिया हो सकती है? उत्तर दिया गया कि नहीं, जब तक चंचलता की स्थिति रहती है, अंतक्रिया नहीं हो सकती अर्थात् कर्मों से मुक्त प्राप्त नहीं हो सकती। सर्व कर्म नाश के बाद ही मुक्ति की प्राप्ति संभव है। अंतक्रिया की दिशा में आगे बढ़ने के लिए पहले वीतराग अवस्था को प्राप्त करना होगा। वीतराग बनने से भी पहले साधु, फिर सम्यक्त्वी तब वीतराग की प्राप्ति होगी। वीतरागता की स्थिति, साधना की शक्ति के बाद जब जीव पूर्ण रूप से अक्रिय हो जाता है तो उसे मुक्ति अर्थात् मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि कितने समाधान आगमों के माध्यम से प्राप्त हो जाते हैं। नवदीक्षित साधु-साध्वियां दसवेंआलियं आगम को कंठस्थ करने, उसका अर्थ जानने का प्रयास करें। आचार्यश्री ने नवदीक्षित मुनि आगमकुमारजी को दसवेंआलियं के पहले श्लोक का उच्चारण भी कराया। गुरु की ऐसी प्रेरणा को देख श्रद्धालुजन भावविभोर थे। आचार्यश्री ने आगे कहा कि सुक्रिया करते-करते अक्रिया की प्राप्ति हो सके और कभी अंतक्रिया की प्राप्ति हो सके, ऐसा प्रयास करना चाहिए। महाव्रतों की सुरक्षा के लिए पांच समिति और तीन गुप्तियों की आराधना करने का प्रयास हो।
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