07.06.2023: Jain Swetambar Terapanthi Mahasabha

Published: 07.06.2023

Posted on 07.06.2023 19:44

आप में और मेरे में क्या फर्क है ?
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🌸 आदमी का मन कल्याणकारी विचारों में रत रहे : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण 🌸

-चतुर्मास से पूर्व बृहत्तर मुम्बई क्षेत्र ज्योतिचरण के स्पर्श से हो रहा जगमग

-8.5 कि.मी. का विहार कर आचार्यश्री पहुंचे विवा इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी

07.06.2023, बुधवार, शिरगांव, पुणे (महाराष्ट्र) :

लगभग 69 वर्ष की प्रतीक्षा करने वाले मुम्बईवासी श्रद्धालु वर्ष 2023 के चतुर्मास को लेकर अत्यंत उत्साहित हैं। आचार्यश्री के महाराष्ट्र प्रवेश से पूर्व से ही प्रतिदिन सैंकड़ों की संख्या में पहुंचकर अपने आराध्य के विहार, दर्शन व सेवा-उपासना का लाभ उठा रहे हैं। चतुर्मास की तिथि जैसे-जैसे निकट होती जा रही है, मुम्बईवासी श्रद्धालुओं का उत्साह बढ़ता जा रहा है। बुधवार को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने खाणिवडे से मंगल प्रस्थान किया। मार्ग में अनेकानेक लोगों पर आशीषवृष्टि करते हुए आचार्यश्री गंतव्य की ओर बढ़े। लगभग आचार्यश्री शिरगांव में स्थित विवा इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में पधारे।

आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन कार्यक्रम में समुपस्थित जनता को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आत्मा पर चढ़े हुए पूर्वकृत मल को साफ कर चेतना की शुद्धि के लिए स्वध्याय और सद्ध्यान में रत रहने का प्रयास होना चाहिए। स्वाध्याय और ध्यान से चेतना की शुद्धि हो सकती है और भीतर का परमात्मा प्रकाशित हो जाता है। स्वाध्याय और सद्ध्यान शुद्धि के माध्यम हैं।

सद्ध्यान है तो असद्ध्यान भी होता है। आर्द्र ध्यान, रौद्र ध्यान, धर्म ध्यान और शुक्ल ध्यान- ये चार प्रकार के ध्यान बताए गए हैं। इनमें दो ध्यान असद्ध्यान और दो ध्यान असद्ध्यान होता है। शरीर में शीर्ष का जो स्थान है, वृक्ष में मूल का जो स्थान है, उसी प्रकार साधुत्व में ध्यान का होता है। ध्यान में एकाग्रता होती है तो चेतना की निर्मलता बन सकती है। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ में प्रेक्षाध्यान के नाम से ध्यान की पद्धति प्रचलित हैं। परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी और परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी द्वारा प्रेक्षाध्यान का प्रयोग कराया जाता था। ध्यान में आदमी जितना स्थिर हो सकता है, ध्यान अच्छा हो सकता है। आर्द्र और रौद्र ध्यान त्याज्य हैं। आदमी का मन अच्छे विचारों में रहे।

आदमी को सदैव स्वाध्याय करने का प्रयास करना चाहिए। स्वाध्याय में रत रहने से विचारों का गमनागमन कम हो जाता है। इससे स्वाध्याय में रत रहने का प्रयास करना चाहिए। आदमी के विचारों में निर्मलता रहे, भावक्रिया शुद्ध हो तो चेतना की निर्मलता बनी रह सकती है और आत्मा पर लगा पूर्वकृत मल भी साफ हो सकता है। गृहस्थ अपने दायित्वों का निर्वहन करने के उपरान्त जितना हो सके, ध्यान-साधना में समय लगाने का प्रयास करना चाहिए। जितना संभव हो, एक दिन में कभी भी एक सामायिक अथवा जितना संभव हो उतना लगाया जाए तो आत्मा की निर्मलता हो सकती है।

गुरुदर्शन करने वाली साध्वी निर्वाणश्रीजी ने अपने हृदयोद्गार व्यक्त किए तथा अपने सहवर्ती साध्वियों संग गीत का संगान किया। श्री हितेन्द्र ठाकुर व विरार के सभापति श्री योगेश्वर पाटिल ने अपनी अभिव्यक्ति दी।

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