Source: © Facebook Muni Saurabh Sagar Ji Maharaj
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जैन बोर्डिग हाउस ऋषभ हॉल मेरठ में जैनमुनि श्री 108 सौरभ सागर जी महाराज ने भाव पर प्रवचन दिया।
उन्होंने कहा कि प्रणाम ही हमारे परिणाम का द्योतक है। भावना में भाव न हो तो बेकार है। भावना में भाव हो तो भव से बेड़ा पार है।
मुनिश्री ने कहा कि र्तीथकर बनने के लिए सोलह भावना, मुनि बनने के लिए बारह भावना व गृहस्थ के लिए चार भावना लानी पड़ेंगी। हमारा हाल ऐसा है कि गुण देखते हैं तो ईष्र्या हो जाती है और मैत्री देखते हैं तो फूट डालने की भावना आ जाती है, हमारा ये हाल है। अगर समता का भाव है तो क्लेश, दुख का भाव नहीं रहेगा।
जैन शास्त्रों में प्रत्येक समय अपने भावों को सम्हालने के लिए पांच-पांच भावनाएं बतायी हैं। जिसकी जैसी भावना होती है, उसे उसमें ही आनंद आने लगता है। प्रणाम उसे करना चाहिए, जिसमें देवत्व का भाव प्रकट हो चुका हो। भले ही वह कोई भी जीव हो।
उन्होंने बताया कि धर्म जीवन का निचोड़ है, व्याख्या नहीं व्यक्ति है, परिभाषा नहीं प्रयोग है। धर्म प्रदर्शन की नहीं आत्म दर्शन की वस्तु है।
शाम को गुरुभक्ति व मुनिश्री की सामूहिक आरती हुई।