27.04.2023: Jain Swetambar Terapanthi Mahasabha

Published: 27.04.2023

Posted on 27.04.2023 19:46

मुखवस्त्रिका के संदर्भ में तीन बातें

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जो व्यक्ति अपने जीवन में त्याग नहीं करता है. .

सूरत
27-04-2023

जो व्यक्ति अपने जीवन में त्याग नहीं करता है. .

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बच्चों को टाइम नहीं दिया जा रहा है... मां भी जॉब कर रही है.. पिता भी..

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🌸 बाहर और भीतर से भी हो त्याग की चेतना का विकास : आचार्यश्री महाश्रमण 🌸

-संस्कार निर्माण शिविर के शिविरार्थियों को मिला आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद

-गुरुदर्शन कर हर्षित संतों ने दी अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति

-महातपस्वी के मंगल दर्शन को पहुंचे सूरत के पुलिस कमिश्नर श्री अजय तोमर

27.04.2023, गुरुवार, वेसु, सूरत (गुजरात) :

सिल्कसिटी व डायमण्ड सिटी को आध्यात्मिक सिटी बनाने के लिए मंगल प्रवास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने गुरुवार को प्रातःकाल शहर परिभ्रमण को पधारे। आचार्यश्री के इस परिभ्रमण के दौरान कितने-कितने अक्षम श्रद्धालुओं को आचार्यश्री के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ तो कितने लोगों को इसी बहाने सहज रूप में अपने-अपने घरों, दुकानों व व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के पास आचार्यश्री के दर्शन और आशीर्वाद प्राप्त करने का सौभाग्य भी प्राप्त हो गया। लोगों को मंगल आशीष से आच्छादित करते हुए आचार्यश्री लगभग पांच किलोमीटर का परिभ्रमण कर पुनः भगवान महावीर युनिवर्सिटी में बने भगवान महावीर कानसेप्ट स्कूल स्थित अपने प्रवास स्थल में पधार गए।

नित्य की भांति महावीर समवसरण में उपस्थित जनता को अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि त्याग एक प्रकार का बल होता है। ऐसा बल जिसके माध्यम से आदमी अपनी कामनाओं पर नियंत्रण कर सकता है, प्रिय वस्तु, पदार्थ आदि होने पर भी उसका वर्जन कर सकता है। त्याग जिस किसी के जीवन में भी होता है, वह आध्यात्मिक दृष्टि से कुछ आगे बढ़ा हुआ होता है। कई बार आदमी बाहरी दृष्टि से त्याग तो कर लेता है, किन्तु अंतर्मन से उसका त्याग नहीं कर पाता। उस पदार्थ को पाने की कामना, इच्छा उसके मन होती है अर्थात् उसके प्रति आसक्ति का भाव बना रहता है। त्याग के चार अंगों का वर्णन करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि बाहर से त्याग, भीतर से नहीं, भीतर से त्याग, बाहर से नहीं, बाहर और भीतर दोनों से त्याग और भीतर तथा बाहर दोनों से त्याग नहीं।

साधु के लिए तो बाहर और भीतर दोनों से ही त्याग की चेतना का जागरण आवश्यक होता है। जितना संभव हो सके, गृहस्थ को भी अपने जीवन में भीतर और बाहर से भी त्याग की चेतना का विकास करने का प्रयास करना चाहिए।

आचार्यश्री ने संस्कार निर्माण शिविर के सहभागी शिविरार्थियों को भी अपने जीवन में त्याग की चेतना का विकास करने की प्रेरणा प्रदान की। लगभग तीन वर्षों बाद गुरुदर्शन करने वाले संत मुनि अर्हतकुमारजी आदि संतों को आशीष प्रदान करते हुए कहा कि सभी संत क्षेत्रों को संभालने का खूब अच्छा कार्य करते रहें। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीप्रमुखाजी और साध्वीवर्याजी ने भी जनता को उद्बोधित किया।

आचार्यश्री के दर्शनार्थ उपस्थित सूरत शहर के पुलिस कमिश्नर श्री अजय तोमर ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए कहा कि आज मैं परम पूजनीय संत आचार्यश्री महाश्रमणजी का दर्शन कर धन्य हो गया। बहुत बड़े सौभाग्य कि बात है कि आपकी मंगलवाणी से हमारे पूरे शहर को लाभ प्राप्त हो रहा है। आपसे मुझे भी सद्बुद्धि मिले, मैं आपको बारम्बार प्रणाम करता हूं। इसके उपरान्त मुनि मोहजीतकुमारजी, मुनि अर्हतकुमारजी, मुनि अनंतकुमारजी, मुनि जयदीपकुमारजी, मुनि निकुंजकुमारजी व साध्वी चैतन्ययशाजी ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। उपासक श्रेणी-सूरत व प्रेक्षा परिवार-सूरत के सदस्यों ने अपने-अपने गीत का संगान किया। तेरापंथी सभा-सूरत द्वारा संचालित टिकमनगर-ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। इस दौरान स्थानीय तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के सदस्यों ने आचार्यश्री के एक बैनर का लोकार्पण किया और पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।

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