11.10.2023: Jain Swetambar Terapanthi Mahasabha

Published: 11.10.2023
Updated: 11.10.2023

Updated on 11.10.2023 15:34

कर्म के फल

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🌸 व्यक्ति स्वयं है अपने दुखों का कारण – आचार्य महाश्रमण🌸

- दुख प्राप्ति के कारणों का आचार्यश्री ने किया विवेचन

- साध्वीश्री पावनप्रभा जी को गुरुदेव ने कराया तीर संथारे का प्रत्याख्यान

11.10.2023, बुधवार, घोड़बंदर रोड, मुंबई (महाराष्ट्र)
अपने पावन प्रवचनों द्वारा मानव मन से अज्ञान रूपी अंधकार को मिटाकर ज्ञान का प्रकाश प्रकाशित करने वाले युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी का मुंबई चातुर्मास धार्मिक आयोजनों से मुंबई वासियों को लाभान्वित कर रहा है। श्रद्धालु वर्ग आचार्य श्री के दर्शन उपासना के साथ साथ साधु साध्वियों से कक्षा, सेमिनारों के माध्यम से जीवन विकास के सूत्रों को प्राप्त कर रहा है। कुछ ही दिन पूर्व हुई दीक्षा में समणी वर्ग से श्रेणी आरोहण करने वाली साध्वी श्री पावनप्रज्ञा जी को आज प्रातः आचार्यश्री ने 8 बजकर 7 मिनट पर तिविहार संथारे का प्रत्याख्यान करवाया। साध्वीश्री का स्वास्थ्य पिछले कुछ समय से अस्वस्थ चल रहा है। गत 5 अक्टूबर को आचार्यश्री ने उन्हें साध्वी दीक्षा प्रदान की थी।

वीतराग समवसरण में धर्म देशना देते हुए आचार्यश्री ने कहा– इस संसार में कोई भी दुख नहीं चाहता। यह प्रश्न हो सकता है कि दुःख स्वकृत होता है या परकृत ? भगवान ने कहा है कि दुख आत्म कृत ही होता है और उसके लिए हम स्वयं ही जिम्मेदार होते हैं, कोई दूसरा नहीं। यह आत्मा द्वारा कृत इस जन्म के या पिछले जन्मों के कर्मों का ही फल होता है जो व्यक्ति दुख को प्राप्त करता है। बीमारी, पारिवारिक समस्या, आर्थिक तंगी व प्रिय का वियोग, अविनीत संतान का योग जैसे अनेक कारण हो सकते है जिनके द्वारा दुख हो सकता है। दुख है तो उसका कारण व निवारण भी है। पाप का उदय दुख है तो उसका कारण है – आश्रव। मोक्ष पूर्ण दुख मुक्ति है तो उसका कारण है संवर व निर्जरा।

आचार्य श्री ने आगे विवेचन करते हुए कहा कि दुख को पैदा करने वाली हमारी आत्मा ही है, दूसरा कोई नहीं। आत्मा के द्वारा बांधे गये कर्म ही हम भोग रहे है। मूल हमारे आत्मकृत कर्म व निमित्त कोई भी बन सकता है, लेकिन निमित्त के प्रति हमारा वैर भाव नहीं होना चाहिए। जयाचार्य ने आराधना में लिखा है “पुन्य-पाप पूरब कृत, सुख-दुख ना कारण रे, पिण अन्य जन नहीं, इम करे विचारण रे, भावे भावना” इसके द्वारा हम अपने कर्मों की आलोचना कर सकते है। जब सुख-दुःख का कारण हमारी आत्मा ही है तो दूसरों पर द्वेष क्यों ? हमें स्थूल व निश्चय दोनों के प्रभाव को देखना है। इसलिए व्यक्ति जीवन में दुख की स्थिति में समता भाव रखने का प्रयास करे और किसी के प्रति द्वेष भाव न लाए।

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Posted on 11.10.2023 09:01


🌸 कुछ दिनों पूर्व समण श्रेणी से साध्वी के रूप में दीक्षित साध्वी पावनप्रज्ञाजी ने आज परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमणजी से तिविहार संथारा स्वीकार किया। 🌸

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