🌸 श्रावक के दो प्रकार- धर्म आराधक व धर्म प्रभावक : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
- त्रिदिवसीय प्रवास हेतु महातपस्वी महाश्रमण पहुंचे कांदिवली
- तेरापंथ भवन में तेरापंथ के गणराज के पदार्पण से जन-जन में छाया उल्लास
-कांदिवलीवासियों ने किया भव्य स्वागत, आसमान से बरसते मेघों ने भी किया अभिनंदन
13.06.2023, मंगलवार, कांदिवली, मुम्बई (महाराष्ट्र) :
वर्ष 2003 में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के दसमाधिशास्ता आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के मर्यादा महोत्सव के प्रवास के उपरान्त लगभग बीस वर्षों के बाद तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, अखण्ड परिव्राजक, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल पदार्पण से कांदिवली का तेरापंथ भवन मंगलमय बन गया। अपने आराध्य का त्रिदिवसीय प्रवास कांदिवलीवासियों सहित पूरे मुम्बई को मानों हर्षविभोर बना रहा था। कांदिवलीवासियों ने अपने आराध्य का भव्य स्वागत जुलूस के साथ अभिनंदन किया तो वहीं असमान ने मेघों ने भी अपने बूंदों से ज्योतिचरण के चरणकमल को पखार कर मानों इस अभिनंदन में अपनी सहभागिता दर्ज कराई। मंगल शंख ध्वनि, गूंजते जयघोष और मेघों की गड़गड़ाहट से पूरा वातावरण महाश्रमणमय बन रहा है। मंगलवार को ऐसा मंगल सुअवसर मानों कांदिवालीवासियों के जीवन को मंगलमय बना रहा था। इस बार के महाराष्ट्र प्रवेश के बाद कांदिवली प्रथम स्थान है, जहां आचार्यश्री महाश्रमणजी त्रिदिवसीय प्रवास करेंगे।
इसके पूर्व मंगलवार को प्रातःकाल निर्धारित समयानुसार मीरा रोड स्थित श्री वर्धमान स्थानकवासी उपाश्रय से महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अणुव्रत यात्रा का कुशल नेतृत्व करते हुए गतिमान हुए। आसमान में बादलों और सूर्य के बीच चल रहे घमासान से प्रायः धूप की प्रचण्डता कम थी तो बहने वाली तीव्र हवा भी सुहानी लग रही थी, किन्तु समुद्र तटीय क्षेत्र होने के कारण उमस अपना प्रभाव बनाए हुए थी, जो शरीर को पसीने से तर-बतर बना रही थी। मुम्बई महानगर की सड़कों पर दौड़ते अत्याधुनिक वाहनों तो एक ओर तपः साधना में निपुण, अखण्ड परिव्राजकता के माध्यम से भारत ही नहीं, अपितु हिमालय की चोटियों पर बसे नेपाल व भूटान की धरा को भी पावन करने राष्ट्रसंत आचार्यश्री महाश्रमणजी बढ़ते चरण युगल अनजान लोगों के लिए किसी आश्चर्य से कम न था। जब ऐसे महासंत के विषय में आश्चर्यचकित लोगों को जानकारी प्राप्त होती तो मस्तक स्वतः श्रद्धा से नत हो रहे थे और दोनों हाथ जुड़ रहे थे। श्रद्धावान लोगों पर अपने दोनों कर कमलों से आशीषवृष्टि करते हुए आचार्यश्री लगभग दस किलोमीटर का विहार कर कांदिवली स्थित तेरापंथ भवन में त्रिदिवसीय प्रवास हेतु पधारे।
भवन परिसर में ही बने भव्य एवं विशाल ‘सिद्ध मर्यादा समवसरण’ में आयोजित मुख्य प्रवचन प्रवचन में समुपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने कहा कि मनुष्य चिंतनशील प्राणी होता है। उसमें विवेकशक्ति भी होती है। हालांकि सभी मनुष्यों की विवेकशक्ति एक जैसी नहीं हो सकती। शास्त्रों में एक बात बताई गई कि आदमी को कोई भी ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए, जिसमें थोड़ा लाभ और ज्यादा से ज्यादा हानि हो। आदमी लाभ के लिए काम करे तो वह उसकी बुद्धिमत्ता और जिसमें मात्र हानि ही हानि हो, ऐसा करना उसकी बुद्धिहीनता होती है। इसलिए मनुष्य ऐसा कार्य करे, जिसमें लाभ ही लाभ हो। उदाहरण के लिए जैसे कोई संयमी, साधनाशील, तपस्वी कोई साधु किसी छोटी बात को लेकर साधुत्व को छोड़ गृहस्थावस्था में चला जाता है तो मानों वह थोड़े से गृहस्थ सुख के लिए सम्पूर्ण जीवन को सुखी बनाने वाले मार्ग का त्याग कर दिया। दुनिया की करोड़ों-करोड़ों की सम्पत्ति साधुत्व की संपदा के आगे नाकुछ-सी होती है।
