If you are the orator then think - do you speak to entertain the people or to increase their knowledge or do you speak to increase detachment and life purgation?
Taken From "Roj Ki Ek Salah" - Book by Acharya Mahashraman
तुम वक्ता हो तो सोचो - तुम लोगों का मनोरंजन करने के लिए बोलते हो अथवा उनका ज्ञानवर्धन करने के लिए बोलते हो अथवा उनका वैराग्यवर्धन व जीवन परिष्करण करने के लिए बोलते हो?