26.01.2024: Sangh Samvad

Published: 26.01.2024
Updated: 26.01.2024

Updated on 26.01.2024 17:44

अनुभव के बोल (१५)
लोकतंत्र को थामने वाले पवित्र हाथ
✍🏻 आचार्य महाप्रज्ञ
२१.०९.९३
🪡 लोकतंत्र का विकल्प क्यों खोजें : लोकतंत्र का विकल्प क्या हो सकता है?-- एक पत्रकार ने पूछा। मैने कहा--लोकतंत्र का विकल्प क्यों खोजते हो? शासनतंत्र की जितनी भी प्रणालियां हैं उनमें सबसे अच्छा विकल्प है --लोकतंत्र। उसकी श्रेष्ठता अभी खंडित नहीं हुई है। फिर विकल्प की खोज किसलिए? विकल्प खोजना चाहिए लोकतंत्र को चलाने वाले हाथों का, जो हाथ लोकतंत्र की डोर थामने में कांप रहे हैं।
🪡 लोकतंत्र का उजला पक्ष : लोकतंत्र ने सत्ता को इतना गतिशील बनाया कि वह जाति, संप्रदाय, गरीबी, अमीरी--इन सबसे परे जाकर किसी भी योग्य व्यक्ति का वरण कर सकती है। यह लोकतंत्र के चरित्र का सबसे उजला पक्ष है।
🪡 योग्यता की कसौटी : किंतु लोकतंत्र को चलाने वाले लोग अभी योग्यता की कोई कसौटी निश्चित नहीं कर पाए हैं। योग्यता की दो कसौटियां हो सकती हैं--चरित्र बल और बौद्धिक क्षमता। पता नहीं, क्यों लोकतंत्र के साथ अभी इन दोनों कसौटियों का मैत्री संबंध स्थापित नहीं हो पा रहा है। सत्ता और प्रशासन की कुर्सी पर आसन बिछाने वाले लोगों का अर्थ के प्रति घोर आकर्षण बता रहा है कि लोकतंत्र के सारथि का चरित्र-बल उन्नत नहीं है। अर्जुन को महाभारत की रणभूमि में सारथि मिल गया, लोकतंत्र का अर्जुन अभी भी सारथि की खोज में है। महाभारत हो रहा है, पर अर्जुन को सारथि नहीं मिल रहा है।
#अनुभवकेबोल
#लोकतंत्र


Updated on 26.01.2024 08:42

अनुभव के बोल (१४)
दोहरापन है तो सचेत हो जाएं
✍🏻 आचार्य महाप्रज्ञ
🪡 आदमी जीवन के नियमों का कितना उल्लंघन कर रहा है, इसे हर कहीं देखा जा सकता है। बाजार में, ऑफिस में, यहां तक कि धर्मस्थान में भी आदमी नियम का उल्लंघन करता है।
🪡 बाजार का भी अपना एक नियम है। लेकिन उस नियम का पालन कितने लोग करते हैं? दुकान पर बैठते ही आदमी क्या से क्या हो जाता है। थोड़ी देर पहले जो मंदिर में कीर्तन कर रहा था, पूजा की थाली उठाए आरती कर रहा था, अब दुकान पर बैठा अपने ग्राहकों को ठग रहा है।
🪡 ऑफिस का भी एक नियम है। जिम्मेदारी की कुर्सी पर बैठकर जो उसका उल्लंघन करता है, वह अनैतिक व्यवहार वाला ही कहा जाएगा। दीवार पर गांधीजी का फोटो टांगे है और उसी के नीचे बैठकर बड़े आराम से रिश्वत लेता है तो यह नियम का भंग ही है।
🪡 आचार्य तुलसी की भाषा में कहूं तो धर्मस्थान में जो पाया, उसकी क्रियान्विति का स्थल बाजार और ऑफिस है। अगर वहां आप मानवोचित व्यवहार करते हैं, जीवन के नियमों का सही पालन करते हैं तो समझें आपके जीवन में एकरूपता है। आपके जीवन की घड़ी बिल्कुल सही चल रही है। फिर आपके जीवन में किसी प्रकार का खौफ और उद्वेलन नहीं होना चाहिए। लेकिन जीवन में किसी प्रकार का दोहरापन है तो सचेत हो जाने की जरूरत है। रास्ता गलत हो रहा है तो तुरंत मोड़ लेने की जरूरत है।
#अनुभवकेबोल


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Posted on 26.01.2024 08:11

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