किसी गृहस्थ के पास भी साधुत्व जैसी अतुलनीय संपदा न भी हो तो गृहस्थ भी अपने जीवन में संयम और साधना, व्रत आदि के माध्यम से आध्यात्मिक संपदा को प्राप्त कर सकता है। श्रावकों के लिए बारह व्रत और सुमंगल साधना की बात बताई गई है, जिसके माध्यम से श्रावक अपने जीवन को प्रकर्ष की ले जा सकता है।
श्रावक को दो श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है-एक है धर्म आराधक श्रावक और दूसरा होता है धर्म प्रभावक श्रावक। धर्म आराधक श्रावक, ध्यान, साधना, तपस्या, गुरुसेवा आदि के माध्यम से धर्म की आराधना करता है तथा दूसरा धर्म प्रभावक श्रावक ध्यान, साधना, व्रत आदि भले ही उतना न करता हो, किन्तु सभा, संस्थाओं व संगठनों से जुड़कर धर्म को प्रचारित-प्रसारित करने का कार्य करता है। मूल बात है दुर्लभ मानव जीवन का धार्मिक-आध्यात्मिक लाभ उठाकर अपनी आत्मा के कल्याण का प्रयास होना चाहिए। आचार्यश्री ने कांदिवली आगमन के संदर्भ में तथा पूर्व में आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के कांदिवली भवन में विराजने के अनेक प्रसंगों का वर्णन करते हुए कहा कि इस भवन में धार्मिक-आध्यात्मिक गतिविधियां चलती रहें, लोगों का धार्मिक उत्थान होता रहे। आचार्यश्री ने आज दर्शन करने वाली साध्वियों को मंगल आशीर्वाद भी प्रदान किया।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने भी जनता को अभिप्रेरित किया। तदुपरान्त साध्वी विद्यावतीजी (द्वितीय) ने गुरुदर्शन से प्राप्त अहोभाव को अभिव्यक्त करते हुए अपने सहवर्ती साध्वियों संग गीत का संगान किया। साध्वी सोमलताजी व साध्वी संयमलताजी ने भी अपने हृदयोद्गार व्यक्त करते हुए सहवर्ती साध्वियों संग गीत का संगान किया।
आमदार श्री प्रकाश सुर्वे ने भी आचार्यश्री के स्वागत में अपनी अभिव्यक्ति दी और पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। श्री तुलसी महाप्रज्ञ फाउण्डेशन के अध्यक्ष श्री विनोद बोहरा ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मण्डल व तेरापंथ समाज-कांदिवली ने पृथक्-पृथक् स्वागत गीत का संगान किया। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण अभिव्यक्ति दी।
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-कांदिवलीवासियों ने किया भव्य स्वागत, आसमान से बरसते मेघों ने भी किया अभिनंदन
13.06.2023, मंगलवार, कांदिवली, मुम्बई (महाराष्ट्र) :
वर्ष 2003 में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के दसमाधिशास्ता आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के मर्यादा महोत्सव के प्रवास के उपरान्त लगभग बीस वर्षों के बाद तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, अखण्ड परिव्राजक, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल पदार्पण से कांदिवली का तेरापंथ भवन मंगलमय बन गया। अपने आराध्य का त्रिदिवसीय प्रवास कांदिवलीवासियों सहित पूरे मुम्बई को मानों हर्षविभोर बना रहा था। कांदिवलीवासियों ने अपने आराध्य का भव्य स्वागत जुलूस के साथ अभिनंदन किया तो वहीं असमान ने मेघों ने भी अपने बूंदों से ज्योतिचरण के चरणकमल को पखार कर मानों इस अभिनंदन में अपनी सहभागिता दर्ज कराई। मंगल शंख ध्वनि, गूंजते जयघोष और मेघों की गड़गड़ाहट से पूरा वातावरण महाश्रमणमय बन रहा है। मंगलवार को ऐसा मंगल सुअवसर मानों कांदिवालीवासियों के जीवन को मंगलमय बना रहा था। इस बार के महाराष्ट्र प्रवेश के बाद कांदिवली प्रथम स्थान है, जहां आचार्यश्री महाश्रमणजी त्रिदिवसीय प्रवास करेंगे।
इसके पूर्व मंगलवार को प्रातःकाल निर्धारित समयानुसार मीरा रोड स्थित श्री वर्धमान स्थानकवासी उपाश्रय से महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अणुव्रत यात्रा का कुशल नेतृत्व करते हुए गतिमान हुए। आसमान में बादलों और सूर्य के बीच चल रहे घमासान से प्रायः धूप की प्रचण्डता कम थी तो बहने वाली तीव्र हवा भी सुहानी लग रही थी, किन्तु समुद्र तटीय क्षेत्र होने के कारण उमस अपना प्रभाव बनाए हुए थी, जो शरीर को पसीने से तर-बतर बना रही थी। मुम्बई महानगर की सड़कों पर दौड़ते अत्याधुनिक वाहनों तो एक ओर तपः साधना में