Short News in English:
Location: | Kelwa |
Headline: | Keep Good Atmosphere in Family◄ Acharya Mahashraman |
News: | Family member can make their home as good as heaven by good behavior. People should practice Sadhana. Peace and happiness give feeling of heaven. Muni Dinesh Kumar will give training in Jain Vidhya Workshop. |
News in Hindi:
केलवा में चातुर्मास के तहत चल रहे प्रवचन में आचार्यमहाश्रमण ने कहा, आज उपासक प्रशिक्षण शिविर की प्रवेश परीक्षा
‘परिवार में अच्छे वातावरण के लिए सुसंस्कार की जरूरत’
केलवा में चातुर्मास के तहत चल रहे प्रवचन में आचार्यमहाश्रमण ने कहा, आज उपासक प्रशिक्षण शिविर की प्रवेश परीक्षा
केलवा WEDNESDAY, 20 JULY 2011 जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
मनुष्य में किसी प्रकार का ज्ञान हो अथवा ना हो, लेकिन उसे साधना अवश्य करनी चाहिए। परिवार स्वर्ग तभी बन सकता हैं, जब पति-पत्नी, भाई-भाई, पिता-पुत्र में किसी तरह का राग-द्वेष न हो। उनमें संपत्ति इत्यादि को लेकर किसी तरह खींचतान का भाव ना हो, क्योंकि इस तरह के भाव जीवन में आने से घर का वातावरण स्वर्ग की बजाय नरक बन जाता है। परिवार स्वर्ग की राह पर तभी चल सकता है, जब सदस्यों में कटुता के भाव का समावेश न हो। परिवार में संस्कार अच्छे होना आवश्यक है।
संस्कारित जीवन के अभाव में कलह, विपत्ति, नशाखोरी और परस्पर झगड़े की नौबत हमेशा बनी रहेगी। यह विचार आचार्य महाश्रमण ने मंगलवार को केलवा में भिक्षु विहार में चल रहे चातुर्मास कार्यक्रम में व्यक्त किए। उन्होंने संबोधि के तीसरे अध्याय में उल्लेखित निर्मल चेतना के संदर्भ में कहा कि जिस मनुष्य के चित्त में निर्मल का भाव नहीं है और जो भौतिकता से भरे जीवन के सुख को छोड़ नहीं सकता, उसे मोक्ष मार्ग की प्राप्ति नहीं होती। इसके लिए मनुष्य को माया, मोह के परित्याग के साथ सांसारिक दलदल से दूर रहकर निर्मल भाव से ध्यान, आराधना करनी होगी तभी उसका मानव जीवन सार्थक हो सकेगा।
कुछ समय उपासना में लगाएं:
आचार्य ने पांडाल में मौजूद श्रावक-श्राविकाओं से आग्रह किया कि वे परिवार की सुख-शांति के लिए भौतिक लालसाओं का परित्याग कर जीवन का कुछ समय उपासना में लगाएं, क्योंकि धार्मिकता के साथ साधना भी आवश्यक हैं। स्वर्ग सुख और शांति का प्रतीक है।
व्यवहार में लाएं मधुरता:
मंत्री सुमेरमल ने कहा कि व्यक्ति को रोजमर्रा के जीवन में मधुरता लानी चाहिए। मनुष्य की पहचान उसके कार्यों, बोलचाल, रहन-सहन से होती है। ऐसे में यदि वह असभ्य बातों का उच्चारण अपने जीवन में करेगा, तो उसका असर परिवार के साथ समाज पर भी पड़ेगा। इससे बचने के लिए वे अपने घर का वातावरण धर्ममय बनाने की दिशा में पहल करें। दैनिक जीवन में धार्मिक क्रिया की पहल की जाए, तो देवता भी उस घर में निवास करते हैं। कलह से भरे वातावरण में देवता भी आने से कतराते हैं। इसलिए चिंतन करने की महत्ती आवश्यकता है, क्योंकि धर्म देखने की नहीं वरन जीने की वस्तु है।
उपासक प्रशिक्षण शिविर आज से
मुनि योगेश कुमार ने बताया कि बुधवार से उपासक प्रशिक्षण शिविर शुरू होगा।इस शिविर में शामिल होने से पूर्व दोपहर एक बजे प्रवेश परीक्षा होगी। इसमें 70 फीसदी अंक प्राप्त करने वाले संभागी दस दिन तक चलने वाले शिविर में भाग ले सकेंगे। वर्तमान में 270 उपासक जुड़े हुए हैं और देश के विभिन्न हिस्सों में यात्रा कर चुके हैं। अंत में मंगलगान हुआ।
जैन धर्म महान क्यों
सोमवार रात को तेरापंथ युवक परिषद की ओर से आयोजित जैन विद्या कार्यशाला में जैन धर्म महान क्यों? विषय पर चर्चा की गई। इस दौरान आचार्य महाश्रमण ने कहा कि राग, द्वेष, विजेता, अनंत ज्ञान से संपन्न साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका इन चार तीर्थों की स्थापना करने वाले तीर्थंकर जिन कहलाते हैं।
उन्होंने आज के युग को बुद्धि और तर्क की संज्ञा देते हुए आचार्य तुलसी के श्लोक के माध्यम से जैनधर्म की महानता को परिभाषित किया। साथ ही सात मानकों पर विस्तार से चर्चा की। कार्यशाला के प्रशिक्षक मुनि दिनेश कुमार ने आयोजन की उपादेयता और आज के परिवेश में इसकी आवश्यकता पर प्रकाश डाला।