17.09.2023: Jain Swetambar Terapanthi Mahasabha

Published: 17.09.2023
Updated: 18.09.2023

Updated on 18.09.2023 08:08

पर्युषण महापर्व का अवसर मन भाया है..

पर्युषण महापर्व का अवसर मन भाया है..

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Posted on 17.09.2023 19:15

🌸 अठारहवें भव में वासुदेव बनी भगवान महावीर की आत्मा : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण 🌸

-जप की महत्ता को भी आचार्यश्री ने किया व्याख्यायित

-पर्युषण महापर्व का छठा दिन जप दिवस के रूप में हुआ आयोजित

-चारित्रात्माओं के उद्बोधन व संगान से लाभान्वित हो रही है जनता

17.09.2023, रविवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र) :

जैन धर्म का सबसे महत्त्वपूर्ण महापर्व पर्युषण मुम्बई महानगर के नन्दनवन परिसर में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में पूर्ण आध्यात्मिकता के साथ मनाया जा रहा है। हजारों-हजारों श्रद्धालु सूर्योदय के पूर्व से ही आध्यात्मिक गंगा में डुबकी लगाते हैं तो देर रात तक उसी धर्म और अध्यात्म की गंगा की धारा से स्वयं को सराबोर बनाए रह रहे हैं। सुगुरु की मंगलवाणी, मंगल आशीर्वाद के अतिरिक्त भी प्रायः पूरे दिन चारित्रात्माओं से भी अनेक रूपों में इस आध्यात्मिक अनुष्ठान में सहयोग प्राप्त हो रहा है।

ऐसे आध्यात्मिक माहौल में रविवार को जब मुम्बई की जनता विशेष रूप से नन्दनवन पहुंची तो मानों जनसैलाब उमड़ पड़ा। तीर्थंकर समवसरण का विशाल पण्डाल भी मानों छोटा महसूस हो रहा था। महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी के श्रीमुख से मंगल महामंत्रोच्चार के साथ पर्युषण महापर्व के छठे दिन के मुख्य कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। मुनि पार्श्वकुमारजी ने भगवान अरिष्टनेमि के जीवन वृत्तांत को सुनाया। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी व मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने तप-त्याग धर्म के विषय में श्रद्धालु जनता को उत्प्रेरित किया। साध्वी वैभवप्रभाजी ने जप दिवस के संदर्भ में गीत का संगान किया।

साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी जप दिवस के संदर्भ में जनता को उद्बोधित करते हुए मंत्र के महत्त्व को व्याख्यायित किया। भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा को आगे बढ़ाते हुए भगवान महावीर की आत्मा के अठारहवें भव पोतनपुर के राजा प्रजापति के पुत्र त्रिपृष्ठ के भव का वर्णन करते हुए कहा कि प्रति वासुदेव अश्वग्रीव ने अपना भविष्य जानने के लिए ज्योतिष को बुलाता है तो ज्योतिष ने उसके हंता के दो लक्षण बताते हुए कहा कि वह आपके दूत का अपमान करेगा और शेर के आतंक को समाप्त कर देगा। यह जानकारी होने के बाद अश्वग्रीव सतर्क हो जाता है। कुछ समय बाद अश्वग्रीव अपने दूत चण्डवेग को अन्य राजाओं को अपना संदेश देने के लिए भेजता है। दूत कई राज्यों की यात्रा करते हुए जब पोतनपुर पहुंचता है तो वहां संगीत का कार्यक्रम चल रहा होता है। इस बात से नाराज त्रिपृष्ठ ने दूत का अपमान कर देता है। दूत वापस आकर अश्वग्रीव को बताता है तो अश्वग्रीव को लक्षण की जानकारी हो जाती है। कुछ समय बाद अश्वग्रीव के क्षेत्र में शेर का आतंक होता है। वह सभी राजाओं को ग्रामीणों की सुरक्षा की बारी लगाता है। पोतनपुर के राजा के सुरक्षा की बारी आती है तो राजा के पुत्र त्रिपृष्ठ उन्हें मना कर स्वयं उनके स्थान पर जाता है। त्रिपृष्ठ रथ और शस्त्र को छोड़कर निहत्थे शेर से लड़ते हैं और शेर को मार डालते हैं। इसकी जानकारी जब अश्वग्रीव को होती है तो वह त्रिपृष्ठ को समाप्त करने की योजना बनाता है, अपने यहां न्योता पर त्रिपृष्ठ को बुलाना चाहता है, किन्तु वह नहीं आता है। अंत में अश्वग्रीव और त्रिपृष्ठ के बीच युद्ध होता है, त्रिपृष्ठ अश्वग्रीव का वध कर वासुदेव बन गए।

आचार्यश्री ने जप दिवस पर लोगों को पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि आज जप दिवस है। जितना संभव हो सभी को नमस्कार महामंत्र की एक माला प्रतिदिन करने का प्रयास करना चाहिए। जप का प्रयोग में जितना समय लग सके, अच्छा हो सकता है। आचार्यश्री ने संवत्सरी के संदर्भ में प्रेरणा प्रदान करते कहा कि संवत्सरी का उपवास करना तो सामान्य बात है। इस दिन बच्चों को भी भले ही कुछ घंटे आंशिक रूप में ही उपवास कराने का प्रयास होना चाहिए। उपवास के साथ पौषध आदि भी करने का प्रयास होना चाहिए। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में अनेक तपस्वियों ने अपनी-अपनी धारणा के अनुसार तपस्या का प्रत्याख्यान किया।

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