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वीर तेरस मनाई गई
तिरूवन्नामल्लै, 2 अप्रेल
आज वीर तेरस के उपलक्ष्य में आयोजित विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. ने कहा- परमात्मा महावीर के जीवन की सबसे बडी विशिष्टता है कि उनका आचार पक्ष व विचार पक्ष एक समान था। मात्र उपदेश देने वाले तो हजारों हैं, पर उनका अपना जीवन अपने ही उपदेशों के विपरीत होता है।
ऐसे व्यक्ति पूज्य नहीं हुआ करते। पूज्य तो वे ही होते हैं, जिनकी कथनी करणी एक समान हो।
उन्होंने कहा- आज विश्व में आसुरी प्रवृत्तियों का बोलबाला है। भौतिकता के विकास ने मानवता का
विनाश किया है। सुविधाओं ने शांति के बदले अशांति दी है। दूरसंचार और आवागमन के वाहन साधनों ने विश्व की भौगोलिक दूरी को जरूर कम किया है, पर मनुष्य के बीच हृदय की दूरी अवश्य बढ गई है। आर्थिक लोभवृत्ति ने भाई भाई को लडा दिया है। पारस्परिक वैमनस्य चरम सीमा पर पहुंचा है। स्वार्थ की तराजू में मानवीय संबंध तोले जा रहे हैं। विलासिता की अंधी दौड में आदमी नग्नता का प्रदर्शन कर रहा है।
ऐसे समय में परमात्मा महावीर के अजर अमर और समय निरपेक्ष सिद्धान्त ही हमारी रक्षा कर सकते हैं।
आज अहिंसा, अनेकांत और अपरिग्रह इन तीन सिद्धान्तों को अपनाने की अपेक्षा है। ये तीन सिद्धान्तों के आधार पर पूरे विश्व में शांति और आनन्द का वातावरण छा सकता है।
उन्होंने परमात्मा महावीर के साढे बारह वर्षों में साधना काल की विवेचना करते हुए कहा- परमात्मा महावीर ने क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष इन भावों को तिलांजलि देकर मौन साधना का प्रारंभ किया। क्रोध की स्थितियों में भी वे पूर्ण करूणा के भावों से भर जाते थे। उनके जीवन की व्याख्या सुनते हुए जब उन्हें मिले कष्टों का विशद विवेचन सुनते हैं तो हमारी आंखों में अश्रु धारा बहने लगती है। संगम देव और कटपूतना के द्वारा दिये गये उपसर्गों को जब सुनते हैं तो हमारे रोंगटे खडे हो जाते हैं। परन्तु परमात्मा महावीर तो करूणा की साक्षात् मूर्ति थे। चण्डकौशिक को उपदेश देने के लिये स्वयं चल कर उसकी बाबी तक पहुॅंचे थे।
उन्होंने परमात्मा महावीर और गौतम स्वामी के संबंधों की व्याख्या करते हुए कहा- गुरू गौतम स्वामी के हृदय में परमात्मा महावीर के प्रति अपार प्रेम था। यही कारण था कि वे स्वयं चार ज्ञान के स्वामी होने पर भी हर सवाल परमात्मा से पूछते थे। ताकि सारी जनता को परमात्मा से उत्तर प्राप्त हो।
इस अवसर पर मुनि विरक्तप्रभसागर ने कहा- हम सभी परमात्मा महावीर के अनुयायी हैं। हमें संकल्प लेना है कि हम परमात्मा जैसे भले नहीं बन पाये परन्तु परमात्मा के अनुयायी तो अवश्य बनेंगे। उन्होंने चंदनबाला का उदाहरण सुनाते हुए उसके हृदय की संवेदनशील भावनाओं को प्रकट किया। उन्होंने कहा- परमात्मा जैसी दृढता और समता का भाव अपने हृदय में बसाना है।
साध्वी विश्वज्योति श्रीजी ने कहा- भगवान महावीर की देशना से जीवन का कल्याण संभव है। विश्व में यदि शांति चाहिये तो हमें परमात्मा के सिद्धान्तों को अपने जीवन में उतारना होगा।
इस अवसर पर साध्वी जिनज्योतिश्रीजी ने भी सभा को संबोधित किया। प्रवचन सभा से पूर्व जिन मंदिर से भव्य शोभायात्रा निकाली गई। जिसमें समस्त जैन समाज सम्मिलित हुआ। प्रवचन के बाद स्वामिवात्सल्य का आयोजन किया गया जिसका लाभ ब्यावर निवासी श्री शांतिलालजी सुशीलकुमारजी कांकरिया परिवार ने लिया।
यह ज्ञातव्य है कि सन् 2010 के पूज्यश्री के ब्यावर चातुर्मास में संपूर्ण साधर्मिक भक्ति का लाभ आपने ही प्राप्त किया था।
प्रेषक
मुकेश प्रजापत
प्रवक्ता