Source: © Facebook Muni Saurabh Sagar Ji Maharaj
जैनमुनि सौरभ सागर महाराज ने जैन बोर्डिग हाउस में कहा कि बिना छोड़े, जोड़ा नहीं जा सकता। वस्तु तो छोड़ते हैं और गुणों को ग्रहण करते हैं। विसर्जन स्वास्थ्य का प्रतीक है और सृजन शक्ति का।
मुनिश्री ने कहा कि श्रेष्ठ आषाढ़ का चूका किसान और डाल का चूका बंदर सदा पछताते हैं। बोले कि जीवन में क्रियाएं तो बहुत हो जाती हैं मगर परिणाम सुखद नहीं हो पाता। इसलिए दर्शन को सर्वप्रथम कहा जाता है। पांचों इंद्रियां ही भक्ष्य और अभक्ष्य का निर्णय करती हैं। परिवर्तन चाहते हो सबसे पहले भगवान को देखो। ऐसा करने से भावों में परिवर्तन आ जाएगा।