21.05.2024: Sangh Samvad

Published: 21.05.2024
Updated: 22.05.2024

Updated on 22.05.2024 06:53

21.05.2024, मंगलवार, जालना (महाराष्ट्र)

आत्मवाद व कर्मवाद को समझने से जागृत हो सकता है वैराग्य : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण

-50वें दीक्षा कल्याण महोत्सव वर्ष के छहदिवसीय कार्यक्रम का पांचवा दिवस

-अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल ने की अपने आराध्य की अभिवंदना

-आचार्यश्री ने अंतिम श्वास तक संयम पर्याय के पालन की दी पावन प्रेरणा

जालना की धरा मानों उत्सवों से सराबोर हो रही है। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, शांतिदूत, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी का जन्मोत्सव, पट्टोत्सव सहित 50वें दीक्षा कल्याण महोत्सव वर्ष की सम्पन्नता जैसे महनीय कार्यक्रमों की साक्षी बन रही यह नगरी तेरापंथ के इतिहास में भी मानों अपना विशिष्ट स्थान बना रही है। श्री गुरु गणेश तपोधाम परिसर तो मानों श्रद्धालुओं की उपस्थिति से जनाकीर्ण-सा बना हुआ है। यहां महाराष्ट्र ही नहीं, भारत व विदेशी धरती पर भी रहने वाले तेरापंथी श्रद्धालुओं बड़ी संख्या में पहुंच रहे हैं।

मंगलवार को संयम समवसरण में 50वें दीक्षा कल्याण महोत्सव सम्पन्नता समारोह के पांचवें दिन के कार्यक्रम का शुभारम्भ भी शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ हुआ। इसके पूर्व आज आचार्यश्री जालना नगर में पधारे। नगर परिभ्रमण के दौरान सैंकड़ों श्रद्धालुओं को अपने-अपने घरों आदि के निकट आचार्यश्री के दर्शन व मंगलपाठ सुनने का सौभाग्य ही सहज रूप में प्राप्त हो गया।

नगर भ्रमण के उपरान्त प्रवास स्थल में पधारे महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अल्प समय के बाद ही संयम समवसरण में पधार गए। आचार्यश्री के मंचासीन होने के पूर्व उपासक श्रेणी के संयोजक श्री सूर्यप्रकाश श्यामसुखा, तेरापंथ महिला मण्डल-जालना ने गीत का संगान किया। खुश गेलड़ा व पूर्व न्यायाधीश श्री गौतम चोरड़िया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। जालना ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी प्रस्तुति दी।

तत्पश्चात तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित जनता को श्रीमुख से पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि जैन दर्शन में अनेक सिद्धांत हैं, जिनमें आत्मवाद सबसे महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है। आत्मा शाश्वत, अमूर्त, अनश्वर, सकुंचन व विकुचन से युक्त होती है। आत्मा अदाह्य, अकलेद्य, अशोष्य, अछेद्य भी होती है। एक आत्मा अपना विस्तार करती है तो पूरे लोक में फैल जाती है और संकुचित होती है तो चींटी हो या उससे भी छोटा जीव, उसमें भी समाहित हो सकती है। आत्मवाद से ही जुड़ा हुआ कर्मवाद भी है। सबके अपने-अपने कर्म हैं। सभी किए कर्मों का फल भी होता है। सभी प्राणी अपने द्वारा किए गए कर्मों का फल ही भोगते हैं, यह भी सत्य है। आदमी कर्मवाद को अच्छे से समझ से तो उसे पापों से बचने की प्रेरणा भी प्राप्त हो सकती है। यदि कोई आत्मवाद और कर्मवाद को अच्छी तरह समझ ले तो उसके भीतर वैराग्य के भाव भी उजागर हो सकते हैं। आदमी साधुत्व की प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़ सकता है। संतों, गुरुओं की कल्याणीवाणी अथवा कोई घटना प्रसंग भी आदमी के जीवन की दशा व दिशा सुधारने में सहायक बन सकती है। किसी घटना से अभिप्रेरित होकर भी आदमी संयम पथ पर चलने को तत्पर हो सकता है। धार्मिक ग्रंथों को पढ़ने से भी चिंतन में परिवर्तन आ सकता है। जैन दर्शन में नव तत्त्व की बात भी आई है। इन्हीं नव तत्त्वों में अध्यात्म समाहित हो सकता है।

आचार्यश्री ने आगे कहा कि कर्म किसके कितने हल्के हैं, यह मुख्य बात होती है। भगवान महावीर की आत्मा ने कितने-कितने जन्म लिए। कभी चक्रवर्ती, वासुदेव, स्वर्ग तो कभी नरकगामी भी बनी। अनेकानेक योनियों का परिभ्रमण उनकी आत्मा ने किया। बाद में वे तीर्थंकर भी बने। इस प्रकार आदमी को अपने कर्मों को हल्का रखने का प्रयास करना चाहिए। मानव जीवन में चारित्र की प्राप्ति अर्थात् साधुत्व को प्राप्त कर लेना बहुत बड़ी बात होती है। संतों के प्रवचन, ग्रंथ के आलंबन से भी कितनों के जीवन का कल्याण हो सकता है। उपादान और निमित्त दोनों का संबंध होता है। उपादान हो और निमित्त मिल जाए तो जीवन में साधुत्व और कभी मोक्ष की दिशा में भी गति हो सकती है। दीक्षा से पूर्व शिक्षा, परीक्षा व समीक्षा भी जाए तो दीक्षा के योग्य को ही दीक्षा की प्राप्ति हो सकती है। वर्तमान में पारमार्थिक शिक्षण संस्था हमारे तेरापंथ धर्मसंघ में ट्रेनिंग सेण्टर-सा है। यह योग्य और अयोग्य को जांचने का एक माध्यम है। जीवन में दीक्षा लेना तो बड़ी बात होती ही है, संयम जीवन प्राप्त कर उसे अंतिम श्वास तक निभा देना और भी बड़ी बात होती है। संयम का खण्डन न हो, ऐसा प्रयास करना चाहिए।

आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री की अभ्यर्थना में साध्वीवृंद ने अपनी प्रस्तुति दी। तदुपरान्त अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल की महामंत्री श्रीमती नीतू ओस्तवाल ने आचार्यश्री महाश्रमण दीक्षा कल्याण महोत्सव वर्ष के संदर्भ में अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल द्वारा किए गए विभिन्न कार्यक्रमों की जानकारी दी। साथ ही अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल से जुड़ी सदस्याओं ने कार्यक्रमों से संदर्भित प्रतिकृति के द्वारा प्रस्तुति भी दी। मुमुक्षु सलोनी नखत व श्रीमती बिन्दु नखत ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। मुख्यमुनिश्री के संसारपक्षीय कोचर परिवार ने गीत का संगान किया। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के महामंत्री श्री बिनोद बैद ने भी आचार्यश्री की अभ्यर्थना में अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी।

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Updated on 21.05.2024 06:49


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Posted on 21.05.2024 06:48

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