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by Ashok Jain
23-09-2015
उत्तम संयम
मुनि श्री सौरभ सागर ने कहा कि आज का दिन उत्तम संयम का दिन है। इस संसार में मात्र दो ही मार्ग है। पहला योग दूसरा भोग। योग सन्यास का व भोग संसार का मार्ग है। योग प्रभुता की यात्र व भोग पशुता की ओर ले जाता है। योग वस्तुओं से संबंध घटाता है और भोग बढ़ाता है। संयम ही तुम्हारे भीतर बैठे भोग को मिटाता है। क्षुद्र को विराट बनाता है। स्वयं को बांधता है संयम।
मुनि श्री ने कहा कि संकल्प विहीन प्राणी दीमक लगे हुए वृक्ष के समान है जो बाहर से तो तना हुआ है। संयम ही पर्यावरण की सुरक्षा करने का सर्वश्रेष्ठ साधन है। जल, थल, वायु, आकाश व वनस्पति की रक्षा हम संयमित को नष्ट न करे। अग्नि का जरूरत भर ही इस्तेमाल करे। तो हमारे संयमित व नियमित जीवन से हम इन सबों की रक्षा कर सकते है। जिसके भयावह परिणामों से बच सकते है। अगर इस संसारी जीवन का यापन करना है। तो न योग की अति करो न भोग की। संयम का अर्थ दया की अवस्था को विस्तृत करना है। संयम व नियम के एक्सप्रेस से तुम्हें मोछ मार्ग पर ले जाता है।