Posted on 28.04.2023 10:01
आचार्य श्री जी के सान्निध्य में अक्षय तृतीया महोत्सव सम्पन्न113 तपस्वीयों ने किया वर्षीतप का पारणा
प्रस्तोता शमित मुनि
प्रसिद्ध तीर्थ स्थल लब्धि पार्श्वनाथ के प्रांगण में श्रमणसंघीय चतुर्थ पट्टधर आचार्य सम्राट पूज्य डॉ. श्री शिवमुनि जी म.सा. के सान्निध्य में अक्षय तृतीया वर्षीतप के 104 तपस्वी एवं 9 साधु-साध्वीयों ने इक्षु रस से पारणा करके अपने जीवन को धन्य बनाया। सद्गुरूदेव के हाथ से इक्षु रस ग्रहण करके पारणा सम्पन्न किया।
प्रातः 8.30 बजे श्रमणसंघीय प्रमुखमंत्री श्री शिरीषमुनि जी म.सा. ने नवकार मंत्र के मंगलाचरण से अक्षय तृतीया पारणा महोत्सव का आरम्भ किया। लब्धिधाम के प्रांगण में बने पण्डाल में -श्रावक-श्राविकाओं से पूरा पण्डाल खचाखच भर गया था। आज के इस पावन अवसर पर महासाध्वी श्री हिमानी जी म.सा., महासाध्वी श्री संयमप्रभा जी म.सा., महासाध्वी श्री राजश्री जी म.सा, प्रवचन प्रभाकर श्री शमितमुनि जी म.सा., प्रमुखमंत्री श्री शिरीषमुनि जी म.सा. ने अपने-अपने वक्तव्य में अक्षय तृतीया का महत्व, अक्षय तृतीया की परम्परा, तप की महिमा, दान की महिमा पर संक्षेप में उदबोधन प्रदान किये।
कार्यक्रम में महासाध्वी श्री धर्मलता जी म.सा. एवं मूर्तिपूजक सम्प्रदाय के महासाध्वी श्री विरतिमाला श्री जी म.सा. ने अपनी गौरवमयी उपस्थिति प्रदान की।
अक्षय तृतीया पर उपस्थित श्रद्धालुओं को एवं वर्षीतप के तपस्वियों को दिव्य उदबोधन प्रदान करते हुए आचार्य श्री जी ने फरमाया कि - अक्षय तृतीया का पर्व आध्यात्मिक पर्व है। आज के दिन का महत्व दान और तप से है। इसका आरम्भ अनंत काल पूर्व हमारे प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के वर्ष भर के तपस्या के बाद प्रथम पारणे के साथ हुआ। राजा श्रेयांसकुमार ने भगवान का प्रथम पारणा करवाया था। तब से लेकर यह परम्परा आज भी अक्षय अखण्ड चली आ रही है। आज के इस भौतिक युग में भी साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका वर्षभर तपस्या करते है और आज के दिन इक्षु रस से पारणा सम्पन्न करते है।
तप आत्मा का श्रृंगार है। तप करना कोई साधारण काम नहीं है। तप वही करता है जिसका आत्मबल मजबूत होता है। तप से जीवन निर्मल बनता है। तप से आत्मा कर्मों की निर्जरा करके परमात्मा बनती है। जो तप नहीं कर सकता है, वह तपस्वियों की अनुमोदना करके भी कर्मों का क्षय कर सकता है। तप का मुख्य लक्ष्य कषायों और इन्द्रियों को वश में करना होता है।
अक्षय तृतीया का महत्व सदियों से रहा है क्योंकि बाकी सब तिथियों का क्षय होता है किन्तु अक्षय तृतीया शाश्वत तिथि है। जिसका कभी क्षय नहीं होता है। आज अक्षय तृतीया का अवसर है और तपस्या का सम्पन्नता का दिन भी है। भगवान ऋषभदेव वर्तमान अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर है। धर्म तीर्थ की स्थापना करने वाले तीर्थंकर होते है। उनका जन्म युगलियों के युग में हुआ था। जब मनुष्य वृक्षों के नीचे रहते थे और कल्पवृक्ष से अपनी आवश्यकता पूर्ण करते है। पिता नाभिराजा और माता मरूदेवी के नंदन युवराज ऋषभ ने युवावस्था में आर्य सभ्यता की नींव डाली। असी, मसी, कृषि का ज्ञान दिया। पुरूषों को बहत्तर और स्त्रियों को चौसठ कलाएं सिखाई। भगवान विवाहित भी हुए। बाद में राज्य त्यागकर दीक्षा ग्रहण की, केवलज्ञान प्राप्त किया। तीर्थंकर सूर्य के समान होते है जैसे सूर्य दूर रहकर भी अपनी किरणों से कमलों को खिला दिया करता है वैसे ही तीर्थंकर भगवान अपने ज्ञान के प्रकाश से मानव मात्र को प्रकाशित करते है।
