09.06.2023: Jain Swetambar Terapanthi Mahasabha

Published: 09.06.2023

Posted on 09.06.2023 19:57

विचार ऊंचे.. लक्ष्य ऊंचा.. पुरुषार्थ भी आदमी का..

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🌸 ज्ञान प्राप्ति के पांच बाधक तत्त्वों को दूर करने का हो प्रयास : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण 🌸

-मुम्बई महानगर के उपनगरों में महातपस्वी महाश्रमण का मंगल विहार

-नालासोपारा ज्योतिचरण के आगमन से हुआ आलोकित

-सकल समाज ने मानवता के मसीहा का किया भव्य स्वागत

09.06.2023, शुक्रवार, नालासोपारा, मुम्बई (महाराष्ट्र) :

भारत की आर्थिक राजधानी मुम्बई की धरा को पावन बनाने और आधुनिकता से भावित जनता के मानस में आध्यात्मिकता के भावों को पुष्ट बनाने, 69 वर्षों से प्रतीक्षारत भक्तों की भावनाओं को पूर्ण करने के लिए मुम्बई महानगर में पधारे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के देदीप्यमान महासूर्य, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी शुक्रवार को मुम्बई महानगर के एक उपनगर नालासोपारा में पधारे तो उस क्षेत्र में निवासित जनता महासंत के दर्शन को उमड़ पड़ी।

शुक्रवार को प्रातः विरार से महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल प्रस्थान किया। भौतिकता की दौड़ में भागती जनता जिसके लिए वाहनों की रफ्तार भी मानों नाकाफी लगती है, वैसी मायानगरी में अध्यात्म की गंगा प्रवाहित कर जन-जन के मानस को आध्यात्मिक शांति प्रदान करने के लिए पदयात्रा करते हुए महासंत को देखना किसी आश्चर्य से कम नहीं था। अपने आराध्य की मार्ग सेवा में संलग्न श्रद्धालु भी आचार्यश्री के चरणों का अनुगमन कर रहे थे। अपने दोनों करकमलों से आशीर्वाद प्रदान करते हुए गंतव्य की ओर गतिमान थे। नालासोपारावासी महातपस्वी के अभिनंदन में पलक पांवड़े बिछाए खड़े थे। भव्य स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री नालासोपारा में स्थित डिवाइन प्रोविडेंस हाईस्कूल में पधारे।

मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि मानव जीवन में शिक्षा का परम महत्त्व है। शिक्षा साधु समुदाय में भी महत्त्वपूर्ण तथा गृहस्थों के जीवन में भी शिक्षा का महत्त्व है। कितने-कितने विद्यार्थी शिक्षा प्राप्ति के लिए अपने परिवार, माता-पिता से दूर रहते हैं, कई विदेश चले जाते हैं। सभी शिक्षा प्राप्ति का प्रयास करते हैं। साधु संस्था में भी शास्त्रों का अध्ययन, भाषा का अध्ययन आदि का प्रयास होता है। कई संत भी दसवीं, बारहवीं, बी.ए., एम.ए, पी.एच.डी. आदि करते हैं। पूर्व में भी चौदह पूर्वों के ज्ञान के बात बताई गई है। अनेक-अनेक धर्मग्रन्थ हैं, उनके अध्ययन से ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है। हमारे यहां 32 आगम प्रमाण के रूप में हैं।

ज्ञान की प्राप्ति में पांच बाधक तत्त्व हैं। इनमें पहला तत्त्व है-अहंकार। अहंकार ज्ञान प्राप्ति में बाधा है। ज्ञान प्राप्ति के लिए अहंकार का त्याग करना होता है। ज्ञान के प्राप्ति के आकर्षण, नम्रता, सम्मान का भाव और ज्ञानप्रदाता के प्रति भी विनय, नम्रता और श्रद्धा का भाव होता है तो ज्ञान प्राप्ति हो सकती है। बुद्धि के प्रति भी सम्मान का भाव हो तो बुद्धि आ सकती है। ज्ञान प्राप्ति का दूसरा बाधक तत्त्व है-क्रोध। गुस्सा का भाव है तो भी शिक्षा की प्राप्ति संभव नहीं हो सकती। गुस्सा तो प्रायः जीवन में कहीं भी काम का नहीं है। शिक्षा प्राप्ति में तीसरा बाधक तत्त्व है-प्रमाद। पढ़ाई के समय खेल में लग जाना, बात में लग जाना आदि प्रमाद में समय लगे तो शिक्षा की प्राप्ति कैसे संभव हो सकती है। शिक्षा प्राप्ति के लिए अप्रमादी बनकर ज्ञानार्जन में समय लगाने का प्रयास होना चाहिए। ज्ञान प्राप्ति का चौथा बाधक तत्त्व है-बीमारी। शरीर और मन में बीमारी हो जाए तो ज्ञान प्राप्ति संभव नहीं है। पांचवा बाधक तत्त्व है-आलस्य। ज्ञान प्राप्ति के लिए आदमी को आलस्य का त्याग करने का प्रयास करना चाहिए।

इन पांचों तत्त्वों से बचने वाला आदमी अच्छा ज्ञान प्राप्त कर सकता है। ज्ञान अच्छा हो तो उसके साथ-साथ आचरण भी अच्छा हो, संस्कार अच्छे हों, नैतिकता के प्रति रुझान हो तो जीवन सुन्दर बन सकता है। आचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत आन्दोलन की बात बताई। छोटे-छोटे अच्छे संकल्पों को अपने जीवन में स्वीकार कर लिया जाए तो जीवन अच्छा बन सकता है। शिक्षा संस्थानों मंे शिक्षा के साथ-साथ विद्यार्थियों को अच्छे संस्कार भी देने का प्रयास हो। साधुओं की संगति, साहित्य की संगति और सज्जनों की अच्छी संगति हो तो जीवन अच्छा बन सकता है। आदमी को अपने जीवन में ज्ञान और आचार दोनों के विकास का प्रयास करना चाहिए।

आचार्यश्री ने नालासोपारावासियों को पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि आचार्यश्री महाप्रज्ञजी करीब बीस वर्ष पूर्व यहां पधारे थे। दो दशक बाद यहां आना हुआ है। यहां के लोगों मंे खूब अच्छी धार्मिक जागरणा बनी रहे। खूब अच्छा विकास होता रहे।

आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीप्रमुखाजी ने भी लोगों को उद्बोधित किया। आचार्यश्री के स्वागत में स्थानीय तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री लक्ष्मीलाल मेहता, तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष श्री किशन कोठारी, पूर्व उपमहापौर श्री गणेश नाईक, इसाई समाज से फादर माइकल, स्थानकवासी समाज के श्री नरेन्द्र लोढ़ा व नगरसेवक प्रवीण वीरा ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मण्डल ने स्वागत गीत का संगान किया। तेरापंथ कन्या मण्डल व ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी।

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