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अहिंसा यात्रा के साथ आचार्य बुधवार को कुंचोली से विहार कर कुंठवा पहुंचे, धर्मसभा में दिए प्रवचन
क्रोध के नशे को त्यागें: महाश्रमण
खमनोर जैन तेरापंथ समाचार ब्योरो
आचार्य महाश्रमण ने कहा कि क्रोध प्रीति भाव का नाशक है। क्रोध करने से प्रेम, सौहार्द कम हो जाता है। जीवन की सरलता के लिए प्रयास करें कि आक्रोश भाव प्रतनू (कमजोर) हो। मन के धरातल से क्रोध के नशे को त्याग दें। वे बुधवार को राजसमंद जिले के खमनोर क्षेत्र के कुंठवा गांव में अहिंसा यात्रा के पड़ाव के दौरान आयोजित धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। आचार्य ने मनुष्य में क्रोध भाव की उपज का कारण बताते हुए कहा कि मोहकर्म के दबाव से क्रोध का जन्म होता है। झगड़ा व किसी का अपमान करना आसान है, लेकिन प्रतिकूलता में भी क्षमा भाव रखना बड़ा गुण है। व्यक्ति को नम्र, शिष्ट भाव रखना चाहिए। आचार्य ने बताया कि कुल 18 प्रकार के पापों से मुक्त होना मनुष्य जीवन की सुंदर साधना है। उन्होंने बंधन मुक्ति को मानव के भीतर का तत्व बताया।
दांपत्य जीवन में शांति गृहस्थ जीवन की श्रेष्ठ साधना: आज के परिवेश में विखंडित हो रहे दांपत्य संबंधों पर चिंता व्यक्त करते हुए इसे कायम रखने का सूत्र बताया कि दांपत्य में शांति की स्थापना गृहस्थ जीवन की श्रेष्ठ साधना है। पति-पत्नी एक-दूजे के साथ वह व्यवहार करें कि चित्त समाधि में बाधा उत्पन्न न हो, बल्कि वे एक-दूसरे के आध्यात्मिक विकास में सहायक बनें।
प्रसन्नता का राज-वर्तमान में जीएं: प्रसन्न रहने के उपाय पर उन्होंने कहा कि वर्तमान में जीएं। अहिंसा को जीवन में आत्मसात करें। धर्म को न भूलें। कहीं भी रहें, संत प्रवास का लाभ लें।
संतों से कुछ न कुछ जरूर लें: मुनि सुमेरमल: धर्मसभा में मुनि प्रवर सुमेरमल ने कहा कि संतों के समक्ष झूठ बोलना भगवान से झूठ बोलने के समान है। संतों के पास यदि आएं हैं तो कुछ न कुछ लेकर जरूर जाएं।
आचार्य महाश्रमण 28 वर्ष के लंबे अंतराल के बाद बुधवार को दुबारा गांव में पधारे। उन्होंने 28 वर्ष पूर्व की अपनी यात्रा का वर्णन करते हुए बताया कि उस समय उनके साथ आचार्य तुलसी व आचार्य महाप्रज्ञ थे, लेकिन वह उस समय आचार्य नहीं थे और वह अहिंसा सेना में एक युवा मुनि के रूप में शामिल थे।
खमनोर. कुंठवा में आयोजित धर्मसभा में शामिल श्राविकाएं। फोटो भास्कर