ShortNews in English
Asadha: 22.01.2013
Acharya Mahashraman said ego is your enemy and alertness is your friend. Ego is hurdle in progress.
News in Hindi
अहंकार शत्रु है और अप्रमाद मित्र
आसाडा 22 जनवरी 2013 जैन तेरापंथ समाचार ब्योरो
बालोतरा दुनिया में शत्रु कौन है और मित्र कौन है? समाधान की भाषा में कहा गया कि 'माणो अरी किं हियमप्पमाओ' अहंकार शत्रु है और अप्रमाद मित्र है। दूसरे शत्रु नुकसान करें या न करें, किंतु आदमी में अहंकार है तो वह अपना नुकसान कर लेता है। अहंकार एक ऐसा भावनात्मक दोष है जो आदमी को ऊपर उठने से बाधित कर लेता है। आदमी की यह दुर्बलता है कि वह थोड़ा कुछ पाकर ही अहंकार में आ जाता है। थोड़ा ज्ञान मिल जाए, थोड़ा धन मिल जाए और सत्ता में आ जाए फिर तो कहना ही क्या? राजस्थानी साहित्य में ठीक कहा गया कि भरिया तो छलकै नहीं, छलकै सो आधा। एक घड़े में यदि पानी पूरा भरा हुआ है तो वह छलकता नहीं है। जिसके पास थोड़ा है, अल्प है, उसे ही अहंकार सताता है। जिसके पास सब कुछ है, उसके पास अहंकार नहीं ठहरता। जब आदमी को यथार्थ का भान हो जाता है तब उसके अहंकार का मद उसी प्रकार उतर जाता है जैसे कुनैन की टेबलेट लेने से मलेरिया बुखार उतर जाता है। इस प्रकार अहंकार एक शत्रु है और शत्रु भी इसलिए कि वह विकास में बाधा पहुंचाता है। अप्रमाद मित्र इसलिए है कि वह आदमी को विकास के पथ पर अग्रसर करता है। दुनिया में भय का स्थान कौनसा है और शरण का स्थान कौनसा है? इसका सुंदर समाधान दिया गया- 'माया भयं किं सरणं तु सच्चं'- माया भय है और सत्य शरण है। जो आदमी छलना, वंचना करता है कि वह भयभीत रहता है। मायावी आदमी अपनी एक बात को छुपाने के लिए नया झूठ बोलता है, माया का नया जाल गूंथता है और सोचता है कि कहीं मेरी बात प्रकाशित न हो जाए। इस प्रकार माया में भय का वातावरण बना रहता है। जहां सच्चाई है, स्पष्टता है वहां निर्भीकता रहती है। सत्यवादी आदमी के पास जीवन में परेशानियां तो आ सकती है, संघर्ष आ सकते हैं, किंतु उसके पास इतना मनोबल होता है, आत्मबल होता है कि वह परास्त नहीं होता। सत्य की शरण में रहने वाला व्यक्ति पूर्णतया सुरक्षित रह सकता है। इसलिए ठीक कहा गया है कि माया भय का स्थान है और सत्य शरण का स्थान है।
आचार्य महाश्रमण