11.02.2024: Jain Swetambar Terapanthi Mahasabha

Published: 11.02.2024

Posted on 11.02.2024 16:37

मर्यादा

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🌸 वाशी को काशी बनाने को तेरापंथ सरताज का भव्य मंगल प्रवेश 🌸

-160वें मर्यादा महोत्सव के लिए धवल सेना संग युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण ने किया वाशी में प्रवेश

-मर्यादा के महामहोत्सव से पूर्व प्रवेश स्वागत जुलूस में दिखी मर्यादा व अनुशासन की झलक

-मर्यादा महोत्सवकालीन प्रवास को भारतीय विद्या भवन में पधारे युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

-मर्यादा है महत्त्वपूर्ण तत्त्व, यत्नापूर्वक करें मर्यादा व अनुशासन की रक्षा : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण

-वाशीवासियों ने अपने आराध्य की अभिवंदना में अर्पित की अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति

11.02.2024, रविवार, वाशी, नवी मुम्बई (महाराष्ट्र) :

मायानगरी मुम्बई की 68 वर्षों की प्यास को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने वर्ष 2023 में चतुर्मास के माध्यम से बुझाई। तदुपरान्त आंतरिक तृप्ति प्रदान करने के लिए मायानगरी के विभिन्न उपनगरों को स्पर्श किया। अब श्रद्धा, भक्ति, व धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत करने के लिए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने वर्ष 2024 में तेरापंथ धर्मसंघ में मर्यादा के महाकुम्भ के नाम से विख्यात 160वें मर्यादा महोत्सव के लिए नवी मुम्बई के वाशी में मंगल प्रवेश किया। मर्यादा महोत्सव का महामंगल प्रवेश में भी मानों मर्यादा और अनुशासन की झलक दिखाई दे रही थी। हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति होने के बाद भी मार्ग से गुजरने वाले वाहनों को कोई असुविधा नहीं, उमंग और उत्साह होने के बाद भी निर्धारित मर्यादा का दायरा और अनुशासनात्मक पंक्ति मानों जन-जन के मन को आह्लादित बना रही थी। बुलंद जयघोष भी पूरे वातावरण को महाश्रमणमय बना रहे थे।

21 वर्षों के बाद बृहत्तर मुम्बई के अंतर्गत अत्याधुनिक रूप से सुज्जीत नवी मुम्बई का वाशी उपनगर जहां विकसीत भारत की छवि देखी जा सकती है। ऐसे उपनगर वाशी मंे रविवार को तेरापंथ धर्मसंघ ग्यारहवें अनुशास्ता ग्यारह फरवरी को ग्यारह दिनों के मर्यादा महोत्सवयुक्त प्रवास को पधारने वाले थे। भौतिक संपदाओं से सम्पन्न इस भूमि को आध्यात्मिकता से सम्पन्न बनाने के लिए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सानपाड़ा से मंगल प्रस्थान किया। अपने आराध्य की अभिवंदना को सज-धजकर वाशी और उसके वासी पलक-पांवड़े बिछाए खड़े थे। जैसे-जैसे आचार्यश्री अपनी धवल सेना का कुशल नेतृत्व करते हुए वाशी के सन्निकट हो रहे थे, वैसे-वैसे जनता का उत्साह, उल्लास, उमंग की लहरें ज्वार में बदलती जा रही थीं। आचार्यश्री द्वारा निर्धारित समय से पूर्व ही श्रद्धालु जनता निर्धारित स्थल पर अपने आराध्य द्वारा निर्धारित की गई मर्यादा रेखा और अनुशासन में दिखाई दे रहे थे। सबसे पहले ज्ञानशाला परिवार, तदुपरान्त तेरापंथ महिला मण्डल, तेरापंथ कन्या मण्डल, तेरापंथ किशोर मण्डल के बाद मुमुक्षु बहनों की पंक्तियां तदुपरान्त समणीवृंद, साध्वीप्रमुखाजी व साध्वीवृंद, उनके पीछे मुनिवृंद के पंक्ति के मध्य युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण और उसके बाद जनता का पारावार। उत्साह, उल्लास और उमंग के उठते ज्वार में इतनी मर्यादा नजर आ रही थी कि आने-जाने वाहनों को असुविधा भी नहीं हो रही थी। मर्यादित विशाल जुलूस के साथ तेरापंथ की मर्यादा के अग्रदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी गतिमान हुए। बुलंद जयघोष से वातावरण गुंजायमान हो रहा था। भव्य, विशाल और मर्यादित जुलूस के साथ आचार्यश्री ग्यारह दिवसीय प्रवास के लिए वाशी में स्थित भारतीय विद्या भवन में पधारे।

