Posted on 28.02.2024 13:46
🌸 लोभ पाप का बाप, इसलिए हो अलोभ की चेतना का विकास : अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमण 🌸-तारा में स्थित युसुफ मेहर अली सेण्टर पूज्यचरणों से हुआ पावन
-आचार्यश्री ने किया 14 कि.मी. का प्रलम्ब विहार
28.02.2024, बुधवार, तारा, पनवेल, रायगड (महाराष्ट्र) :
जन-जन में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की ज्योति जलाने और लोगों को सन्मार्ग पर लाने को निरंतर गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना संग वर्तमान में मुम्बई-गोवा राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-66 से कोंकण क्षेत्र की ओर प्रवर्धमान हैं। बुधवार को प्रातःकाल अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पलस्पे के छत्रपति शिवाजी महाराज विद्यालय से मंगल प्रस्थान किया। राजमार्ग पर गतिमान राष्ट्रसंत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मार्ग में दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं को अपने दर्शन और मंगल आशीर्वाद से लाभान्वित किया।
आचार्यश्री लगभग चौदह किलोमीटर का विहार कर तारा में स्थित युसुफ मेहरअली सेण्टर परिसर में पधारे। इस सेण्टर से जुड़े हुए लोगों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया एवं मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। इस सेण्टर के सभागृह में उपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि शास्त्र में कहा गया कि जैसे-जैसे लाभ होता है, वैसे-वैसे लोभ बढ़ता चला जाता है। लाभ से लोभ बढ़ता है, यह शास्त्र की वाणी है। आदमी कुछ और ज्यादा पाने की आकांक्षा पैदा हो जाती है। आदमी को अपने जीवन में संतोष को धारण करने का प्रयास करना चाहिए। शास्त्र में बताया गया है कि अति लाभ होने पर भी आदमी को अपनी इच्छाओं को स्वल्प रखने का प्रयास करना चाहिए।
आदमी को अपनी इच्छाओं को संयमित करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को उपभोग में संयम रखने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ अपने भोगों का सीमा करे और उपभोग में भी संयम रखने का प्रयास करना चाहिए। लोभ को पाप का बाप कहा गया है। लोभ एक ऐसा विकार है जो आदमी के साथ दसवें गुणस्थान तक भी बना रहता है। इसलिए कभी साधु आदि में भी लोभ की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। गरीबी, बेरोजगारी, भूख आदि लोभ और उसके साथ अपराध को बढ़ावा देने के निमित्त बन सकते हैं, किन्तु जिसका आंतरिक मनोभाव पुष्ट हो कि अभाव हो तो हो, किन्तु किसी प्रकार के अपराध में लोभ के कारण हिंसा, चोरी, झूठ, बेईमानी आदि में जाने से बचने का प्रयास करना चाहिए। लोभ को अलोभ की चेतना के माध्यम से समाप्त करने का प्रयास होना चाहिए।
आदमी के जीवन में अलोभ की चेतना का विकास हो। भीतर में संतोष की भावना का विकास हो तो आदमी लोभ और उससे होने वाले अनेक पापों से स्वयं को बचा सकता है। पापों से बचने वाला आदमी तथा धर्म-ध्यान, साधना-स्वाध्याय, जप-तप आदि से युक्त आदमी अपने जीवन का कल्याण कर सकता है। आचार्यश्री ने अभिप्रेरित करते हुए कहा कि अणुव्रत के छोटे-छोटे संकल्पों को स्वीकार कर भी आदमी अपने भीतर संतोष के भावों को पुष्ट बना सकता है। इस दौरान आचार्यश्री ने आंशिक रूप में ‘अणुव्रत गीत का संगान किया।’ आचार्यश्री ने सेण्टर में अपने आगमन के संदर्भ में कहा कि आज हमारा यहां आना हुआ है। यहां भी खूब धार्मिक-आध्यात्मिक विकास होता रहे।
युसुफ मेहरअली सेण्टर के ट्रस्टी अनिल काम्बले ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त किया व श्रीचरणों में अपनी प्रणति अर्पित कर आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।
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