निपुण, अखण्ड परिव्राजकता के माध्यम से भारत ही नहीं, अपितु हिमालय की चोटियों पर बसे नेपाल व भूटान की धरा को भी पावन करने राष्ट्रसंत आचार्यश्री महाश्रमणजी बढ़ते चरण युगल अनजान लोगों के लिए किसी आश्चर्य से कम न था। जब ऐसे महासंत के विषय में आश्चर्यचकित लोगों को जानकारी प्राप्त होती तो मस्तक स्वतः श्रद्धा से नत हो रहे थे और दोनों हाथ जुड़ रहे थे। श्रद्धावान लोगों पर अपने दोनों कर कमलों से आशीषवृष्टि करते हुए आचार्यश्री लगभग दस किलोमीटर का विहार कर कांदिवली स्थित तेरापंथ भवन में त्रिदिवसीय प्रवास हेतु पधारे।
भवन परिसर में ही बने भव्य एवं विशाल ‘सिद्ध मर्यादा समवसरण’ में आयोजित मुख्य प्रवचन प्रवचन में समुपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने कहा कि मनुष्य चिंतनशील प्राणी होता है। उसमें विवेकशक्ति भी होती है। हालांकि सभी मनुष्यों की विवेकशक्ति एक जैसी नहीं हो सकती। शास्त्रों में एक बात बताई गई कि आदमी को कोई भी ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए, जिसमें थोड़ा लाभ और ज्यादा से ज्यादा हानि हो। आदमी लाभ के लिए काम करे तो वह उसकी बुद्धिमत्ता और जिसमें मात्र हानि ही हानि हो, ऐसा करना उसकी बुद्धिहीनता होती है। इसलिए मनुष्य ऐसा कार्य करे, जिसमें लाभ ही लाभ हो। उदाहरण के लिए जैसे कोई संयमी, साधनाशील, तपस्वी कोई साधु किसी छोटी बात को लेकर साधुत्व को छोड़ गृहस्थावस्था में चला जाता है तो मानों वह थोड़े से गृहस्थ सुख के लिए सम्पूर्ण जीवन को सुखी बनाने वाले मार्ग का त्याग कर दिया। दुनिया की करोड़ों-करोड़ों की सम्पत्ति साधुत्व की संपदा के आगे नाकुछ-सी होती है।
किसी गृहस्थ के पास भी साधुत्व जैसी अतुलनीय संपदा न भी हो तो गृहस्थ भी अपने जीवन में संयम और साधना, व्रत आदि के माध्यम से आध्यात्मिक संपदा को प्राप्त कर सकता है। श्रावकों के लिए बारह व्रत और सुमंगल साधना की बात बताई गई है, जिसके माध्यम से श्रावक अपने जीवन को प्रकर्ष की ले जा सकता है।
श्रावक को दो श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है-एक है धर्म आराधक श्रावक और दूसरा होता है धर्म प्रभावक श्रावक। धर्म आराधक श्रावक, ध्यान, साधना, तपस्या, गुरुसेवा आदि के माध्यम से धर्म की आराधना करता है तथा दूसरा धर्म प्रभावक श्रावक ध्यान, साधना, व्रत आदि भले ही उतना न करता हो, किन्तु सभा, संस्थाओं व संगठनों से जुड़कर धर्म को प्रचारित-प्रसारित करने का कार्य करता है। मूल बात है दुर्लभ मानव जीवन का धार्मिक-आध्यात्मिक लाभ उठाकर अपनी आत्मा के कल्याण का प्रयास होना चाहिए। आचार्यश्री ने कांदिवली आगमन के संदर्भ में तथा पूर्व में आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के कांदिवली भवन में विराजने के अनेक प्रसंगों का वर्णन करते हुए कहा कि इस भवन में धार्मिक-आध्यात्मिक गतिविधियां चलती रहें, लोगों का धार्मिक उत्थान होता रहे। आचार्यश्री ने आज दर्शन करने वाली साध्वियों को मंगल आशीर्वाद भी प्रदान किया।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने भी जनता को अभिप्रेरित किया। तदुपरान्त साध्वी विद्यावतीजी (द्वितीय) ने गुरुदर्शन से प्राप्त अहोभाव को अभिव्यक्त करते हुए अपने सहवर्ती साध्वियों संग गीत का संगान किया। साध्वी सोमलताजी व साध्वी संयमलताजी ने भी अपने हृदयोद्गार व्यक्त करते हुए सहवर्ती साध्वियों संग गीत का संगान किया।
आमदार श्री प्रकाश सुर्वे ने भी आचार्यश्री के स्वागत में अपनी अभिव्यक्ति दी और पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। श्री तुलसी महाप्रज्ञ फाउण्डेशन के अध्यक्ष श्री विनोद बोहरा ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मण्डल व तेरापंथ समाज-कांदिवली ने पृथक्-पृथक् स्वागत गीत का संगान किया। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण अभिव्यक्ति दी।
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चोर की ईमानदारी... प्रेरणादायक कहानी परम पूज्य गुरुदेव के मुखारविंद से