11.06.2023: Jain Swetambar Terapanthi Mahasabha

Published: 11.06.2023
Updated: 12.06.2023

Updated on 12.06.2023 07:54

मुनि अजयप्रकाशजी की स्मृतिसभा में मुख्यमुनिश्री

मुनि अजयप्रकाशजी की स्मृतिसभा में मुख्यमुनिश्री

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मुनि अजयप्रकाशजी की स्मृतिसभा में साध्वीप्रमुखाजी..

मुनि अजयप्रकाशजी की स्मृतिसभा में साध्वीप्रमुखाजी..

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मुनिश्री अजयप्रकाशजी की स्मृति सभा में मुनि अनेकांतकुमारजी

मुनिश्री अजयप्रकाशजी की स्मृति सभा में मुनि अनेकांतकुमारजी

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मुनिश्री अजयप्रकाशजी की स्मृति सभा में मुनिश्री राजकुमारजी स्वामी

मुनिश्री अजयप्रकाशजी की स्मृति

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🌸 पृथ्वी पर तीन रत्न- पानी, अन्न और सुभाषित : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण 🌸

-महातपस्वी महाश्रमणजी ने किया 12 कि.मी. का विहार

-लोढ़ा धाम में पधारे तेरापंथ सरताज, श्रद्धालुओं ने किया भव्य स्वागत

-मुनि अजयप्रकाशजी की स्मृतिसभा का हुआ आयोजन

11.06.2023, रविवार, नयगांव ईस्ट, मुम्बई (महाराष्ट्र) :

वर्षों से गुरुमुख से प्रवाहित होने वाली अमृतवाणी की प्यारी धरा मुम्बई अब मानों कुछ तृप्ति का अनुभव कर रही है। वर्षों की प्रतीक्षा का इतना सुखद फल प्राप्त हुआ है कि अब बृहत्तर मुम्बई क्षेत्र में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी लगभग दस महिनों तक अपने श्रीमुख से ज्ञान की गंगा बहाएंगे। इस ज्ञानगंगा में डुबकी लगाकर लोग अपने आंतरिक ताप और संताप को समाप्त करने का प्रयास करेंगे। मानव मात्र के कल्याण के लिए गतिमान महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी रविवार को वसई रोड स्थित तेरापंथ भवन से मंगल प्रस्थान किया। कोंकण का यह पहाड़ी क्षेत्र में स्थित मुम्बई महानगर मानों प्राकृतिक सुषमा से सम्पन्न है। कहीं नदी पर बने पुल तो कहीं पहाड़ी कच्चे रास्ते से विहार करते हुए आचार्यश्री लगभग बारह किलोमीटर का विहार कर नयगांव ईस्ट में स्थित लोढ़ा धाम में पधारे तो उपस्थित श्रद्धालुओं ने आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया। श्वेताम्बर जैन मंदिर में परिसर में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता का आगमन श्रद्धालुओं को हर्षविभोर बना रहा था। बुलंद जयघोष से पूरा परिसर गुंजायमान हो उठा।

मंदिर परिसर में ही आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में समुपस्थित जनता को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि पूरे सृष्टि में दो ही तत्त्व हैं-जीव और अजीव। इसे अपने शरीर में देखा जाए तो आत्मा चैतन्य और शरीर पुद्गल है। आत्मा अविनाशी है, इसका अस्तित्व तीनों कालों में विद्यमान रहने वाला है तो शरीर विनाशी है। आत्मा और शरीर का संयोग ही जीवन है। इस जीवन को चलाने के लिए आदमी को पदार्थों को ग्रहण करना होता है। शरीर को टिकाए रखने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। भोजन से भी आवश्यक तत्त्व पानी होता है। भोजन के बिना तो आदमी कई दिनों तक जीवित रह सकता है, किन्तु पानी के बिना वह कितना जी पाएगा।

इसलिए कहा गया है कि इस पृथ्वी पर तीन रत्न हैं- पानी, अन्न और सुभाषित। शरीर को चलाने के लिए पानी और अन्न से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण है-हवा। भोजन और पानी के बिना तो फिर भी कुछ समय तक जीवित रह सकता है, किन्तु हवा अर्थात् प्राणवायु न मिले तो जीव क्षण मात्र भी जीवित नहीं रह सकता। जीवन के लिए हवा, पानी और भोजन की आवश्यकता होती है, किन्तु कितने-कितने लोग नशीले पदार्थों का भी आसेवन करने लगते हैं। आदमी अपने परिवार की प्रेक्षा करे कि कोई सदस्य नशीले पदार्थों का सेवन तो नहीं कर रहा है। स्वयं भी नशीले पदार्थों के सेवन से बचते हुए परिवार को सदस्य भी नशीले पदार्थों से बचे रहें, इसका प्रयास करना चाहिए। आदमी को आध्यात्मिक रूप में अपने प्रभु के आराधन का नशा हो, सामायिक, गुरुदर्शन आदि का नशा हो तो इससे जीवन का कल्याण हो सकता है। आज कल छोटी-छोटी अवस्था में वर्षीतप जैसी तपस्या हो रही है, यह बहुत बड़ी बात है। सभी में धार्मिकता, पूजा, भक्ति आराधना के संस्कारों का विकास होता रहे।

आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त सम्बोधि मंे कालधर्म को प्राप्त हुए मुनि अजयप्रकाशजी की स्मृतिसभा का आयोजन हुआ। आचार्यश्री ने उनके संदर्भ में संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी आत्मा के लिए आध्यात्मिक मंगलकामना की तथा चतुर्विध धर्मसंघ के साथ चार लोगस्स का ध्यान कराया। साध्वीप्रमुखाजी, मुख्यमुनिश्री, मुनि अजयप्रकाशजी की संसारपक्षीया पुत्री साध्वी तन्मयप्रभाजी, मुनि राजकुमारजी, मुनि अक्षयप्रकाशजी, मुनि अनेकांतकुमारजी व मुनि अजयप्रकाशजी की संसारपक्षीया बहन श्रीमती संगीता बोथरा ने अपनी-अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

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Posted on 11.06.2023 10:52

🌸 अध्यात्म साधना का परम लक्ष्य है मोक्ष प्राप्ति : महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण 🌸

-वसईवासियों को मोक्ष प्राप्ति में बाधक तत्त्वों से बचने को आचार्यश्री ने किया अभिप्रेरित

-शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण का वसई में मंगल पदार्पण

-वसईवासियों ने अपने आराध्य का किया भव्य स्वागत-अभिनंदन

10.06.2023, शनिवार, वसई, मुम्बई (महाराष्ट्र) :

अरब सागर के तट पर अवस्थित भारत की मायानगरी मुम्बई में ज्ञान की गंगा को प्रवाहित करने और उससे जन-जन के मानस को आध्यात्मिक अभिसिंचन प्रदान करने के लिए गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ के वर्तमान अनुशास्ता, अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना संग शनिवार को वसई में पधारे तो मानों वसई अध्यात्म के आलोक से जगमगा उठी। वसई क्षेत्र की जनता आचार्यश्री के स्वागत में उमड़ आई। नालासोपारा से वसई की दूरी भले ही अल्प थी, किन्तु दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं की जगह-जगह उपस्थिति के कारण आचार्यश्री को कई घंटों का समय लगा। जन-जन को आशीष प्रदान करते हुए आचार्यश्री वसई में स्थित तेरापंथ भवन में पधारे।

कल्पतरू ग्राउण्ड में आयोजित मंगल प्रवचन में जनता की विराट उपस्थिति थी। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने वसईवासियों को उद्बोधित किया। शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि मोक्ष एक शब्द है, किन्तु अध्यात्म साधना का परम लक्ष्य मोक्ष होता है। भले उसे निर्वाण कह दें, सिद्धालय कह दें अथवा सर्व दुःखमुक्ति की प्राप्ति शाश्वत रूप से हो जाती है, उसे मोक्ष कहते हैं। साधु दीक्षा लेने का मूल आधार है मोक्ष प्राप्ति की कामना। मोक्ष प्राप्ति के लिए साधना करना और उसके लिए प्रस्थान करना। मोक्ष प्राप्ति में कई बाधक तत्त्व बताए गए हैं। इनमें एक बाधक तत्त्व बताया गया कि जो आदमी चंड अथवा गुस्सैल होता है, उसे मुक्ति की प्राप्ति नहीं हो सकती। क्रोध है तो कर्मों का बंध नहीं टूटेगा, सम्पूर्ण रूप से संसार नहीं छूटेगा। मोक्ष प्राप्त करना है तो गुस्से का त्याग करना आवश्यक होता है। आदमी को गुस्से से बचने का प्रयास करना चाहिए। इससे समाज, परिवार अथवा व्यापार कहीं भी गुस्सा काम का नहीं होता। आदमी को दिमाग को ठंडा और शांत रखने का प्रयास करना चाहिए। साधु को गुस्सा ओपता ही नहीं, साधु को तो शांत रहना चाहिए। उपशम की साधना से गुस्से को शांत करने का प्रयास होना चाहिए।

मोक्ष प्राप्ति का दूसरा बाधक तत्त्व है-घमण्ड। बुद्धि और ऋद्धि का घमण्ड नहीं होना चाहिए। आदमी को ज्ञान और धन का घमण्ड न हो तो मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है। ज्ञान है तो आदमी को मौन अथवा शांति रखने का प्रयास करना चाहिए। तीसरा बाधक तत्त्व है-सहसाभाषिता और सहसाकारिता। आदमी को जो कुछ भी करना चाहिए सोच-विचार कर करना चाहिए। भावुकता में कोई निर्णय नहीं हो, मन को शांत कर उचित निर्णय करने का प्रयास करना चाहिए। चौथा बाधक तत्त्व है-अनुशासनहीनता। अनुशासनहीनता कहीं अच्छी नहीं होती। समाज, संस्थान अथवा लोकतंत्र में भी अनुशासन की परम आवश्यक होता है। किसी कार्य को व्यवस्थित चलाने के लिए अनुशासन की आवश्यकता होती है। जो अनुशासनहीन है, उसके लिए मोक्ष की प्राप्ति दुर्लभ है। संविभाग का विचार रखना भी मोक्ष प्राप्ति में बाधक है। दूसरों का हक को हड़पने से बचने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार आदमी को बाधक तत्त्वों का त्याग कर मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।

पूर्व चतुर्मास वसई में करने वाली साध्वी प्रज्ञाश्रीजी ने अपने हृदयोद्गार व्यक्त करते हुए अपने सहवर्ती साध्वियों संग गीत का संगान किया। स्थानीय तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री प्रकाश संचेती, तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष श्री कमलेश लोढ़ा, जैन महासंघ की ओर से श्री बसंतभाई बोहरा, मेवाड़ स्थानकवासी समाज की ओर श्री सुरेश पोखरणा ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। वसई तेरापंथ समाज द्वारा स्वागत गीत का संगान किया गया। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी और आचार्यश्री से आशीर्वाद प्राप्त किया।

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