ShortNews in English
Asadha: 22.01.2013
Acharya Mahashraman said people who have strong faith in honesty, morality, duty whose heart are like holy temple. He also inspired people to stay dedicated towards Sangh.
News in Hindi
पवित्र मन में होता है आराध्य का वास'
असाड़ा (बालोतरा) 22 जनवरी 2013 जैन तेरापंथ समाचार ब्योरो
मन को मंदिर बनाने के लिए अहिंसा की साधना आवश्यक है। जब मन पवित्र होता है तो उसमें आराध्य का वास होता है।' ये उद्गार तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने सोमवार को असाड़ा के वर्धमान समवसरण में उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। आचार्य ने बाह्य आडंबरों पर कटाक्ष करते हुए कहा कि मन मंदिर मे विराजित आराध्य की आराधना के लिए स्तुति की आवश्यकता है न कि दीप, फूल आदि की। मन की मलीनता का कारण है राग द्वेष और चंचलता। यह सब कोई जानते हैं। इसलिए कुछ समय आराध्य की आराधना करने से मन में इनका आवेग कम होता है। मन को पवित्र बनाने के लिए पराक्रम की आवश्यकता होती है। साधना के विकास के लिए शरीर व वाणी की अपेक्षा मन पर अधिक ध्यान देना चाहिए। मन के भाव ही बंधन और मोक्ष के कारण है। विषय युक्त भाव बंधन की ओर ले जाने वाला, विषय मुक्त भाव मुक्ति की ओर ले जाने वाला है। आचार्य ने संन्यासियों के लिए कहा कि जो साधु, साध्वी बनते हैं, जिन्होंने साधना के लिए अति निष्क्रमण किया है, उन्हें साधना के लिए अपना पराक्रम करना चाहिए। जिस व्यक्ति के जीवन में ईमानदारी, नैतिकता, कर्तव्यनिष्ठा, मैत्री और संयम के भाव होते हैं। उनका मन आराध्य की आराधना का पवित्र मंदिर होता है। मुनि शांतिप्रिय ने अपने भावों की प्रस्तुति दी। भाईचारे के साथ नशामुक्त जीवन जीएं 'व्यक्ति अपने संगठन से है, उसके प्रति सम्मान की भावना सदस्यों के संबंधों में मजबूती लाती है। यदि संबंध मजबूत न हो तो संगठन चिर स्थाई नहीं रह सकता है।' ये उद्गार आचार्य महाश्रमण ने दोपहर सत्र में आयोजित किसान सम्मेलन को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि शासन के सदस्यों के मन में होना चाहिए कि यह शासन मेरा है। मैं इस संघ का हूं। यह एकत्व बना रहे। शासन संघ बड़ा है। संगठन का प्रमुख चाहे वह कोई भी हो संगठन का शीर्ष होता है। इसलिए समूह में शासन में उनका महत्व अधिक है। व्यक्ति स्वल्प कालिक है। परंतु शासन चिरकालिक होता है। शासन के प्रति प्रेम श्रद्धा, निष्ठा एवं आत्मीयता का भाव रखना चाहिए। संगठन के हर व्यक्ति को अनुशासन, मर्यादा, आचार्य, आचार्य की आज्ञा का सम्मानपूर्वक पालना करना चाहिए। साध्वी अशोक ने अपने सिंघाड़े सहित आचार्य के दर्शन किए तथा भावाभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार ने किया। उन्होंने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि किसान आपस में लड़ाई झगड़ा न करें, नशा मुक्ति से जीवन जीएं। आचार्य महाश्रमण ने कहा कि किसान अन्नदाता है। नशे की आदत आर्थिक दृष्टि से नुकसानदायक है। स्वागत भाषण संयोजक बाबूलाल सिंघवी ने दिया। कार्यक्रम में पूर्व गृह राज्यमंत्री अमराराम चौधरी ने भी विचार व्यक्त किए। मांगीलाल भंसाली ने आभार ज्ञापित किया। संचालन जवेरीलाल एम संखलेचा ने किया।