06.02.2024: Jain Swetambar Terapanthi Mahasabha

Published: 06.02.2024
Updated: 06.02.2024

Updated on 06.02.2024 14:45

भोजन के साथ.....

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Posted on 06.02.2024 12:40

🌸 उरण को तारने पधारे तेरापंथ के सरताज आचार्यश्री महाश्रमण 🌸

-उरणवासियों ने अपने आराध्य का किया भावभीना अभिनन्दन

-दो दिवसीय प्रवास हेतु उरण एजुकेशन सोसायटी में पधारे युगप्रधान आचार्यश्री

-मानव की सभी प्रवृत्तियां हों धर्ममय : अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमण

06.02.2024, मंगलवार, उरण, नवी मुम्बई (महाराष्ट्र) :

मायानगरी मुम्बई में वर्ष 2023 का पंचमासिक चतुर्मास तथा मायानगरी मुम्बई के विभिन्न उपनगरों की यात्रा के उपरान्त मुम्बई के विस्तृत भूभाग अर्थात नवी मुम्बई के वाशी में वर्ष 2024 में आयोजित होने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के महाकुम्भ 160वें मर्यादा महोत्सव के प्रवेश से पूर्व जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी रायगड़ जिले में स्थित मायानगरी के विस्तारित भूभाग को अपनी चरणरज से पावन बना रहे हैं।

महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगलवार को प्रातःकाल फुंडे से उरण की ओर गतिमान हुए। मुम्बई के इस बाहरी भाग में जहां सुबह में हल्की ठंड सी महसूस हो रहा है तो दूसरी ओर सूर्योदय के कुछ समय बाद ही सूर्य की तीव्र किरणें लोगों को पसीने से नहलाने में सक्षम बन जा रही हैं। ऐसी स्थिति में भी जनकल्याण के लिए गतिमान आचार्यश्री महाश्रमणजी की प्रसन्न मुखाकृति जन-जन को आस्थावान बना देती है। उरणवासी भी अपने आराध्य की अभिवंदना में आतुरता के साथ प्रतीक्षा कर रहे थे। जैसे ही आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ उरण की धरा पर पधारे तो उरणवासियों ने अपनी श्रद्धासिक्त भावांजलि अपने आराध्य के चरणों में अर्पित कर स्वागत किया। आचार्यश्री उरण के दो दिवसीय प्रवास के लिए उरण एजुकेशन सोसायटी में पधारे।

स्कूल परिसर में ही बने प्रवचन पण्डाल में उपस्थित जनता को परम पावन आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल संबोध प्रदान करते हुए कहा कि मनुष्य अपने जीवन में हर क्षण व्यवहार का प्रयोग करता है। खाना, पीना, सोना, बैठना, उठना, चलना आदि अनेक प्रवृत्तियां भी करता है। इन सभी प्रवृत्तियों के साथ यदि धर्म जुड़ जाए तो मानव का व्यवहार धर्ममय हो सकता है। चलने के साथ इस तरह धर्म को जोड़ा जा सकता है कि आदमी देख-देखकर सावधानी से चले, ताकि किसी प्रकार के जीव-जन्तु या कीड़े-मकोड़े न मरे। चलने का दौरान अनावश्यक विचार न करे और न ही अनावश्यक स्मृति कल्पना आदि में जाए तो आदमी के चलने के साथ भी धर्म जुड़ सकता है।

इसी प्रकार बोलने में भी आदमी को अनावश्यक बोलने से बचने का प्रयास करना चाहिए। अनपेक्षित कटु भाषा का प्रयोग नहीं करना, किसी के विषय में झूठ नहीं बोलना चाहिए। भोजन करते समय भी नहीं बोलना चाहिए। राग-द्वेष की भावना के साथ भोजन नहीं करना चाहिए। भोजन के समय उनोदरी रखने का प्रयास होना चाहिए। आदमी कुछ सोचे तो वह भी धर्ममय हो। बिना किसी चिन्ता, भय और आवेश के सोचे तो आदमी अच्छा सोच सकता है। शांति के साथ सोचना भी धर्ममय से युक्त हो सकता है। सब सुखी, निरामय और मंगल रहे, ऐसी सोच रखने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार सभी प्रवृत्तियों के साथ धर्म जुड़ जाए तो जीवन का कल्याण हो सकता है।

आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त उरणवासियों को पावन आशीष प्रदान करते हुए कहा कि यहां के लोगों में धार्मिक चेतना बनी रहे। साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने उरणवासियों को उद्बोधित किया। समणी निर्मलप्रज्ञाजी ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। स्थानीय स्वागताध्यक्ष व तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री भैरूलाल धाकड़ ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल ने स्वागत गीत का संगान किया।

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