Updated on 18.11.2023 11:48
अणुविभा सोसायटी को गुरुदेव का मंगल आशीर्वचनअणुविभा सोसायटी को गुरुदेव का मंगल आशीर्वचन
Posted on 17.11.2023 10:39
🌸 कषायों का निरोध भी है एक अच्छी तपस्या : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण 🌸-अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी द्वारा पूज्य सन्निधि में पुरस्कार व सम्मान समारोह हुआ आयोजित
-शांतिदूत की सन्निधि में अणुव्रत का पुरस्कार मेरे लिए ऐतिहासिक : लेखक इकराम राजस्थानी
-आचार्यश्री की प्रेरणा व आशीर्वचन से लाभान्वित हुए पुरस्कार व सम्मान प्राप्तकर्ता
17.11.2023, शुक्रवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र) :
जन-जन में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की अलख जगाने वाले, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, अणुव्रत यात्रा के प्रवर्तक आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में शुक्रवार को अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी द्वारा अणुव्रत लेखक सम्मान, व अणुव्रत गौरव पुरस्कार प्रदान किया गया। पुरस्कार व सम्मान प्राप्तकर्ताओं ने अपने कृतज्ञभावों को अभिव्यक्ति दी तो शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उन्हें व अणुविभा सोसायटी को मंगल आशीर्वचन से अभिसिंचन प्रदान किया। आचार्यश्री के अनुग्रह को प्राप्त कर सम्मानित जन ही नहीं, उपस्थित जन-जन आनंद की अनुभूति कर रहा था।
शुक्रवार को तीर्थंकर समवसरण में उपस्थित श्रद्धालु जनता को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्र आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि भगवती सूत्र में वर्णित प्रति संलीनता में दूसरा है कषाय प्रति संलीनता। कषायों के कारण ही प्राणी इस संसार में परिभ्रमण कर रहा है। क्रोध, मान, माया और लोभ रूपी कषायों का यदि संयम हो जाए, उनका प्राणी निरोध कर दे तो वह इस संसार परिभ्रमण की स्थिति से मुक्ति भी प्राप्त कर सकता है। क्रोध आदमी के शरीर, वाणी और मन के भीतर ही छिपा हुआ होता है। आदमी को प्रयास यह करना चाहिए कि उसे क्रोध आए ही नहीं, यदि मन में क्रोध के भाव आ भी गए तो वह प्रयास करे कि क्रोध की अभिव्यक्ति वाणी से न हो। किसी को गाली दे देना, अनाप-सनाप बोलने से बचने का प्रयास हो। वाणी के साथ-साथ क्रोध के कारण शरीर का भी प्रयोग न हो इसका भी प्रयास करना चाहिए। क्रोध को विफल करने के लिए वाणी को मौन और शरीर को स्थिर रखने का प्रयास हो तो आदमी क्रोध को विफल कर सकता है। इसी प्रकार आदमी को अहंकार से भी बचने का प्रयास करना चाहिए। ज्ञान, धन, पद, प्रतिष्ठा, शक्ति आदि किसी चीज का अहंकार नहीं करना चाहिए। ज्ञान होने पर भी मौन हो जाना और शक्ति होने पर क्षमा करने से मनुष्य मान-सम्मान को प्राप्त कर सकता है। माया के वशीभूत होकर प्राणी समस्त बुरे काम करने को तत्पर हो जाता है। माया के कारण किसी दूसरे को ठगने, धोखा देने अथवा छल करने का प्रयास न हो। आदमी दूसरों के साथ छल करता है तो उसे भी कोई ठग सकता है। आदमी को अत्यधिक लोभ से भी बचने का प्रयास करना चाहिए। लोभ को पाप का बाप कहा गया है। इस प्रकार आदमी अपने कषायों का निरोध करे तो वह भी एक अच्छी तपस्या हो सकती है।
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी द्वारा अणुव्रत लेखक पुरस्कार व अणुव्रत गौरव पुरस्कार व सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। जिसमें अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी द्वारा अणुव्रत लेखक पुरस्कार राजस्थानी भाषा के प्रसिद्ध लेखक श्री इकराम राजस्थानी को और अणुव्रत गौरव पुरस्कार श्री डालचंद कोठारी को प्रदान किया गया। अणुव्रत लेखक पुरस्कार के प्रशस्ति पत्र का वाचन अणुव्रत लेखक मंच के संयोजक श्री वीरेन्द्र भाटी ‘मंगल’ ने तथा अणुव्रत गौरव पुरस्कार के प्रशस्ति पत्र का वाचन अणुविभा सोसायटी के उपाध्यक्ष श्री राजेश सुराणा ने किया। अणुव्रत गौरव पुरस्कार से सम्मानित श्री डालचंद कोठारी ने अपने कृतज्ञभावों को अभिव्यक्त किया।
प्रसिद्ध लेखक श्री इकराम राजस्थानी ने अपने आह्लादित भावों को अभिव्यक्त करते हुए कहा कि शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में अणुव्रत लेखक का पुरस्कार प्राप्त करना मेरे जीवन का ऐतिहासिक क्षण है। मैं धन्यता की अनुभूति कर रहा हूं। अणुव्रत आन्दोलन के प्रवर्तक आचार्यश्री तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञजी से भी मुझे आशीर्वाद प्राप्त हुआ है। वर्तमान में आचार्यश्री महाश्रमणजी भी अणुव्रत के माध्यम से जन-जन को मानवता की प्रेरणा प्रदान कर रहे हैं। आचार्यश्री के आशीष व प्रेरणा मुझे निरंतर प्राप्त होती रहे। इस सम्मान समारोह का संचालन अणुविभा सोसायटी के उपाध्यक्ष श्री प्रतापसिंह दूगड़ ने किया।
आचार्यश्री ने मंगल आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि अणुव्रत और महाव्रत दोनों ही संयम की साधना की स्थिति है। वह बहुत धन्यता की स्थिति होती है, जब कोई महाव्रत को स्वीकार कर साधु बन जाता है। सभी को महाव्रतों की साधना का अवसर न मिले तो अणुव्रत का पालन कर आदमी अपने जीवन को अच्छा बना सकता है। राजस्थानीजी अपनी लेखनी से दूसरों को भी प्रेरणा दें और उससे स्वयं भी प्रेरणा लेते रहें। खूब अच्छा धार्मिक-आध्यात्मिक विकास होता रहे। कोठारीजी की खूब अच्छी साधना-आराधना चलती रहे। अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी भी खूब अच्छा विकास करती रहे। अणुव्रत अमृत महोत्सव के राष्ट्रीय संयोजक श्री संचय जैन ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।
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