❖ राजस्थान उच्च न्यायालय ने संथारा / सल्लेखना के निर्णय में अपने आदेश में क्रमांक 42 पर साफ तौर पर लिखा कि:- ❖
"प्रतिवादी (जैन समाज) "संथारा या सल्लेखना" को आवश्यक धार्मिक प्रथा साबित करने में असफल रहा है! ऐसा कोई भी सबूत या अन्य सामग्री नहीं दी गयी जिससे यह साबित हो सके कि जैनों द्वारा भारत के संविधान के लागू होने से पहले या बाद में संथारा या सल्लेखना का पालन किया हो, जिससे उन्हें संविधान के अनुच्छेद 25 के अंतर्गत धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त हो सके"
भारत सरकार के भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा सम्पूर्ण भारत से प्राप्त सैकड़ों अतिप्राचीन जैन शिलालेखों में जैन संतों और श्रावकों द्वारा सल्लेखना लिए जाना प्रकाशित किया गया है! जिसे भारत की कोई भी कोर्ट या सर्वोच्च न्यायालय अस्वीकार नहीं कर सकता!
उपरोक्त निर्णय में एक भी प्राचीन शिलालेख का वर्णन नहीं किया गया, जैसा कोर्ट ने भी कहा, ऐसा प्रतीत होता है कि संथारा विषय पर मुकदमा लडने वालो ने प्रमाणिक तथ्य पेश ही नहीं किये...........विश्व जैन संगठन [ Mr. Sunjay Jain ]