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🌍आज की प्रेरणा 🌍......प्रवचनकार - आचार्य श्री महाश्रमण.....
प्रवचनस्थल - विराटनगर,१४.१०.१५.....
साक्षात श्रवण से प्राप्त –
आर्हत वाड्मय में एक शब्द आता है - परिक्ख भाषी | हमारी दुनियां में भाषा का बड़ा महत्व है| अनंत प्राणी ऐसे हैं जो भाषा की क्षमता के आभाव में बोल नहीं सकते | कुछ प्राणियों की भाषा को हम समझ नहीं पाते| विभिन्न देशों व प्रांतों की भाषा को भी दुसरे देश व प्रांतों के लोग समझ नहीं सकते| व्यवहार जगत के लिए भाषा बोलनी जरूरी होती है| बात को लम्बाना व सारहीन बोलना भाषा का एक विष है| भाषा के चार गुण भी होते है - पहला मित्त भाषिता, अर्थात उतना ही बोलो जितना जरूरी हो| भाषा का दूसरा गुण है - मिष्ट भाषिता अर्थात जो बोलो मधुर बोलो| अप्रिय सत्य भी मत बोलो| मीठा बोलना एक प्रकार का वशीकरण मंत्र है| स्वभाव को बदलों,स्थान को बदलने के क्या होगा| भाषा का तीसरा गुण - सत्य भाषिता | सत्य बोलें, यदि ऐसा न कर सकें तो झूठ बोलने से तो मौन रहना ही अच्छा है| बोलते हुए भी न बोलना व मौन रहना,यह वाणी की उनोदरी है| चौथा गुण - परिक्ष भाषिता बोलने से पहले सोचो तब बोलो पहले तोलो तब बोलो| आदमी विचारपूर्वक बोलने का अभ्यास रक्खे| वाणी से पवित्र सूत्रों का पाठ हो व उसमें भी तन्म- यता जुड़ जाए तो विशेष बात है| वाणी-संयम मौन ही का एक रूप है | हम वक्ता न भी बन सकें तो वाकपटु तो बनें ही| अपेक्षा है– भाषा के सम्यक प्रयोग की ओर हमारा ध्यान केन्द्रित हो|
दिनांक - १४ अक्तुबर, २०१५
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शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी के मंगल सान्निध्य से प्रवचनकालीन झलकियाँ।
दि.14.10.2015
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