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Jasol: 05.07.2012
Acharya Mahashraman said that to hear Pravachan is useful in many ways. A person who is giving Pravachan is doing Sadhana. People who are hearing Pravachan can learn many new things. When they hear Pravachan that time they stay away from activities of sin. Good concentration can be practiced. Pravachan is means of Nirjara.
News in Hindi
सुबह-सुबह लें आध्यात्मिक खुराक: आचार्य
जसोल ५जुलै २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
जैन तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें आचार्य महाश्रमण ने प्रवचन श्रवण को उपयोगी व महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि चातुर्मास के समय खासकर सुबह के समय एक आध्यात्मिक खुराक श्रोताओं को मिलनी चाहिए। आगम, अध्यात्म, शास्त्र, सुंदर आख्यान होने से सवेरे -सवेरे मन प्रसन्न हो जाता है। क्योंकि चातुर्मास का समय आराधना का होता है और उसमें भी श्रावण मास व संवत्सरी का समय विशेष आराधना का होता है। श्रोता भी कुछ सुनने की उम्मीद लेकर आते हैं। उनकी उम्मीद के प्रति भी न्याय हो। आचार्य जसोल में धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि प्रवचन करना भी साधना है। अनेक लाभ प्रवचन श्रवण से हो जाते हैं। कहीं और होते हैं तो सावद्य काम भी कर सकते हैं पर प्रवचन में बैठने से अनेकों पापों से सहज ही बचाव हो रहा है। प्रवचन श्रवण से मन के एकाग्र होने का मौका मिलता है और अनेकों जानकारियों प्रवचन से श्रोताओं को मिल सकती है। पहले से प्राप्त जानकारी वापिस सुनने पर पुष्ट हो जाती है। अच्छे प्रवचनकार को सुनने पर श्रोता भी अच्छा प्रवचन दे सकता है और भाषा का ज्ञान भी हो सकता है। उन्होंने कहा कि प्रवचन श्रवण की बाते जीवन में नहीं भी आए तो भी घाटे का सौदा नहीं है।
अच्छी बातों को सुनने से कानों को पवित्र होने का मौका मिलता है। आचार्य ने कहा कि श्रोता को प्रवचन से ज्यादा लाभ मिले या न मिले परंतु प्रवचनकार को लाभ जरूर मिलता है। व्याख्यान दूसरों पर उपकार करने के लिए दिया जाता है। वह निर्जरा का साधन बनता है। साधु-साध्वी को श्रम की परवाह व्याख्यान देने नहीं करनी चाहिए।
चाहे प्रवचन श्रमण करने लोग कम हो या न भी हो। लोग नहीं भी आए तो समय पर अपना काम तो शुरू कर दे तो स्वाध्याय तो हो ही जाएगा। हितकारी उपदेश देने वाला व्यक्ति बातों का उपकार करता है। सभी को व्याख्यान की नियमितता पर ध्यान देना चाहिए।
कार्यक्रम की शुरुआत में कन्या मंडल की ओर से कविता प्रस्तुत की गई। प्रवचन के बाद आचार्य तुलसी की ओर से डालिम चारित्र का आख्यान शुरू हुआ। विभिन्न साधु-साध्वियों, समण-समणियों के चातुर्मास की फड़द व पावस प्रवास पुस्तक आचार्य को प्रवास व्यवस्था समिति के पदाधिकारियों की ओर से भेंट की गई। इस फड़द व पावस प्रवास को बनाने में साधु, साध्वियों, समणियों, मुमुक्षु बहनों सहित निकीर्ति कुमार व साध्वी कल्पलता का विशेष श्रम नियोजित हुआ। अंत में मुनि परमानंद ने सभी श्रावकों को श्रावक प्रतिक्रमण सीखने की प्रेरणा दी। बाबूलाल देवता ने 71 दिन उपवास के साथ 10 दिन की ओर उपवास की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। घेवरचंद मेहता ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि हिमांशु कुमार ने किया।
आचार्य महाश्रमण ने धर्मसभा में बताए प्रवचन श्रवण के फायदे