15.06.2023: Jain Swetambar Terapanthi Mahasabha

Published: 15.06.2023
Updated: 16.06.2023

Updated on 16.06.2023 08:53

घर की सफाई

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Posted on 15.06.2023 13:30

🌸 कमल की भांति संसार से रहें अलिप्त : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण 🌸

-आचार्यश्री की सन्निधि में पहुंचे बौद्ध धर्म के आचार्य डॉ. राहुल बोधि

-कांदिवली प्रवास के अंतिम दिन आचार्यश्री ने दी अनासक्ति की प्रेरणा

-श्रद्धालुओं ने प्रवचन श्रवण के बाद दर्शन, सेवा व उपासना का उठाया लाभ

15.06.2023, गुरुवार, कांदिवली, मुम्बई (महाराष्ट्र) :

कांदिवली तेरापंथ भवन में विराजमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के दर्शन, सेवा, उपासना का लाभ प्राप्त करने के लिए प्रवास के तीसरे दिन भी श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ता रहा। सूर्योदय से पूर्व ही श्रद्धालु अपने आराध्य की मंगल सन्निधि में पहुंचकर मंगलपाठ का श्रवण, दर्शन, सेवा व उपासना का लाभ प्राप्त करने के उपरान्त प्रतिदिन प्रवचन श्रवण से भी लाभान्वित हो रहे हैं।

गुरुवार को ‘सिद्ध मर्यादा समवसरण’ में शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में बौद्धधर्म के आचार्य डॉ. राहुलबोधि भी उपस्थित हुए। मंच पर दो धर्मों के आचार्यों का आध्यात्मिक मिलन से श्रद्धालु जनता हर्षविभोर नजर आ रही थी। आचार्यश्री के मंगल उद्बोधन से पूर्व डॉ. राहुल बोधिजी ने अपनी अभिव्यक्ति देते हुए कहा कि हमारे पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी भारत के विभिन्न प्रान्तों में पदयात्रा करते हुए लोगों को सुख-शांति प्राप्ति का मार्ग दिखा रहे हैं। आज आपश्री के मिलकर बहुत ही आनंद और एक अलग ऊर्जा का अनुभव कर रहा हूं। आप अपनी आचार्य परंपरा का पूर्ण जागरूकता के साथ पालन कर रहे हैं। आचार्यश्री तुलसीजी के समय से अभी तक हम लोगों का परस्पर मैत्री का सम्बन्ध है। सबका मंगल हो, ऐसी हम कामना करते हैं।

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि जीवन को चलाने के आदमी को अनेक प्रवृत्तियां करनी होती हैं। शरीर टिकाए रखने के लिए हवा, पानी, भोजन, कपड़ा, मकान, आवश्यकता पड़ने पर औषधि आदि की भी आवश्यकता होती है। इसके अलावा भी समाज के लिए, अर्थार्जन आदि-आदि के लिए आदमी अनेकानेक कार्य करता है। सम्बन्धों की दुनिया भी होती है। साधु का जीवन सम्बन्धातीत होता है। वह संसार के संयोग सम्बन्धों से मुक्त हो जाता है। गृहस्थ जीवन के संयोग सम्बन्धों को छोड़कर ही साधु बनता है। आत्मा को सघन कर्म बंधनों से बचाने के लिए साधु को तो अनासक्त होना ही चाहिए, गृहस्थ को भी चाहिए कि वह संसार में रहते हुए, समस्त कार्यों को सम्पादित करते हुए भी संसार से अनासक्त रहने का प्रयास करना चाहिए। जिस प्रकार कमल पत्र पानी में रहते हुए भी पानी से अलिप्त रहता है, उसी प्रकार आदमी भी संसार में रहते हुए भी संसार से अलिप्त रहने का प्रयास करे तो वह अपनी आत्मा को सघन कर्म बन्धनों से बचा सकता है।

जैन दर्शन नित्यानित्यवाद को मानने वाला है। आत्मा नित्य है और शरीर अनित्य है। शरीर और आत्मा का संयोग जीवन है। जहां केवल आत्मा हो अथवा केवल शरीर हो वहां जीवन नहीं होता। शरीर और आत्मा का वियोग मृत्यु है और सदा-सदा के लिए आत्मा का शरीर से मुक्त हो जाना मोक्ष, निर्वाण है। धर्मग्रन्थों से ज्ञान प्राप्त कर उसे अपने जीवन में उतारने का प्रयास हो।

आचार्यश्री ने जैन धर्म और बौद्ध धर्म के नैकट्य को प्रकाशित करते हुए कहा कि दोनों धर्मों में श्रमण परंपरा है। परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के समय भी अनेक बार मिलना हुआ है। आज भी मिलना हो गया। खूब अच्छा अध्यात्म का कार्य होता रहे।

आचार्यश्री के मंगल उद्बोधन के उपरान्त दोनों आचार्यों से एक-दूसरे का अभिवादन स्वीकार किया। कार्यक्रम में साध्वीवर्याजी ने लोगों को सम्बोधित किया। मुम्बई चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मदनलाल तातेड़, प्रेक्षा प्रशिक्षिका श्रीमती विमलादेवी दूगड़ व तेरापंथ महिला मण्डल-मुम्बई की अध्यक्ष श्रीमती रचना हिरण ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मण्डल व तेरापंथ कन्या मण्डल-मलाड ने गीत का संगान किया। प्रेक्षाध्यान साधना केन्द्र अशोक नगर द्वारा पूज्यप्रवर की अभिवंदना में गीत का संगान किया गया।

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