ShortNews in English
Jasol: 08.10.2012
Acharya Mahashraman told desires are unlimited. People can be happy by complacency.
News in Hindi
जसोल (बालोतरा) ०८ अक्तूबर २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
इच्छा आकाश के समान अनंत होती है। जो लोग मूढ़ होते हैं, वे असंतोष में रहने वाले होते हैं और जो अमोह की साधना करने वाले होते हैं वे संतोष को धारण करते हैं। असंतोष का अंत नहीं है, संतोष ही परमसुख है। यह व्यक्ति को संतोष की वृत्ति रखने की प्रेरणा देने वाला मंगल वक्तव्य तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने रविवार को विशेष प्रवचन श्रृंखला के अंतर्गत 'मूल्य इच्छा परिमाण का' विषय पर दिया। उन्होंने कहा कि इच्छा हर आदमी में होती है। कुछ में इच्छाएं बड़ी होती है, किसी में कम और बहुत ही कम लोगों में इच्छा होती ही नहीं है। इच्छाओं का अल्पीकरण कर लेना, सीमा कर लेना, इच्छा परिमाण होता है। साधुओं के लिए अपरिग्रह की बात होती है। गृहस्थों में इच्छा परिमाण की बात होती है। साधु के पास कोड़ी (पैसा) होने पर वह कोड़ी (मूल्यहीन) और गृहस्थ के पास कोड़ी नहीं होने पर वह कोड़ी का हो जाता है। साधु को तो अणगार रहना चाहिए। यानि साधु का अपने स्वामित्व का मकान नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि वह आदमी दरिद्र होता है, जिसके पास वस्तु होने पर भी वह मना करता है। दान भी एक प्रकार का लौकिक धर्म है।
आचार्य ने प्रेरणा देते हुए कहा कि आदमी एक अवस्था के बाद जीवन को धर्म की साधना में लगाए। उसे आत्मकल्याण में लग जाना चाहिए। व्यक्ति को समता भाव में रहना चाहिए और मोह से उपरत होना चाहिए। व्यक्ति पैसों का उपयोग सामाजिक हित में करें। यह पैसे का लौकिक दृष्टि से महत्व होता है। कार्यक्रम में मंत्री मुनि सुमेरमलर का प्रेरणादायी उद्बोधन हुआ।