आज श्रमणसंघ का स्थापना दिवस है। सन् 1952 को सादड़ी में श्रमणसंघ की स्थापना हुई थी। अपने पूर्ववर्ती आचार्य सम्राट पूज्य श्री आत्माराम जी म.सा., आचार्य श्री आनंदऋषि जी म.सा., आचार्य सम्राट् पूज्य श्री देवेन्द्रमुनि जी म.सा. के चरणों में वंदन नमन् करता हूँ जिन्होंने श्रमणसंघ रूपी विशाल वटवृक्ष को अपनी संयम साधना से सींचा है, पल्लवित पुष्पित रखा है।
आज पूज्य गुरूदेव श्री ज्ञानमुनि जी म.सा. का भी जन्म शताब्दी समापन दिवस है। गुरूदेव के अनंत उपकार मेरे ऊपर है। उन्होंने मुझे संयम प्रदान करके महती कृपा की, संसार के कीचड़ से निकालकर संयम के राजपथ पर स्थापित किया। गुरूदेव के उपकार और एहसान को न कभी भुलाया जा सकता है, न कभी चुकाया जा सकता है। अन्त में सभी तपस्वी जो आगे तपस्या को निरन्तर जारी रखना चाहता है या नया शुरू करना चाहता है उनको वर्षीतप का संकल्प करवाया।
तत्पश्चात् जैन समाज के प्रतिष्ठित श्रावक दानवीर भामाशाह श्री आनंदप्रकाश जी जैन को आचार्य भगवन् ने मरणोपरांत ‘‘समाजरत्न’’ पदवी से अलंकृत किया। इस अवसर पर आनंदप्रकाश जी के सुपुत्र श्री नरेश जैन, श्री विपिन जैन अपने सम्पूर्ण परिवार सहित उपस्थित हुए क्योंकि आज के पारणे का लाभ इन्हीं को श्रेयांसकुमार बनकर मिला। इन्होंने आचार्य भगवन सहित समस्त साधु-साध्वी भगवंतो एवं तपस्वीयों को इक्षु रस प्रदान किया।
श्रीमती अनामिका जी तलेसरा को कुछ दिन पूर्व जयपुर, राजस्थान में पूर्व राष्ट्रपति श्रीमान् रामनाथ जी कोविंद के हाथों अवार्ड प्राप्त हुआ। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्रा में विशेष कार्य किया है। इस अवसर पर उनका शिवाचार्य भगवन् के सान्निध्य में स्वागत अभिनंदन किया गया।
कार्यक्रम में सूरत, पंचकूला, पुणे, लुधियाना, करनाल, जम्मू, मुम्बई, मंदसौर, बारडोली, चिखली, सफाला, वाणगांव, पालघर, चालीसगांव, जालना, बरनाला, उदयपुर, भीलवाड़ा, अजमेर, बैंगलोर, दिल्ली, बोईसर, जयपुर, लोणी, नाशिक आदि अनेक क्षेत्रों से वर्षीतप तपस्वी उपस्थित हुए। उनको शिवाचार्य आत्म ध्यान फाउण्डेशन के कार्यकर्त्ताओं द्वारा सम्मान प्रतिक देकर सम्मानित किया गया।
पोरसी के उपरांत पारणे कराने का कार्य प्रारम्भ हुआ। सभी तपस्वी आचार्य भगवन् को इक्षु रस प्रदान कर रहे थे एवं आचार्य भगवन् तपस्वी भाईयों-बहनों को इक्षु रस प्रदान कर रहे थे। मंगलपाठ सुनकर पारणा उत्सव का समापन हुआ।
भोजन की व्यवस्था का सुन्दर संयोजन श्री जयन्तिलाल जैन, कुकड़ा एवं उनके सहयोगी जैन कॉन्फ्रेन्स गुजरात शाखा के समस्त कार्यकत्ताओं ने किया। पण्डाल व्यवस्था की सेवा श्री विकास जी वीर सा की अनुमोदनीय रही। आवास-निवास की व्यवस्था श्री अमित मेहता और श्री हितेश चपलोत ने सम्भाली। सम्पूर्ण आयोजन शिवाचार्य आत्म ध्यान फाउण्डेशन के अंतर्गत सम्पन्न हुआ। सभी कार्यकर्त्ताओं ने अपनी उत्कृष्ट सेवाएं प्रदान की जो अभिनंदनीय है। कार्यक्रम का सम्पूर्ण संचालन श्री अशोक जी मेहता द्वारा किया गया। प्रसिद्ध तीर्थ स्थल लब्धि पार्श्वनाथ के प्रांगण में आचार्य श्री जी के सान्निध्य में अक्षय तृतीया वर्षीतप पारणा महोत्सव सम्पन्न
113 तपस्वीयों ने किया वर्षीतप का पारणा
Akshaya Tritiya Varshitap Parana Festival concluded in the presence of Acharya Shri Shiv muni ji in the courtyard of the famous pilgrimage site shri Labdhi Parshvanath jain tirth baleshwar
113 Tapaswi performed Varshitap
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