प्रवास स्थल से कुछ दूरी पर स्थित महाराष्ट्र भवन के प्लॉट में बने विशाल मर्यादा समवसरण में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल महामंत्रोच्चार से आज के कार्यक्रम का मंगल शुभारम्भ हुआ। तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री विनोद बाफना, मर्यादा महोत्सव के स्वागताध्यक्ष श्री चांदरतन दूगड़ ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। वाशी तेरापंथ महिला मण्डल की सदस्याओं ने स्वागत गीत का संगान किया। साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने उपस्थित जनता को उद्बोधित किया।

आचार्य भिक्षु के परंपर पट्टधर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मर्यादा समवसरण से उपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आज मर्यादा महोत्सव के संदर्भ में नवी मुम्बई के वाशी में हमारा आना हुआ है। चतुर्मास नंदनवन की कुछ झलक वाशी में देखने को मिल रही है। चतुर्मास के बाद मर्यादा महोत्सव भी तेरापंथ के इतिहास में जुड़ जाता है। यह 160वां मर्यादा महोत्सव है। परम पूजनीय आचार्यश्री भिक्षु की इस परंपरा में चतुर्थ आचार्य मर्यादा महोत्सव के प्रणेता श्रीमज्जयाचार्यजी ने प्रारम्भ किया, जो आज भी चल रही है।

मर्यादा महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। जिस प्रकार कपड़ों को सुरक्षित रखने पर कपड़ा हमारे शरीर की रक्षा करता है, उसी प्रकार मर्यादा और अनुशासन की रक्षा करने से स्वयं की रक्षा होती है। इसी प्रकार आत्मानुशासन भी आवश्यक होता है। स्वयं के द्वारा स्वयं पर अनुशासन की बात हो जाए तो बहुत बड़ी उपलब्धि हो सकती है। आचार्यश्री ने आगे कहा कि हमारे धर्मसंघ में एक तंत्र है, जिसमें सत्ता का मूल केन्द्र आचार्य को बनाया गया है। साधु-साध्वी और श्रावक-श्राविका युक्त चतुर्विध धर्मसंघ के अनुशास्ता आचार्य होते हैं। संघ और संगठन को मर्यादा पुष्ट बनाने वाली होती है। हमारे धर्मसंघ में बहुत-सी मर्यादाएं हैं, किन्तु ‘सर्व साधु-साध्वियां एक आचार्य की आज्ञा में रहें’ यह सबसे बड़ी मर्यादा हो। संघ हो या संगठन, मर्यादा, अनुशासन होता है तो उन्नति की बात हो सकती है। आदमी को मर्यादा में रहने का प्रयास करना चाहिए। हमारे धर्मसंघ के नवमाधिशास्ता आचार्यश्री तुलसी ने सर्वाधिक मर्यादा महोत्सव किए थे। आचार्यश्री ने वासियों को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।

मुम्बई प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मदनलाल तातेड़, तेरापंथ युवक परिषद-वाशी के अध्यक्ष श्री महावीर सोनी, श्री मनोहरलाल गोखरू व श्री ललित बाफना ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ युवक परिषद ने स्वागत गीत का संगान किया। ज्ञानशाला का नन्हा बालक गर्व सोनी ने आचार्यश्री के समक्ष तात्त्विक गीत का संगान किया।

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