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by Ashok Jain
28-09-2015
अनंत चतुर्दशी के अवसर पर स्थानीय दिगंबर जैन मंदिर में भगवान वासु पूज्य नाथ का श्रद्धापूर्वक अभिषेक किया गया। इस अवसर पर शांतिधारा पूजन के पश्चात उन्हें सामूहिक रूप से 12-12 किलो के लड्डू समर्पित किए गए। अभिषेक के लिए श्रद्धालुओं की लंबी कतार लगी रही। अनंत चतुर्दशी को ही भगवान वासुपूज्य नाथ को निर्वाण की प्राप्ति हुई थी।
इस अवसर पर जैन समुदाय को संबोधित करते हुए मुनि श्री सौरभ सागर ने कहा कि निगाहें आकर्षण के मार्ग पर चंचल होकर भागने की चेष्टा करती हैं जिससे स्वयं का आचरण दूषित होता है और दूसरे का आंचल। उन्होंने कहा कि जीवन की ऊर्जा जब संसार की ओर जाती है तब संतान को जन्म देती है और जब वह ऊध्र्वारोहण की ओर जाती है तो भगवान बनने का कारण बनती है। माचिस की तीली से भगवान का दीपक भी जलता है और घर की झोपड़ी भी। आत्मा में रत होने के लिए काम और भोग को त्यागना होगा। स्त्री-पुरुष के मन में जब कामना का भाव जगता है तो दोनों एक-दूसरे से सुख चाहते हैं लेकिन दोनों की ही स्थिति भिखारी जैसी होती है जो एक-दूसरे को कुछ देने लायक नहीं हैं। सुख की कामना में दु:ख के सागर में डूबते चले जाते हैं। वंश के अंश के लिए अगर भोग किया जाए तो ठीक लेकिन वासना और भोग में नित्य रमे रहना जीवन को कीचड़ बनाना है।
उन्होंने जैन समाज से कहा कि माता, बहन, बेटी की पहचान करनी होगी। स्वयं की प}ी के अलावा पर स्त्री का त्याग करना होगा। निर्णय लेना होगा कि हम भाग कर शादी नहीं करेंगे। जागृत होकर ही शादी करना उचित है। माता-पिता द्वारा दी गई स्वतंत्रता का अनुचित लाभ उठाना कामनाओं के वशीभूत होकर अपमानित होना है।